छत्तीसगढ़- विवाह पद्धती प्रथम भाग

छत्तीसगढ़ विवाह पद्धती 

हमारे धर्म ग्रंथो ने मानव जीवन में सोलह उपयोगी संस्कार बताये हैं जिसमें विवाह संस्कार एक प्रमुख संस्कार है। हर प्रदेश में व समाज में विवाह की विधियाँ भिन्न-भिन्न होती है, परंतु सभी का मूल उद्देश्य एक ही होता है। इन विधियों में शाखोच्चार विवाह पद्धती लगभग सभी प्रदेशों में सर्वमान्य है। आप सभी पाठकों से निवेदन है की आप नीचे कॉमेंट बॉक्स पर अपने प्रदेश व समाज की विवाह पद्धती अवश्य ही लिखे ताकि अन्य प्रदेश के पाठकों तक आपकी विधि का ज्ञान प्राप्त हो सके। मै यहाँ सर्वमान्य विधि अर्थात शाखोच्चार विवाह पद्धती लिख रहा हूँ साथ ही अपनी जानकारी अनुसार अपने प्रदेश छत्तीसगढ़ की विवाह पद्धती को क्रमशः तीन भागों में नीचे दे रहा हूँ। इसके लिए मैंने पूर्व में छत्तीसगढ़ विवाह पद्धती नाम से पुस्तक लिखा है अतः यहाँ भी मै उसी शीर्षक से  यह लेख आप सभी पाठकों व कर्मकांडीयों के लिए दे रहा हूँ- पं॰डी॰पी॰दुबे   

छत्तीसगढ़- विवाह पद्धती प्रथम भाग

अथ पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह पद्धती प्रथम भाग  

फलदान(सगाई)विधि

जब बाराती कन्या के यहाँ आवे तो उनका स्वागत सत्कार करें। अब उन्हें लग्न मंडप में उचित स्थान पर बैठावें और आचार्य को बुलवाकर मंडप में उचित आसन प्रदान करें। सर्वप्रथम आचार्य मंडप के बीचो-बीच लीपवा कर सुंदर चौक बनवाले, चौंक के ऊपर एक पीढ़ा रखायें और कन्या पक्ष से पीला चाँवल, फुल, दूबी, कलशा मंगवालें। अब दोनो पक्ष के समधीयो को बुलाकर उत्तर या पूर्व मुख करवा बैठावें। वर पक्ष से पुजा सामग्री लेकर गौरी-गणेश, नवग्रह पीढ़ा में बनायें व कलशा रखें और एक पत्तल में चढ़ाव सामान रखें। अब समधियो के ऊपर (अपवित्रः मंत्र से) जल छिड़के व गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश व चढ़ाव सामग्री का पुजन षोडषोपचार या पंचोपचार विधि से करवा चढ़ाव सामग्री सुवासिन के हाथ देकर घर भिजवादें। अब सभी समधी सब देवो को प्रणाम कर खड़े हो जावें व साफा बाँध एक दुसरे को जल छिड़के अक्षत, गुलाल, कुमकुम लगावें कानो में दूबी खोंचें नारियल आदान-प्रदान सात बार कर समधी भेंट लगें और बैठें।

अब कन्या को तैयार करा मन्डप में बुलवायें, पुनः वर को मंडप में बुलवाये। वर कन्या से अंगूठी लेकर गौरी-गणेश के समीप रख पहले दोनो के ऊपर जल छिड़के और गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश का षोडषोपचार या पंचोपचार विधि से पुजन करायें तथा सभी देवताओं का प्रणाम कर खड़े करा पहले एक दुसरे को फुल माला पहनाऐं उसके बाद अंगूठी पहनावें अब कन्या वर का प्रणाम करे व एक दुसरे का मुँह मिठाकर पहले आर्चाय से आर्शिवाद लेकर बड़ों से आर्शिवाद लें।

