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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
विवाह पद्धति
हमारे धर्म ग्रंथो ने मानव जीवन में
सोलह उपयोगी संस्कार बताये हैं जिसमें विवाह संस्कार एक प्रमुख संस्कार है। हर
प्रदेश में व समाज में विवाह की विधियाँ भिन्न-भिन्न होती है,
परंतु सभी का मूल उद्देश्य एक ही होता है। मैने स्वयं एक कर्मकांडी
ब्राह्मण होने के नाते यह महसूस किया विवाह पद्धति की अनेको संस्करण है, परंतु छत्तीसगढ़ में जो पद्धति प्रचलित है वैसा संस्करण उपलब्ध नही है अतः
जो पुराने कर्मकांडी हैं वे विभिन्न संस्करणो को मिलाकर अपना उद्देश्य किसी प्रकार
पुर्ण कर लेते है, अब कोई नये कर्मकांडी आते हैं तब उनकी
समस्या इस बात से बढ़ जाती है कि हम किस विधि से विवाह पुर्ण करवायें,इस तकलिफ को मै भलिभाँति समझ सकता हूँ क्योंकि मैं भी उन्ही में से हूँ।
इसके विषय पर मैने कई बार विचार किया कि छत्तीसगढ़ विवाह पद्धति पर लिखूँ परंतु कभी
समयाभाव के चलते, कभी इस संकोच के चलते कि विद्वत्गणो के
सामने मैं अपनी पुस्तक रख भी पाउँगा इस वजह से अभी तक टालता रहा और अब हिम्मत
जुटाकर इस पुस्तक को आप सभी विद्वतगणो को समर्पित करता हूँ। अतः समस्त पाठको से
अपनी इस पुस्तक में अगर कोई त्रुटि रह गया हो उसके लिए क्षमा चाहते हूए आपके सम्मुख
अपनी कृति रखता हूँ, आशा करता हूँ मेरे प्रयाश को सफल
करेंगे। मैने विभिन्न वैवाहिक ग्रंथो को आधार बनाकर इस रचना को पूर्ण किया,
अतएव इसके मौलिकता पर आँच न आवे प्रयास किया, व
स्वयं का होने का दावा नही करता। यह पुस्तक सभी पाठको के लिए उपयोगी है क्योंकि
जहाँ यह पुस्तक समान्य पाठको को वैवाहिक विधियो से अवगत कराता है, वहीं कर्मकांडीयों को अपने कर्मकांड को सुगम व सरल तथा हो रही समस्यो से
पूर्ण रुपेण निजात दिलाती है। पुनः आप सभी पाठको से रह गई त्रुटियो के लिए क्षमा
याचना करते हूए कहना चाहूँगा कि रह गई त्रुटियो से विद्वतगण अवगत करावें। धन्यवाद
- पं.डी.पी.दुबे
पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह पद्धति
इससे पूर्व आपने इन विधियों को
पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह पद्धती प्रथम भाग,
द्वितीय भाग में पढ़ा। अब इसके आगे आप छत्तीसगढ़ विवाह पद्धती अंतिम
भाग में शाखोच्चार विवाह विधि पढ़ेंगे। पुनः आप सभी पाठकों से निवेदन है की आप नीचे
कॉमेंट बॉक्स पर अपने प्रदेश व समाज की विवाह पद्धती अवश्य ही लिखे ताकि अन्य
प्रदेश के पाठकों तक आपकी विधि का ज्ञान प्राप्त हो सके।
विवाह पद्धति
अथ पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़
विवाह पद्धती अंतिम भाग
झाँपी(पेटी) बुलाव
सर्वप्रथम झाँपी बुलाव करने के बाद
पुजा सामान मांगे, अब कन्या को
बुलायें । (कन्या सर्वप्रथम अपने ऊपर जल छिड़कें) गौरी-गणेश, नवग्रह,
कलश पुजा करावें-
ॐ अपवित्रःपवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं
सवाह्मभ्यन्तरः शुचिः।।
ॐ नारायणाय नमः।। ॐ केशवाय नमः।। ॐ माधवाय नमः।।
ॐ गोविंदाय नमः।।
कन्या को चाँवल,
फुल, दुबी पकड़ायें सभी देवताओं का ध्यान
करवायें-
ॐ लक्ष्मी नारायणाभ्यां नमः।। ॐ
उमामहेश्वराभ्यां नमः।। ॐ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यांनमः।। ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नमः।। ॐ
मातृपितृ चरणकमलेभ्यो नमः।। ॐ इष्टदेवताभ्यो नमः।। ॐ कुलदेवताभ्यो नमः।। ॐ
ग्रामदेवताभ्यो नमः।। ॐ स्थानदेवताभ्यो नमः।। ॐ वास्तुदेवताभ्यो नमः।। ॐ सर्वेभ्यो
देवेभ्यो नमः।। ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।। ॐ सिद्धि बुद्धिसहिताय
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।।
अब कन्या के पिता को चाँवल,जल देकर संकल्प करावें-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः
श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णुराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्राह्मणोऽह्नि
द्वितीय प्रहरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे
कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भारतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गते (अमुक) प्रदेशे
(अमुक) नामग्रामे (अमुक) सम्वतसरे (अमुक) आयने (अमुक) मासे (अमुक) पक्षे (अमुक) ऋतौ
(अमुक) तिथौ (अमुक) वासरे (अमुक) नामिनः(अमुक) गोत्रोत्तपन्ने मम अस्याः कन्या
विवाहकर्मांहं करिष्ये ।।
(हाथ का चाँवल,जल जमीन में छोड़ दें)
कन्या को चाँवल,फुल,दुबी पकड़ायें गौरी-गणेश का ध्यान करवायें-
ॐ गजाननं भूतगणादिसेवितं
कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि
विघ्नेश्वरपादपंकजम् ।।
ॐ गणानां त्वा गणपति ઈ हवामहे प्रियाणां त्वाप्रियपति ઈ हवामहे निधीनां त्वा निधीपतिઈहवामहे वसो मम
आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् ।।
ॐ सर्वमंगलमांगल्ये शिवे
सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी
नमोऽस्तुते ।।
हेमाद्रितनयां देवीं वरदां
शंकरप्रियाम् ।
लम्बोदरस्य जननीं गौरीमावाहयाम्यहम्
।।
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य
बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वष्टिं यज्ञઈसमिमं दधातु ।
विश्वे देवास इह मादयन्तामो३
म्प्रतिष्ठ ।।
अस्यो प्राणाःप्रतिष्ठन्तु अस्यो
प्राणाः क्षरन्तु च ।
अस्यो देवत्वमर्चायो मामहेति च
कश्चन सर्वदेवेभ्यो सुप्रतिष्ठते वरदे भवेताम् ।।
(प्रतिष्ठा सहिताय षोडषोपचार
पुजनं समर्पयामि)
(हाथ का चाँवल,जल गौरी-गणेश में छोड़ दें)
पुनः कन्या को चाँवल,फुल,दुबी पकड़ायें नवग्रह का ध्यान करायें-
ॐ सूर्याय नमः आवाहयामि स्थापयामि ।।
ॐ चंद्राय नमः आवाहयामि स्थापयामि ।।
ॐ मंगलाय नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
ॐ बुधाय नमः आवाहयामि स्थापयामि ।।
ॐ बृहस्पतियाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि ।।
ॐ शुक्राय नमः आवाहयामि स्थापयामि ।।
ॐ शनिश्चराय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
ॐ राहूवे नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
ॐ केतवे नमः आवाहयामि स्थापयामि ।।
ॐ ब्रह्य मुरारिस्त्रिपुरांतकारी
भानुः शशि भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्चशुक्रःशनिराहुकेतवः
सर्वेग्रहाःशन्तिकराभवन्तु ।।
सूर्यः शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं
सन्मंगलं मंगलः
सदबुद्धिं च बुधो गुरुश्च गुरुतां
शुक्रः सुखं शं शनिः।
राहुर्बाहुबलं करोतु सततं केतुः
कुलस्योन्नति
नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते
सर्वेऽनुकूला ग्रहाः।।
अस्मिन् नवग्रह मण्डल देवताभ्यो नमः
षोडषोपचार पुजनं समर्पयामि ।।
(हाथ का चाँवल,जल नवग्रह में छोड़ दें)
पुनः कन्या को चाँवल,फुल,दुबी पकड़ायें कलश में वरुण आदि देवों तथा षोडष
मातृकाओं का ध्यान करायें-
ॐ गौरी-गणपतये नमः। ॐ पद्मायै नमः। ॐ शच्यै नमः। ॐ मेधायै नमः। ॐ सावित्र्यै
नमः। ॐ विजयायै नमः। ॐ जयायै नमः। ॐ देवसेनायै नमः। ॐ स्वाधायै नमः। ॐ स्वाहायै
नमः। ॐ मातृभ्यो नमः। ॐ लोकमातृभ्यो नमः। ॐ धृत्यै नमः। ॐ पुष्टयै नमः। ॐ तुष्टयै नमः। ॐ
आत्मनःकुलदेवतायै नमः।।
ॐ विष्णुदेवाय नमः आवाहयामि स्थापयामि ।।
ॐ
ब्रह्म देवाय नमः आवाहयामि स्थापयामि ।।
ॐ रुद्रदेवाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि ।।
ॐ इन्द्रदेवाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
ॐ कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः
समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये
मातृगणाः स्मृताः।।
कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा
वसुन्धरा ।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो
ह्यथर्वणः।।
अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु
समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः
पुष्टिकरी तथा ।।
आयान्तु देवपूजार्थं
दुरितक्षयकारकाः।
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति ।
नर्मदे सिन्धुकावेरी जलेऽस्नि्
संनित्र्ध कुरु ।।
सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा
नदाः।
आयान्तु मम शान्त्यर्थं
दुरितक्षयकारकाः।।
अस्मिन वरुणादि आवाहित
देवि-देवताभ्यो नमः षोडषोपचार पुजनं समर्पयामि ।।
(हाथ
का चाँवल,जल कलश में छोड़ दें)
अब गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश सभी देवताओं का पुजन करावे-
स्नान-
ॐ शुद्धवालःसर्वशुद्धवालो मणिवालस्त
आश्विनाः।
श्वेतः श्वेताक्षोऽरुणस्ते रुद्राय
पशुपतये कर्णा
यामा अवलिप्ता रौद्रा नभोरुपाः
पार्जन्याः।।
शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
वस्त्र(मौलीधागा)-
ॐ शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जाया
रक्षणं परम् ।
देहालंकरणं वस्त्रमतः शान्ति
प्रयच्छ मे ।। (वस्त्रं समर्पयामि।)
यज्ञोपवीत(जनेऊ)-
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं
प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुच्च शुभ्रं
यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।। (यज्ञोपवीतं समर्पयामि।)
अक्षत(पीला चाँवल)-
ॐ अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ
कुमकुमाक्ताःसुशोभिताः।
मया निवेदिता भक्तया गृहाण परमेश्वर
।। ( अक्षतान् समर्पयामि।)
फुल-
ॐ ओषधीः प्रति मोदध्वं पुष्पवतीः
प्रसूवरीः।
अश्वा इव सजित्वरीर्वीरुधः
पारयिष्णवः।। (पुष्पं समर्पयामि।)
दूर्वा(दुबी)-
ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः
परुषपरि ।
एवा नो दूर्वे प्र तनु सहस्त्रेण
शतेन च ।।( दूर्वाअंकुरान् समर्पयामि।)
कुमकुम-
ॐ कुमकुमं कामदं दिव्यं
कामनीकामसम्भवम् ।
कुमकुमेर्नार्चता देव्यः कुमकुमं
प्रतिगृह्यताम् ।। ( कुमकुमं समर्पयामि।)
हरिद्राचूर्ण-
ॐहरिद्रारंजिते देवि!सुखसौभाग्यदायि
।
तस्मात् त्वां पूजयाम्यत्र सुखं
शांति प्रयच्छ मे ।। (हरिद्रा समर्पयामि।)
सिन्दूर-
ॐसिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं
सुखवर्धनम् ।
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं
प्रतिगृह्यताम्।। (सिन्दूर समर्पयामि।)
गुलाल-
ॐ अबीरं च गुलालं हरिद्रादिसमन्विम्
।
नाना परिमलं द्रव्यं गृहाण परमेश्वर
।। (नाना परिमलं द्रव्याणि समर्पयामि।)
धूप(दसांग)-
ॐ वनस्पतिरसोद्धूतो गन्धढ्यो गन्ध
उत्तमः।
आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं
प्रतिगृह्यताम् ।। (धूपमाघ्रापयामि।)
दीप(अगरबत्ती)-
ॐ साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना
योजितं मया ।
दीपं गृहाण देवेश
त्रैलोक्यतिमिरापहम् ।।
भक्तया दीपं प्रयच्छामि देवाय
परमात्मने ।
त्राहि मां निरयाद् घोराद्
दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ।। (दीपं दर्शयामि)
नैवेद्य-
ॐ शर्करा खण्डखद्यानि
दधिक्षीरघृतानि च ।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं
प्रतिगृह्यताम ।। (नैवेद्यं निवेदयामि)
नारियल-
ॐ इदं फलं मया देव स्थापितं
पुरतस्तव ।
तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि
जन्मनि ।। (अखण्ड ऋतफलं समर्पयामि)
ताम्बूल-
ॐ पूंगीफलं महद्दिव्यं
नागवल्लीदलैर्युतम् ।
एलादिचूर्णसंयुक्तं
ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम ।।
(एलालवंग
पूंगीफलसहितं ताम्बूलं समर्पयामि)
दक्षिणा-
ॐ हिरण्यगर्भं: समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् ।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै
देवाय हविषा विधेम् ।। (द्रव्य दक्षिणां समर्पयामि)
आरती-
ॐ कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं तु
प्रदीपितम् ।
आरर्तिकमहं कुर्वे पश्य मे वरदो भव ।।
(आरर्तिकं समर्पयामि)
कन्या को चाँवल,फुल,दुबी पकड़ायें सभी देवताओं का प्रार्थना करवायें-
ॐ विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय
लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय ।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय
गौरीसुतायगणनाथ नमो नमस्ते ।।
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली
कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा
स्वधा नमोऽस्तुते ।।
ॐ शांताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं
सुरेशं
विश्वाधारंगगन सदृशं मेघवर्णं
शुभाँगम् ।
लक्ष्मीकांतं कमलनयनं
योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथं
।।
(मंत्र पुष्पांजलिं
समर्पयामि क्षमा प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि)
(हाथ का चाँवल, फुल,जल सभी देवताओं में छोड़ दें)
अँजुली कार्य-
कन्या का दोनों हाथ फैंलाकर उसमें
चाँवल,आलू या आम रखातें जाँयें इस प्रकार सात बार आर्चाय के लिए,फिर पाँच बार नाई (ठाकुर) या सुवाँसिन के लिए अँजुली भरवाए-
पहला-
प्रथम अंजली समुत्पन्नं विष्णु देव
समन्वितम् ।
लक्ष्मी प्रति कार्येषु तस्य अंजुली
शुभं भवतु ।।
दूसरा-
द्वितीय अंजली समुत्पन्नं ब्रह्म
देव समन्वितम् ।
ब्रह्मणी प्रति कार्येषु तस्य
अंजुली शुभं भवतु ।।
तीसरा-
तृतीय अंजली समुत्पन्नं रुद्र देव
समन्वितम् ।
पार्वती प्रति कार्येषु तस्य अंजुली
शुभं भवतु ।।
चौथा-
चतुर्थ अंजली समुत्पन्नं गौतम देव
समन्वितम् ।
अहिल्या प्रति कार्येषु तस्य अंजुली
शुभं भवतु ।।
पाँचवा-
पंचम अंजली समुत्पन्नं इन्द्र देव
समन्वितम् ।
इन्द्राणी प्रति कार्येषु तस्य
अंजुली शुभं भवतु ।।
छटवा-
षष्टमो अंजली समुत्पन्नं चन्द्र देव
समन्वितम् ।
रोहणी प्रति कार्येषु तस्य अंजुली
शुभं भवतु ।।
सातवां-
सप्तमो अंजली समुत्पन्नं सूर्य देव
समन्वितम् ।
सुसंज्ञा प्रति कार्येषु तस्य
अंजुली शुभं भवतु ।।
अब चढ़ाव सामान (कपड़ा,मौर,गहना आदि) मांगकर कन्या को दें गौरी माता का
ध्यान करावें आर्चाय पीलाचाँवल छिड़ककर कन्या को घर भेजें-
ॐ येन कामेन मे देव अर्चितासि
महेश्वरि ।
रुपं देहि च सौभाग्यं प्रसन्ना भव
पार्वती ।।
पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह
पद्धती अंतिम भाग
वर बुलाव-
(बैठकी का साड़ी मांगकर बिछवायें)
(माई साड़ी तथा जितना भी साड़ी समाज के अनुसार एवं कुंड़ा लायें हों उसे दिलवा देवें)
वर आाँये तब सर्वप्रथम मौर सोपवाये-
नोट- ब्राह्मण व राजपूत
समाज में मौर नहीं सोपवाते हैं। ब्राह्मणों में वर द्वार पर आते हैं तब कन्या के
माँ आकर आँचल फैलाती है तब वर उस आँचल में सतलडुवा डालता है और अपनी सास का आँचल
पकड़ता है तब सास उसे न्योछावर भेंट देती है।
अब जब वर मंडप में आवें तब कन्या के
पिता वर के मुकुट तथा मंडप में अक्षत (पीलाचाँवल) छिड़के,
आर्चाय मंत्र पढ़ें-
ॐ रोचन्ते रोचनादिभिस्तरणी
विश्वदर्शितो ।
ज्योतिष्टकृदसि सूर्य विश्वमाभासि
रोचनम् ।।
अब आर्चाय पीढ़ा या पत्तल में चाँवल,हल्दी,सुपाड़ी से पाँच कुढ़ी बनायें कन्या के पिता के
हाथ में देंवे वह वर के हाथ में देकर गौरी-गणेश में गिरवा दे और बैठ जावें-
ॐ षडर्घ्या भवन्त्याचार्य
ऋत्वाग्-वैवाह्यो राजा प्रियः स्नातक इति प्रतिसंवत्सरानर्हयेयुर्यदयेमाणस्तृत्विज
आसनमाहार्याह इति ।
अब कन्या के पिता पहले वर के मस्तक
में पुनः बाँये पैर (ब्राह्मण वर के दॉंये पैर)में जल छिड़के तथा मस्तक में पीला
चॉंवल से तिलक करें-
ॐ ब्रह्म च ब्रह्मपत्नि च लक्ष्मी
चैव जनार्दनः।
गौरी च सहितों रुद्राः प्रथमोपग्रह
तुभ्यँ वरँ ।
काश्श्यँ पत्नि च अदिति,
चन्द्रपत्नि च रोहणी
वरुणँ बिर्यकश्चैव द्वितीयोयग्रह
तुभ्यँ वरः।।
ॐ विराजो दोहोऽसि विराजो दोहमशीय
मयि पाद्यायै विराजो दोहः।।
अब दुबी को मौलीधागा से लपेटकर
विष्टर बनावें कन्या के पिता को दें और वह वर को देवे-
आर्चाय- ॐ विष्टरो विष्टरो
विष्टरः।
