गंगा भैरव पूजन - छत्तीसगढ़ कौंरी पद्धति
गंगा,भैरव पूजन- मृत्युपर्यंत दशम दिन(दशगात्र)को होने वाले पूजन कर्मकांड ''गंगा,भैरव पूजन'' को ही ''छत्तीसगढ़ में कौंरी पुजा'' के नाम से जाना जाता है।
गंगा भैरव पूजन –छत्तीसगढ़ कौंरी पूजन पद्धति
जिस स्थान पर (जंहा मृतक के शव को
अंतिम यात्रा से पूर्व जिस स्थान पर रखा गया था) पूजन करना हो,उस जगह को गोबर से लीपकर चौंक बनवाएँ । फिर वहाँ सामने भूमि पर पत्तल में
गौरी-गणेश,नवग्रह,फिर बाँये भाग मे कलश
,पुनः बाँये भाग तोरण स्थापित करें। उसके ठीक सामने एक चौंकी
में कौंरी गंगा जल को रखें। पूजन की सभी सामाग्री एकत्र कर जो अस्थि विसर्जन कर
आये हो उस यजमान को पुजा में बैठावें और पूजन प्रारम्भ करें-
गंगा भैरव पूजन –छत्तीसगढ़ कौंरी पूजन पद्धति
पवित्रीकरण (शरीर शुद्धि)- सबसे
पहले यजमान अपने ऊपर और पूजा सामग्री पर जल छिड़के -
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां
गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स
बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ॐ
पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।
अब यजमान हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर
सभी देवों का ध्यान, स्वस्त्ययन का पाठ
कर गौरी-गणेश पर छोड़ें-
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।
लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः । उमामहेश्वराभ्यां नमः । वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः ।
शचीपुरन्दराभ्यां नमः । मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः । इष्टदेवताभ्यो नमः । कुलदेवताभ्यो
नमः । ग्रामदेवताभ्यो नमः । वास्तुदेवताभ्यो नमः । स्थानदेवताभ्यो नमः । सर्वेभ्यो
देवेभ्यो नमः । सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो
नमः । ॐ सिद्धिबुद्धिसहिताय श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।
संकल्प – अब यजमान को हाथ में
अक्षत-जल देकर आचार्य निम्न संकल्प मंत्र
पढ़े -
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः
श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि
द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे
वैवस्वतमन्वंतरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जंबुद्वीपे भारतवर्षे
आर्यावर्तैकदेशे.... नगरे/ग्रामे.....मासे....शुक्ल/कृष्णपक्षे... तिथौ....वासरे........गोत्र....नाम्नी
(यजमान का नाम) मम मातु:/पितु:( मृतक का यजमान से जो संबंध हो कहें)अमुक नाम प्रेत
(मृतक का नाम) मृत आत्मा शान्ति: हेतू
कौंरी पूजन,गंगा पूजन,भैरव पूजन, भैरव विदा कर्म,हवन
कर्म,शान्ति कर्म अहं करिष्ये । (
अक्षत-जल कलश के पास छोड़े)
ध्यान -फिर यजमान को हाथ में अक्षत
लेकर गौरी-गणेशजी का ध्यान करावें-
ॐ गजाननं भूतगणादिसेवितं
कपित्थजम्भूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि
विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥
ॐ सर्व मंगल माङ्गल्ये शिवे
सर्वार्थ साधिके ।
शरन्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥
नवग्रह ध्यान - अब फिर से यजमान को
हाथ में अक्षत लेकर नवग्रह मण्डल का ध्यान करावें-
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी
भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः सर्वे
ग्रहाः शान्तिकरा भवन्तु ॥
सूर्यः शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं
सन्मङ्गलं मङ्गलः
सद्बुद्धिं च बुधो गुरुश्च गुरुतां
शुक्रः सुखं शं शनिः ।
राहुर्बाहुबलं करोतु सततं केतुः
कुलस्योन्नतिं
नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते
सर्वेऽनुकूला ग्रहाः ॥
( नवग्रहमण्डल पर अक्षत छोड़ दे)
कलश में वरुण का ध्यान - हाथ में
अक्षत और पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र से वरुण देव का आवाहन करावें-
