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छत्तीसगढ़- विवाह पद्धती द्वितीय भाग
यदि किसी जातक
की कुण्डली में मंगल दोष उपस्थित हो तो अक्सर उसके विवाह में अड़चन आती हैं,
यदि यह दोष लड़की की कुंडली में प्रबल हो तो विवाह में बढ़ा,विवाह उपरांत पति की मृत्यु आदि हो सकता है।
उसी प्रकार यदि लड़का की कुंडली में प्रबल हो तो यही बढ़ा उनकी जीवन में देखने को
मिलता है। परंतु प्राचीन धर्म ग्रंथ में इससे बचने के उपाय दिए गए हैं,
जो इस प्रकार की अड़चनों व कठिनाईयों से पार पाने में सहायता
कर मंगल दोष का शमन करते हैं। धर्म सिंधु ग्रंथ में तत्संबंध में अर्क-विवाह
(लड़के के लिए) एवं कुंभ विवाह (लड़की के लिए) कराना चाहिए।
मंगल दोष से
पीड़ित मांगलिक ग्रह शांति के कुछ उपाय
विवाह से पहले
किए जाने वाले उपाय : लड़कियों के लिए कुंभ विवाह, विष्णु विवाह और अश्वत्थ विवाह मंगल दोष के सबसे अधिक
प्रचलित उपाय हैं।
अश्वत्थ विवाह
(पीपल पेड़ से विवाह)- गीता में लिखा ‘वृक्षानाम् साक्षात अश्वत्थोहम्ं’
अर्थात वृक्षों में मैं पीपल का पेड़ हूं। अश्वत्थ विवाह
अर्थात पीपल या बरगद के वृक्ष से विवाह कराकर, विवाह के पश्चात उस वृक्ष को कटवा देना।
विष्णु
प्रतिमा विवाह:- ये भगवान विष्णु की
स्वर्ण प्रतिमा होती है, जिसका अग्नि उत्तारण कर प्रतिष्ठा पश्चात वैवाहिक प्रक्रिया
संकल्पसहित पूरी करना शास्त्रोक्त है।
कुंभ विवाह :-
इसी तरह किसी कन्या के मंगल दोष होने पर उसका विवाह भगवान विष्णु के साथ कराया
जाता है। इस कुंभ या कलश में विष्णु स्थापित होते हैं।
लड़कों के लिए
मंगलदोष शमन के उपाय :
जब चंद्र-तारा
अनुकूल हों, तब तथा अर्क विवाह शनिवार, रविवार अथवा हस्त नक्षत्र में कराना ऐसा शास्त्रसम्मत है।
मान्यता है कि किसी भी जातक (वर) के कुंडली में इस तरह के दोष हों,
तो सूर्य कन्या अर्क वृक्ष से विवाह करना,
अर्क विवाह कहलाता है। मान्यता है कि अर्क विवाह से
दाम्पत्य सुखों में वृद्धि होती है और वैवाहिक विलंब दूर होता है।
इसके अलावा भी
अन्य आसान उपाय जो विवाह पूर्व किए जाते हैं, इस प्रकार हैं :-
* केसरिया गणपति अपने पूजा गृह में रखें एवं रोज उनकी पूजा करें।
* ॐ हनुमान जी की पूजा करें और हनुमान चालीसा का पाठ करें।
इससे पूर्व
आपने इन विधियों को पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह पद्धती प्रथम भाग में पढ़ा।
अब इसके आगे आप छत्तीसगढ़ विवाह पद्धती द्वितीय भाग में विवाह विधि में होने वाली
रस्मों को क्रमशः पढ़ेंगे।
शाखोच्चार विवाह पद्धति का प्रचलन प्रायः हर प्रदेश में है।
मै यहाँ छत्तीसगढ़ सहित अन्य प्रदेशों में होने वाली विवाह विधि का क्रमशः उल्लेख
कर रहा हूँ-
अथ पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह पद्धती द्वितीय भाग
बाँस(स्तम्भ) पूजन व तेल(हल्दी)चढ़ाने की विधि
सर्वप्रथम आर्चाय विवाह स्थल के बीचो बीच लीपवा कर सुंदर
चौक बनवाले, चौंक के ऊपर एक पीढ़ा रखायें और पीला चाँवल, फुल, दूबी, कलशा
मंगवालें। अब यजमान को सपत्नीक(वर या कन्या के माता-पिता) गाँठजोंड़ कर बुलाकर गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश का
विधिवत् पुजन करवायें। पुनः
।। देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहूभ्यां पूष्णो
हस्ताभ्याम्।।
मंत्र से कुदारी या जमीन खोदने की वस्तु लेवे।
।। इदमह ઈ रक्षसां ग्रीवा अपि कृन्तामि।।