कन्या के पिता- विष्टरः
प्रतिगृह्यताम।
वर- विष्टरः प्रतिगृहृणामि।
वर उस विष्टर को अपने दाँये पैर के
नीचे रखें आर्चाय मंत्र बोले-
ॐ वर्ष्मोऽस्मि समानानामुद्यतामिव
सूर्यः।
इमन्तमभितिष्ठामि योमां
कश्चाभिदासति ।।
अब चार दोना लें उसमें हल्दी,
सुपाड़ी, पीला चाँवल व थोड़ा जल डाल कर एक साथ
साँटकर कन्या के पिता को दें और वह वर को देवे। वर चारों दोना अपने सामने अलग-अलग
रखें चारों वेदों का ध्यान करें व पंचोपचार से पुजा करें-
ॐ ब्रह्याणं शिरसा नित्यमष्टनेत्रम्
चतुर्मुखम् ।
गायत्री सहितं देवं ब्रह्माणं
आवाहयाम्यहम् ।।
ॐ
वर्च धान्यं महा सौख्यं पुत्र लाभं करोति च ।
ऋग्वेदोथ यजुर्वेद सामवेद अथर्वणः।।
( ॐ चतुर्वेदाय
नमःपंचोपचार पुजनम् समर्पयामि)
अब सात दोना लें उसमें हल्दी,
सुपाड़ी, पीला चाँवल व थोड़ा जल डाल कर एक साथ
साँटकर कन्या के पिता को दें और वह वर को देवे। वर सातों दोना अपने सामने अलग-अलग
रखें सात समुद्र का ध्यान करें व पंचोपचार से पुजा करें-
आर्चाय- ॐ अर्घो अर्घो अर्घः।
कन्या के पिता- ॐ अर्घः प्रतिगृह्यताम्।
वर- ॐ अर्घः प्रतिगृहृणामि ।
ॐ आपःस्थेति प्रजापति ऋषिरापो देवता
युजःअर्घ ग्रहणे विनियोगः।
ॐ सर्वे समुद्राः सरितः तीर्थानि जलदानदाः
आयान्तु मम शार्न्त्थ दुरित क्षय कारकाः सतयुगे स्वर्ण पात्राणि त्रेतायां रौप्य
मेव च ।
द्वापरे ताम्र पात्राणि कलौ च
मृत्तिका भवेत् ।।
( ॐ सप्त समुद्राय
नमः पंचोपचार पुजनम् समर्पयामि)
अब आमपत्ता को मौलीधागा बांधकर
कन्या के पिता को दें और वह वर को देवे। वर उसे सात बार मुँह से छुवाकर जमीन में
रख देवें-
आर्चाय- ॐ आचमनीयं आचमनीयं
आचमनीयं ।
कन्या के पिता- ॐ आचमनीयं
प्रतिगृह्यताम ।
वर- ॐ आचमनीयं प्रतिगृहृणामि ।
ॐ आमागन्यशसा स ઈसृजवर्चसा ।।
तं मा कुरुप्रियं प्रजानामधिपति
पशुनामारिष्टि तनुनाम् ।।
अब एक दोना में दही,
घी, मधुरस व चाँवल मिलावें और ऊपर से दुसरा
दोना ढककर कन्या के पिता को दें और वह वर को देवे।
आर्चाय- ॐ मधुपर्को मधुपर्को मधुपर्क:।
कन्या के पिता- ॐ मधुपर्क:
प्रतिगृह्यताम ।
वर- ॐ मधुपर्क: प्रतिगृहृणामि ।
वर उस मधुपर्क को हाथ में लेकर ऊपर
का दोना हटावे-
ॐ मित्रस्येति प्रजापतिऋर्षि:
पंक्तिछन्दो मित्रो देवता मधुपर्क दर्शने विनियोगः।
वर उस मधुपर्क को पाँचो ऊँगली से
मिलावें तथा उसे तीन बार मुँह से छुवाकर जमीन में रख देवें-(नाई वर का हाथ
धुलवायें)
ॐ यन्मधुनो मधव्यं परम ઈरुपमन्नद्यम् ।
तेनाऽहं मधुनो मधव्येन परमेण
रुपेणान्नद्येन परमो मधव्योऽन्नादोऽसानि ।।
अब वर अपने कहे अनुसार अंगो का
र्स्पश करता जाये-
ॐ वाड्मे आस्येऽस्तु- मुख
का
ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु- नाक
का
ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु- नेत्र
का
ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु- कान
का
ॐ बाह्वोर्मे बलस्तु- दोनो
भुजाओं का
ॐ ऊर्वोर्मे ओजोऽस्तु- जांघों
का
ॐ अरिष्टानि मेऽगांनि तनूस्तन्वा मे
सह सन्तु- दोनो हाथ से सभी अंगों का
अब एक दोना में चाँवल लेकर उसमें
तृण(भरुहाकाड़ी) सीधा खड़ा लगावें कन्यापिता को दें और वह हाथ में लेकर -
ॐ गौ र्गौ र्गौः (कहे)
अब कन्या के पिता उसे वर को दें और
वह जमीन में रखे तथा उस तृण पर ऊपर से नीचे (दूध दोहन जैसे) हाथ फिराये-
ॐ रुद्राणां दुहिता वसूना ઈ स्वासाऽऽदित्यानाम
मृतस्यनाभिः।
प्रनुवोचं चिकितुषे जनाय मा
गामनागामदिति
वधिष्ट मम चाऽमुष्य यजमानस्य व
पाप्माहतः।।
वर तृण को तीन टुकड़ो मे तोड़ देवें व
दो उल्टा तथा एक पीछे की ओर फेंक देवें।
पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह
पद्धती अंतिम भाग
समधी बुलाव-
(अब कन्या को तैयार करवाकर मंडप
में बुलवायें और वर के दाहिने तरफ बैठायें) समधी को आर्चाय के पीछे उचित आसन पर
बैठावें (यदि ब्राह्मण वर हों तो पहले यज्ञोपवित (जनेऊ) पहनावें) पुनः वर कन्या से
समस्त देवताओं का पुजन करावें-
यज्ञोपवीत(जनेऊ)-
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं
प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात् ।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुच्च शुभ्रं
यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।
ॐ समजन्तु विश्वेदेवाः समापो
हृदयानि नौ ।
सं मातरिश्वा सं धाता समुदेष्ट्री
दधातु नौ ।।
(ॐ सर्वेभ्यो
देवेभ्यो नमः पंचोपचार पुजनम् समर्पयामि)
पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह पद्धती अंतिम भाग
शाखोच्चार(मंगलाष्टक)-
पुनः वर कन्या को एक-एक दोना चाँवल व कुछ
रुपए हाथो में देकर बैठाए। अब दोनो समधी को पीला चाँवल व
आर्चाय भी अक्षत लेकर प्रत्येक शाखोच्चार के उपरांत वर-कन्या के ऊपर अक्षत छिड़कता
जायें- (पहले वर की तरफ से,उसके
बाद कन्या की तरफ से मंगलाष्टक कहें । प्रत्येक मंगलाष्टक के बाद शाखोच्चार (गोत्रोत्तचारण)
करता जावें)
वर पक्ष-
१-
आदौ देव गणेश्वरं
खगपतिं ब्रह्मा शिवः केशवं।सूर्यो चन्द्र ग्रहा च तीर्थ मंगलं गंगादयो सागराः।
नागेशाः कुलदेवता मुनिगणा गन्धर्व
यक्षोदया।सन्ध्या भैरव योगिनी प्रतिदिनं सर्वे सदा रक्षितां कुर्वन्तु वो मंगंलम् ।।
२-
श्रीमत्पंजविष्टरो
हरिहरौ वायुर्महेन्द्रोऽनिलश्चन्द्रो
भास्करवित्तपालवरुण प्रेताधिपादिग्रहा ।
प्रद्युम्नो नलकूबरः
सुरगजचिन्तामणिः कौस्तुभः स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः कुर्वन्तु वो मंगंलम् ।।
३-
गंगागोपति गोमती
गणपति र्गोविन्द गोवद्धनो । गीता गोमय गोरजो गिरिसुता गंगाधरो गौतमः।
गायत्री गरुड़ो गदाधर गया गम्भीर
गोदावरी । गंधर्वा ग्रहगोपकुलगणाः कुर्वन्तु वो मंगंलम् ।।
४-
वाल्मीकिः सनकः
सनन्दन मुनिर्व्यासो वसिष्ठो भृगुः। जावालिर्जमदग्नि राम जनको गार्गी गिरा गौतमः।
मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो धन्यो
दिलीपो नृपः। पुण्या धर्मसुता ययाति नहुषो कुर्वन्तु वो मंगंलम् ।।
५-
नेत्राणां त्रितयं
शिवं पशुपतयेरग्नित्रयं पावनं, यद्विष्मोश्च
पदत्रयं त्रिभुवनं ख्यातं च रामत्रयम् ।
गंगावाहयथत्रयं सुविमलं वेदत्रयं ब्राह्मणाः।
सध्यानां त्रितयं द्विजैरभिहितं कुर्वन्तु वो मंगंलम् ।।
गोत्रोत्तच्चारण(शाखोच्चार)-
ॐ स्वस्ति श्री नन्द नन्दन चरण कमल
भक्तेनुराग धर्मर्मूर्त धर्मावतारस्य श्रीमदग्रकुल कमल प्रकाश महतां मुकुट मणि सभा
श्रृंगार सहिधा विनोदेन कृतं कीर्ति विस्तारस्य अस्मिन दिवसे वा अस्यां रात्रो वा
अस्मिन मंगल मंडपाभ्यन्तरे स्वस्ति श्री मद्विविध विद्या विचार
चातुरी-विर्निजत-सकल वादि वृन्दो परिविराजमान-पदपदार्थ-साहित्य-रचनामृतायमान
काव्यकौतुक चमत्कार परिणतनि सर्गसुंदर-सहजानुभाव गुणनिकर गुम्फित यशः सुरभीकृत
मंगल मंडपस्य स्वस्ति श्रीमतः अमुक
वेदान्तर्गत-अमुक शाखा-अमुक सूत्रस्य-अमुक गोत्रस्य,
अमुक नाम प्रपौत्रोयम्, अमुक गोत्रस्य, अमुक पौत्रोयाम, अमुक गोत्रस्य, अमुक पुत्रोयाम अमुक
नाम वराय प्रयतपाणिः शरणं प्रपद्ये, स्वस्ति
संवादेष्वभयंवोवृद्धिः वर चिरंजीवी भवतात् कन्या च सावित्री भूयात ।।
इति वर पक्षे प्रथम,
द्वितीय या (अमुक) शाखोच्चारः।।
कन्या पक्ष-
१-
गौरी श्रीकुलदेवता
च सुभगा भूमिः प्रपूर्णा शुभा सावित्री च सरस्वती च सुरभिः सत्याव्रतारुन्धती ।
स्वाहा जाम्वन्ती च रुक्म भगिनी
दुःस्वप्नविध्वंसिनी वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा कुर्वन्तु वो मंगंलम् ।।
२-
गंगा सिन्धु
सरस्वती च यमुना गोदावरी नर्मदा। कावेरी
सरयूः महेन्द्रतनया चर्मवतीवेदिका ।
क्षिप्रा वेत्रवती महासुरनदी ख्याता
च या गण्डकी, पुण्याः पुण्याः
पुण्यः जलै समुद्र सहितः कुर्वन्तु वो मंगंलम् ।।
३-
लक्ष्मी कौस्तुभ
पारिजातक सुरा धन्वन्तरिश्चन्द्रमा । धेनुः कामदुधा सुरेश्वर गजो रम्भा च देवंगना ।
अश्वः सप्तमुखो विषहरिधनुः
शंखोऽमृतं चाम्बुधेःरत्नानीति चतुदर्श प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगंलम् ।।