ॐ तत्त्वा यामि ब्रह्मणा
वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः ।
अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुश ঌस मा न आयुः प्र
मोषीः ॥
अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्गं सपरिवारं
सायुधं सशक्तिकमावाहयामि ।
तोरणमातृका पूजन - पुनः अक्षत-पुष्प
से इसी प्रकार तोरण का पूजन करे –
ॐ तोरण मातृकाभ्यो नमः,आवाहयामि, स्थापयामि ।
प्रतिष्ठा –
पुनः हाथ में अक्षत देकर सभी देवों पर चढ़वाएँ-
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य
बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ ঌसमिमं दधातु ।
विश्वे देवास इह मादयन्तामो३
प्रतिष्ठ ॥
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च ।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ॥
अब यजमान से गौरी-गणेश सहित सभी देवों का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करावे।
गंगा भैरव पूजन –छत्तीसगढ़ कौंरी पूजन पद्धति
कौंरी पूजन - इसके बाद चौंकी पर रखे
कौंरी मे शिवजी तथा गंगा जल मे गंगा माता का अक्षत और पुष्प लेकर ध्यान व पूजन
करावें-
शिवजी का ध्यान –
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्
पुष्टिवर्ध॑नम् ।
उर्वारुकमिव
बन्धनान्मृत्योर्मु॑क्षीय माऽमृतात् ॥
गंगाजी का ध्यान-
ॐ नमो भगवते दशपापहराये गंगाये
नारायण्ये रेवत्ये शिवाये दक्षाये
अमृताये
विश्वरुपिण्ये नंदिन्ये ते नमो
नम: ॥
अब यजमान से कौंरी स्थित शिवजी व
गंगाजी का पूजन करावें-
स्नान - शुद्ध जल से स्नान कराये -
गङ्गे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती
।
नर्मदे सिन्धु कावेरी स्नानार्थं
प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ आवाहित देवेभ्यो नमः शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
वस्त्र –
मौलीधागा वस्त्र रूप में समर्पित करे-
शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जाया रक्षणं
परम् ।
देहालङ्करणं वस्त्रमतः शान्तिं
प्रयच्छ मे ॥
ॐ आवाहित देवेभ्यो नमः वस्त्रं समर्पयामि ।
यज्ञोपवीत- यज्ञोपवीत समर्पित करें –
यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य त्वा
यज्ञोपवीतेनोपनह्यामि ।
नवभिस्तन्तुभिर्युक्तं त्रिगुणं
देवतामयम् ।
यज्ञोपवीतं मया दत्तं गृहाण
परमेश्वर: ॥
ॐ आवाहित देवेभ्यो नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।
अक्षत- पीला चाँवल चढ़ाये-
ॐ अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत
।
अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया
मती योजान्विन्द्र ते हरी ॥
ॐ आवाहित देवेभ्यो नमः,
अक्षतान् समर्पयामि ।
पुष्प- पुष्पमाला समर्पित करे व
कौंरी में तुलसी माला अथवा लाये गए अन्य माला और गंगाजी को हरा मोतीमाला चढ़ाये-
ॐ नानाकुसुमनिर्माणं बहुशोभाप्रदं
परम् ।
सुरलोकप्रियं शुद्धं माल्यं देवेश प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ आवाहित देवेभ्यो नमः,
पुष्पं च मालां समर्पयामि ।
दूर्वा - दूर्वाङ्कुर या कुश चढाये
-
दूर्वाङ्कुरान् सुहरितानमृतान्
मङ्गलप्रदान् ।
आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण गणनायक ॥
ॐ आवाहित देवेभ्यो नमः,
दर्भम् समर्पयामि ।
नाना परिमल द्रव्य –
बंदन,कुमकुम, गुलाल ,गोपी चन्दन आदि चढ़ाये-
ॐ अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं
ज्याया हेतिं परिबाधमानः ।
हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान्
पुमान् पुमाঌ
सं परिपातु विश्वतः ॥
ॐ आवाहित देवेभ्यो नमः,
नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि ।
धूप – दशांग धूप दे-
ॐ दशाङ्गगुग्गुलं
धूपंचन्दनागुरुसन्युतम् ।
सर्वेषां उत्तमं धूपं देव निवेदयेत्
॥
ॐ आवाहित देवेभ्यो नमः,
धूपमाघ्रापयामि ।
आचमन- धुपांते आचमनीयं जलं समर्पयामि