पुनः आर्चाय दोनो पक्ष के समधीयों को बुला कर दक्षिणा लेकर सभी देवताओं का विसर्जन, शान्ति करावें आर्शिवाद देकर पुजन समपन्न करें।

 इति फलदान विधिः।।

 

लग्न पत्रिका लिखने की विधि(नमूना)

।।श्री गणेशाय नमः।।

।।यं ब्रह्म वेदांत विदो वदन्ति परं प्रधानं तथाऽन्ये । विष्वोद्गतेःकारणमीष्वरं वा तस्मैनमोविघ्नविनाषनाय ।।जन्नी जन्म सौख्यानां वर्द्धनी कुल सम्पदाम् । पदवी पूर्व पुण्यानां लिख्यते लग्नपत्रिका ।।

।। अथ शुभ सम्वत्सरे ऽस्मिन् श्री सम्वत्२०६६शक्१९३१,ग्रीष्म ऋतौ मासानां मासोत्तमेमासे ज्येष्ठ मासे कृष्णपक्षे शुभतिथौ एकादशयां (११), बुधवासरे घट्यः ५३/०२, उत्तराभाद्रपद नामनक्षत्रे विष्कुंभ योगे बालव नामकरणे तत्र दिनमानं ३२/३९ तत्समये मिथुन लग्नोदये एवं पंचांगशुद्धौ वर नाम चिदिलेश्वर दुबे राशि- कर्क, सूर्यबल- ११, चंद्रबल- ९, कन्या नाम सौशशिकिरण राशि-कुंभ,गुरुबल- १, चंद्रबल- २, त्रिबल सहितं लत्तादिदश दोषरहितं पाणिग्रहण शुभम् मंगलं ददातु ।                
लग्न पत्रिका लिखने की विधि(नमूना)

मांगलिक -कार्यक्रम

ज्येष्ठ  कृष्ण पक्ष ९ दिनांक १८-०५-२००९ दिन सोमवार

 चुलमाटी

ज्येष्ठ  कृष्ण पक्ष १० दिनांक १९-०५-२००९ दिन मंगलवार

मंडपाच्छादन,तेल,मायन

ज्येष्ठ  कृष्ण पक्ष ११ दिनांक २०-०५-२००९ दिन बुधवार

बरात प्रस्थान या स्वागत(पाणिग्रहण गो. रा.)

इति लग्न पत्रिका लेखन विधि:।   


लग्न-पुजा विधि

 सर्वप्रथम आचार्य मंडप के बीचो बीच लीपवा कर सुंदर चौक बनवाले, चौंक के ऊपर एक पीढ़ा रखायें और कन्या पक्ष से पीला चाँवल, फुल, दूबी, कलशा मंगवालें। अब दोनो पक्ष के समधीयो को बुलाकर उत्तर या पूर्व मुख करवा बैठावें। वर पक्ष से पुजा सामग्री लेकर गौरी-गणेश, नवग्रह पीढ़ा में बनायें व कलश रखें और एक पत्तल में करसा, पर्रा ,लग्नपत्रिका आदि सामान रखें। अब समधियो के ऊपर (अपवित्रः मंत्र से) जल छिड़के व गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश व समस्त सामग्री का पुजन षोडषोपचार या पंचोपचार विधि से करवाकर हल्दी का छिंटा लगवायें-

।। हरिद्रारंजिते दवि! सुखसौभाग्यदायिनि। तस्मात् त्वां पूजयाम्यत्र सुखं शान्तिं प्रयच्छ मे।।