४-
दुर्गे
दुर्गविनाशिनी भयहरी माता मनोहारिणी। कामाक्षी गिरिजा समा भगवती वागेश्वरी योगिनी ।।
वन्दी सुन्दरी भैरवी सुललिता
सिद्धेश्वरी रेणुका । वाराही वरदायिनी गिरिसुता कुर्वन्तु वो मंगंलम् ।।
५-
धन्य भारत भूतल
प्रियातम सरस्वती मंदिरे धन्य संकृत्यवालं सुता परात्यागी गीर्वाणसंसेवितं
धन्य ब्राह्मण पंडिता सुकविता
पांडित्य संमंडिता स्तवेण मुंडमाषिता क्षितितलं श्रीपाल समा सरस्वती कुर्वन्तु वो
मंगंलम् ।।
गोत्रोत्तच्चारण(शाखोच्चार)-
ॐ स्वस्ति श्री नन्द नन्दन चरण कमल
भक्तेनुराग धर्मर्मूर्त धर्मावतारस्य श्रीमदग्रकुल कमल प्रकाश महतां मुकुट मणि सभा
श्रृंगार सहिधा विनोदेन कृतं कीर्ति विस्तारस्य अस्मिन दिवसे वा अस्यां रात्रो वा
अस्मिन मंगल मंडपाभ्यन्तरे स्वस्ति श्री मद्विविध विद्यालंकार शरद्विमल- रोहिणी-
रमणीयोदारसुन्दर- दामोदर-मकरन्द वृन्दशेखर -प्रचण्डखण्ड- मण्डल- पूर्णपूरीन्दु-
नन्दन- चरणकमलभक्तितदुपरि- महानुभाव -सकल- विद्याविनीति -निजकुलकमलकलिता
-प्रकाशनैकभास्कर -सदाचार- सच्चरित- सकल- सत्यनिष्ठाश्रेष्ठ -विशिष्ट वरिष्ठस्य
स्वस्ति श्रीमतः अमुक वेदान्तर्गत-अमुक
शाखा-अमुक सूत्रस्य-अमुक गोत्रस्य,
अमुक नाम प्रपौत्रीयम्, अमुक गोत्रस्य, अमुक
पौत्रीयाम, अमुक
गोत्रस्य, अमुक
पुत्रीयाम अमुक नाम कन्या प्रयतपाणिः शरणं प्रपद्ये,
स्वस्ति संवादेष्व भयं वो वृद्धिः वर चिरंजीवी भवतात् कन्या च
सावित्री भूयात ।।
इति कन्या पक्षे प्रथम,
द्वितीय या (अमुक) शाखोच्चारः।।
पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह
पद्धती अंतिम भाग
कन्यादान-
अब बरातियो से आाँटा मांगकर लोई
बनवाने के लिए दे देवे तथा हल्दी घोलकर (यजमान) कन्या के दोनो हाथ और वर के दाहिने
हाथ को हल्दी लगावे-
ॐ लक्ष्मीप्रिया च लक्ष्मीदा
लक्ष्मीश्च जनप्रिया ।
सौभाग्यदा वरस्त्रीणां हरिद्रे
श्रीः सदाऽस्तु मे ।।
कन्या के दोनो हाथ फैलावे और उसमे
लोई,चाँवल,फुल,दूबी,सिक्का रखें। कन्या के हाथ के नीचे वर के दाहिने हाथ को रखवायें। कन्या के
माता-पिता हाथ में चाँवल, जल लेकर कन्यादान का संकल्प करें-
ॐ दाताऽहं वरुणो राजा द्रव्यमादित्य
दैवतम् ।
वरोसौ विष्णु रुपेण प्रतिगृहाणत्वयं
विधि: ।।
(अमुक) प्रदेशे (अमुक)
नामग्रामे (अमुक) मासे (अमुक) पक्षे (अमुक) तिथौ (अमुक)
वासरे (अमुक) नामः(यजमान का नाम) (अमुक) गोत्रोत्तपन्ने सपत्नीकोऽहं
कन्यादान कर्म अहं करिष्ये ।।
(हाथ का चाँवल,जल जमीन में छोड़ दें)
अब कन्या के भाई आकर कुँवारी धागा
को ऊपर से(लोई सहित वर- कन्या के हाथो को) सात बार बांधे शेष बचा हुआ ऊपर ही छोड़
दे अब वर के हाथ के नीचे कन्या के माता तथा पुनः नीचे पिता अपना हाथ रखे कन्या के
भाई लोई में जल की धार निरंतर डालता जावे,आर्चाय
मंत्र पढ़े-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः
श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णुराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्राह्मणोऽह्नि
द्वितीय प्रहरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टात्र्वशति तमे
कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भारतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गते (अमुक)
प्रदेशे (अमुक) नामग्रामे (अमुक) सम्वतसरे श्रीसूर्ये (अमुक)
आयने (अमुक) मासे (अमुक) पक्षे (अमुक) ऋतौ (अमुक)
तिथौ (अमुक) वासरे (अमुक) नाम नक्षत्रे (अमुक) राशि स्थितेषु
सूर्ये (अमुक) राशि स्थितेषु चंद्रे (अमुक) राशि स्थितेषु देवगुरु
वर्तमान चन्द्र तारानुकूले शेखेषु यथा स्थान स्थितेषु सत्सु ग्रहेषु एवं ग्रह गुण
विशेषण विशिष्ठयां अस्यां शुभ पुण्य वेलायां (अमुक) गोत्रस्य (अमुक)
नाम (यजमान) सपत्नीकोऽहं ! (अमुक) गोत्रस्य (अमुक) प्रवरस्य (अमुक)
वेदान्तर्गत (अमुक) शाखिनौ (अमुक) सूत्रस्य (अमुक) नाम
प्रपौत्राय, (अमुक) गोत्रस्य (अमुक) नाम पौत्राय, (अमुक) गोत्रस्य (अमुक) नाम पुत्राय (अमुक) गोत्रस्य (अमुक)
नाम वराय, (अमुक) गोत्रस्य (अमुक)
प्रवरस्य (अमुक) वेदान्तर्गत (अमुक) शाखिनौ (अमुक) सूत्रस्य (अमुक)
नाम प्रपौत्रीय, (अमुक) गोत्रस्य (अमुक)
नाम पौत्रीय, (अमुक) गोत्रस्य (अमुक)
नाम पुत्रीय (अमुक) नाम कन्या ! सुस्नातां यथा शक्त्यलड़्कृतां
गन्धाद्यर्चितां वस्त्र युगच्छन्नां प्रजापति दैवत्यां शतगुणी कृत ज्योतिष्ठो माति
रात्र शतफल-प्राप्तिकाम: अमुक नाम विष्णुरुपिणे वराय पत्नीत्वेन तुभ्यमहंसम्प्रददे
।।
(! से ! तक आर्चाय तीन बार पढ़े। यदि प्रवर, वेद,
शाखा, सूत्र मालूम नही हों तो अमुक के स्थान
पर यथा बोले) अब कन्या के माता व पिता अपना हाथ हटा ले और जल डालना बंद करा देंवे-
वर-
ॐकोदात्कस्मादात् कामोदात्
कामायादात् ।
कामो दाता कामः प्रतिग्रहीता
कामैतत्ते।।
(अब सपत्नीक यजमान हाथ जोड़कर
प्रार्थना करें)
ॐ कन्या कनकसम्पन्नां
कनकाभरणैर्युताम् ।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं
ब्रह्यलोकजिगीषया ।।
विश्वम्भरा सर्वभूताः साक्षियः
सर्वदेवताः।
इमां कन्यां प्रदास्यामि पितृणां
तारणाय च ।।
गौरी कन्या मिमां विप्र यथाशक्ति
विभूषिताम् ।
श्रेष्ठाय
श्रीमते तुभ्यं दत्ता श्रीमन् समाश्रय ।।
अब कन्या के माता व पिता वर-कन्या
का पांव पखारें (पहले जल से फिर दुध से)-
ॐ यत्फलं कपिला दाने कीर्तिभ्यां
ज्येष्ठ पुष्करे ।
तत्सर्वे पांडव श्रेष्ठ विप्रानां
पाद सोचते ।।
अब पीला चाँवल से तिलक (टीका)
लगावें-
ॐ चन्दनं बन्दते नित्यँ पवित्रं
पापनाशनम् ।
आपदा हरते नित्यं लक्ष्मी वसतु
सर्वदा ।।
फिर यथा शक्ति जो कुछ दान-दहेज
(टिकावन) देना है हाथ में चाँवल,
जल लेकर संकल्प करें तथा वर के हाथ मे और सभी सामग्री में छोड़
देवें-
ॐ या देवी लोकपालानां या सुदेवी
सरस्वती ।
सा देवी रक्त वा ताम्र रुपेण मम
पापं विमोहती ।।
कृते तद्कन्यादान कर्मणः सिद्धयर्थः
र्स्वणमग्नि देवतां गौ मिथुनं रुद्र देवतां रजतं चंद्र देवतां काँश्य पात्रं वरुण
देवतां ताम्रं सूर्यदेवतां वस्त्रं बृहस्पति देवतां अन्नं प्रजापति देवतां वंश
पात्रं यथोपस्कर सहितां वराय तुभ्य महं संप्रदेतु ।।
पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह पद्धती अंतिम
भाग
टिकावन-प्रारंभ
(कन्या के हाथ से लोई नीचे बर्तन
में गिरावा दें तथा जल मे हल्दी, निरमा मिलवायें ) अब सभी
रिश्ते, नातेदार वर -कन्या का पांव पखारें, पीला चाँवल से तिलक (टीका) लगावें फिर यथाशक्ति जो कुछ दान-दहेज (टिकावन)
देना है, देवें-
पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह पद्धती अंतिम
भाग
हवन-प्रारंभ
अब बारतियों से हवन सामाग्री (जवाँ,
तिल, धोती, नारियल आदि)
मांगकर शाँकल्य बनावें हवन माली में अग्नि मंगाकर हवन कुंड में डलवाऐ वर-कन्या को
चाँवल, फुल दुबी देकर अग्निदेव का प्रार्थना करवायें-
ॐ मुखं यः सर्व देवानां
खाण्डवोद्यान दाहकम् ।
पूजितं सर्व यज्ञेषु
अग्निमावाहयाम्यहम् ।।
ॐ अग्नयेनमः।।
अब हवन लकड़ी रखें व पंचोचार से पूजन करावें।
पुनः वर को घीं व कन्या को शाँकल्य देकर हवन करें-
ॐ श्रीमहा गणपत्ये नमःस्वाहा ।। ॐ
दुर्गा देव्यै नमः स्वाहा ।। ॐ सूर्याय नमः स्वाहा ।। ॐ चन्द्राय नमः स्वाहा ।।
ॐ भौमाय नमः स्वाहा ।। ॐ बुधाय नमः स्वाहा
।। ॐ बृहस्पतये नमः स्वाहा ।। ॐ शुक्राय नमः स्वाहा ।। ॐ शनिश्चराय नमः स्वाहा ।।
ॐ राहवे नमः स्वाहा।। ॐ केतवे नमः स्वाहा ।। ॐ प्रजापतये नमः स्वाहा ।। ॐ इन्द्र
प्रजापतये नमः स्वाहा ।। ॐ इदं इन्द्राय
अग्नये नमः स्वाहा ।। ॐ इन्द्रंमग्नये सोमाय नमः स्वाहा ।। ॐ इदग्वं सोमाहं ओं भूः
नमः स्वाहा ।। ॐ इदमग्नये ओं भुवः नमः
स्वाहा ।। ॐ इदं वायवे ओं स्वः नमः स्वाहा ।। ॐ इदग्वं सूयाश्रयभेषयग्वं
नमःस्वाहा।। ॐ इदमग्नयेओंनामताभ्यां नमःस्वाहा ।। ॐ छत्रंपातुतस्मै नमःस्वाहा ।। ॐ
ब्रह्मछत्रग्वं नमःस्वाहा ।। ॐ नामताभ्यां नमःस्वाहा ।। ॐ चितंच नमःस्वाहा ।। ॐ
