दत्तात्रेयतन्त्र पटल ९
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल ८ में
आपने स्त्रीवशीकरण प्रयोग पढ़ा,
अब पटल ९ में पुरुषवशीकरण प्रयोग बतलाया गया है ।
श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् नवम: पटलः
दत्तात्रेयतन्त्र नौवां पटल
दत्तात्रेयतन्त्र पटल ९
दत्तात्रेय तन्त्र
नवम पटल
पुरुषवशीकरण
गोरोचनं योनिरक्तं कदलीरससंयुतम् ।
एभिस्तु तिलकं कृत्वा पतिं तु स्ववशं
नयेत् ॥ १ ॥।
महादेवजी बोले- (हे दत्तात्रेयजी !)
गोरोचन,
योनिरक्त और केले का रस मिलाय तिलक बनाकर लगाने से स्त्री अपने पति को
वश कर लेती है ॥ १ ॥।
पंचांग दाडिमं पिष्ट्वा श्वेतसर्षपसयुतम्
।
योनिलेपे पति दासं करोत्येव च
दुर्भगा ॥ २ ॥
अनार के पंचांग और सफेद सरसों को
पीस योनि पर लेपकर दुर्भगा भी स्त्री अपने पति को दास बना लेती है ।
गृहीत्वा मालतीपुष्पं कटुतैलेन
पाचितम् ।
भगे यल्लेपयेन्नारी रतो मोहयते
पतिम् ॥ ३ ॥
चमेली के फूलों को कडुवे तेल में
पचाय जो स्त्री सम्भोग समय में अपने काममन्दिर में लेप करे तो वह अपने पति को
मोहित कर लेती है ।। ३ ॥।
ॐ नमो महायक्षिण्यै मम पतिं मे वश्यं
कुरु कुरु स्वाहा ।
(अस्य लक्षजपात्सर्वसिद्धि:) ।
ओं नमो महायक्षिण्य'
से. स्वाहा' तक पति वशीकरण का मन्त्र है,
यह लाख वार जप करने से सिद्ध होता है ।
राजवशीकरण
कुंकमं चन्दनं चैव
कर्पूरस्तुलसीदलम् ।
गवां क्षीरेण तिलकं राजवश्यकरं परम्
।। ४ ॥
केशर, चन्दन, कपूर और तुलसीदल को गौ के दुध में पीस तिलक
लगाने से राजा को वश करता है ॥। ४ ।
हरितालं चाश्वग्गंधा कर्पूरश्च मनश्शिला
।
आजाक्षीरेण तिलकं राजवश्यकरं परम्
॥ ५ ॥
हरताल,
असगन्ध, कपूर और मनशिल को बकरी के दूध में
मिलाय तिलक लगाने से मनुष्य राजा को वशीभूत करता है ।। ५ ॥॥
तालीसकुष्ठतगरेर्लिप्तां क्षौमीं
सुवर्तिकाम् ।
सिद्धार्थतैले निक्षिप्य कज्जलं
नरमस्तक ।। ६ ।॥।
पातयेदंजनात्तस्मात्सर्वदा
भुवनत्रये ।
दृष्टिगोचरमायात: सर्वो भवति दासवत्
॥ ७ ॥
तालीस,
कूट, तगर इनको पीस रेशमी वस्त्र में लपेट
बत्ती बनाय मनुष्य की खोपडी में सरसों का तेल भर बत्ती जलाय कज्जल पारे । इस काजल को
नेत्रों में लगाने से जो कोई मनुष्य दृष्टिगोचर हो वही दास के समान वश हो जाता है
॥। ६-७ ।।
करे सौदर्शनं मूलं बद्ध्वा
राजप्रियो भवेत् ।
सिहींमूलं हरेत्पुष्ये कटौ बद्ध्वा
नृपप्रिय: ।। ८ ॥
सुदर्शन की जड़ को हाथ में बांधने से
राजा का प्रिय होता है । काकडासिही की जड़ को पुष्य नक्षत्र में लाकर कमर में
