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कर्मकाण्ड

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कृष्ण

कृष्ण

"कृष्ण" एक संस्कृत शब्द है, जो "काला", "अंधेरा" या "गहरा नीला" का समानार्थी है। "अंधकार" शब्द से इसका सम्बन्ध ढलते चंद्रमा के समय को कृष्ण पक्ष कहे जाने में भी स्पष्ट झलकता है। इस नाम का अनुवाद कहीं-कहीं "अति-आकर्षक" के रूप में भी किया गया है। श्रीमदभागवत पुराण के वर्णन अनुसार श्रीकृष्ण जब बाल्यावस्था में थे तब नन्दबाबा के घर आचार्य गर्गाचार्य द्वारा उनका नामकरण संस्कार हुआ था। नाम रखते समय गर्गाचार्य ने बताया कि, 'यह पुत्र प्रत्येक युग में अवतार धारण करता है। कभी इसका वर्ण श्वेत, कभी लाल, कभी पीला होता है। पूर्व के प्रत्येक युगों में शरीर धारण करते हुए इसके तीन वर्ण हो चुके हैं। इस बार कृष्णवर्ण का हुआ है, अतः इसका नाम कृष्ण होगा।' वसुदेव का पुत्र होने के कारण उनको 'वासुदेव' कहा जाता है। "कृष्ण" नाम के अतिरिक्त भी उन्हें कई अन्य नामों से जाना जाता रहा है, जो उनकी कई विशेषताओं को दर्शाते हैं। सबसे व्यापक नामों में मोहन, गोविन्द, माधव, और गोपाल प्रमुख हैं। भगवान श्रीकृष्ण विष्णु के 8वें अवतार माने गए हैं। कृष्ण को विष्णु का पूर्ण अवतार माना जाता है, या विष्णु स्वयं अवतरित हुए ऐसा माना जाता है। कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता है। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं दैवी संपदाओं से सुसज्जित महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष, युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र के दिन रात्री के १२ बजे हुआ था। कृष्ण का जन्मदिन जन्माष्टमी के नाम से जाता है। कृष्ण वसुदेव और देवकी की 8वीं संतान थे। यशोदा और नन्द उनके पालक माता-पिता थे। कुरु क्षेत्र की युद्धभूमि में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया था वह श्रीमद्भगवदगीता के नाम से प्रसिद्ध है। सभी हिन्दू ग्रंथों में, श्रीमद भगवत गीता को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। क्योंकि इसमें एक व्यक्ति के जीवन का सार है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है। इस उपदेश के लिए कृष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी दिया जाता है। बाल्यावस्था से लेकर अंत तक उन्होंने कई लीलाएं की जिसमे गोचारण लीला, गोवर्धन लीला, रास लीला, कंस वध आदि मुख्य है। महाभारत के युद्ध में उन्होंने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई और रणक्षेत्र में ही उन्हें उपदेश दिया। 124 वर्षों के जीवनकाल के बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनके अवतार समाप्ति के बाद से ही कलियुग का आरंभ माना जाता है। भागवत पुराण कृष्ण की आठ पत्नियों का वर्णन करता है, जो इस अनुक्रम में( रुक्मिणी , सत्यभामा, जामवंती , कालिंदी , मित्रवृंदा , नाग्नजिती (जिसे सत्य भी कहा जाता है),भद्रा और लक्ष्मणा (जिसे मद्रा भी कहते हैं) प्रकट होती हैं। कृष्ण भारतीय संस्कृति में कई विधाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनका चित्रण आमतौर पर विष्णु जैसे कृष्ण , काले या नीले रंग की त्वचा के साथ किया जाता है।, कुछ ग्रंथों में, उनकी त्वचा को काव्य रूप से जांबुल ( जामून , बैंगनी रंग का फल) के रंग के रूप में वर्णित किया गया है। कृष्ण को अक्सर मोर-पंख वाले पुष्प या मुकुट पहनकर चित्रित किया जाता है, और अक्सर बांसुरी (भारतीय बांसुरी) बजाते हुए उनका चित्रण हुआ है। इस रूप में, आम तौर पर त्रिभन्ग मुद्रा में दूसरे के सामने एक पैर को दुसरे पैर पर डाले चित्रित है। कभी-कभी वह गाय या बछड़ा के साथ होते है, जो चरवाहे गोविंद के प्रतीक को दर्शाती है। अन्य चित्रण में, वे महाकाव्य महाभारत के युद्ध के दृश्यों का एक हिस्सा है। वहा उन्हें एक सारथी के रूप में दिखाया जाता है, विषेश रूप से जब वह पांडव राजकुमार अर्जुन को संबोधित कर रहे हैं, जो प्रतीकात्मक रूप से हिंदू धर्म का एक ग्रंथ,भगवद् गीता को सुनाते हैं। इन लोकप्रिय चित्रणों में, कृष्ण कभी पथ प्रदर्शक के रूप में सामने में प्रकट होते हैं, या तो दूरदृष्टा के रूप में, कभी रथ के चालक के रूप में। कृष्ण के वैकल्पिक चित्रण में उन्हें एक बालक (बाल कृष्ण) के रूप में दिखाते हैं, एक बच्चा अपने हाथों और घुटनों पर रेंगते हुए ,नृत्य करते हुए , साथी मित्र ग्वाल बाल को चुराकर मक्खन देते हुए (मक्खन चोर), लड्डू को अपने हाथ में लेकर चलते हुए (लड्डू गोपाल) अथवा प्रलय के समय बरगद के पत्ते पर तैरते हुए एक आलौकिक शिशु जो अपने पैर की अंगुली को चूसता प्रतीत होता है। उन्हें कुरुक्षेत्र युद्ध में विश्वरूप में भी दिखाया जाता है जिसमें उनके कई मुख हैं और सभी लोग उनके मुख में जा रहे हैं। अपने मित्र सुदामा के साथ भी उनको दिखाया जाता है जो मित्रता का प्रतीक है।

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