चितश्च नमःस्वाहा ।। ॐ आकूतंच नमःस्वाहा ।। ॐ इदमाकूत्यैआकूतिश्च नमःस्वाहा ।। ॐ
इदमाकूत्यैविज्ञातंच नमःस्वाहा ।। ॐ इदमविज्ञातायाविज्ञातै नमःस्वाहा ।। ॐ
इदमविज्ञातैमनश्च नमःस्वाहा ।। ॐ इदममनसेशक्वरीश्च नमःस्वाहा ।। ॐ
इदमसक्वरीभ्यदर्शश्च नमःस्वाहा ।। ॐ इदमदर्शायपौर्णास्यंच नमःस्वाहा ।। ॐ
इदमपौर्णमासायवृहच्च नमःस्वाहा ।। ॐ इदमवृहतैओंरथंतरंच नमःस्वाहा ।। ॐ
इदंरथतरायओंवभूव नमःस्वाहा ।। ॐ देवहूत्याग्वं नमःस्वाहा ।। ॐ
इदंइन्द्रायअभयंक्रणोतु नमःस्वाहा ।। ॐ साखिने नमःस्वाहा ।। ॐ वैवस्वताय नमःस्वाहा ।। ॐ वीराय नमःस्वाहा ।।
ॐ मृत्यवे नमःस्वाहा ।। ॐ सप्तऋषये नमःस्वाहा ।। ॐउमामहेश्वराभ्यां नमःस्वाहा ।। ॐ
द्वादशराशिभ्यो नमःस्वाहा ।। ॐ अष्टाविंशतिनक्षत्रेभ्यो नमःस्वाहा ।। ॐ
विष्कुंभादियोगेभ्यो नमःस्वाहा ।। ॐ श्रीगंगादेव्यै नमःस्वाहा ।। ॐ
श्रीनर्मदादेव्यै नमःस्वाहा ।। ॐ श्रीयमुनादेव्यै नमःस्वाहा ।। ॐध्रुवाय नमःस्वाहा
।। ॐ अनंताय नमःस्वाहा ।। ॐवासुदेवाय
नमःस्वाहा ।। ॐ वनस्पतये नमःस्वाहा ।। ॐप्राणाय नमःस्वाहा ।। ॐ अपानाय नमःस्वाहा
।। ॐ व्यानाय नमःस्वाहा ।। ॐ चक्षुषे नमःस्वाहा ।। ॐ श्रोत्राय नमःस्वाहा ।। ॐ
वागूदेव्यै नमःस्वाहा ।। ॐ मनसे नमःस्वाहा ।। ॐ अग्निर्ज्योति नमःस्वाहा ।। ॐ
सूर्यज्योर्ति नमःस्वाहा ।। ॐ हरये नमःस्वाहा ।। ॐ रश्मिभ्यो नमःस्वाहा ।। ॐ
वासुभ्यो नमःस्वाहा ।। ॐ औषधीभ्यो नमःस्वाहा ।। ॐ लक्ष्मीदेव्यै नमःस्वाहा ।। ॐ
सप्तसमुद्रेभ्यो नमःस्वाहा ।। ॐ सरितायै नमःस्वाहा ।। ॐ रेवत्यै नमःस्वाहा ।। ॐ
वायवे नमःस्वाहा ।। ॐ अन्तरिक्षाय नमःस्वाहा ।। ॐ अष्टकुलनागेभ्यो नमःस्वाहा ।। ॐ
अश्विनीकुमाराय नमःस्वाहा ।। ॐ सम्वत्सराय नमःस्वाहा ।। ॐ ब्राह्यणे नमःस्वाहा ।।
ॐ विष्णवे नमःस्वाहा ।। ॐ कृष्णाय नमःस्वाहा ।। ॐ चक्रपाणये नमः स्वाहा ।। ॐ
गदाधराय नमः स्वाहा ।। ॐ श्री राम चंद्राय नमः स्वाहा ।। ॐ एकादश रुद्रेभ्यो नमः
स्वाहा ।। ॐ पंच लोक पालेभ्यो नमः स्वाहा ।। ॐ दस दिग् पालेभ्यो नमः स्वाहा ।।
पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह
पद्धती अंतिम भाग
बलिदान-
प्रायः वैवाहिक ग्रंथो में बलिदान
कर्म देखने में नहीं आता हैं परंतु जहाँ आर्चायगण करवाते हैं उनके सुविधा के लिए
हम यहाँ लिख रहें हैं- उड़द, दही व बंदन को
मिलाकर आमपत्ता आदि में वर-कन्या को पकड़ावें और समस्त दिशाओं में रखवाते जाऐ
आर्चाय मंत्र पढ़ें-
पूर्व- ॐ पूर्वे इन्द्राय सांगाय
सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एवं सदीपं दधिमांष भक्त बलिं समर्पयामि। भो इन्द्र दिशं रक्ष बलि भक्ष
अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुः कर्ता क्षेम कर्ता शांति कर्ता तुष्टि कर्ता
पुष्टि कर्ता वरदो भव ।।
आग्नेय- ॐ आग्नेय सांगाय
सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एवं सदीपं दधि मांष भक्त बलिं समर्पयामि। भो आग्नये
दिशं रक्ष बलि भक्ष अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुः कर्ता क्षेम कर्ता शांति कर्ता
तुष्टि कर्ता पुष्टि कर्ता वरदो भव।।
दक्षिण- ॐ दक्षिणे यमाय सांगाय
सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एवं सदीपं दधि मांष भक्त बलिं समर्पयामि। भो यम दिशं
रक्ष बलि भक्ष अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुः कर्ता क्षेम कर्ता शांति कर्ता
तुष्टि कर्ता पुष्टि कर्ता वरदो भव।।
नैऋर्त्य- ॐ नैऋर्त्ये सांगाय
सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एवं सदीपं दधि मांष भक्त बलिं समर्पयामि। भो
नैऋर्त्ये दिशं रक्षबलि भक्ष अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुः कर्ता क्षेमकर्ता
शांतिकर्ता तुष्टिकर्ता पुष्टिकर्ता वरदो भव।।
पश्चिम- ॐ पश्चिमे वरुणाय सांगाय
सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एवं सदीपं दधि मांष भक्त बलिं समर्पयामि। भो वरुण
दिशं रक्ष बलि भक्ष अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुःकर्ता क्षेमकर्ता शांतिकर्ता
तुष्टिकर्ता पुष्टिकर्ता वरदो भव।।
वायव्य- ॐ वायव्ये सांगाय
सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एवं सदीपं दधि मांष भक्त बलिं समर्पयामि। भो वायव्य
दिशं रक्ष बलि भक्ष अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुःकर्ता क्षेमकर्ता शांतिकर्ता
तुष्टिकर्ता पुष्टिकर्ता वरदो भव।।
उत्तर- ॐ उत्तरस्यां कुबेराय
सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एवं सदीपं दधि मांष भक्त बलिं समर्पयामि। भो
कुबेर दिशं रक्ष बलि भक्ष अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुःकर्ता क्षेमकर्ता
शांतिकर्ता तुष्टिकर्ता पुष्टिकर्ता वरदो भव।।
ईशान- ॐ ईशानाय सांगाय सपरिवाराय
सायुधाय सशक्तिकाय एवं सदीपं दधि मांष भक्त बलिं समर्पयामि। भो ईशान दिशं रक्ष बलि
भक्ष अस्य यजमानस्य सकुटुम्बस्य आयुःकर्ता क्षेमकर्ता शांतिकर्ता तुष्टिकर्ता
पुष्टिकर्ता वरदो भव।।
ईशान पूर्व के मध्य- ॐ ईशान
पूर्वे यो र्मध्ये ब्रह्मणो सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एवं सदीपं दधि
मांष भक्त बलिं समर्पयामि। भो ब्रह्मन् दिशं रक्ष बलि भक्ष अस्य यजमानस्य
सकुटुम्बस्य आयुःकर्ता क्षेमकर्ता शांतिकर्ता तुष्टिकर्ता पुष्टिकर्ता वरदो भव।।
नैऋर्त्य पश्चिम के मध्य- ॐ
नैऋर्त्य पश्चिम यो र्मध्ये अनन्ताय सांगाय सपरिवाराय सायुधाय सशक्तिकाय एवं सदीपं
दधि मांष भक्त बलिं समर्पयामि। भो अनन्त दिशं रक्ष बलि भक्ष अस्य यजमानस्य
सकुटुम्बस्य आयुःकर्ता क्षेमकर्ता शांतिकर्ता तुष्टिकर्ता पुष्टिकर्ता वरदो भव।।
पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह
पद्धती अंतिम भाग
फेरा(भाँवर)-
अब हवन अग्नि के ऊपर सील (पत्थर) को
उल्टा रखवाकर उसमे हल्दी, सुपाड़ी, सिंघोलिया एवं पीला चाँवल की कुड़ी एक सीध में सात जगह रखें।(छ्त्तीसगढ़ी
ब्राह्मण,राजपूत व ठेठवार समाज में कन्या पीला साड़ी पहनकर
फेरा लेती है) वर कन्या को खड़ा करावें।
कन्या को सामने हाथ फैलवाकर हथवा का नारियल, चाँवल, फुल, दूबी, सिक्का एक दोना में
रखकर देवें(पटेल (मरार) समाज में हथवा का
नारियल आँचल में बँधवाये और कन्या के हाथ में हथवा का नारियल के स्थान पर सिन्दूर
का सिंघोलिया रखवायें)। वर का दोनो हाथ आर्शिवाद मुद्रा में कन्या के सिर के पीछे
रखवायें पत्थर के चारो ओर परिक्रमा (फेरा) करवायें-
१-
ॐतुभ्य मग्ने पर्यवहन्त्सूर्यां वहतु ना सह ।
पुनः पतिभ्यो जाया दा अग्ने प्रजाय
सहत्पात्ये प्रदक्षिणी ॥१॥
ॐ एको विष्णुजर्गत्सवर्ंए व्याप्तं
येन चराचरम् ।
हृदये यस्ततो यस्यए तस्य साक्षी
प्रदीयताम् ॥
पहला चरण
ॐ इष एकपदी भव सा मामनुव्रता भव ।
विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान्
विन्दावहैए बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥१॥
जब पहला फेरा हो जावे तो वर-कन्या
के पीछे से अपना दोनो हाथ फैलाकर अंजुली बनावे और कन्या के अंजुली के नीचे रखे,
अब कन्या के भाई उस अंजुली में एक दोना (सुपली) लाई रखें व
मंत्रोच्चार के साथ उसे नीचे सील (पत्थर) पर गिरवायें-
ॐ अर्यमुणं देव कन्याऽअग्नि मयक्षत ।
स नो ऽअर्यमा देवः प्रेतो मुय्चन्तु
मापतेः स्वाहा ।।
इदम् अर्यम्णे नमम ।।
अब वर,
कन्या के बाँयें कन्धे पर अपना बाँया हाथ रखे और दाहिने हाथ से
कन्या का दाहिने पैर पकड़ सील में रखा एक कुढ़ी (अँगूठे से) गिरावें-
ॐ आरोहेम मश्मान मश्मेव त्वઈ स्थिरा भव ।
अभितिष्ठ पृतन्यतो ऽवबाधस्व
पृतनायतः।।
सुवसिन जल गिराते हुए सील में कलशा
को घुमायें।
२-
ॐ तुभ्य मग्ने पर्यवहन्त्सूर्यां वहतु ना सह ।
पुनः पतिभ्यो जाया दा अग्ने प्रजाय
सहत्पात्ये प्रदक्षिणी ।।
ॐ जीवात्मा परमात्मा चए पृथ्वी
आकाशमेव च ।
सूयर्चन्द्रद्वयोमर्ध्येए तस्य साक्षी
प्रदीयताम् ॥
दूसरी चरण.