दो नारियल पर्रा में मौली धागा बाँध चढ़वाऐं। अब आचार्य (जिस समाज में चलता हो वहाँ) जूमापागी बनावे अर्थात्-एक सफेद कपड़ा को दो भाग मे काटे और एक में हल्दी सुपाड़ी ताँबे की अंगूठी व सिंघोलिया (सिंघोलिया के अंदर सिंदूर भरें) लेकर बाँध दें। पुनः दूसरा में हल्दी सुपाड़ी ताँबा की अंगूठी व सिंघोलिया (सिंघोलिया के अंदर काजल भरें)लेकर बाँध दें। अब सभी समधी सब देवो को प्रणाम कर खड़े हो जावें व साफा बाँध एक दुसरे को जल छिड़के अक्षत, गुलाल, कुमकुम लगावें कानो में दूबी खोंचें नारियल व लग्नपत्रिका आदान-प्रदान सात बार कर समधी भेंट लगें और बैठें।

अब आर्चाय दोनो पक्ष के समधीयों को बैठा कर दक्षिणा लेकर सभी देवताओं का विसर्जन, शान्ति करावें ,सिन्दूर वाला जूमापागी, पर्रा से नारियल (हथवा के लिए) व सात कच्चा हल्दी वर पक्ष को दें तथा काजल वाला जूमापागी ,पर्रा से नारियल (हथवा के लिए) व सात कच्चा हल्दी कन्या पक्ष को दें। करशा पर्रा आदि को सुवासिन बुलवा कर घर भिजवा (कन्या पक्ष के यहाँ से) देवें अब आर्चाय आर्शिवाद देकर पुजन समपन्न करें।

नोट- देवांगन(कोष्टा)समाज में २१पान लाया जाता है,उन पान के बीड़ा में हल्दी सुपाड़ी डालकर मौली धागा बांध दें । इसे ही दोनों समधी सात बार आदान-प्रदान करें। यही विधि उनके यहाँ अतिरिक्त होता है।

इति लग्नपूजन विधिः।।


मरार (पटेल)समाज सगाई बारात (लग्नपूजन) विधिः

मरार (पटेल)समाज में सगाई के बाद पुनः विवाह प्रारम्भ होने से पूर्व दिवस को सगाई बारात आता है। वहाँ पूजन निम्न विधि से किया जाता है-

जब बाराती कन्या के यहाँ आवे तो उनका स्वागत सत्कार करें। अब उन्हें लग्न मंडप में उचित स्थान पर बैठावें और आचार्य को बुलवाकर मंडप में उचित आसन प्रदान करें। सर्वप्रथम आचार्य मंडप के बीचो बीच लीपवा कर सुंदर चौक बनवाले, चौंक के ऊपर एक पीढ़ा रखायें और कन्या पक्ष से पीला चाँवल, फुल, दूबी, कलश मंगवालें। अब दोनो पक्ष के समधीयो को बुलाकर उत्तर या पूर्व मुख करवा बैठावें। वर पक्ष से पुजा सामग्री लेकर गौरी-गणेश, नवग्रह पीढ़ा में बनायें व कलश रखें। अब समधियो के ऊपर (अपवित्रः मंत्र से) जल छिड़के व गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश का पुजन षोडषोपचार या पंचोपचार विधि से करवा दें और कूड़ा(एक घड़ा जिसमे की लड्डू आदि भरा होता है) व कन्या के लिए जो साड़ी आदि जो वर पक्ष की ओर से जो लाया गया है उसे सुवासिन के हाथ देकर घर भिजवादें तथा कन्या को तैयार होने को बोल दें। अब सभी समधी सब देवो को प्रणाम कर खड़े हो जावें व साफा बाँध एक दुसरे को जल छिड़के अक्षत, गुलाल, कुमकुम लगावें कानो में दूबी खोंचें नारियल आदान-प्रदान सात बार कर समधी भेंट लगें और बैठें।

अब कन्या को तैयार करा मन्डप में बुलवायें, और कन्या से गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश का षोडषोपचार या पंचोपचार विधि से पुजन करायें तथा दो नारियल जिसमे  आचार्य द्वारा स्वास्तिक बनाकर मौली-धागा बांधा गया है चढ़वाये। सभी देवताओं का प्रणाम करवाये आर्चाय से आर्शिवाद लेकर बड़ों से आर्शिवाद लें।

