श्री गणेश चतुर्थी पूजन विधि । Ganesh chaturthi
pujan vidhi
श्री गणेश चतुर्थी पूजन विधि - हम जब किसी
कार्य की शुरुवात करते हैं तो सबसे पहले श्री गणेशजी का स्मरण करते हैं ,इसी से कार्य प्रारम्भ करने को श्री गणेश करना भी कहते हैं
। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है । इस दिन
देश के कोने-कोने में ,घर-घर में, हर छोटा-बड़ा सभी अपने घरों में गणेशजी की सामर्थ्य अनुसार
प्रतिमा स्थापित करते या करवाते हैं और श्री गणेश चतुर्थी
पूजन विधि । Ganesh chaturthi pujan vidhi पूर्वक करते हैं।
पूजन के क्रम मे हम सबसे पहले गौरी-गणेश पुजा करते है ,फिर नवग्रह इसके उपरान्त कलश पुजा करते हैं । मेरा प्रयास
भी यही रहेगा की मैं भी उसी क्रम से ही आपके सम्मुख पहले गणेश पूजन,
उसके बाद
नवग्रह शांति पुजा और ज्योत-जँवारा(कलश पुजा )रखूँ । वैसे इससे पहले भी मैने
छत्तीसगढ़ विवाह-पद्धति,गंड-मूल दोष शांति पूजन,कौंरीपूजन,शिव पूजन पद्धति आदि
लिखा है । अतः आप उन्हें भी अवश्य अध्यन्न करें । पर यदि आप क्रमबद्ध
अध्यन्न करें तो अधिक उचित है ।
कोई भी देवी-देवता का पूजन हो गौरी-गणेश,नवग्रह,कलश आदि का पूजन यथावत् होता है उसके बाद ही उन विशेष देव
का पूजन होता है । अब पूजन के संदर्भ में आता है कि कोई भी पूजन हो,वह हमारे यंहा आए हुए अतिथि के समान ही व्यवहार होता है ।
जैसे हम कोई आयोजन कराते हैं तो सबसे पहले निमंत्रण भेजकर अतिथियों को बुलवाते हैं,
वैसे ही पूजन
मे उन विशेष देव का आवाहन ही निमंत्रण है, उनका आतिथ्य सत्कार ही अक्षत,
फूल,
दूब,
चन्दन,
अगरबत्ती,
धूप देना हुआ
। अतिथि को भोजन कराना ही ईश्वर का नैवेद्य है,
उसके बाद
उन्हें पीने,हाथ-मुँह धोने के लिए दिया जाने वाला जल ही नैवेद्य उपरांत्
आचमन है । अतिथि की मुखशुद्धि (यथा सौंप-सुपाड़ी,पान) हेतु दिया जाने वाले पदार्थ ही ताम्बूल है व उनके
विदाई पर दिया जानेवाला भेंट ही दक्षिणा,नारियल आदि है ।
अंत में अतिथियों को प्रणाम या अभिनंदन ही आरती,पुष्पांजलि,प्रदक्षिणा है । आशा है पूजन का यह क्रम आप भली-भांति समझ
गए है । अंत में ब्राह्मणो का दिया गया दक्षिणा ही मनुष्य के द्वारा दिया दान है,
ब्राह्मण को
दिया भूयसी दक्षिणा ही पूजन में रह गई न्यूनता के शमन हेतू सत्कर्म है । यह बहुत
ही श्रम साध्य कार्य है ,इसी कारण गलतीयों की भी संभावना है । अतः आपके सामने इस
क्रम की पहली कृति् श्री गणेश चतुर्थी
पूजन विधि । Ganesh chaturthi pujan vidhi आपको समर्पित करता हूँ- पं॰डी॰पी॰दुबे
श्री गणेश चतुर्थी पूजन विधि प्रारम्भ । Ganesh chaturthi pujan vidhi
सर्वप्रथम यजमान या यजमान दंपत्ति को पूर्वा या
उत्तराभिमुख बैठाकर सामने चौक बनाकर उसके ऊपर पीढ़ा(पाटा) रखवाकर उस पर नीचे दिए चित्रानुसार
गौरी-गणेश, नवग्रह ,कलश
स्थापित करे । गौरी-गणेश गोबर या हल्दी,सुपाड़ी
से बनावें। नवग्रह के लिए पीला चाँवल की कुड़ी रख उसके ऊपर हल्दी,सुपाड़ी
रखें । पुनः अष्टदल कमल बनाकर काँसे की
लोटा में जल भरकर उसमें पञ्चपल्लव (पाँचपत्ता) रखें ,उस पर
नाँदी(किसी पात्र) मे अन्न भरकर ऊपर दीप जला दें या नारियल रखें । अब पूजन
प्रारम्भ करें ।सबसे पहले यजमान अपने ऊपर और सभी पूजन सामाग्री पर पवित्र
जल छिढ़के आचार्य मंत्र पढ़े- ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।
फिर आचार्य यजमान को तिलक व रक्षासूत्र निम्न मंत्र से करे -
तिलक - ॐ आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवा मरुद्गणाः।तिलकं ते प्रयच्छन्तु कामधर्मार्थ सिद्धये॥
रक्षासूत्र- ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥
अब यजमान को अक्षत पुष्प देकर मंत्रो द्वारा सभी देवो का ध्यान करावे -
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो
बृहस्पतिर्दधातु ॥ पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभं यावानो विदथेषु जग्मयः ।
अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसागमन्निह ॥ भद्रं कर्णेभिः
श्रृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः । स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा ँ
सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः ॥ शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा
जरसं तनूनाम् । पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः ॥ अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता
स पिता स पुत्रः । विश्वे देवा
अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम् ॥
ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।
लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः । उमामहेश्वराभ्यां नमः। वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः ।
शचीपुरन्दराभ्यां नमः । मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः । इष्टदेवताभ्यो नमः । कुलदेवताभ्यो नमः । ग्रामदेवताभ्यो नमः ।
वास्तुदेवताभ्यो नमः । स्थानदेवताभ्यो नमः ।
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः ।सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः । ॐ सिद्धिबुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।
सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णकः । लंबोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिपः॥
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो
भालचंद्रो गजाननः । द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ॥
विद्यारंभे विवाहे च
प्रवेशे निर्गमे तथा । संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥
शुक्लाम्बरधरं
देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् । प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशांतये ॥
अभीप्सितार्थसिद्ध्यर्थं
पूजितो यः सुरासुरैः । सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ॥
सर्व मंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममंगलम् । येषां ह्रदिस्थो भगवान् मंगलायतनं हरिः ॥
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः । येषामिंदीवरश्यामो ह्रदयस्थो जनार्दनः ।
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः । तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते । तेषां नित्याभियुक्ताना योगक्षेमं वहाम्यहम् ।
स्मृतेः सकलकल्याणं भाजनं यत्र जायते । पुरुषं तमजं नित्यं व्रजामि शरणं हरिम् ॥ सर्वेष्वारम्भकार्येषु त्रयस्त्रिभुवनेश्वराः । देवा दिशंतु नः सिद्धिं ब्रह्मेशानजनार्दनाः ॥
विश्वेशं माधवं ढुण्ढिं दण्डपाणिं च भैरवम् । वन्देकाशीं गुहां गङ्गां भवानीं मणिकर्णिकाम् ॥
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम: ।
इस प्रकार कह कर सामने वेदी (पाटा) पर चढ़ा दे-
पुन: यजमान अक्षत -जल लेकर
मंत्र से पूजन का संकल्प ले-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य
विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वंतरे
अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जंबुद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे....