ॐ ऊजेर् द्विपदी भव सा मामनुव्रता
भव ।
विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान्
विन्दावहैए बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥२॥
जब दुसरा फेरा हो जावे तो वर-कन्या
के पीछे से अपना दोनो हाथ फैलाकर अंजुली बनावे और कन्या के अंजुली के नीचे रखे,
अब कन्या के भाई उस अंजुली में दो दोना (सुपली) लाई रखें व
मंत्रोच्चार के साथ उसे नीचे सील (पत्थर) पर गिरवायें-
ॐ इयं नार्य्युपब्रूते लाजा
नावपन्तिका ।
आयुष्मानस्तु मे पतिरे धानतां
ज्ञातयो मम स्वाहा ।।
इदमग्नये न मम ।।
अब वर,
कन्या के बाँयें कन्धे पर अपना बाँया हाथ रखे और दाहिने हाथ से
कन्या का दाहिने पैर पकड़ सील में रखा एक कुढ़ी (अँगूठे से) गिरावें-
ॐ आरोहेम मश्मान मश्मेव त्वઈस्थिरा भव ।
अभितिष्ठ पृतन्यतो ऽवबाधस्व
पृतनायतः।।
सुवसिन जल दो बार गिराते हुए सील
में कलशा को घुमायें।
३-
ॐतुभ्य मग्ने पर्यवहन्त्सूर्यां वहतु ना सह ।
पुनः पतिभ्यो जाया दा अग्ने प्रजाय
सहत्पात्ये प्रदक्षिणी ।।
ॐत्रिगुणाश्च त्रिदेवाश्चए
त्रिशक्तिः सत्परायणाः ।
लोकत्रये त्रिसन्ध्यायाःए तस्य
साक्षी प्रदीयताम् ।
तीसरा चरण.
ॐ रायस्पोषाय त्रिपदी भव सा
मामनुव्रता भव ।
विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहैए
बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥३॥
जब तिसरा फेरा हो जावे तो वर-कन्या
के पीछे से अपना दोनो हाथ फैलाकर अंजुली बनावे और कन्या के अंजुली के नीचे रखे,
अब कन्या के भाई उस अंजुली में तीन दोना (सुपली) लाई रखें व
मंत्रोच्चार के साथ उसे नीचे सील (पत्थर) पर गिरवायें-
ॐ इमांल्लाजा नावपाम्यग्नौ समृद्धि
करणं तव ।
मम तुभ्यं च संवननं तदग्निर
नुमन्यतामियઈस्वाहा
।।
इदमग्नये न मम ।।
अब वर,
कन्या के बाँयें कन्धे पर अपना बाँया हाथ रखे और दाहिने हाथ से
कन्या का दाहिने पैर पकड़ सील में रखा एक कुढ़ी (अँगूठे से) गिरावें-
ॐ आरोहेम मश्मान मश्मेव त्वઈस्थिरा भव ।
अभितिष्ठ पृतन्यतो ऽवबाधस्व
पृतनायतः।।
सुवसिन तीन बार जल गिराते हुए सील
में कलशा को घुमायें।(कन्या के पैरो में माहुर (आलता) लगवाकर बारातियो से नेंग
दिलवा देना)
४-
ॐतुभ्य मग्ने पर्यवहन्त्सूर्यां वहतु ना सह ।
पुनः पतिभ्यो जाया दा अग्ने प्रजाय
सहत्पात्ये प्रदक्षिणी ।।
ॐ चतुमरुखस्ततो ब्रह्माए चत्वारो
वेदसंभवाः ।
चतुयुर्गाः प्रवतर्न्तेए तेषां
साक्षी प्रदीयताम् ।
चौथा चरण.
ॐ मायो भवाय चतुष्पदी भव सा
मामनुव्रता भव ।
विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान्
विन्दावहैए बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥४॥
जब चौथा फेरा हो जावे तो वर-कन्या
के पीछे से अपना दोनो हाथ फैलाकर अंजुली बनावे और कन्या के अंजुली के नीचे रखे,
अब कन्या के भाई उस अंजुली में चार दोना (सुपली) लाई रखें व
मंत्रोच्चार के साथ उसे नीचे सील (पत्थर) पर गिरवायें-
ॐ गृभ्णामि ते सौभगत्वाय हस्त मया
पत्या जरदष्टिर्यथा सः।
भगोअऽर्यमा सविता पुरन्धिर्मह्यं
त्वाऽदुर्गार्हपत्याय देवाः।।
अब वर,
कन्या के बाँयें कन्धे पर अपना बाँया हाथ रखे और दाहिने हाथ से
कन्या का दाहिने पैर पकड़ सील में रखा एक कुढ़ी (अँगूठे से) गिरावें-
ॐ आरोहेम मश्मान मश्मेव त्वઈस्थिरा भव ।
अभितिष्ठ पृतन्यतो ऽवबाधस्व
पृतनायतः।।
सुवसिन चार बार जल गिराते हुए सील
में कलशा को घुमायें। वर पक्ष से कन्या के भाई को भेंट करने के लिए वस्त्र मांगे
और कन्या पक्ष से वर को भेंट के लिए वस्त्र मांग कर साराजांवर (वर तथा कन्या के
भाई गले मिलकर एक दुसरे को वस्त्र भेंट करें)पुनः वर पक्ष से एक धोती मांगकर
आचार्य उसमे हल्दी, सुपाड़़ी, सिक्का व पीला चाँवल बाँधकर(मरार आदि समाज में गठबंधन के लिए पीला वस्त्र
अलग से लाया जाता है) गठबंधन करावें-
ॐ गणाधिपं नमस्कृत्य उमां लक्ष्मीं
सरस्वतीम् ।
दम्पत्यो: रक्षणार्थाय पटग्रन्थिम्
करोम्यहम् ।
श्रीदेवदेव कुरु मंगलानि सन्तान
वृद्धिं कुरु सन्ततय्च ।
धनायुवृद्धिं कुरु इष्टदेव,
मद्ग्रन्थिबंधे शुभदा भवन्तु ।।
५-ॐतुभ्य
मग्ने पर्यवहन्त्सूर्यां वहतु ना सह ।
पुनः पतिभ्यो जाया दा अग्ने प्रजाय
सहत्पात्ये प्रदक्षिणी ।।
ॐ पंचमे पंचभूतानांए पंचप्राणैः
परायणाः ।
तत्र दशर्नपुण्यानांए साक्षिणः
प्राणपंचधाः॥
पाँचवाँ चरण.
ॐ प्रजाभ्यां पंचपदी भव सा
मामनुव्रता भव ।
विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान्
विन्दावहैए बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥५॥
जब पाँचवा फेरा हो जावे तो वर-कन्या
के पीछे से अपना दोनो हाथ फैलाकर अंजुली बनावे और कन्या के अंजुली के नीचे रखे,
अब कन्या के भाई उस अंजुली में पाँच दोना (सुपली) लाई रखें व
मंत्रोच्चार के साथ उसे नीचे सील (पत्थर) पर गिरवायें-
ॐ अमोऽहमस्मि सात्व ઈसात्व मस्यमो
ऽअहम् ।
सा माऽहमस्मि ऋक् त्वं द्यौरहं
पृथिवी त्वम् ।।
अब वर,
कन्या के बाँयें कन्धे पर अपना बाँया हाथ रखे और दाहिने हाथ से
कन्या का दाहिने पैर पकड़ सील में रखा एक कुढ़ी (अँगूठे से) गिरावें-
ॐ आरोहेम मश्मान मश्मेव त्व ઈस्थिरा भव ।
अभितिष्ठ पृतन्यतो ऽवबाधस्व
पृतनायतः।।
सुवसिन पाँच बार जल गिराते हुए सील
में कलशा को घुमायें।
६-ॐतुभ्य
मग्ने पर्यवहन्त्सूर्यां वहतु ना सह ।
पुनः पतिभ्यो जाया दा अग्ने प्रजाय
सहत्पात्ये प्रदक्षिणी ।।
ॐ षष्ठे तु षड्ऋतूणां चए षण्मुखः
स्वामिकातिर्कः।
षड्रसा यत्र जायन्तेए कातिर्केयाश्च
साक्षिणः॥
छठवाँ चरण.