पुनः आर्चाय दोनो पक्ष के समधीयों को बुला कर दक्षिणा लेकर सभी देवताओं का विसर्जन, शान्ति करावें आर्शिवाद देकर कन्या द्वारा चढ़ाया गया दो नारियल (मौली-धागा वाला)दोनों पक्ष को दें यही नारियल वर व कन्या का हथवा का नारियल बनेगा इस प्रकार पुजन सम्पन्न करें।

नोट- सगाई बारात में वर नहीं आता। कई जगह सगाई(फलदान)व सगाई बारात एक साथ आते हैं तो पहले सगाई विधि कराये फिर पुनः सगाई बारात विधि अनुसार पूजन करावें। मरार (पटेल)समाज में यही लग्नपूजन है।  

 इति मरार (पटेल)समाज सगाई बारात (लग्नपूजन) विधिः।।


वर-वरण(तिलक)विधि

तिलक विधि छत्तीसगढ़ में केवल राजपूत समाज व सोनी(सोनार)समाज में ही प्रचलित है । पहले यह ब्राह्मण समाज में भी प्रचलित था,किन्तु अब या विधि छत्तीसगढ़ी ब्राह्मण समाज में नहीं होता। उ॰प्रदेश में यह अभी भी ब्राह्मण समाज में चलता है। अब जिनके यहाँ भी यह चलता है वहाँ निम्न विधि से करें-

सबसे पहले कन्या पक्ष से कन्या का पिता या भाई संबंधियों सहित वर के घर जाए तथा आचार्य को बुलवाकर मंडप में उचित आसन प्रदान करें। अब आचार्य मंडप के बीचो बीच लीपवा कर सुंदर चौक बनवाले, चौंक के ऊपर एक पीढ़ा रखायें और पीला चाँवल, फुल, दूबी, कलश मंगवालें। पुजन सामग्री लेकर गौरी-गणेश, नवग्रह पीढ़ा में बनायें व कलश रखें। अब कन्या का पिता या भाई संबंधियों सहित के ऊपर (अपवित्रः मंत्र से) जल छिड़के और अब कन्या के पिता या भाई को चाँवल,जल देकर संकल्प करावें-

।।विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः .................. वर-वरण कर्मांहं करिष्ये।।

(हाथ का चाँवल,जल जमीन में छोड़ दें)

अब गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश का पुजन षोडषोपचार या पंचोपचार विधि से करवा दें। इसके बाद सामने एक पीढ़ा(चौकी) में वर को बुलाकर बैठावे और वर से भी गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश का पुजन करवा दें। तत्पश्चात कन्या के पिता या भाई वर का पूजन करें व वर को मंगल तिलक करें और एक थाल में कुछ द्रव्य आदि रख भेंट देवें। पुनः ब्राह्मण दक्षिणा देकर सब देवन का विसर्जन करें।

इति: वर-वरण(तिलक)विधि: । 

 

छत्तीसगढ़ में प्रचलित विवाह पद्धति

छत्तीसगढ़ में शाखोच्चार विवाह पद्धति के अलावा भी अन्य छत्तीसगढ़ी विवाह पद्धति होता है जिसे छोटी विवाह पद्धती,मँझली विवाह पद्धति,जयमाला विवाह पद्धति कहते हैं-


छत्तीसगढ़ छोटी विवाह पद्धती

छोटी विवाह पद्धती अलग-अलग समाज का अलग-अलग विधि से होता है जिसमें की उन्हें ब्राह्मण(आचार्य) की आवश्यकता नहीं होती,समाज के लोगों द्वारा ही इसे सम्पन्न करा लेते हैं। अतः इस विवाह पद्धती को यहाँ नहीं लिखा जा रहा है और वैसे भी इस प्रकार की विधि लगभग अब समाज में धीरे-धीरे चलन से बाहर होते जा रहा है।