नगरे/ग्रामे .....मासे....शुक्ल/कृष्णपक्षे... तिथौ....वासरे....प्रातः/ सायंकाले
.....गोत्र....नाम अहं ममोपात्तदुरितक्षयद्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं
ममसम्पूर्ण मनोकामना सिध्यर्थ श्रीगणपति/अनंत चतुर्दशी पूजनं करिष्ये । संकल्प का अक्षत -जल वेदी या जमीन
पर छोड़े ।
अब सबसे पहले यजमान अक्षत-पुष्प लेकर निम्न मंत्र द्वारा गौरी-गणेश (गणेशजी की दाहिनी ओर गौरीजी का) ध्यान व आवाहन करे -
भगवान गणेश का ध्यान-
गजाननं भूतगणादिसेवितं
कपित्थजम्भूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥
भगवती गौरी का ध्यान -
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ॥
श्रीगणेशाम्बिकाभ्यां नमः, ध्यानं समर्पयामि ।
भगवान गणेश का आवाहन-
ॐ एह्येहि हेरम्ब महेशपुत्र समस्तविघ्नौघविनाशदक्ष ।
माङ्गल्यपूजाप्रथमप्रधान गृहाण पूजां भगवन् नमस्ते ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः, गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि ।
भगवती गौरी का आवाहन-
ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन । ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ॥
हेमाद्रितनयां देवीं वरदां शङ्करप्रियाम् । लम्बोदरस्य जननीं गौरीमावाहयाम्यहम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गौर्यै नमः, गौरिमावाहयामि, स्थापयामि ।
हाथ का अक्षत-पुष्प गौरी-गणेश पर चढ़ा दे ।
फिर अक्षत लेकर निम्न मंत्र से
नवग्रह वेदी पर नवग्रहों का ध्यान करते हुए चढ़ाते जायें-
ॐ सूर्याय नमः । ॐ चंद्राय नमः । ॐमंगलाय नमः । ॐ बुधाय नमः । ॐ बृहस्पत्ये नमः । ॐ शुक्राय नमः । ॐ शनिश्चराय नमः ।ॐ राहवे नमः । ॐ केतवे नमः ।
पुनः अक्षत-पुष्प लेकर नवग्रह मण्डल देवताओं का आवाहन करें-
ॐ ब्रह्मा
मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः
सर्वे ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु ॥
सूर्यः शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं सन्मङ्गलं मङ्गलः।
सद्बुद्धिं च बुधो गुरुश्च गुरुतां शुक्रः सुखं शं शनिः ।
राहुर्बाहुबलं करोतु
सततं केतुः कुलस्योन्नतिं।
नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेऽनुकूला ग्रहाः ॥
ॐ
भूर्भुवः स्वः नवग्रह मण्डल देवताभ्यो नमः, आवाहयामि, स्थापयामि
। नवग्रह मण्डल पर अक्षत छोड़ दे ।
अब यजमान अक्षत-पुष्प लेकर निम्न मंत्र द्वारा कलश में वरुण आदि देवताओं का ध्यान व आवाहन करें-
कलश में देवी-देवताओं का ध्यान व आवाहन-
कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुदः
समाश्रितः । मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ॥
कुक्षौ तु
सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा । ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः ॥
अङ्गैश्च
सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः । अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा ॥
आयान्तु देवपूजार्थं दुरितक्षयकारकाः । गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु ॥
सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि
जलदा नदाः । आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारकाः ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः वरुण आदि
आवाहित देवताभ्यो नमः, ध्यानं
आवाहनं, स्थापनं
समर्पयामि ।
अक्षत-पुष्प कलश में चढ़ा दें ।
यदि तोरण रखा हो तो तोरण का पूजन अक्षत-पुष्प से इसी प्रकार करे –
ॐ तोरण
मातृकाभ्यो नमः, आवाहयामि, स्थापयामि
।
हाथ में अक्षत -पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र से वेदी मण्डल के सभी देवताओं का प्रतिष्ठा करे-
प्रतिष्ठा-
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं
तनोत्वरिष्टं यज्ञ ँसमिमं दधातु ।
विश्वे देवास इह मादयन्तामो३ प्रतिष्ठ ॥
अस्यै
प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च । अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च
कश्चन ॥
ॐ सर्व आवाहितदेवेभ्यो !
सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम् ॥ यह कहकर अक्षत-पुष्प वेदी के पास समर्पित करे ।
अब यजमान से वेदी स्थित (गौरी-गणेश सहित) सभी देवों का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करावे -
ध्यान - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, ध्यानार्थे पुष्पं समर्पयामि । (पुष्प समर्पित करे ।)
आसन - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो
नमः, आसनार्थे
अक्षतान् समर्पयामि । (अक्षत रखे ।)
पाद्य - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो
नमः, पादयोः
पाद्यं समर्पयामि । (जल चढ़ाये ।)
अर्घ्य - ॐ सर्व
आवाहितदेवताभ्यो नमः, हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि
। (जल चढ़ाये ।)
पञ्चामृतस्नान - ॐ सर्व
आवाहितदेवताभ्यो नमः, पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि
। (पञ्चामृत से स्नान कराये ।)
शुद्धोदक स्नान - ॐ सर्व
आवाहितदेवताभ्यो नमः, स्नानान्ते
शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।(शुद्ध
जल से स्नान कराये)
वस्त्र - ॐ सर्व
आवाहितदेवताभ्यो नमः, वस्त्रं समर्पयामि ।
(वस्त्र या मौलीधागा चढ़ाये ।)
यज्ञोपवीत - ॐ सर्व
आवाहितदेवताभ्यो नमः, यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।
(यज्ञोपवीत चढ़ाये ।)
अक्षत - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो
नमः, अक्षतान्
समर्पयामि । (अक्षत(पीला चाँवल) समर्पित करे ।)
पुष्प - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो
नमः, पुष्पं
(पुष्पमालाम्) समर्पयामि । (पुष्प
और पुष्पमाला चढ़ाये।)
गुलाल,बंदन,कुमकुम - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, नानापरिमलद्रव्याणि
समर्पयामि ।
(नानापरिमल द्रव्य समर्पित
करे ।)
धूप - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो
नमः, धूपमाघ्रापयामि
। (धूप /हुम(दशांग)दे ।)
अगरबत्ती - ॐ सर्व
आवाहितदेवताभ्यो नमः, दीपं दर्शयामि । (दीप
दिखाये ।)
नैवेद्य - ॐ सर्व
आवाहितदेवताभ्यो नमः, सर्वविधं नैवेद्यं
निवेदयामि । (नैवेद्य (प्रसाद) चढ़ाये ।)
आचमन - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो नमः, आचमनीयं
जलं समर्पयामि । (आचमन करे ।)
नारियल या ऋतुफल - ॐ सर्व
आवाहितदेवताभ्यो नमः, नारिकेलं समर्पयामि ।(
नारियल चढ़ाये ।)
ताम्बूल - ॐ सर्व
आवाहितदेवताभ्यो नमः, ताम्बूलं समर्पयामि । (सुपारी, इलायची, लौंगसहित
पान चढ़ाये ।)
दक्षिणा - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो
नमः, द्रव्यदक्षिणां
समर्पयामि । (द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये ।)
आरती - ॐ सर्व आवाहितदेवताभ्यो
नमः, आरार्तिकं
समर्पयामि । (आरती करे ।)
पुष्पाञ्जलि - ॐ सर्व
आवाहितदेवताभ्यो नमः, मन्त्रपुष्पाञ्जलिं
समर्पयामि । (पुष्पाञ्जलि समर्पित करे ।)
श्री गणेश चतुर्थी पूजन विधि । Ganesh chaturthi pujan vidhi
गणेश पूजन-
अब गणेशजी की प्रतिमा को जिस आसन पर बैठाना हो ,वँहा सुंदर रेशमी वस्त्र बिछाकर मूर्ति को अच्छी तरह से रखदें । फिर मूर्ति में पुष्प लेकर भगवान गणेशजी का ध्यान करे - ध्यान - ॐ गजवदनमचिन्त्यं
तीक्ष्णदंष्टं̭ त्रिनेत्रं वृहदुदरमशेषं थ्नूतिराजं पुराणम् ।
अमरवरसुपूज्यं रख्नवर्णं सुरेशं पशुपति सुतमीशं विघ्नराजं
नमामि सकलविघ्नविनाशनद्वारा ॥
वक्रतुंड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ । निर्विघ्नं कुरु
मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
श्वेताङ्गं श्वेतवस्त्रं सितकुसुमगणैः पूजितं
श्वेतगन्धैः, क्षीराब्धौ रत्नदीपैः
सुरतरुविमले रत्नसिंहासनस्थम् ।
दोर्भिः पाशाङ्कुशेष्टाभयधृतविशदं चन्द्रमौलिं
त्रिणेत्रं, ध्यायेच्छान्त्यर्थमीशं
गणपति ममलं श्रीसमेतं प्रसन्नम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धि-बुद्धि,शुभ-लाभ सहिताय श्री महागणपतये नमः, ध्यानं
समर्पयामि । पुष्प गणेशजी को अर्पित करें ।
इसके बाद मूर्ति को यजमान दाँये हाथ से स्पर्श करते हुए प्राण प्रतिष्ठा करे ।
आचार्य मंत्र पढ़े -
ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं
षं षं सं हं सः सोऽहं अस्या अमुकदेवप्रतिमायाः प्राणा इह प्राणाः ।
ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं
षं षं सं हं सः सोऽहं अस्या अमुकदेवप्रतिमायाः जीव इह स्थितः ।
ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं
षं षं सं हं सः सोऽहं अस्या अमुकदेवप्रतिमायाः सर्वेन्द्रियाणि
वाङ्मन्स्त्वक्चक्षुः श्रोत्राजिह्वाघ्राणपाणिपादपायूपस्थानि इहैवागत्य सुखं चिरं
तिष्ठन्तु स्वाहा ।
पुनः यजमान हाथ में फूल को लेकर
निम्न मंत्र द्वारा मूर्ति प्रतिष्ठापित करे-
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य
बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ ँसमिमं दधातु ।
विश्वे देवास इह मादयन्तामो३
प्रतिष्ठ ॥एष वै प्रतिष्ठानाम यज्ञो
यत्रौतेन यज्ञेन यजन्ते सर्व मे प्रतिष्ठितम्भवति ।।
इस प्रकार फूल समर्पित करें ।
पुनः
यजमान हाथ में अक्षत(अष्टगंध मिश्रित),पुष्प लेकर
16 बार
धीरे-धीरे ॐ का उच्चारण करते हुए मूर्ति मे छिड़के । आचार्य निम्न मंत्र पढ़े -
ॐ अनेनास्य अमुकदेवताप्रतिमाया
गर्भाधानादयः षोडशसंस्काराः सम्पद्यताम् ।
इसके बाद स्वर्ण (सोने के अभाव
मे चाँदी) की सलाई या अंगूठी को शहद मे डुबोकर मूर्ति की आँख मे निम्न मंत्र पढ़ते
हुए छुवायें-
ॐ वृत्रास्यासि
कनीनकश्चक्षुर्दा असि चक्षुर्मे देहि ।
इस प्रकार प्राणप्रतिष्ठा कर
षोडशोपचार से पूजन करे।
अब यजमान हाथ मे अक्षत-पुष्प
लेकर गणेशजी का आवाहन करे - आवाहन- ॐ चतुर्बाहुं त्रिनेत्रं
च गजास्यं रक्त वर्णकम् । पाशांकुशादिसंयुक्तं मायायुक्त प्रचिन्तयेत् ॥
आगच्छ ब्रह्मणां नाथ
सुराऽसुरवरार्चित । सिद्धिबुद्धयादिसंयुक्त ! भक्तिग्रहणलालस ॥
कृतार्थोऽहं कृतार्थोऽहं
तवागमनतः प्रभो । विघ्नेशाऽनुगृहीतोऽहं सफलो मे भवोऽभवत् ॥
लम्बोदरं महाकायं गजवक्त्रं
चतुर्भुजम् । आवाहयाम्यहं देवं गणेशं सिद्धिदायकम् ॥
हे हेरम्ब त्वमेह्येहि