ॐ ऋतुभ्यः षट्ष्पदी भव सा
मामनुव्रता भव ।
विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान्
विन्दावहैए बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥६॥
जब छटवाँ फेरा हो जावे तो वर-कन्या
के पीछे से अपना दोनो हाथ फैलाकर अंजुली बनावे और कन्या के अंजुली के नीचे रखे,
अब कन्या के भाई उस अंजुली में छः दोना (सुपली) लाई रखें व
मंत्रोच्चार के साथ उसे नीचे सील (पत्थर) पर गिरवायें-
ॐ तावेहि विवहावहै सह रेतो दधवहै ।
प्रजां प्रजनवायवहै पुत्रान्
विन्द्यावहै बहून् ।।
अब वर,
कन्या के बाँयें कन्धे पर अपना बाँया हाथ रखे और दाहिने हाथ से
कन्या का दाहिने पैर पकड़ सील में रखा एक कुढ़ी (अँगूठे से) गिरावें-
ॐ आरोहेम मश्मान मश्मेव त्व ઈ स्थिरा भव ।
अभितिष्ठ पृतन्यतो ऽवबाधस्व
पृतनायतः।।
सुवसिन छः बार जल गिराते हुए सील
में कलशा को घुमायें। वैसे चप्पल, जूता पहनकर
परिक्रमा करवाना शस्त्र-शम्मत नही है फिर भी जहाँ आर्चाय करवाते हो तो वर-कन्या को
जूता चप्पल पहनवायें और पूरा मंडप में घुमवाकर सातवाँ फेरा करावें {देवांगन (कोष्टा) समाज में मंडप में एक ही खाम होता है अतः यह पूरा मंडप
हुआ}।
७-ॐतुभ्य
मग्ने पर्यवहन्त्सूर्यां वहतु ना सह ।
पुनः पतिभ्यो जाया दा अग्ने प्रजाय
सहत्पात्ये प्रदक्षिणी ।।
ॐ सप्तमे सागराश्चैवए सप्तद्वीपाः
सपवर्ताः ।
येषां सप्तषिर्पतनीनांए
तेषामादशर्साक्षिणः॥
सातवाँ चरण.
ॐ सखे सप्तपदी भव सा मामनुव्रता भव
।
विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान्
विन्दावहैए बहूँस्ते सन्तु जरदष्टयः॥७॥
जब सातवा फेरा हो जावे तो वर-कन्या
के पीछे से अपना दोनो हाथ फैलाकर अंजुली बनावे और कन्या के अंजुली के नीचे रखे,
अब कन्या के भाई उस अंजुली में सात दोना (सुपली) लाई रखें व
मंत्रोच्चार के साथ उसे नीचे सील (पत्थर) पर गिरवायें-
ॐ ते सन्तु जरदष्टयः संप्रियौ
रोचिष्णू सुमनस्यमानौ ।
पश्येम् शरदः शतम् जीवेम शरदः शत ઈश्रृणुयाम शरदः
शतम् ।।
अब वर,
कन्या के बाँयें कन्धे पर अपना बाँया हाथ रखे और दाहिने हाथ से
कन्या का दाहिने पैर पकड़ सील में रखा एक कुढ़ी (अँगूठे से) गिरावें-
ॐ आरोहेम मश्मान मश्मेव त्व ઈस्थिरा भव ।
अभितिष्ठ पृतन्यतो ऽवबाधस्व
पृतनायतः।।
सुवसिन सात बार जल गिराते हुए सील
में कलशा को घुमायें।
अब पहले का बैठकी (साड़ी) हटवाकर
(सुवासिन या नाई को दें) दुसरा बैठकी बिछवा दे और वर-कन्या को बैठावें पुनः
गोरी-गणेश का पंचोपचार पुजन करायें और पुनः वर को खड़े करवाकर सिन्दुर (जुमा पागी)
से निकलवा कर पहले गौरी- गणेश में थोड़ा डाले पुनः कन्या के माँघ में नाक से लेकर
सिर तक पाँचों उँगलियो से पहले नाक से छः बार छुवावें तथा सातवे में पुरा भरें-
ॐ सुमंगलीरियं वधूरिमा ઈसमेत पश्यत ।
सौभाग्य मस्यै दत्वा यथाऽस्तं
विपरेत न ।।
अब वर-कन्या की साड़ी का एक छोर लेकर छः बार
धीरे-धीरें तथा सातवे में पुरा शिर ढँके-
ॐ यं ब्रह्म वेदांत विदो वदन्ति परं प्रधानं
तथाऽन्ये ।
विष्वोद्गतेःकारणमीष्वरं वा तस्मै
नमो विघ्न विनाषनाय ।।
सुवासिन को एक साड़ी देकर कन्या का
सिन्दुर ठीक (सुधार) करावें और नेंग ( सिन्दुर का) दिलवादें। अब वर के बड़े भाई तथा
मामा से कन्या का शिर ढकावें(पहले पीला चाँवल छिड़के फिर साड़ी और न्योछावर दें)
ॐ इह गावो निषी दन्त्विहाश्वा ऽइह
पुरुषाः।
इह सहस्त्र दक्षिणो यज्ञ ऽइह पूषा
निषीदन्तु ।।
कुछ समाज(कुछ साहू,यादव) में कन्या के जुमापागी के सिंघोलिया से काजल निकलवाकर वर के आँख में
आँजा जाता है,यह नियम करवाते हुए आर्चाय मंत्र पढ़े-
ॐ चक्षुर्भ्यां कज्जलं रम्यं सुभगे
शान्ति कारकम् ।
कर्पूर ज्योति समुत्पन्नं गृहाण
परमेश्वरि ।।
पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह
पद्धती अंतिम भाग
अँजुली कार्य-
कन्या का दोनों हाथ फैंलाकर उसमें
चाँवल,आलू या आम या प्याज रखातें जाँयें इस प्रकार सात बार आर्चाय के लिए,
फिर पाँच बार नाई(ठाकुर)या सुवाँसिन के लिए अँजुली भरवाय-
पहला-
प्रथम अंजली समुत्पन्नं विष्णु देव समन्वितम् ।
लक्ष्मी प्रति कार्येषु तस्य अंजुली
शुभं भवतु ।।
दूसरा-
द्वितीय अंजली समुत्पन्नं ब्रह्म देव समन्वितम् ।
ब्रह्मणी प्रति कार्येषु तस्य
अंजुली शुभं भवतु ।।
तिसरा-
तृतीय अंजली समुत्पन्नं रुद्र देव समन्वितम् ।
पार्वती प्रति कार्येषु तस्य अंजुली
शुभं भवतु ।।
चौथा-
चतुर्थ अंजली समुत्पन्नं गौतम देव समन्वितम् ।
अहिल्या प्रति कार्येषु तस्य अंजुली
शुभं भवतु ।।
पाँचवाँ-
पंचम अंजली समुत्पन्नं इन्द्र देव समन्वितम् ।
इन्द्राणी प्रति कार्येषु तस्य
अंजुली शुभं भवतु ।।
छटवाँ-
षष्टमो अंजली समुत्पन्नं चन्द्र देव समन्वितम् ।
रोहणी प्रति कार्येषु तस्य अंजुली
शुभं भवतु ।।
सातवाँ-
सप्तमो अंजली समुत्पन्नं सूर्य देव समन्वितम् ।
सुसंज्ञा प्रति कार्येषु तस्य
अंजुली शुभं भवतु ।।
अब इस प्रकार से विवाह की समस्त
विधि-विधान पुरा हुआ; परंतु जब तक
कन्या-वर के वाम भाग में नहीं आ जाती तब तक कन्या कुँवारी कहलाती है, एैसा शास्त्र का मत है। अतः कन्या वाम भाग में जाने से पहले वर से कहती है
की मैं आपसे कुछ वचन चाहती हूँ जिसे आप यदि माने तो मैं आपके वाम भाग मे आना
स्वीकार करुँगी( कन्या-वर को पीला चाँवल दे देंवें व वचन समपन्न हो जाने पर एक
दुसरे के ऊपर स्वीकारोक्ति ढंग से छिड़कावें)-
पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह
पद्धती अंतिम भाग
सात वचन(कन्या)-
१- तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञ दानं मया
सह त्वं यदि कान्तकुर्याः ।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद
वाक्यं प्रथमं कुमारी ।।
२- पुज्यौ यथासौ पितरौ ममापि तथे च
भक्तो निज कर्म कुर्यात् ।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद
कन्या वचनं द्वितीयम् ।।
३- हव्य प्रदानैरमरान् पितृश्चं
काव्यं प्रदानैर्यदि पूजयेथाः।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद
कन्या वचनं तृतीयम् ।।
४- कुटुम्ब संपालनं सर्वकार्य कर्तु
प्रतिज्ञां यदि कांत कुर्याः ।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद
कन्या वचनं चतुर्थम् ।।
५-आयं व्ययं धान्यधनादिकानां
पृष्ट्वा निवेशं प्रगृहं निदध्याः।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद
कन्या वचनं पंचमम् ।।
६-न मेपमानं सविधे सखीनां द्युतं न
वा दुर्व्यसन मजेश्चेत् ।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद
कन्या वचनं षष्ठम् ।।
७-न सेवनीया परिकीय जाया त्वया
भवेभाविनि कामनीश्च ।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं जगाद
कन्या वचनं सप्तम् ।।
कन्या-वर से पहला वचन कहती
है कि यदि आप तीर्थ,यज्ञ,उद्यापन,दान आदि कार्य करें मुझे साथ रख करें तो मैं
आपके वाम भाग में आना स्वीकारती हूँ।
कन्या-वर से दुसरा वचन कहती
है कि यदि आप मेरे माता-पिता का आदर ,बड़ों
का मान-सम्मान करें तो मैं आपके वाम भाग में आना स्वीकारती हूँ।
कन्या-वर से तीसरा वचन कहती
है कि यदि आप अपने कुल धर्मा अनुसार हवन द्वारा देवताओं का तथा श्राद्ध द्वारा
पितरों का पुजन करें तो मैं आपके वाम भाग में आना स्वीकारती हूँ। (पाश्चायात्य संस्कृति न अपनायें)
कन्या-वर से चौंथा वचन कहती
है कि अभी तक आप घर-द्भार की चिंता से मुक्त थे परंतु अब आपका मेरे साथ विवाह हो
गया है अतः आप मेरे और हमारे परिवार का जिम्मेदारी से र्निवाह करे तो मैं आपके वाम
भाग में आना स्वीकारती हूँ।
कन्या-वर से पाँचवा वचन कहती
है कि यदि आप कुछ भी कमाई या खर्च करें मेरी सम्मति से करें तो मैं आपके वाम भाग