। (आचमनीय जल अर्पित करे।)
दीप – अगरबत्ती जलाकर आरती करें-
ॐ साज्यं चं वर्तिसंयुक्तं वह्निना
योजितं मया ।
दीपं गृहाण देवेश
त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय
परमात्मने ।
त्राहि मां निरयाद् घोराद्
दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥
ॐ आवाहित देवेभ्यो नमः,
दीपं दर्शयामि ।
नैवेद्य –
प्रसाद चढ़ायें-
शर्कराखण्डखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि
च ।
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्यं
प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ आवाहित देवेभ्यो नमः,
नैवेद्यं निवेदयामि ।
आचमन-'नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि' । (जल समर्पित करे ।)
नारियल- कौंरी पर नारियल चढ़ायें-
ॐ नारिकेलं च नारिङ्ग मञ्जिरंतथा ।
उर्वारुकं च देवेश फलान्येतानि
प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ आवाहित देवेभ्यो नमः,
अखण्ड ऋतुफलं समर्पयामि ।
आचमन-'फलान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमनीय जल अर्पित करे।)
ताम्बूल- लौंग, इलायची, सुपारी के साथ ताम्बूल (पान) अर्पित करे-
ॐ पुंगीफल महद्दिव्यं
नागवल्लीदलैर्युतम् ।
एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं
प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ आवाहित देवेभ्यो नमः,
मुखवासार्थ एलालवंगपुंगीफलसहित
ताम्बूलं समर्पयामि ।
दक्षिणा- द्रव्य दक्षिणा समर्पित
करे-
ॐ हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं
विभावसोः ।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ
मे ॥
ॐ आवाहित देवेभ्यो नमः,
कृतायाः पूजायाः
साद्गुण्यार्थे द्रव्यदक्षिणां समर्पयामि
।
आरती –दीपक से आरती करे-
ॐ आ रात्रि पार्थिव ঌ रजः पितुरप्रायि
धामभिः ।
दिवः सदा ঌ सि बृहती वि
तिष्ठस आ त्वेषं वर्तते तमः ।
ॐ आवाहित देवेभ्यो नमः,
आरार्तिकं समर्पयामि ।
गंगा भैरव पूजन –छत्तीसगढ़ कौंरी
पूजन पद्धति
अब सभी देवों का प्रणाम करें। इसके
बाद यजमान के घर से बाहर द्वार पर लीपकर तीन डंडा आटा से चौंक बनवाकर चौंकी
(पाटा)रखवा ले। अब यजमान को कौंरी तथा पूजन सामाग्री लेकर बाहर बुलवाए और कौंरी को
चौंकी में रखवा देवें। एक आटे का चौमुखा दीप (जिसमे चार बत्ती लगा हो) कौंरी के
दाहिने भाग मे जलाकर रखें। तीन ध्वजा रखें
तथा उड़द,दही रखें। अब यजमान को दक्षिण मुख कर बैठावें और भैरव भगवान का पूजन
करावें।
भैरव भगवान का ध्यान-यजमान को अक्षत, फूल पकड़ाकर भैरव भगवान का आवाहन, ध्यान करावें-
विद्योभवां भ्रं भैरो वदेन्यं ।
सहितां सदैव क्रियामान् रूपं ।
देवोत्माम् दीर्घ वदन्य रूपं ।
रक्षोत्प्लां वै रवः भूतनाथ ।
ॐ भं भैरवाय नमः आवाहयामि,स्थापयामि॥
स्नान- ॐ भं भैरवाय नमः स्नानं
समर्पयामि ।
वस्त्र(मौलीधागा)- ॐ भं भैरवाय
नमः वस्त्रं समर्पयामि ।
यज्ञोपवीत(जनेऊ)- ॐ भं भैरवाय
नमः यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।
अक्षत(पीला चाँवल)- ॐ भं भैरवाय
नमः अक्षतं समर्पयामि ।
फूल – ॐ भं भैरवाय नमः पुष्पं समर्पयामि ।
माला(नीला या काला मोती माला)- ॐ
भं भैरवाय नमः मालां समर्पयामि ।
दूबि- ॐ भं भैरवाय नमः
दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि ।
सिंदूर,बंदन- ॐ भं भैरवाय नमः नाना परिमल द्रव्यं समर्पयामि ।
अगरबत्ती- ॐ भं भैरवाय नमः दीपं
समर्पयामि ।
धूप(हुम)- ॐ भं भैरवाय नमः धूपं
समर्पयामि ।
नैवेद्य(रोठ)- ॐ भं भैरवाय नमः
नैवेद्यं निवेदितम् ।
नारियल- ॐ भं भैरवाय नमः
नारिकेलं समर्पयामि ।
ताम्बूल(पान)- ॐ भं भैरवाय नमः
ताम्बूलं समर्पयामि ।
दीप आरती- ॐ भं भैरवाय नमः
आरतिक्यं समर्पयामि ।
विस्तृत पूजन करना हों तो डीपी
कर्मकांड के भाग-२ से करें।
बलिदान –
उड़द,दही व बंदन मिश्रित कर किसी पात्र(दोना
आदि) में भैरव भगवान के लिए बलिदान देवें-
ॐ भं भैरवाय रक्ष बलि भक्षबलि अस्य