अम्बिकात्र्यम्बकात्मज । सिद्धिबुद्धिपते त्र्यक्ष लक्षलाभ पितः प्रभो ॥
नागास्य नागहारत्वं गणराज
चतुर्भुज । भूषितः स्वायुधैः र्दिव्यैः पाशां कुशपरश्वधैः ॥
आवाहयामि पूजार्थं रक्षार्थं च
मम क्रतौ । इहागत्य गृहाण त्वं पूजां रक्ष क्रतुं च मे ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः, गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि
च ।
हाथ के अक्षत-पुष्प गणेशजी पर
चढ़ा दे ।
अब पुनः यजमान हाथ मे पुष्प लेकर
गणेशजी को बैठने के लिए आसन दें ।
आसन- ॐ रत्नसिंहासनं स्वामिन्
गृहाण गणनायक । तत्रोपविश्य विघ्नेश रक्ष भक्तान् विशेषतः ॥माणिक्यमञ्जुलमरीचिमनोज्ञपार्श्वं
सान्द्रीभवन्मरकतावलिमेचकाभम् ।
मुक्तामणिप्रकरमेदुरितान्तरालं
रत्नासनं तव हृदा परिकल्पयामि ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, पुष्प
आसनम् प्रतिगृहताम् ।( पुष्प चढ़ायें )
अब हाथ में जल लेकर भगवान का
पैर धुलावें -
पाद्य - ॐ सिद्ध्या च बुद्ध्या
सह विघ्नराज ! पाद्यं कुरु प्रेमभरेण सर्वैः ।
सुवासिताभिरद्भिश्च
पादप्रक्षालनं प्रभो । शीतोष्णाम्भः करोमि ते गृहाण पाद्यमुत्तमम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, पाद्यौ
पूजयामि । (जल चढ़ाये )
आचमन - ॐ सर्वतीर्थाहृतं तोयं
सुवासितं सुवस्तुभिः । आचमनं च तेनैव कुरूष्व गणनायक ॥
पाद्यान्ते आचमनीयं जलं
समर्पयामि । (आचमन के लिए जल छोड़े )
अब हाथ में अष्टगंध युक्त जल
लेकर भगवान को अर्घ्य देवें -
अर्घ्य – ॐ
रत्नप्रवाल मुक्ताद्यैरनर्ध्यैः संस्कृतं प्रभो । अर्ध्यं गृहाण हेरम्ब द्विरदानन
तोषकम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि । (जल चढ़ाये )
स्नानीय जल - ॐ ततः सुखोष्णेन जलेन चाहमनेकतीर्थाहृतकेन ढुण्ढे । स्नापयामि स्नानं मया दत्तमथो गृहाण ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, स्नानीयं जलं समर्पयामि । (स्नान हेतु जल चढ़ाये )
आचमन - ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। (आचमनीय जल चढ़ाये )
अब दही,घी और
शहद मिलाकर मधुपर्कं बनाकर भगवान जी को अर्पित करे-
मधुपर्कं – ॐ दधि मधु घृतैर्युक्तं मधुपर्कं गजानन । गृहाण भावसंयुक्तं मया दत्तं नमोऽस्तु ते ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, मधुपर्कं समर्पयामि ॥ (मधुपर्कं चढ़ाये )
आचमन - मधुपर्कान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन के लिए जल छोड़े )
इसके बाद गणेशजी को तेल चढ़ावे-
अभ्यंग - ॐ चम्पकाद्यैर्गणाध्यक्ष वासितं तैलमुत्तमम् । अभ्यंगं कुरू सर्वेश लम्बोदर नमोऽस्तु ते ॥
सुवासितं चंपक जातिकाद्यैस्तैलं मया कल्पितमेव ढुण्ढे । गृहाण तेन प्रविमर्दयामि सर्वांगमेवं तव सेवनाय ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, सुगंधित तैलं समर्पयामि।( तेल समर्पित करें )
अब गणेश जी को दूध,दही,घी,शहद,शक्कर और फिर पञ्चामृत से क्रमशः स्नान कराये तथा हर स्नान के बाद जल से स्नान कराते जावे ।
दूध- ॐ कामधेनु समुद्भूतं पयः
परमपावनम् । तेन स्नानं कुरुष्व त्वं हेरंब परमार्थवित् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, दुग्ध
स्नानं समर्पयामि ।( दूध से स्नान करावें )
दुग्ध स्नानांते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन के लिए जल छोड़े )
दही- ॐ दधि धेनुपयोद्भूतं मलापहरणं परम् । गृहाण स्नानकार्यार्थं विनायक दयानिधे ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, दधि स्नानं समर्पयामि । (दही से स्नान करावें )
दधि स्नानांते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन के लिए जल छोड़े )
घी- ॐ धेनुदुग्धोद्भवं ढुण्ढे
घृतं सन्तोषकारकम् । महामलापघातार्थं तेन स्नानं कुरू प्रभो ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय
श्री महागणपतये नमः, घृत स्नानं समर्पयामि ।
(घी से स्नान करावें )
घृत स्नानांते आचमनीयं जलं
समर्पयामि । (आचमन के लिए जल छोड़े )
शहद- ॐ सारघं सस्कृतं पूर्णं
मधु मधुरसोद्भवम् । गृहाण स्नानकार्यार्थं विनायक नमोऽस्तु ते ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, मधु
स्नानं समर्पयामि ।( शहद से स्नान करावें )
मधु स्नानांते आचमनीयं जलं
समर्पयामि । (आचमन के लिए जल छोड़े )
शक्कर- ॐ इक्षुदण्डसमुद्भूतां शर्करां मलनाशिनीम् ।
गृहाण गणनाथ त्वं तया स्नानं समाचर ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, शर्करा
स्नानं समर्पयामि । (शक्कर से स्नान करावें )
शर्करा स्नानांते आचमनीयं जलं
समर्पयामि । (आचमन के लिए जल छोड़े )
पञ्चामृतस्नान - ॐ पञ्चनद्यः
सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः । सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेभवत्सरित् ॥
पञ्चामृतं मयानीतं पयो दधि घृतं
मधु । शर्करया समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः,पञ्चामृतस्नानं
समर्पयामि । (पञ्चामृत से स्नान कराये )
पञ्चामृत स्नानांते आचमनीयं जलं
समर्पयामि । (आचमन के लिए जल छोड़े )
शुद्धोदक स्नान - ॐ
यक्षकर्दमकाद्यैश्च स्नानं कुरू गणेश्वर । अन्त्यं मलहरं शुद्धं