में आना स्वीकारती हूँ।
कन्या-वर से छटवाँ वचन कहती
है कि जब मै सखियो साथ रहूँ मेरा अपमान न करें अकेले में कुछ भी कहें,
तथा जूंआ आदि दुर्व्यसन से दूर रहे तो मैं आपके वाम भाग में आना
स्वीकारती हूँ।
कन्या-वर से सातवाँ वचन कहती
है कि यदि आप परस्त्रीयो को माता समझे सदा मुझसे प्रेम करें क्रोध न करें तो मैं
आपके वाम भाग में आना स्वीकारती हूँ।
पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह
पद्धती अंतिम भाग
वर वचन-
१-क्रीडा
शरीर-संस्कार-समाजोत्सव-दर्शनम् ।
हास्यं परगृहे यानं त्यजेत प्रोषित
भर्तृका ।।
२-विष्णु वैश्वानरः साक्षी ब्राह्मण-ज्ञात-बान्धवः।
पंचमं ध्रुवमालोक्य स साक्षित्वं
ममागताः।।
३- तव चित्तं मम चित्ते वाचा वाच्यं
न लोपयेत् ।
व्रते मे सर्वदा देयं हृदयस्थं
वरानने ।।
४-मम तुष्टिश्च कर्ताव्या बंधूनां
भक्तिरादरात् ।
ममाऽऽज्ञा परिपाल्यैषा पातिव्रत
परायणे ।।
५-विना पत्नी कथं धर्म आश्रमाणां
प्रवर्त्तते ।
तस्मात्त्वं मम विश्वस्ता भव वामांग
गामिनि ।।
अब वर कहता है कि मुझे तुम्हारी
प्रत्येक वचन स्वीकार है परंतु मेरा भी कुछ वचन यदि तुमहे स्वीकार हो तो मैं अपने
वाम भाग में लेता हूँ-
पाँचो वचन का सार-
यदि तुम मेरे मतानुसार चलो,
मेरे माता-पिता,भाई-बहन से मान सम्मान व स्नेह
करो, सदा पतिव्रत का पालन करो तो मैं तुम्हें अपने वाम भाग
में लेना स्वीकारता हूँ। एक दुसरे के ऊपर चाँवल छिड़कावें। अब कन्या को उठाकर (वर
के पीछे से ले जावे) वर के वाम भाग मे
बैठवायें।
अचार्य वचन-
( कन्या-वर के प्रति कहें) विवाह समपन्न होते
तक आपके विवाह का साक्षी घराती व बाराती है किन्तु उसके बाद वे सभी अपने गंतव्य को
चले जाऐंगें अतः उन्हें साक्षी नहीं माना जाएगा क्योकि वे सदा साथ नही रहेंगे।
मंगंल कार्य होने उपरांत उपस्थित
देवों का विसर्जन कर दिया जावेगा तथा अर्चाय भी दक्षिणा ले घर चले जाएगा अतः वे भी
साक्षी नही हुए।
सूर्य केवल दिन में उदयमान होता है
एवं चंद्र केवल रात में प्रकाशित होता है अतः इन्हें भी साक्षी नही माना जा सकता।
अब रह गया ध्रुव तारा जो कि उत्तर दिशा आकाश
मंडल पर सदा ही अटल रुप से उदयमान होता है अतः इन्हें ही वर-वधु अपने विवाह का
साक्षी मान प्रार्थना व उत्तर दिशा में पीला चाँवल छिड़कर नमस्कार करें-
ॐ ध्रुवमसि ध्रुवं त्वा पश्यामि
ध्रुवैधि पोष्या मयि ।
मह्यं त्वाऽदात् बृहस्पतिर्मया
पत्या प्रजावति सय्जीव श्रदः शतम् ।।
ॐ ध्रुवाय नमः।।
किसी-किसी समाज (तेली {साहू},यादव)
मे गोद बैठाने की परंपरा (कन्या को वर के पिता के गोद व वर को कन्या के पिता की
गोद में बैठाना) होती है आर्चाय उसे कर देवें (क्योंकि किसी भी सामाजिक प्रथा का
लोप न होने पाए इन्ही प्रथाओ से ही सामाज का अस्तिव है)।
आचार्य वचन
(कन्या के पिता के प्रति)- आपको पुत्री के
पीछे एक दामाद नही अपितू एक पुत्र मिला अतः इन्हें अपने हर सुख-दुख में पुत्रवत्
स्नेह करे ताकि वे भी आपको सदा सहयोग प्रदान करें।
आचार्य वचन
(वर के पिता के प्रति)- आपको पुत्र के
पीछे एक वधू नही अपितू एक पुत्री मिला अतः इनसे कभी छोटी बड़ी गलतीयाँ यदि स्वभाव
वश हो जावे तो आप अपनी पुत्री समझ क्षमा करें और सदा ही इन्हे अपने पुत्रीवत्
स्नेह करे ताकि वे भी आपको सदा सहयोग प्रदान करें।
आचार्य वचन (वर
के प्रति)- आज से आपकी जिम्मेदारी पहले से अधिक
बढ़ गया है क्योकि एक पिता ने अपनी लाडली आपको सौप् दी है अतः उनके हितों का ख्याल
रखना आपका फर्ज है, साथ ही इस बात से
आपकी जिम्मेदारी और अधिक हो जाती है कि अब से दोनो परिवार को सम्हालना भी आपको है।
आचार्य वचन
(कन्या के प्रति)- आज विवाह समपन्न होने के
उपरांत से आप केवल पुत्री ही नही अपितु पुत्रवधु भी बन गई हैं,
वैसे कन्या को दुहिता भी कहते हैं जो कि दोनो कुलो कि हित की रक्षा
करती है। आप अपने सास-ससूर को अपने माता-पिता का दर्जा दें व ननद-देवर को छोटा
भाई-बहन समझ स्नेह करे। आदर देने से ही आदर की प्राप्ति होती है।
इस प्रकार कहकर दोनो समधियों को
पीला चाँवल दे,उसे वें वर-कन्या को
छिड़के(टिकें) व भेंट दें।
अब सील में पीला चाँवल,
हल्दी, सुपाड़ी रख पहले की भांति चार कुड़ी
बनावें और दोनो समधीयों को वर-कन्या के सम्मुख बैठाकर गौराही पुजन(ठेठवार समाज में
एक टुकनी में गुड्डा व गुड़िया रखकर पूजन उपरांत ठंडा किया जाता है (दोनों पक्ष के
समधी आदान-प्रदान करते हैं वर पक्ष को गुड़िया व वधू पक्ष को गुड्डा मिलता है))
पंचोपचार से करवायें और दक्षिणा संकल्प करायें-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः
श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णुराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्राह्मणोऽह्नि
द्वितीय प्रहरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टात्र्वशति तमे
कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भारतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गते (अमुक)प्रदेशे
(अमुक)नामग्रामे (अमुक)सम्वतसरे (अमुक)आयने (अमुक)मासे (अमुक)
पक्षे (अमुक) ऋतौ (अमुक) तिथौ (अमुक) वासरे (अमुक)
नामिनः (अमुक) कन्या (अमुक) नाम वराय (अमुक) गोत्रोत्तपन्ने
विवाह कर्मं सांगता सिध्यर्थे ब्राह्मण दक्षिणा,
न्यूनता दोष समनार्थ भूयसी दक्षिणा (अमुक)
गोत्रोत्तपन्ने (अमुक) नाम ब्राह्मणाय अहं ददातु ।।
(हाथ का चाँवल,जल दक्षिणा सहित अर्चाय को दें)पुनः चारों को अक्षत व जल देकर सभी देवताओं, मंडप का विसर्जन करावें-
ॐ गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थान
परमेश्वर ।
यत्र ब्रह्मदयो देवास्तत्र गच्छ
हुताज्ञन ।।
ॐ द्यौः शन्तिरन्तरिक्ष ઈ शान्तिः पृथिवी
शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः
शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ઈशान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा
शान्तिरेधि ।।
ॐ शान्तिः शन्तिः सुशान्तिर्भवतु ।।
अब सभी घरातियो व बारातियो को चाँवल
आदि पकड़ाये वर-वधु को आर्शिवाद देवें-
ॐ श्रीकृष्णः कुशलं करोतु भवतां
धाता प्रजानां सुखं ।
निर्विघ्नं गणनायक : प्रतिदिनं
भानुः प्रतापोदयम् ।
शम्भुस्ते धनधान्य कीर्ति तुलां
दुर्गाऽरिनाशं सदा ।
गंगा ते खलु पापहा निशिदिनं लक्ष्मीस्सदा तिष्ठतु ।।
सुखी रहो संसार में बाढ़े कुटुम्ब
तुम्हार
धन धान्य पुत्र पौत्र से फुलो फलो
यह आशिष हमार ।।
अब कन्या के पिता नया काँस की थाली
में जो नगदी टिकावन व कागज में कुल टिकावन लिखकर पकड़ें साफा बाँधकर पहले वर के
पिता के ऊपर जल छिड़के फुल, दूबी कानो में लगा
दें और समधी से निवेदन करें कि हमारे यहाँ आपके स्वागत-सत्कार में या किसी भी
प्रकार से कोई त्रुटि हो गई हो तो आप क्षमा करें, मैं आपको
ज्यादा कुछ नही भेंट कर सकता जैसे भी है मेरी सोलह आना कन्या आपको देता हूँ उससे
बाल्यावस्था में जो गलती हो जावें तो आप अपनी पुत्री समझ गलतीयों को क्षमा करें और
उसके साथ यह तुच्छ नजराना आपको भेंट करता हूँ, कहते हूए थाली
वर के पिता को भेंट कर दें और पुनः दोनो समधी भेंट लगें (अंगमालिका करें )।
वर-वधु को घर भेज पुनः मौर को उतार
मंडप पर बुलवाऐ-
पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह
पद्धती अंतिम भाग
गवन विधि (गरजराव)-
बारातियो से गवन का साड़ी मांगकर वर
से वधु का सिर ढँकवा दें। वधु का भाई आकर दोनो का पाँव पखारे गवन का बछिया टीक
देवें ।।
इति पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह पद्धती अंतिम भाग समाप्त ।।
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