नित्य व पौरोहित्य कर्म
नित्य व पौरोहित्य कर्म
नियतं सङ्गरहितमरागद्वेषतः कृतम्।
अफलप्रेप्सुना कर्म
यत्तत्सात्त्विकमुच्यते।।
जो कर्म शास्त्रविधिसे नियत किया
हुआ और कर्तृत्वाभिमानसे रहित हो तथा फलेच्छारहित मनुष्यके द्वारा बिना
राग-द्वेषके किया हुआ हो, वह सात्त्विक
कहा जाता है।
नियतं नित्यं सङ्गरहितम्
आसक्तिवर्जितम् अरागद्वेषतःकृतं रागप्रयुक्तेन द्वेषप्रयुक्तेन च कृतं
रागद्वेषतःकृतम्? तद्विपरीतम्
अरागद्वेषतःकृतम्? अफलप्रेप्सुना फलं प्रेप्सतीति
फलप्रेप्सुः फलतृष्णः तद्विपरीतेन अफलप्रेप्सुना कर्त्रा कृतं कर्म यत्? तत् सात्त्विकम् उच्यते।।
अब कर्मके तीन भेद कहे जाते हैं --,
जो कर्म नियत -- नित्य है तथा सङ्ग -- आसक्तिसे रहित है और फल न
चाहनेवाले पुरुषद्वारा बिना रागद्वेषके किया गया है? वह
सात्त्विक कहा जाता है। जो कर्म रागसे या द्वेषसे प्रेरित होकर किया जाता है?
वह रागद्वेषसे किया हुआ कहलाता है और जो उससे विपरीत है वह बिना
रागद्वेषके किया हुआ है। जो कर्ता कर्मफलको चाहता है? वह
कर्मफलप्रेप्सु अर्थात् कर्मफलकी तृष्णावाला होता है और जो उससे विपरीत है वह
कर्मफलको न चाहनेवाला है।
स्नानं संध्या जपो होमः स्वाध्यायो
देवतार्चनं।
तर्पणं वैश्वदेवं च षट कर्माणि दिने दिने।।
इन्हें नित्यकर्म कहा जाता है। इसी
प्रकार यज्ञ-अनुष्ठान,पूजा-पाठ,अग्निहोत्र आदि धार्मिक कर्मकाण्ड करना या कराना पौरोहित्य कर्म कहलाता
है।
नित्य व पौरोहित्य कर्म
डी पी कर्मकांड भाग-१
आचमन-प्राणायाम विधि
डी पी कर्मकांड भाग २ गौरी गणेश पूजन विधि
डी पी कर्मकांड भाग-३ कलश स्थापन
डी पी कर्मकांड भाग-४ पुण्याहवाचन
डी पी कर्मकांड भाग- ५ नवग्रह मण्डलपूजन
डी पी कर्मकांड भाग-६ अधिदेवता प्रत्यधि देवता
डी पी कर्मकांड भाग-७ पञ्चलोकपाल
पूजा - पंचलोकपाल पूजन
डी पी कर्मकांड भाग-८ दश दिक्पाल
डी पी कर्मकांड भाग-९ नान्दीश्राद्ध
डी पी कर्मकांड भाग १० आचार्यादि वरणम्
डी पी कर्मकांड भाग- ११ सप्तघृतमातृकापूजन
डी पी कर्मकांड भाग- १२
षोडशमातृकापूजन
डी पी कर्मकांड भाग- १३ चौसठ योगनीपूजन
डी पी कर्मकांड भाग१४ सर्वतोभद्रमंडल
डी पी
कर्मकांड भाग- १५ क्षेत्रपाल
डी पी
कर्मकांड भाग-१६ अग्न्युत्तारण प्राण-प्रतिष्ठा
देवी- देवताओं का गायत्री मन्त्र
गंगा भैरव पूजन - छत्तीसगढ़ कौंरीपद्धति
षष्ठी पूजन - हलषष्ठी व्रत पूजनविधि
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