सर्वसौगन्ध्यकारकम् ॥नानातीर्थजलैर्ढुण्ढे !
सुखोष्णभावरूपकैः । कमण्डलूद्भवैः स्नानं कुरू ढुण्ढे समर्पितैः ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, शुद्धोदकस्नानं
समर्पयामि ।(शुद्ध जल से स्नान कराये
)
आचमन - ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः,शुद्धोदकस्नानान्ते
आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन के लिये जल चढ़ाये )
वस्त्र - ॐ अग्नौ विशुद्धे तु
गृहाण वस्त्रे ह्यनर्घ्यमौल्ये । दत्ते परिच्छाद्य निजात्मदेहं ताभ्यां मयूरेश
जनांश्च पालय ॥वस्त्रयुग्मं गृहाण त्वमनर्घ्यं
रक्तवर्णकम् । लोकलज्जाहरं चैव विघ्ननाथ नमोऽस्तु ते ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, वस्त्रं
समर्पयामि । (दो वस्त्र चढ़ाये )
आचमन - ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, वस्त्रान्ते
आचमनीयं जलं समर्पयामि ।(आचमन के लिये जल चढ़ाये )
यज्ञोपवीत - ॐ यज्ञोपवीतं
त्रिगुणस्वरूपं सौवर्णमेवं ह्यहिनाथभूतम् ।
भावेन दत्तं गणनाथ तत्वं गृहाण
भक्तोद्धृतिकारणाय ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, यज्ञोपवीतं
समर्पयामि । (यज्ञोपवीत चढ़ाये )
आचमन - ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः,यज्ञोपवीतान्ते
आचमनीयं जलं समर्पयामि ।(आचमन के लिये जल चढ़ाये )
उपवस्त्र - ॐ यस्याभावेन शास्त्रोक्तं कर्म किञ्चिन्न सिध्यति । उपवस्त्रं प्रयच्छामि सर्वकर्मोपकारकम ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, उपवस्त्रं
( उपवस्त्रार्थे रक्तसूत्रम् ) समर्पयामि । (उपवस्त्र( मौली धागा ) चढ़ाये
)
यदि अनंत चतुर्थी का दिन हो तो
अनंत चतुर्थी ( धागा )को खीरा,केला
या किसी फल मे लपेटकर –
‘ॐ अनन्ताय नमः’ मंत्र बोलकर भगवान पर चढ़ावे ।
आचमन - ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः,उपवस्त्रान्ते
आचमनीयं जलं समर्पयामि ।(आचमन के लिये जल चढ़ाये )
अष्टगंध मिश्रित अक्षत चढ़ाते
हुए गणेश जी के सभी अंगो का स्मरण करें-
अङ्गपूजन
ॐ श्रीगणेशाय नम: पादौ पूजयामि ।
ॐ श्रीगणाधिराजाय नम:गुल्फौ पूजयामि ।ॐ श्रीगणपत्ये नम: जानुनी पूजयामि । ॐ
श्रीगजाननाय नम: नाभिं पूजयामि । ॐ श्रीगौरीसुताय नम: उदरं पूजयामि । ॐ वक्रतुंडाय नम: हृदयं पूजयामि । ॐ एकदंताय नम:
कण्ठं पूजयामि । ॐ सूर्पकर्णाय नम: बाहु पूजयामि । ॐ श्रीविनायकाय नम: मुखं
पूजयामि । ॐ विकटलोचनाय नम: नेत्रे पूजयामि । ॐ भालचंद्राय नम: ललाटं पूजयामि । ॐ
विघ्नेश्वराय नम: नासिकां पूजयामि । ॐ महाकाय नम: श्रोत्रे पूजयामि । ॐ लम्बोदराय
नम: शिखां पूजयामि । ॐ पिङ्गलाक्षाय नम: शिर: पूजयामि । ॐ सिद्धेश्वराय नम:
सर्वाङ्गं पूजयामि।
गणेश जी के साथ ही ऋद्धि-
सिद्धि व शुभ-लाभ का भी पूजन नाम मंत्रों द्वारा करें-
ऋद्धि – ॐ
हेमवर्णायै ऋद्धये नम:।
सिद्धि – ॐ
सर्वज्ञानभूषितायै नम:।
लाभ – ॐ
सौभाग्य प्रदाय धन-धान्ययुक्ताय लाभाय नम:।
शुभ – ॐ
पूर्णाय पूर्णमदाय शुभाय नम:।
चन्दन - ॐ सुचन्दनं
रक्तममोघवीर्यं सुघर्षितं ह्यष्टकगन्धमुख्यैः । युक्तं एकदन्त गृहाण ते
त्वंगविलेपनार्थम् ॥
लिप्तेषु वैचित्र्यमथाष्टगन्धैरंगेषु तेऽहं प्रकरोमि चित्रम् । प्रसीद विनायक त्वं ततः सुरक्तं रविमेव भाले ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, चन्दनानुलेपनं समर्पयामि । (चन्दन लगाये )
अक्षत - ॐ अक्षन्नमीमदन्त ह्यव
प्रिया अधूषत ।अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती योजान्विन्द्र ते हरी ॥अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ
कुङ्कुम्युक्ताः सुशोभिताः । मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, अक्षतान्
समर्पयामि । (अक्षत समर्पित करे )
पुष्प (पुष्पमाला) - ॐ गृहाण भो चम्पकमालतीनि
जलपंकजानि स्थलपंकजानि ।
मल्लिकादि पुष्पाणि नानाविधवृक्षजानि ॥
प्रवाल -मुक्ताफल -रत्नजैस्त्वं
सुवर्णसूत्रैश्च गृहाण कण्ठे । दत्ता विविधाश्च माला ऊरूदरे सोभय विघ्नराज ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, पुष्पं
(पुष्पमालाम्) समर्पयामि ।(पुष्प और पुष्पमाला चढ़ाये
)
दूब- ॐ दूर्वांकुरान् ढुंढे
एकविंशतिसंख्यकान् । गृहाण कार्यसिद्ध्यर्थं भक्तवात्सल्यकारणात् ॥
दूर्वांकुरान् प्रदत्तांस्त्रिपंचपत्रैर्युतकांश्च
स्निग्धान । गृहाण विघ्नेश्वर संख्यया त्वं हीनाश्च सर्वोपरि वक्रतुण्ड ॥
ॐ भुर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय
श्री महागणपतये नमः, दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि
। (दूर्वाङ्कुर चढाये ।)
नानापरिमल द्रव्य - ॐ घृतेन वै
कुंकुमकेन रक्तान् सुतंडुलांस्ते ।
भाले गणाध्यक्ष गृहाण पाहि
भक्तान् सुभक्तिप्रिय दीनबन्धो ॥
अष्टगन्ध -समायुक्तं गन्धं
रक्तं गजानन । रक्तचन्दनसंयुक्तानथ वा कुंकुमैर्युतान् ॥
हरिद्रामबिरं गुलालं सिंदूरकं
ते । सुवासितं वस्तुसुवासभूतैर्गृहाण ब्रह्मेश्वर -शोभनार्थम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः,नानापरिमलद्रव्याणि
समर्पयामि।(विविध परिमल द्रव्य
(गुलाल,बंदन,कुमकुम,हल्दी)समर्पित करे)