बांधे तो राजा का प्यारा होता है ।। ८ ॥।
हरत्सौदर्शनं मूलं पुष्यमे रविवासरे
।
कर्पूरं तुलसीपत्रं पिष्ट्वा तु
वस्त्रलेपने ॥। ९ ॥
विष्णुक्रान्तावीजतैले तस्य
प्रज्वाल्य दीपकम् ।
कज्जलं पारयेद्रात्रौ शुचिपूर्व
समाहित: ।। १० ॥
कज्जलं चाञ्जयेनेत्रे राजवश्यकरं
परम् ।
चक्रवर्ती भवेद्वश्यो ह्यन्यलोकस्य
का कथा ॥ ११॥
रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र होने पर
सुदर्शन की जड़ लाय कपूर और तुलसीदलों के साथ पीसकर वस्त्र पर लेपन करे । पीछे विष्णुक्रान्ता
के बीजों को तेल में उसकी बत्ती बनाय दीपक जलाकर रात्रि में कज्जल पारे उस काजल को
नेत्रों में लगाने से राजा को वश करता है इस काजल के प्रताप से चक्रवर्ती राजा वशीभूत
हो जाता है और की बात ही क्या है ।। ९-११ ॥।
भौमवारे दर्शदिने कृत्वा नित्यक्रियां
शुचि: ।
बने गत्वा ह्यपामार्गवृक्षं
पश्येदुदङ्गमुख: ।॥ १२ ।।
तत्र विप्रं समाहुय पूजां कृत्वा
यथाविधि ।
कर्षमेकं सुवर्णस्य दद्यात्तस्मै द्विजन्मने
।। १३ ॥।
तस्य हस्तेन गृह्लीयादपामार्गस्य
बीजकम् ।
मौनेन स्वगृहे गच्छेत्कृत्वा
बीजांस्तु निस्तुषान् ॥॥ १४ ॥॥
रमेशं हृदये ध्यात्वा राजानं
खादयेच्च तान् ।
येन केनाप्युपायेन यावज्जीवं भवेद्वशे
।। १५ ॥।
मंगलवारी अमावास्या के दिन स्नान
पूजन आदि नित्य की क्रिया को कर वन में जाय उत्तर को मुख करके अपामार्ग के वृक्ष को
देखे । और उस स्थान में ब्राह्मण को बुलाय विधान से उस वृक्ष का पूजन करे । फिर
पूजा कराई सोलह मासे सुवर्ण ब्राह्मण को दे। उस ब्राह्मण के हाथ से आपामार्ग के
बीजों को निकलवाय उन बीजों को लेकर अपने घर मौन भाव से चला आवे फिर बीजों की बूसी
निकाल दे रमेश का ध्यान कर किसी उपाय से यह राजा को खिला दे तो जीवनपर्यन्त राजा
वशीभूत रहे ॥१२-१५।॥।
अपामार्गस्य बीजन्तु गृहीत्वा
पुष्यभास्करे ।
खाने पाने प्रदातव्यं राजबश्यकरं
परम् ॥ १६ ।।
रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र होने पर
अपामार्ग के बीज लाय खानपान में देने से राजा वश होता है ।। १६ ॥
ॐ नमो भास्कराय त्रिलोकात्मने अमुकं
महीपतिं मे वश्यं कुरुकुरु स्वाहा ॥
(एकलक्ष-जपान्मन्त्रसिद्धि:) ।
“ॐ नमो भास्कराय' से 'स्वाहां तक राजवशीकरण का मन्त्र है । यह एक लाख
जपने से सिद्ध किया जाता है।
इति श्रीदत्तात्रेयतन्त्रे दत्तात्रेयेश्वरसंवादे
राजवश्यों नाम नवम: पटल: ॥ ९ ॥
आगे जारी........ श्रीदत्तात्रेयतन्त्रम् पटल १० आकर्षण प्रयोग ॥
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