दत्तात्रेयतन्त्रम् पटल ६

दत्तात्रेयतन्त्रम् पटल

श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल ५ में आपने विद्वेषण प्रयोग पढ़ा, अब पटल ६ में उच्चाटन प्रयोग बतलाया गया है ।

दत्तात्रेयतन्त्रम् पटल ६

श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् षष्ठ पटलः

दत्तात्रेयतन्त्र छटवां पटल

दत्तात्रेयतन्त्र पटल ६     

दत्तात्रेयतन्त्र

षष्ठ पटल

उच्चाटन

ईश्वर उवाच-

अथाग्रे संप्रवक्ष्यासि उच्चाटनविधि परम्‌ ।

यस्य साधनमात्रेण भवेदुच्चाटनं नुणाम्‌ ॥ १॥

शिवजी बोले-अब मैं उच्चाटनविधि को कहता हूं, जिसके साधन मात्र से मनुष्यों का उच्चाटन होता है ।

येनाह्रतं गृहं क्षेत्रं कलत्रं धनपुत्रकम्‌ ।

उच्चाटनं वधं कुर्य्याच्छुणु योगीन्द्र यत्नत: ॥ २ ॥

हे योगिराज ! (दत्तात्रेयजी ) जिसने घर, खेत, स्त्री पुत्रादि का हरण किया हो उसका उच्चाटन और मारण करे (उसको ) सुनो ।

ब्रह्मदण्डीं चिताभस्म शिवलिङ्गे प्रलेपयेत्‌ ।

सिद्धार्थेन च संयुक्त शनिवारे क्षिपेद्गृहे ॥ ३ ॥

उच्चाटनं भवेत्तस्य स्त्रीपुत्रर्बान्धवैस्सह ।

उच्चाटनं परं चेतन्नान्यथा मम भाषितम्‌ ॥ ४ ॥

ब्रहदण्डी, चिता की भस्म और सरसों मिलाय शिवलिंग पर लेप कर शनिवार के दिन मन्त्र से अभिमन्त्रित कर जिसके घर में डाले उसके स्त्री, पुत्र और कुटुम्बीजनों के साथ उच्चाटन हो जाता है यह शंकर का सत्य वचन है ।

गृहीत्वा रासभीं धूलिं वामपादेन निश्चितम्‌ ।

मध्याह्ने भौमवारे च यद्गृहे प्रक्षिपेन्नर: ॥। ५ ।।

उच्चाटनं भवेत्तस्य जायते मरणान्तकम्‌ ।

बिना मन्त्रेण सिद्धिश्च सिद्धयोग उदाहृत: ॥। ६ ॥।

जिस स्थान में गदहा लेटा हो उस स्थान की घूल को मंगल के दिन दुपहर के समय बाये पैर से उठाकर जिसके घर में फेंकी जाय उसका जीवनपर्य॑न्त उच्चाटन होता है यह विना मन्त्र के सिद्धि देनेवाला सिद्ध प्रयोग है ।

सिद्धार्थाञ्छिवनिर्माल्यं यद्गृहे निखनेन्नरः ।

उच्चाटनं भवेत्तस्य उद्धृते च पुन: सुखी ॥ ७ ॥

सरसों और शिवनिर्माल्य को ले मनुष्य जिसके घर में गाड दे उसका उच्चाटन होता हैं उख़ाडा जाय तब वह मनुष्य सुखी होता है ।

काकपक्षान्‌ रवेर्वारे यद्‌गृहे निखनेन्नरः ।

उच्चाटनं भवेत्तस्थ नान्यथा मम भाषितम्‌ ।। ८ ॥

काक के पंख को रविवार के दिन लेकर मनुष्य' जिसके घर में गाड दे उसका निश्चय उच्चाटन होता है ।

घूकपक्षं भौमवारे यद्गृहे निखनेन्नरः ।

उच्चाटनं भवेत्तस्थ बिना मन्त्रेण सिद्धय्ति ॥ ९ ॥

उल्लू पक्षी के पर मंगल के दिन लेकर जिसके घर में मनुष्य गाड दे उसका उच्चाटन होता है यह बिना ही मन्त्र के सिद्ध होता है ।

घूकविष्ठां च संगृह्य सिद्धार्थेन समन्विताम्‌ ।

यस्याङ्गे निक्षिपच्चूर्ण सद्य उच्चाटनं भवेत्‌ ॥ १० ॥

उल्लू पक्षी की वीट में सरसों मिलाय सुखाकर पीसले फिर उस चूर्ण को जिसके अंग पर डाले उसका तत्काल उच्चाटन हो जाता है ।

गृहोत्वौदुम्बरं कील मंत्रेण चतुरंगुलम्‌ ।

यस्य वै निखनेद्द्वारे स्यात्तस्योच्चाटनं ध्रुवम्‌ ।। ११॥

चार अंगुल की गूलर की लकडी मन्त्र से अभिमन्त्रित कर जिसके दरवाजे पर गाढे उसका उच्चाटन हो जाता है ।

काकोलूकस्य पक्षाणि यस्य चुल्ल्यां खनेद्रवौ ।

यन्नाममन्त्रयोगेन स्यात्तस्योच्चाटनं ध्रुवम्‌ ॥ १२ ॥

कौआ और उल्लू पक्षी के पर को रविवार के दिन जिसके चूल्हे में मन्त्र से अभिमंत्रित कर गाड़े उसका उच्चाटन होता है ।

नरास्थिकीलमादाय निखनेच्चतुरंगुलम्‌ ।

मन्त्रयुक्तं रिपोर्द्वारे शीघ्रमुच्चाटनं भवेत्‌ ॥ १३ ॥

चार अंगुल मनुष्य के हडढी की कील मन्त्र से अभिमंत्रित कर शत्रु के दरवाजे पर गाडने से शीघ्र ही उच्चाटन हो जाता है।

ॐ नमो भगवते रुदाय करालाय अमुकं

पुत्रबांधवैस्सह शीघ्रमुच्चाटय उच्चाटय स्वाहा ठ: ठ: ठ: ।

मन्त्रस्यायुतजपात्सिद्धि: ।।

'ओं नमो भगवते' से 'ठ: ठ: ठ:' तक उच्चाटन का मन्त्र है यह विधान से दश हजार जपने पर सिद्ध हो जाता है ।

इति श्रीदत्तात्रेयतन्त्रे दत्तात्रेयेश्वरसंवादे उच्चाटनप्रयोगो नाम षष्ठः पटल: ॥६ ॥

आगे जारी........ श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल ७ वशीकरण ॥

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