छत्तीसगढ़ में मँझली (छोटी) विवाह पद्धति

जब बाराती कन्या के यहाँ आवे तो उनका स्वागत सत्कार करें। अब उन्हें विवाह मंडप(जवनासा) में उचित स्थान पर बैठावें और आचार्य को बुलवाकर मंडप में उचित आसन प्रदान करें। सर्वप्रथम वर व समधी सहित झाँपी (पेटी)बुलाव करें। जब वर कन्या के द्वार पर आवें तो उन्हे विवाह मंडप के बीच खड़े कर सबसे पहले कन्या के माँ द्वारा वर का पूजन (मौर सोपना)करें तथा बारातियों से सभी चढ़ाव सामान (कपड़ा, गहना, मौर आदि) मांगकर सुवासिन के हाथ माई साड़ी व सभी साड़ी (समाज के चलन अनुसार), कुड़ा देकर घर भिजवायें। अब सर्वप्रथम आचार्य मंडप के बीचो बीच लीपवा कर सुंदर चौक बनवाले, चौंक के ऊपर एक पीढ़ा रखायें और कन्या पक्ष से पीला चाँवल, फुल, दूबी, कलशा मंगवालें। अब वर को मंडप में लाऐं जूता निकलवाकर बैठावें। पहले वर के ऊपर (अपवित्रः मंत्र से) जल छिड़के, अब गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश  पुजा षोडषोपचार विधि से  करावें। अब कन्या को बुलवायें मंडप मे वर के दाहिने बैठावें तथा वर-कन्या द्वारा पुनः गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश  पुजा षोडषोपचार विधि से  करावें।

इसके बाद अब लगन करवाये। लगन अलग-अलग समाज का अलग-अलग विधि से होता है।

१. साहू(तेली) समाज में- एक खाट(पलंग) में वर-कन्या को एक दूसरे के सम्मुख बैठावे। वर के कनिष्ठा अंगुली को कन्या पकड़े। अब ऊपर से दोनों को किसी चादर से ढक दें तथा सुवासिनों द्वारा कलशा(करसा)का हल्दी मिश्रित जल छिड़कते जाएँ और आचार्य पाणिग्रहण का संकल्प मंत्र पढ़े। मंत्र समाप्त हो जाने पर चादर निकाल दें। अब कन्या से वर का हाथ पकड़वा कर आगे कन्या रहे और मंडप के चारों ओर तीन फ़ेरा कराये। तीन फेरों उपरांत वर पक्ष से एक धोती लेकर (पीला चाँवल,हल्दी सुपाड़ी व सिक्का डालकर बांध दें) गठबंधन कारवें। अब वर कन्या का हाथ पकड़कर आगे चलते हुए तीन फ़ेरा करें। अब वर-कन्या को बैठा दे अंजुली भरवाये(सात आचार्य के लिए और पाँच या सात सुवासिन के लिए-इन सभी विधि का मंत्र छत्तीसगढ़ शाखोच्चार विवाह पद्धति में दिये अनुसार करें) तथा सब देवों का विसर्जन करा दें,ब्राह्मण दक्षिणा लेकर आगे की विधि समझा कर छत्तीसगढ़ मँझली (छोटी) विवाह पद्धति सम्पन्न करें। कहीं-कहीं अब खाट में न बैठाकर दो अलग-अलग पर्रा में बैठाया जाता है।  

२. यादव(अहीर या पाहटिया) समाज में- वर-कन्या के बीच में चादर इस प्रकार रखा जाता है जिससे की दोनों एक-दूसरे को न देख पाए। अब वर का उंगली कन्या द्वारा पकड़ा जाता है और शेष विधि साहू(तेली) समाज अनुसार करें।

३.निषाद(केंवट) समाज में यही विधि जुड़ा(हल जुताई के वक्त दो बैलों के ऊपर रखा जाने वाला मोटा लकड़ी)पर वर-कन्या को बैठा कर बीच में यादव समाज अनुसार चादर रखें।