सुगन्धित द्रव्य - ॐ अहिरिव
भोगैः पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः ।
हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि
विद्वान् पुमान् पुमा ँ सं परिपातु विश्वतः ॥
दिव्यगन्धसमायुक्तं
महापरिमलाद्भुतम् । गन्धद्रव्यमिदं भक्त्या दत्तं वै परिगह्यताम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, सुगन्धितद्रव्यं
समर्पयामि । (सुगन्धित द्रव्य (इत्र
आदि) चढ़ाये )
धूप - ॐ दशांगभूतं मया ते धूपं
प्रदत्तं गणराज ढुण्ढे । गृहाण सौरभ्यकरं परेश सिद्ध्या
च बुद्ध्या सह भक्तपाल ॥दशांग गुग्गुलं धूपं
सर्वसौरभकारकम् । गृहाण त्वं मया दत्तं विनायक महोदर ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, धूपमाघ्रापयामि
। (धूप आघ्रापित कराये )
दीप - ॐ दीपं सुवर्त्या
युतमादरात्ते दत्तं मया मानसकं गणेश ।
गृहाण नानाविधजं घृतादि -तैलादि
-संभूतममोघदृष्टे ॥
नानाजातिभवं दीप गृहाण गणनायक ।
अज्ञानमलजं दोषं हरन्तं ज्योतिरूपकम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, दीपं
दर्शयामि । (दीप दिखाये)
हस्तप्रक्षालन - दीप दिखाकर हाथ
धो ले ।
नैवेद्य - ॐ भोज्यं च लेह्यं
गणराज पेयं चोष्यं च नानाविध -षड्रसाढ्यम् ।
गृहाण नैवेद्यमथो मया ते
सुकल्पितं पुष्टिपते महात्मन् ॥
सुवासितं भोजनमध्यभागे जलं मया
दत्तमथो गृहाण । कमण्डलुस्थं गणेश पिबस्व विश्वादिकतृप्तिकारिन् ॥चतुर्विधान्नसम्पन्नं मधुरं
लड्डुकादिकम् । नैवेद्यं ते मया दत्त भोजनं कुरू विघ्नप ॥
सुवासितं गृहाणेदं जलं तीर्थ
समाहृतम् । भुक्तिमध्ये च पानार्थं देवदेवेश ते नमः ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, सर्वविधं
नैवेद्यं निवेदयामि । (भोग,प्रसाद,मोदक,मिठाई आदि खाद्य पदार्थ चढ़ाये)
आचमन- आचमनीयं जलं,मध्ये
पानीयं जलम,उत्तरापोऽशने,मुखप्रक्षालनार्थे,हस्तप्रक्षालनार्थे
च जलं समर्पयामि ।(आचमनीयं एवं पानीय तथा
मुख और हस्त प्रक्षालन के लिए जल चढ़ाये)
करोद्वर्तन - ॐ भोजनान्ते
करोद्वर्तं यक्षकर्दमकेन च । कुरुष्व त्वं गणाध्यक्ष पिब तोयं सुवासितम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, करोद्वर्तनं
समर्पयामि । (करोद्वर्तन के लिये गन्ध
समर्पित करे)
ऋतुफल- ॐ याः फलिनीर्या अफला
अपुष्पा याश्च पुष्पिणी । बृहस्पतिप्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्व ँहसः ॥
द्राक्षादि -रम्भाफल चूतकानि
खार्जूर -कार्कन्धुक -दाडिमानि । सुस्वादयुक्तानि गृहाण दत्तानि फलानि ढुण्ढे
॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, ऋतुफलानि समर्पयामि ।
(ऋतुफल या नारियल अर्पित करे ।)
'फलान्ते आचमनीयं जलं
समर्पयामि । (आचमनीय जल अर्पित करे।)
ताम्बूल - ॐ अष्टांग देव
ताम्बूलं गृहाण मुखवासनम् । असकृद्विघ्नराज त्वं मया दत्तं विशेषतः ॥
ॐ यत्पुरुषेण हविषा देवा
यज्ञमतन्वत । वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, मुखवासार्थम् एलालवंग पुंगीफलसहितं
ताम्बूलं समर्पयामि । (लौंग, इलायची, सुपारी के साथ ताम्बूल (पान) अर्पित करे )
दक्षिणा - ॐ दक्षिणां
कांचनाद्यां तु नानाधातुसमुद्भवाम् । रत्नाद्यैः संयुतां ढुंढे गृहाण सकलप्रिय ॥
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं
विभावसोः । अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः,कृतायाः
पूजायाः साद्गुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि।(द्रव्य-दक्षिणा चढ़ाये )
आरती - ॐ आरार्तिका
कर्पुरकादिभूतामपारदीपां प्रकरोमि पूर्णाम् ।
लम्बोदर तां गृहाण
ह्यज्ञानध्वान्तौघहरां निजानाम् ॥
आर्तिक्यं च सुकर्पूरं नानादीपमयं प्रभो । गृहाण
ज्योतिषां नाथ तथा नीराजयाम्यहम् ॥
नानादीपसमायुक्तं नीराजनं गजानन
। गृहाण भावसंयुक्तं सर्वाज्ञानादिनाशन ॥
ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः
स्वाहा सूर्यो ज्योतिर्ज्योतिः सूर्यः स्वाहा । अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः
स्वाहा सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा ॥ ज्योति सूर्यः सूर्यो ज्योतिः स्वाहा
॥
साज्यं चं वर्तिसंयुक्तं
वह्निना योजितं मया । दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसहिताय
श्री महागणपतये नमः,आरार्तिकं समर्पयामि ।
(आरती करे )
श्री गणेश चतुर्थी पूजन विधि । Ganesh chaturthi pujan vidhi
हवन प्रारम्भ
सर्वप्रथम हवन सामाग्री (जंवा,तिल आदि)एकत्र कर शांकल्य बनावे। अब यजमान हवन पात्र को सामने रखकर उसमे " रं "बीज अंकित कर देवे और फिर
हवन पात्र मे अग्नि डालकर पहले अग्निदेव का स्थापन,आवाहन उसके बाद पंचोपचार पूजन करे -
अग्नि स्थापन- ॐ अग्नि दूतं पुरोदधे हव्यवाहमुप ब्रुवे। देवाँ
२॥ आसादयादिह ॥
अग्नि आवाहन – ॐ रक्त
माल्यम्बरधरं रक्त पद्मासन स्थितम् ।
स्वाहा स्वधा वषट्कारै रङ्कितं मेष वाहनम् ॥
शतं मंगलकं रौद्रं वह्रिमावाहयाम्यहम्
। त्वं मुखं सर्व देवानां सप्तार्चिर मितद्युते ।
आगच्छ भगवन्नग्ने वेद्यामस्मिन् सन्निधो भव ॥
अब अग्निदेव का पंचोपचार पूजन
करे और अग्नि के रक्षार्थ लकड़ी डालकर हवन शुरू करे । आप पञ्चवारुणी , गौरी-गणेश, नवग्रह, समस्त