मंत्र से मंडप के दोनो ओर खोदने के लिए लकीर बनावें।
।। मा वो रिषत्खनिता यस्मै चाऽहं खनामि वः।
द्विपाय्चतुष्पादस्माकं ઈसर्व्वमस्त्वनातुरम्।।
मंत्र से गड्ढा खोदें।अब यजमान (सपत्नीक) गडढा के पास जमीन
का स्पर्श करें-
।। भूरसी भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य
धर्त्री।
पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृ ઈ ह पृथिवीं मा हि ઈसीः।।
अब यजमान (सपत्नीक) गडढा के अंदर चाँवल,फुल,दुबी
लेकर वाराह भगवान का ध्यान कर डाल दें-
।। इदं विष्णु विचक्रमे त्रेधा निदधे पदम् समूढ मस्य पा ઈसुरेः।।
अब पुनः यजमान (सपत्नीक) गडढा के अंदर चाँवल,फुल,दुबी
लेकर शेषनाग का ध्यान कर डाल दें-
।। नमोस्तु सर्पेभ्यो ये केचित पृथिवी मनुयेऽन्तरिक्षे ये
दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः।।
।। स्तम्भाय नमः स्तम्भ धिष्ठातृ देवताभ्यो नमः।।
मंत्र से गडढा में
बाँस तथा मंगरोहन डाले। अब स्तंभ (बाँस) का विधि सहित पुजा करवायें और ताँम्र
सिक्का डलवावें। अब एक सफेद कपड़ा में- ६४ खाना हल्दी से बनवा कर हल्दी सुपाड़ी रख ६४
योगनी का पूजन करवा दें उस कपड़ा को हल्दी सुपाड़ी सहित बाँधकर बाँस मे बँधवा दें
तथा तोरण का पुजन कर उसे भी बाँध दें। यजमान को (सपत्नीक) रक्षासूत्र बाँध सब देवन
को प्रणाम करा घर भेजे।
रक्षासूत्र- ।। येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेनाहं प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।
अब वर या कन्या (जिनके यहाँ हो) को बुलवाकर गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश
पुजा करावें। प्रणाम करावे उसके पश्चात सर्वप्रथम आचार्य थोड़ा सा तेल हल्दी, मौर देवता के लिए (ग्राम
देवता, शीतला माता) एक दोना में निकलवा कर अलग कर दें और अब आर्चाय स्वयं पहले वर या
कन्या का तेलहल्दी (सबसे पहले गौरी- गणेश,कलश,मंगरोहन,बाँस (मंडप) में ५ या ७ बार तेलहल्दी चढ़ावे़) आर्चाय के बाद ३ या ५ या ७
विवाहित पुरुष या कुमारी कन्या इसी क्रम से तेलहल्दी चढ़ायें।
इतिः स्तम्भ पूजन,हल्दी विधि ।।
छत्तीसगढ़- विवाह पद्धती द्वितीय भाग
अथ द्वारपूजा
जब बरात परघनी समय वर कन्या के द्वार पर आवे तो चौक बना
पीढ़ा रखें अब वर को पीढ़ा पर बैठावे पुनः सामने एक चौंक बना दुसरा पीढ़ा पर गौरी-गणेश, नवग्रह, कलश
रखकर वर से पूजन करावे और प्रणाम करा सब देवताओं का विसर्जन करा देवें। अब वर को
खड़ा करावें व एक भरा घड़ा जो लेकर खड़े हों उसमें कुछ द्रव्य डलवा दें और वर को
भरुहा काड़ी (लकड़ी) पकड़ा सात बार (लकड़ी से) मंडप को छुवावें।
इति द्वारपूजा विधिः।।
टीप- मातृकाओं का पूजन नान्दी श्राद्ध का ही अंग माना जाता
है और जिस कर्म में नान्दी श्राद्ध नही होता वहाँ मातृका पूजन भी नही होता।
छत्तीसगढ़- विवाह पद्धती द्वितीय भाग
अथ मातृका पूजन विधिः
सर्वप्रथम आचार्य मंडप के बीचो बीच लीपवा कर सुंदर चौक
बनवाले, चौंक के ऊपर एक पीढ़ा रखायें और पूजन सामाग्री पीला चाँवल, फुल, दूबी, आदि लेकर गौरी-गणेश, नवग्रह पीढ़ा में बनायें व
कलश रखें । अब यजमान को (सपत्नीक) बुलवाकर संकल्प व षोडषोपचार पूजन करावें और सोलह
चुकिया मंगवाकर मंडप के चारों कोनो (चौंक बनवाकर रखावें) में चार-चार चुकिया (तीन
नीचे एक ऊपर) रखवाऐं। अब यजमान दंपत्ति से क्रमशः चारो कोनो में जाकर चार-चार
चुकिया में चार-चार मातृकाओं का ध्यान व पूजन करावें नैवेद्य में पुड़ी बड़ा चढ़वावें