४.बाँकी समाज जिसमे की मँझली (छोटी) विवाह पद्धति चलता है वहाँ वर-कन्या को दो अलग-अलग पर्रा में बैठा कर ऊपर से चादर ढका जाता है।  

छः फेरों उपरांत टिकावन प्रारंभ करवाये,सिंदूर दान, सिर ढकवाना,ज्येष्ठ या मामा ससुर द्वारा सिर ढकवाना, गोद बैठाना आदि कार्य समाज द्वारा स्वयं किया जाएगा।  

कहीं-कहीं आचार्य वर-कन्या से गौरी-गणेश आदि देवों का पुजन कर दक्षिणा व सभी देवताओं का विसर्जन करा देते हैं । बाँकी फ़ेरा आदि समाज द्वारा स्वयं ही किया जाता है।

आप दोनों ही विधियों को ग्रहण कर सकते हैं, परंतु मेरे अनुसार आप प्रथम विधि ही ग्रहण करें क्योंकि इससे यजमान को भी अधूरा नहीं लगेगा।        

इति मँझली विवाह पद्धतिः।।


जयमाला विवाह पद्धति

जयमाला विवाह पद्धति को यजमान चार कारणों से करवाते हैं-

१.वर-कन्या दोनों ही का विवाह प्रथम बार हो रहा हो,परंतु दोनों ही का परिवार सादे तरीके से विवाह चाहते हों।

२. कन्या का पहले विवाह हो चुका हो तथा वर का प्रथम विवाह हो रहा हो।

३. कन्या का प्रथम बार विवाह हो रहा हो और वर पहले विवाह हो चुका हो ।

४. वर- कन्या दोनो का ही पुर्नविवाह हो।

इन सभी परिस्थिति में जयमाला विवाह पद्धति निम्न विधि से सम्पन्न होगा-

इस पद्धति में विवाह प्रायः मंदिरो में ही समपन्न होता है, परंतु कई लोग घर में भी करवाते है। अतः आर्चाय दोनो ही जगहों पर इसी रुप से करवा सकते हैं। जब बाराती कन्या के यहाँ आवे तो उनका स्वागत सत्कार करें। अब उन्हें लग्न मंडप में उचित स्थान पर बैठावें और आचार्य को बुलवाकर मंडप में उचित आसन प्रदान करें। सर्वप्रथम आचार्य मंडप के बीचो बीच लीपवा कर सुंदर चौक बनवाले, चौंक के ऊपर एक पीढ़ा रखायें और कन्या पक्ष से पीला चाँवल, फुल, दूबी, कलशा मंगवालें। वर पक्ष से पुजा सामग्री लेकर गौरी-गणेश, नवग्रह पीढ़ा में बनायें व कलश रखें । सर्वप्रथम झाँपी (पेटी)बुलाव करने के बाद पुजा सामान मांगे, अब कन्या को बुलायें (कन्या अपने ऊपर जल छिड़कें) गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश पुजा करावें। बारातियों से सभी चढ़ाव सामान (कपड़ा, गहना, मौर आदि) मांगकर कन्या को देकर घर भेजें । अब वर व समधी बुलाव करें, मौर (वर का) सौंपवा कर वर को मंडप में लाऐं जूता निकलवाकर बैठावें। पहले वर के ऊपर (अपवित्रः मंत्र से) जल छिड़के, अब गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश  पुजा षोडषोपचार विधि से  करावें। पुनः कन्या को बुलवायें मंडप मे बैठावें। अब वर पक्ष से हवन सामग्री मांगकर वर कन्या को सर्वतोभद्र से हवन करा दें, अब यदि कन्या का प्रथम बार विवाह हो रहा हो तो वर- कन्या को हवन अग्नि का सात फेरा (ओम तुभ्यमग्ने मंत्र से) करावें और यदि कन्या का पहले विवाह हो चुका हो (किन्ही कारणो से पुर्नविवाह)तथा वर का प्रथम विवाह हो रहा हो तो केवल वर कटार लेकर अकेले ही सात फेरा अग्नि की करें और यदि वर- कन्या दोनो का ही पुर्नविवाह हो तो फेरा न करवाये अपितु हवन के पश्चात बलिदान करावें तथा एक प्रदक्षिण (ओम यानि कानि मंत्र से) करा दें। अब वर से कन्या का मांग भरावें और चुड़ी पहनवा दे (वर के हाथों से)। अब कन्या के माता-पिता को बुलाकर वर- कन्या का पाँव पखरवा कर जो भी दान दहेज देना है, दे देंवे। पुनः आर्चाय दोनो पक्ष के समधीयों को बुला कर गौरी-गणेश का पुजन करावे दक्षिणा संकल्प करावें व सभी देवताओं का विसर्जन करा दें।                     

