गीता
गीता की गणना प्रस्थानत्रयी में की
जाती है, जिसमें उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र
भी सम्मिलित हैं। अतएव भारतीय परम्परा के अनुसार गीता का स्थान वही है जो उपनिषद्
और धर्मसूत्रों का है। उपनिषदों को गौ (गाय) और गीता को उसका दुग्ध कहा गया है।
इसका तात्पर्य यह है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या थी, उसको
गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। उपनिषदों की अनेक विद्याएँ गीता में हैं। जैसे,
संसार के स्वरूप के संबंध में अश्वत्थ विद्या, अनादि अजन्मा ब्रह्म के विषय में अव्ययपुरुष विद्या, परा प्रकृति या जीव के विषय में अक्षरपुरुष विद्या और अपरा प्रकृति या
भौतिक जगत के विषय में क्षरपुरुष विद्या। इस प्रकार वेदों के ब्रह्मवाद और
उपनिषदों के अध्यात्म, इन दोनों की विशिष्ट सामग्री गीता में
संनिविष्ट है। उसे ही पुष्पिका के शब्दों में ब्रह्मविद्या कहा गया है।
गीता
सप्तश्लोकी व अष्टादश श्लोकी गीता
हंसगीता
अनुगीता
ब्राह्मणगीता
ब्राह्मणगीता पन्द्रहवां अध्याय
गीता माहात्म्य
गीता माहात्म्य ग्यारहवाँ अध्याय
गीता माहात्म्य पन्द्रहवां अध्याय
गीता माहात्म्य सत्रहवां अध्याय
गीता माहात्म्य अट्ठारहवा अध्याय
श्रीमद्भगवद्गीता
श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय
श्रीमद्भगवद्गीता चतुर्थ अध्याय
श्रीमद्भगवद्गीता सातवाँ अध्याय
श्रीमद्भगवद्गीता ग्यारहवाँ अध्याय
श्रीमद्भगवद्गीता बारहवां अध्याय
श्रीमद्भगवद्गीता तेरहवां अध्याय
श्रीमद्भगवद्गीता चौदहवां अध्याय
श्रीमद्भगवद्गीता पन्द्रहवां अध्याय
श्रीमद्भगवद्गीता सोलहवां अध्याय
0 Comments