वेदी, सर्वतोभद्र और अंत में गणेशजी का कोई भी मंत्र जिसे
आपको करना हो उस मंत्र में चतुर्थी विभक्ति के साथ "नमःस्वाहा "जोड़ कर
१०८ आहुति दे । यँहा मैं केवल आपकी सुविधा के लिए सर्वतोभद्र
दे रहा हूँ-
ॐ गणपतये नमःस्वाहा । ॐ दुर्गायै
नमःस्वाहा । ॐ ब्रह्मणे नमःस्वाहा । ॐ सोमाय
नमःस्वाहा । ॐ ईशानाय नमःस्वाहा । ॐ इन्द्राय नमःस्वाहा। ॐ अग्नये नमःस्वाहा। ॐ यमाय
नमःस्वाहा। ॐ निर्ऋत्ये नमःस्वाहा। ॐ वरुणाय नमःस्वाहा। ॐवायवे नमःस्वाहा। ॐ
ध्रुवाय नमःस्वाहा। ॐ अध्वराय नमःस्वाहा।ॐ अद्भ्य नमःस्वाहा। ॐअनिलाय नमःस्वाहा।
ॐनलाय नमःस्वाहा। ॐप्रत्यूषाय नमःस्वाहा।ॐ प्रभाषाय नमःस्वाहा। ॐ अजाय नमःस्वाहा।
ॐ एकपदे नमःस्वाहा। ॐ अहिर्बुध्याय नमःस्वाहा। ॐ विरूपाक्षाय नमःस्वाहा।
ॐ रैवताय नमःस्वाहा। ॐ रक्ताय नमःस्वाहा। ॐ रूपाय नमःस्वाहा।ॐ बहुरूपाय नमःस्वाहा।ॐ
त्र्यंबकाय नमःस्वाहा। ॐ सुरेश्वराय नमःस्वाहा। ॐसवित्रे नमःस्वाहा। ॐजयंताय नमःस्वाहा।
ॐ पिनाकिने नमःस्वाहा।ॐ रुद्राय नमःस्वाहा। ॐधात्रे नमःस्वाहा। ॐमित्राय नमःस्वाहा।
ॐयमाय नमःस्वाहा। ॐ ॐ रुद्राय नमःस्वाहा।ॐ वरुणायनमःस्वाहा। ॐसूर्यायनमःस्वाहा।
ॐभगायनमःस्वाहा। ॐविवस्वते नमःस्वाहा। ॐपुष्णेनमःस्वाहा। ॐसवित्रेनमःस्वाहा।
ॐत्वष्ट्रेनमःस्वाहा। ॐविष्णवेनमःस्वाहा। ॐअशुभ्यांनमःस्वाहा। ॐकृतवे नमःस्वाहा।
ॐदक्षायनमःस्वाहा। ॐवसवेनमःस्वाहा। ॐसत्यायनमःस्वाहा। ॐकालायनमःस्वाहा। ॐकामायनमःस्वाहा।
ॐ अध्वरायनमःस्वाहा। ॐरोचनाय नमःस्वाहा। ॐपुरुरवसे नमःस्वाहा। ॐआर्द्रवाय नमःस्वाहा।
ॐसोमपाय नमःस्वाहा। ॐअग्निष्वात्ताय नमःस्वाहा। ॐबर्हिषदे नमःस्वाहा। ॐसुकालाय नमःस्वाहा।
ॐ एकश्रगायनमःस्वाहा। ॐशूद्राय नमःस्वाहा। ॐसोमाय नमःस्वाहा। ॐ कश्यपाय नमःस्वाहा।
ॐ अत्रये नमःस्वाहा। ॐ भारद्वाजाय नमःस्वाहा। ॐ विश्वामित्राय नमःस्वाहा। गौतमाय
नमःस्वाहा। जमदग्नये नमःस्वाहा। वसिष्ठाय नमःस्वाहा। ॐअनन्ताय नमःस्वाहा। ॐ वासुकयेनमःस्वाहा।
ॐशेषाय नमःस्वाहा। ॐ तक्षकायनमःस्वाहा। ॐ कर्कोटकाययनमःस्वाहा। ॐपद्माय नमःस्वाहा।
ॐमहापाद्माय नमःस्वाहा। ॐ शंखपालायनमःस्वाहा। ॐकम्बलाय नमःस्वाहा। ॐपिशाचेभ्य: नमःस्वाहा। ॐगुह्यकेभ्यः नमःस्वाहा। ॐ सिद्धेभ्यःनमःस्वाहा।
ॐ भूतेभ्यःनमःस्वाहा। ॐसर्पेभ्यः नमःस्वाहा। ॐवश्वावसवे नमःस्वाहा। ॐ गन्धर्वाय
नमःस्वाहा। ॐ हयायनमःस्वाहा। ॐ हुह्वेनमःस्वाहा। ॐघृताच्यै नमःस्वाहा। ॐमेनकायै
नमःस्वाहा। ॐ रम्भायै नमःस्वाहा। ॐउर्वश्यै नमःस्वाहा। ॐ तिलोत्तमायै नमःस्वाहा।
ॐसुकेश्यै नमःस्वाहा। ॐमंजुघोषायै नमःस्वाहा। ॐरुद्रेभ्यः नमःस्वाहा। ॐ स्कन्दाय
नमःस्वाहा।नमःस्वाहा। ॐ शूलाय नमःस्वाहा।ॐ
महादेवाय नमःस्वाहा। ॐरुद्राय नमःस्वाहा। ॐश्रियै नमःस्वाहा। ॐ विष्णुये
नमःस्वाहा। ॐमरुद्गनाय नमःस्वाहा। ॐ पितृभ्य: नमःस्वाहा। ॐ रोगाय नमःस्वाहा। ॐ मृत्यवे नमःस्वाहा।
ॐ वसुभ्यः नमःस्वाहा। ॐविघ्नराजाय नमःस्वाहा। ॐअद्भय: नमःस्वाहा। ॐ समीराय नमःस्वाहा।
ॐमारुताय नमःस्वाहा। ॐमरुते नमःस्वाहा। ॐ जगत्प्राणायनमःस्वाहा।
ॐसमीरणाय नमःस्वाहा। ॐमातरिश्वने नमःस्वाहा। ॐ मेदिन्यैनमःस्वाहा। ॐ गङ्गायै नमःस्वाहा।
ॐ सरस्वत्यै नमःस्वाहा। ॐ सरस्वै नमःस्वाहा। ॐकौशिक्यै नमःस्वाहा। ॐवेत्रवत्ये नमःस्वाहा।
ॐ गोदावर्यै नमःस्वाहा। ॐ ताप्तयै नमःस्वाहा। ॐरेवायै नमःस्वाहा। ॐपयोदायै नमःस्वाहा। ॐकृष्णायै नमःस्वाहा। ॐभीमरत्यै नमःस्वाहा।
ॐतुङ्गभद्रायै नमःस्वाहा। ॐक्षुद्रनदीभ्यः
नमःस्वाहा। ॐलवणसमुद्राय नमःस्वाहा।ॐइक्षुसमुद्राय
नमःस्वाहा। ॐसुरासमुद्राय नमःस्वाहा। ॐ
सर्पिसमुद्राय नमःस्वाहा। ॐदधिसमुद्राय नमःस्वाहा। ॐ क्षीरसमुद्राय नमःस्वाहा। ॐ जीवनसमुद्राय नमःस्वाहा। ॐ सूर्याय नमःस्वाहा।
ॐ चन्द्रमसे नमःस्वाहा। ॐ भौमाय नमःस्वाहा। ॐ बुधाय नमःस्वाहा। ॐ बृहस्पतये नमःस्वाहा।
ॐ शुक्राय नमःस्वाहा। ॐ शनिश्चराय नमःस्वाहा। ॐ राहवे नमःस्वाहा। ॐ केतवे नमःस्वाहा।
ॐ ब्राह्मयै नमःस्वाहा। ॐ माहेश्वर्यै नमःस्वाहा।
ॐ कौमार्यै नमःस्वाहा। ॐ वैष्णव्यै नमःस्वाहा। ॐ वाराह्यै नमःस्वाहा। ॐ इन्द्राण्यै नमःस्वाहा। ॐ चामुण्डायै नमःस्वाहा।
ॐ वज्रायै नमःस्वाहा। ॐशक्तयै
नमःस्वाहा। ॐदण्डाय नमःस्वाहा। ॐखड्गाय नमःस्वाहा। ॐ पाशाय
नमःस्वाहा। ॐअंकुशाय नमःस्वाहा।
ॐगदायै नमःस्वाहा। ॐत्रिशूलाय नमःस्वाहा। ॐपद्माय नमःस्वाहा। ॐचक्राय नमःस्वाहा। ॐश्री
महाविष्णवे नमःस्वाहा ।
ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा । (बचा हुआ समस्त शांकल्य का आहुति दे)
श्री गणेश चतुर्थी पूजन विधि । Ganesh chaturthi pujan vidhi
अब यजमान अपने सामने चौमुखा
दिया जलाकर किसी पात्र मे रखे व उड़द, दही को मिलाकर क्षेत्रपाल के लिए बलिदान(पहले संकल्प,फिर बलिदान) देवे-
संकल्प- ॐ विष्णु...............क्षेत्रपालादिप्रीत्यर्थ
भूतप्रेतपिशाचादिनिवृ्त्यर्थ क्षेत्रपाल बलिदानकर्म अहं करिष्ये । (यजमान
अक्षत,जल लेकर यह मंत्र बोलते हुए पात्र मे छोड़ दे)
बलिदान – भो ! क्षेत्रपाल रक्ष
बलि भक्षबलि अस्य यजमानस्य सकुटुंबस्य आयुःकर्ता,क्षेमकर्ता, शांतिकर्ता, तुष्टि