धूप देकर कुँवारी धागा बँधवा हाँथा दिलवायें। ईशान कोण में पहले पूजन करें-
ईशान-
१. ॐ गणपतये नमः आवाहयामि।।
ॐ गौर्यै नमः आवाहयामि।।
२. ॐ पद्मायै नमः आवाहयामि।। ३. ॐ शच्यै नमः आवाहयामि।।
४. ॐ मेधायै नमः आवाहयामि।।
आग्नेय-
१. ॐ सावित्रीयायै नमः आवाहयामि।। २. ॐ विजयायै नमःआवाहयामि।।
३. ॐ जयायै नमः आवाहयामि।। ४. ॐ देवसेनायै नमः आवाहयामि।।
नैऋत्य-
१. ॐ स्वधायै नमः आवाहयामि।। २. ॐ स्वाहायै नमः आवाहयामि।।
३. ॐ मातृभ्यो नमः आवाहयामि।। ४. ॐ लोकमातृभ्यो नमः आवाहयामि।।
वायव्य-
१. ॐ धृत्यै नमः आवाहयामि।। २. ॐ पुष्ट्यै नमः आवाहयामि।।
३. ॐ तुष्ट्यै नमः आवाहयामि।। ४. ॐ आत्मनः कुलदेवतायै नमः
आवाहयामि।।
अब चुकिया मातृका पूजन हो जावे तो यजमान दंपत्ति को लेकर
माई मउरी का पूजन करायें। सर्वप्रथम मुख्य घर जहाँ माई मउरी रखा है उस घर के बाहर
दरवाजे के दोनो ओर एक-एक लकड़ी गढ़ावें,
उस लकड़ी में एक पत्तल (पतरी) लगादें, उसके
ऊपर हाँथा (आटा घोलकर हल्दी मिलवाये) दिलवा कर पुड़ी, बड़ा लगवादें और दोनो ओर
पूजन (नीचे लिखे मातृकाओं का) करा देवें व तोरन लगवादें।
दक्षिण द्वार पर-
ॐ जयन्त्यै नमः आवाहयामि स्थापयामि।। ॐ मंगलायै नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
ॐ पिंगलायै नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
वाम द्वार पर-
ॐ आनन्दवद्धिन्यै नमः आवाहयामि स्थापयामि।। ॐ महाकाल्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
इस प्रकार दिवार(दीवाल) पर पंच मातृकाओं का पूजन उपरांत
अंदर (कमरा) प्रवेश करें और माई मउरी का पूजन करे। पहले दीवार पर एक लकड़ी गढ़ावे
हाँथा दिलवायें अब लकड़ी मे पत्तल बड़ा,पूड़ी ,तोरन व पूजन करें यजमान की पत्नि अपने शिर के बाल को खुला करें और बाल को उस
माई मउरी से लगाकर पकड़ें अब यजमान स्वयं एक माली में घी (तेल) रख बाल में सात धार तेल(घी)
डालें (ऐसे ही दक्षिण द्वार पर व वाम द्वार पर भी करें) आचार्य मंत्र पढ़ें-
१. ॐ सप्त ते अग्ने समिधः सप्त जिह्नाः सप्त ऋषयः सप्त
धाम प्रियाणि।
सप्त होत्राः सप्तधा त्वा यजन्ति सप्त योनीराप्टणस्व घृतेन
स्वाहा।।
२. ॐ एता ऽअर्षन्ति हृद्यात् समुद्राच्छत व्रजा रिपुणा
नावचक्षे!
घृतस्य धाराऽअभिचाकशीमि हिरण्ययो वेतसो मध्य आसाम्।।
३. ॐ सिन्धोरिव प्राद्ध्वने शूघनासो वातप्प्रमियः पतयन्ति
यह्नाः।
घृतस्य धारा ऽअरुषो न वाजी काष्ठ्ठा भिन्दन्नूर्म्मिभिः
पिन्न्वमानः।।
४. ॐ अभिप्प्रवन्त समनेव यो षाः कल्याण्यः
स्मयमानासोऽअग्निम्।
घृतस्य धाराः समिधो नसन्त ता जुषाणो हर्र्यिंति जातवेदाः।।
५. ॐ कन्याऽइव वहतुमेतवा ऽउ ऽअय्ज््यय्जाना
ऽअभिचाकशीमि।
यत्त्र सोमः सूयते यत्त्र यज्ञो घृतस्य धारा ऽअभि
तत्पवन्ते।।
६. ॐ अभ्यर्षत सुष्टुतिं गव्यमाजिमस्म्मासु भद्रा
द्रविणानि धत्त।
इमं यज्ञं नयत देवता नो घृतस्य धारा मधुमत्पवन्ते।।
७. ॐ पुनस्त्वाऽदित्या रुद्रा वसवः समिन्धतां
पुनर्ब्रह्माणो वसुनीथ यज्ञैः।
घृतेन त्वं तन्वं वर्द्धयस्व सत्त्याः सन्तु यजमानस्य
कामाः।।
अब आर्चाय सभी देवों का विसर्जन करा दक्षिणा लें।
इति मातृका पूजन विधिः।।
अथ नान्दी श्राद्ध विधिः
नान्दी श्राद्ध विधि के लिए पढ़े- डी पी कर्मकांड-९
इति पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् छत्तीसगढ़ विवाह पद्धती द्वितीय भाग समाप्त
॥
शेष अगले अंक में पढ़े- छत्तीसगढ़ विवाह पद्धति अंतिम भाग
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