इति जयमाला विवाह पद्धतिः।।


घट(कुम्भ) विवाह पद्धति

यदि किसी कन्या की कुंडली में विषदोष, मंगलीदोष, वैधव्यदोष हो तो इन दोषों के परिहार हेतु शास्त्रघट विवाह जिसको कुम्भ विवाह भी कहते हैं करने का निर्देश देता है।( विषदोष, मंगलीदोष, वैधव्यदोष जानने हेतू मेरी पुस्तक ‘‘क्या कहती है आपकी कुंडली ’’ का अवलोकन करें ) सर्वप्रथम कन्या के माता-पिता किसी मंदिर, नदी या एकांत में जाकर पूर्वाभिमुख बैठे, पवित्रीकरण कर हाँथो में अक्षत व जल लेकर संकल्प करें-

।। विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णुराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्राह्मणोऽह्नि द्वितीय प्रहरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टात्र्वशति तमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भारतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गते (अमुक) प्रदेशे (अमुक) नामग्रामे (अमुक) सम्वतसरे (अमुक) आयने (अमुक) मासे (अमुक) पक्षे (अमुक) ऋतौ (अमुक) तिथौ (अमुक) वासरे (अमुक) नामिनः(अमुक) गोत्रोत्तपन्ने मम अस्याः कन्याया नक्षत्रादि योगेन ग्रहयोगेन च विषाख्य योग जननसूचित वैधव्यारिष्ट परिहारर्थ श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थ घट विवाह कर्मांहं करिष्ये।।

(हाथ का चाँवल,जल जमीन में छोड़ दें)

अब गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश, मातृका, नान्दीश्राद्ध, आचार्य वरण विधि पूर्वक करे। इसके बाद प्रधान वेदी पर एक कलश रखें व इसमें विष्णुजी की सोने की मूर्ति या वट (बड़) वृक्ष की लकड़ी की मूर्ति बनाकर अथवा घड़े(घट या कुम्भ) के भितर मूर्ति को रखकर प्राण प्रतिष्ठा कर रखें (प्राण प्रतिष्ठा मंत्र के लिए मेरी पुस्तक ‘‘प्रतिष्ठा विधिः’’ का अवलोकन करें)। अब उस घड़े के मुख को कपड़ा से ढँके पुनः मंगल धाँगा बाँध दें व वस्त्र, उपवस्त्र समर्पित कर अलंकृत करें और मधुपर्क दें। अब कन्या एवं घट के मध्य गठबँधन करा देवें तथा मंगलाष्टक पढ़े अब यजमान से कन्यादान करा दें।

।। विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो......शुभ पुण्य तिथौ अस्याः कन्या मंगलीकदोष, विषाख्यदोष, वैधव्यदोष निवृत्ये श्रीविष्णुरुपिणे कुम्भ श्री रुपिणी मिमां कन्या तुभ्य महं सम्प्रददे।।

इतना मंत्र बोलकर कन्या के दाहिने हाँथ में विष्णु रुपेण घट दे देवें और मंत्र पढ़ें-