यजमानस्य सकुटुंबस्य आयुःकर्ता,क्षेमकर्ता,
शांतिकर्ता, तुष्टि कर्ता, पुष्टि कर्ता, निर्विघ्न कर्ता वर्दोभव॥
चढ़ाया गया नारियल एक बार मे यजमान
से फोड़वा देवें।
अब नाई को न्योछावर दिलवाकर फूटा
हुआ नारियल बाहर ही बटवा दें। भैरव भगवान की आरती करें (आरती नीचे लिखा गया है।)
क्षमाप्रार्थना व विसर्जन –
यजमान अक्षत लेकर भैरव भगवान से क्षमाप्रार्थना और विसर्जन करें-
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्
।
पुजाविधिं न जानामि क्षमस्व भैरवम्
॥
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम
।
तस्मात्कारुण्यभावेन रक्ष रक्ष
भैरव: ॥
अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं
मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व भैरव
॥
कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा
बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात् ।
करोमि यद्यत्सकलं परस्मै भैरव
समर्पयामि ॥
इसके बाद यजमान कंधे पर कौंरी रखें
और दाहिने हाथ मे अक्षत लेकर उल्टे पाँव पाँच कदम चले व पीछे की ओर अक्षत फेंककर
घर के अंदर प्रवेश करें।
यदि शांति निमित्त हवन करना हो तो सर्वतोभद्र
व ॐ गंगादेव्यै नमः स्वाहा । मंत्र से
हवन करें-
हवन प्रारम्भ- सबसे पहले यजमान हवन
कुंड मे अग्नि डालकर हवन करें व दिग्पाल बलिदान करें।
हवन व दिग्पाल बलिदान के लिए ॥श्रीसत्यनारायण पूजा पद्धति ॥ पढ़ें-
इसके उपरांत गंगाजी की आरती,क्षमा-प्रार्थना,विसर्जन करें।
गङगाजी की प्रार्थना- अक्षत पुष्प
लेकर हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हुए गंगाजी को अर्पण करें-
विष्णुपादाब्जसम्भूते गङगे
त्रिपथगामिनि ।
धर्म्मद्रवेति विख्याते पापं मे हर
जाह्नवि ॥
श्रद्धया भक्तिसम्पन्नं
श्रीमातर्देवि जाह्नवि ।
अमृतेनाम्बुना देवि भागीरथि पुनीहि
माम् ॥
गाङगं वारि मनोहारि
मुरारिचरणच्युतम् ।
त्रिपुरारि शिरश्चारि पापहारि
पुनातु माम् ॥
गङगे मातर्नमस्तुभ्यं गङगे मातर्नमो
नम: ।
पावनां पतितानां त्वं पावनानां च
पावनी ॥
गङगा गङगेति यो ब्रूयाद् योजनानां
शतैरपि ।
मुच्यते सर्वपापेभ्यो विष्णुलोकं स
गच्छति ॥
नमामि गङगे तव पादपङकजं
सुरासुरैर्वन्दितदिव्यरूपम् ।
भुक्तिं च मुक्तिं च ददासि नित्यं
भावानुसारेण सदा नराणाम् ॥
विसर्जन- कौंरी,गंगाजी तथा गौरी-गणेश सहित सभी देवों का विसर्जन के लिए अक्षत लेकर सभी पर
छोड़ें-
ॐ मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं
सुरेश्वर ।
यत्पूजितं माया देवं परिपूर्ण
तदस्तु में ॥
ॐ गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने
परमेश्वर ।
यत्र ब्रम्हादयो देवा: तत्र गच्छ
हुताशन ॥
अब ब्राह्मण दक्षिणा,
भूयसी दक्षिणा का संकल्प कर देवें-
दक्षिणा संकल्प- यजमान हाथ मे अक्षत
व दक्षिणा लेकर ब्राह्मण को देकर आशीर्वाद लेवें-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः
..................................... ब्राह्मण दक्षिणा,
भूयसी दक्षिणा अहं ददातु ।।
पुनः ब्राह्मण से गंगा जल का प्रसाद
लेवें।
॥ इति: ॥
गंगा भैरव पूजन छत्तीसगढ़ कौंरी पूजन पद्धति
॥तीर्थयात्रा पश्चात् भैरव पूजन
पद्धति॥
तीर्थयात्रा कर घर लौटे हुए यजमान
के यंहा पूजन करना हो तो सर्वप्रथम पूर्व में दिये अनुसार गौरी-गणेश,नवग्रह,कलश आदि का पूजन कारवें। इसके बाद चौंकी में
तीर्थ से लाये समस्त सामाग्री को रखवाकर तीर्थराज भगवान का पूजन कारवें। पूजन हो
जाने उपरांत यजमान के सामने एक पत्तल या किसी पात्र में चौमुखा दीप रखवाकर भैरव
भगवान का पूजन,उड़द व दही का बलिदान तथा ध्वजा रख घर से बाहर सुनसान में रखवा दें। अब हवन,
आरती कर पूजन सम्पन्न करें।
॥ इति: पं॰ डी॰ दुबे कृत् गंगा भैरव
पूजन छत्तीसगढ़ कौंरी पूजन पद्धति
सम्पूर्ण: ॥
आरती के लिए देखें- गंगा भैरव पूजन –छत्तीसगढ़ कौंरी पूजन सामाग्री
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