कर्ता, पुष्टि कर्ता, निर्विघ्न कर्ता
वर्दोभव॥( उड़द, दही को आमपत्र मे लेकर दशों दिशाओ मे रखे )
अब यजमान अक्षत लेकर पूर्णाहुति(पहले
संकल्प,फिर पूर्णाहुति) करे।
संकल्प - ॐ
विष्णु.................गणपतिपूजन सांगता सिद्धयर्थ पूर्णाहुति कर्म अहं करिष्ये
। (यजमान अक्षत,जल लेकर यह मंत्र बोलते हुए पृथ्वी
मे छोड़ दे)
पूर्णाहुति- ॐ पूर्णा दर्वि परापत
सुपूर्णा पुनरापत।वस्नेव विक्र्कीणावहाऽइषमूर्ज
ँ शतक्र्कतो स्वाहा॥ (नारियलगिरी ,घी हवन कुंड मे डाले)
भस्म धारण- ॐ त्रयायुषं जमदग्नेरिति ललाटे ।(मस्तक)
कश्यपश्य त्रयायुषमिति ग्रीवायाम्।(गला)
यद्देवेषु त्रयायुषमिति
दक्षिणबाहु।(दाहिना भुजा)
तन्नोऽस्तु त्रयायुषमिति हृदि॥(छाती)
अब आरती सजावे व गणेशजी की आरती
करे-
आरती के बाद प्रदक्षिणा
करे-
प्रदक्षिणा- ॐ प्रदक्षिणा गृहाण
लम्बोदर भावयुक्ताः। संख्याविहीना विविधस्वरूपा भक्तान् सदा रक्ष भवार्णवाद्वै॥अब यजमान हाथों मे पुष्प लेकर पुष्पाञ्जलि करे-
पुष्पाञ्जलि - पुष्पाञ्जलिं
प्रचुरयामि सुवर्णपुष्पैः सन्मन्त्रपुष्पमपि च प्रतिपादयामि ।
सर्वोपचारपनिवहांश्च समर्पयामि
स्वामिन् गणाधिप समुद्धर मां भवाब्धेः ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सिद्धिबुद्धिसहिताय श्री महागणपतये नमः, मन्त्रपुष्पाञ्जलिं
समर्पयामि ।(पुष्पाञ्जलि समर्पित करे)
अब पुनः हाथों
मे पुष्प लेकर क्षमा-प्रार्थना करे-
क्षमा-प्रार्थना- आदौ गणेश्वरं
मूर्ध्नि ललाटे विघ्ननायकम् । दक्षिणे कर्णमूले तु वक्रतुण्डं समर्चयेत् ॥
वामे कर्णस्य मूले वै चैकदन्तं
समर्चयेत् । कण्ठे लम्बोदरं देवं हृदि चिन्तामणिं तथा ॥
बाहौ दक्षिणके चैव हेरंबं
वामबाहुके । विकटं नाभिदेशे तु विघ्ननाथं समर्चयेत् ॥
कुक्षौ दक्षिणगायां तु मयूरेशं
समर्चयेत् । वामकुक्षौ गजास्यं वै पृष्ठे स्वानन्दवासिनम् ॥
गणेशदेवादपरं न किञ्चित्
तस्मात् गणेशं शरणं प्रपद्ये ॥
वामांगके शक्तियुता गणेशं सिद्धिस्तु नानाविधसिद्धि
भिस्तम् ।
अत्यन्तभावेन सुसेवते तु मायास्वरूपा परमार्थभूता ॥ गणेश्वर
दक्षिणभागसंस्था बुद्धिः कलाभिश्च सुबोधिकाभिः ।विद्याभिरेवं भजते परेशा मायासु
सांख्यप्रदचित्तरूपा ॥ प्रमोदमोदादयः
पृष्ठभागे गणेश्वरं भावयुता भजन्ते । भक्तेश्वरा मुद्गलशम्भुमुख्याः शुकादयस्तं
स्म पुरो भजन्ते ॥
माता गणेशश्च पिता गणेशो भ्राता
गणेशश्च सखा गणेशः ।
विद्या गणेशो द्रविणं गणेशः स्वामी
गणेशः शरणं गणेशः ॥
इतो गणेशः परतो गणेशः यतो यतो
यामि ततो गणेशः ॥
क्षमस्व विघ्नाधिपते मदीयान् सदापराधान्
विविधस्वरूपान् ।
भक्तिं मदीयां सफलां कुरुष्व सम्प्रार्थयेऽहं मनसागणेश ॥
यं यं
करोम्येव तदेव दीक्षा गणेश्वरस्यास्तु सदा गणेश । प्रसीद नित्यं तवपादभक्तं
कुरुष्व मां ब्रह्मपते दयालो ॥ अपराधानसंख्यातान् क्षमस्व गणनायक । भक्तं कुरु च
मां ढुंढे तव पादप्रियं सदा ॥
जाग्रत् -स्वप्न
-सुषुप्तिभिर्देह -वांग्मनसैः कृतम् । सांसर्गिकेण यत्कर्म गणेशाय समर्पये ॥
ॐएकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डायधीमहितन्नोदन्तिःप्रचोदयात्॥
क्षमा-प्रार्थनापुर्वकम् नमस्कारान्
समर्पयामि॥(पुष्प गणेशजी को समर्पित करे)
इसके बाद उस पूजित अनन्तसूत्र को
यह मन्त्र पढकर पुरुष दाहिने और स्त्री बायें हाथ में बाँध ले -
ॐ अनन्तसंसारमहासमुद्रे मग्नान्
समभ्युद्धर वासुदेव । अनन्तरुपे विनियोजितात्मा
ह्यनन्तरुपाय नमो नमस्ते ॥
अब यजमान को अक्षत-जल देकर
ब्राह्मण दक्षिणा फिर भूयसी दक्षिणा लेवे-
ब्राह्मण दक्षिणा- ॐ
विष्णु.................गणपतिआदि पूजन सांगता सिद्धयर्थ ब्राह्मण दक्षिणा अहं
ददातु । (यजमान अक्षत,जल,दक्षिणा सहित ब्राह्मण को देवे )
भूयसी दक्षिणा- ॐ
विष्णु................गणपतिआदि पूजन न्यूनता दोष समनार्थ दान–दक्षिणा कर्म अहं
करिष्ये ।(यजमान अक्षत,जल और जो भी दान –दक्षिणा हो ,ब्राह्मण को देकर
संतुष्ट करे)
अब समस्त वेदी व गणेशजी की
प्रतिमा को अपने स्थान पर से विसर्जन के लिए हटावें-
विसर्जन- ॐआवाहनम् न जनामि न
जनामि विसर्जनम्। पुजाम् चैव न जनामि क्षमस्व परमेश्वर: ।
ॐ गच्छ- गच्छ सुरश्रेष्ठ स्व स्थान परमेश्वर: । गच्छ देव
हुतासने पुनरागमनम् च॥
ॐ द्योः शान्तिरन्तरिक्ष ँ शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ँ शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥ (सुशान्तिर्भवतु )॥
श्री गणेश चतुर्थी पूजन विधि । Ganesh chaturthi pujan vidhi
गणेश जी की आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥
जय गणेश.................
॥
एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी ।
पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा लड्डुअन
का भोग लगे सन्त करें सेवा ॥
जय गणेश.................
॥
अंधे को आँख देत कोढ़िन को काया
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया ।
सूर श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ॥
जय गणेश.................
॥
इति:
पं॰डी॰पी॰दुबे कृत् श्री गणेश चतुर्थी पूजन विधि । Ganesh chaturthi pujan vidhi
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