गौरी कन्या मिमां श्लक्ष्णां यथाशक्ति विभूषिताम्।

ददामि विष्णवे तुभ्यं सौभाग्यं देहि सर्वदा।

विष्णुं रुपिणे कुम्भाये इमां कन्यां सम्प्रददे।।

अब कन्या उस घट से प्रार्थना करें कि आप मेरे सौभाग्य की सर्वदा रक्षा करें-

वरुणांग स्वरुपाय जीवनानां समाश्रयः।

पतिं जीवय कन्यायाश्चिरं पुत्रसुखं कुरु।

देहि विष्णो वरं देहि कन्यां पालय दुःखतः।।

इसके पश्चात् गँठबँधन खोल दें और उस घट को जल में छोड़ दें, कन्या का चुड़ियां व बिन्दी मिटा दें। कन्या अपना रंगीन वस्त्राभूषण वहीं छोंड़ दें और स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहन लें और आर्चाय को दक्षिणा देकर सौभाग्य का आशिर्वाद लेवें। अब आर्चाय सब देवों का विसर्जन करा देवें।          

इति घट विवाह पद्धतिः।।


आक विवाह पद्धति

जिस प्रकार कन्या की मांगलिक दशा में घट या कुम्भ विवाह किया जाता है उसी प्रकार वर (लड़का) की कुंडली में मांगलिक दोष हो तो उसके शमनार्थ आक विवाह पद्धति कराया जाता है। इस विवाह पद्धति में लड़का का विवाह आक(फुड़हर)के छोटे पौधे से कराया जाता है। यह विवाह निम्न विधि से सम्पन्न करावें-

सबसे पहले घर या मंदिर के समीप किसी छोटे आक के पौधे को निमंत्रण दे आवे अर्थात आक के पौधे के निकट जाकर उनका पूजन पीला चाँवल आदि रख आवे। अब विवाह विधि अनुसार वर का चुलमाटी,हल्दी आदि का रस्म करें, इसके उपरांत वर को बारात के लिए तैयार कर उस आक के पौधे के निकट बारात ले जावे। अब विवाह की समस्त विधि वर से आक विवाह के लिए संकल्प कराये। गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश,सर्वतोभद्र मण्डल पुजा षोडषोपचार विधि से  करावें। अब वर से सर्वतोभद्र हवन करा ले तत्पश्चात किसी पीला वस्त्र से वर और आक के पौधे का गढबन्धन करा दें और अब वर हवन अग्नि का फ़ेरा कर बैठ जाय और इस भावना से की इस आक के पौधे को कन्या मानकर मै इसके मांघ में सिंदूर डाल रहा हूँ,सिंदूर लगावे। आक के पौधे को वर द्वारा साड़ी से ढकवाये। इस प्रकार विवाह की समस्त विधि समपन्न करा आचार्य दक्षिणा व सब देवों का विसर्जन करा दें। अब उस आक के पौधे को कटवा दें इस भावना से की इस वर का इस कन्या के साथ विवाह हुआ था अब इस कन्या का स्वर्गवास हो चुका है। इसके उपरांत वर सहित सभी बाराती घर आकर स्नान आदि से निवृत हो जाए।

इति आक विवाह पद्धतिः।।

इन समस्त प्रचलित विवाह पद्धति के मंत्रो के लिए मेरी पुस्तक छत्तीसगढ़ विवाह पद्धति का अवलोकन करें।

इति: पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह पद्धती प्रथम भाग समाप्त।

शेष जारी ............

अगले अंक में पढ़े- पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह पद्धती द्वितीय भाग  

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2 Comments

  1. बहुत सुंदर छत्तीसगढ़ विधि विधान के साथ विवाह पद्धति बनाई है अपनें आपको सादर प्रणाम करता हूं आदरणीय जी🙏🏻

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  2. पंडित जी सादर प्रणाम ।बहुत सुन्दर विधि विधान के साथ विवाह पद्धति बनाए है । आपको कोटि कोटि धन्यवाद।

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