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सूर्यभद्रमंडल
इससे पूर्व आपने डी॰पी॰कर्मकाण्ड
भाग २२ में चतुर्लिंगतोभद्र मण्डल पूजन विधि पढ़ा। अब इस डी॰पी॰कर्मकाण्ड भाग २३
में आप सूर्यभद्रमंडल के विषय में पढ़ेंगे।
डी॰पी॰कर्मकाण्ड भाग २३- सूर्यभद्रमण्डल
Surya Bhadra Mandal
सूर्यभद्रमंडलम् का निर्माण सूर्य
देवता सम्बन्धी धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता हैं । सौर सम्प्रदाय के लोप के
साथ ही सूर्यभद्रमण्डल के निर्माण तथा पूजन का क्रम दुर्लभ हो चला । सौरमत में
उपरोक्त मण्डल का निर्माण तथा पूजन सौर दीक्षा, सौर
प्रतिष्ठा तथा सौर उत्सव (रथसप्तमी आदि) के समय किया जाता था । भद्रमार्तण्डकार की
” सूर्य व्रतेषु सर्वेषु शस्यते मण्डलम्त्विदम् ” उक्ति से यह स्पष्ट हो जाता हैं ।
सूर्यभद्रमंडलम् रेखाभेद से दो प्रकार का होता हैं ।
दोनों प्रकार के मंडलों को कृष्ण,
रक्त, पीत, श्वेत तथा
हरित इन पांच रंगों से भरा जाता हैं परन्तु रंग विन्यास में भेद हैं। ( चित्रों के
अध्ययन से पाठक सरलता से अंतर ज्ञात कर सकते हैं ।) मध्य में केसर तथा
कर्णिकायुक्त अष्टदलकमल का निर्माण किया जाता हैं। इसी अष्टदलकमल के मध्य
परब्रह्मरूप सूर्य की अष्टग्रहों के साथ पूजा की जाती हैं। बाह्यभाग में भगवान
सूर्य की द्वादशमूर्तियों का निर्माण व्योमरूप में किया जाता हैं। इन्हीं द्वादश
चित्रों में प्रत्येक मासाधिपति सूर्यमूर्ति की पूजा की जाती हैं। अन्य कोष्ठको मे
सूर्य के अंगायुध तथा परिवारदेवताओं की पूजा की जाती हैं ।
(१)
विंशतिरेखात्मकसूर्यभद्रमंडलम्–
इस प्रकार के मंडल का निर्माण २०×२० रेखाओं से किया जाता हैं।
(२)
एकविंशतिरेखात्मकसूर्यभद्रमंडलम्– इस प्रकार के मंडल का
निर्माण २१×२१ रेखाओं से किया जाता हैं।
सूर्य भद्रमंडल पूजनम्
अथ सूर्यभद्रमंडल देवता स्थापनम्
सूर्य भद्रमंडल के परिवार देवता के
आवाहन से पहिले सूर्य वंश को कुछ संक्षिप्त वर्णन दिया जा रहा है,
क्योंकि प्रस्तुत पूजा विधि में सूर्य परिवार व तंत्रोक्त पूजन क्रम
के आधार पर ही आवाहन क्रम दिया गया है। सूर्य का विवाह प्रजापति विश्वकर्मा की
पुत्री संज्ञा से हुआ। संज्ञा के तीन संतानें हुई (१) वैवस्वत मनु (२) यम (३)
यमुना ( युगल)।
सूर्य के अत्यंत तेज को सह नहीं
पाने के कारण संज्ञा ने “छाया के रूप में”
अपनी प्रतिबिम्ब शक्ति को सूर्य के पास रहने की आज्ञा दी । छाया से
दो पुत्र "संवीर्ण" और "शनि" तथा तपती (तापती नदी) की
उत्पत्ति हुई ।
संज्ञा जो “उत्तरकुश" में अश्विनी (घोड़ी) के रूप में विचरण कर रही थी, उससे सूर्य का पुनः संयोग होने पर दोनों “अश्विनी
कुमारों” की उत्पत्ति हुई।
'सूर्य की दो पत्नियां और थी।
राजा रैवत की पुत्री राज्ञी (रात्री) से रेवत तथा अन्य पत्नि प्रभा से प्रभात की
उत्पत्ति हुई ।
पुराणों के अनुसार सूर्य के
सम्पूर्ण रूप से १० पुत्र एवं ३ पुत्रियां हुई।
भद्रमंडल देवता आवाहनम्
मंडल मध्ये पूर्वादि
क्रमेण :-
१. ॐ भूर्भुवः स्वः ब्रह्मणे
तेजोमण्डलाय नमः। ब्राह्ममावाहयामि स्थापयामि।
२. ॐ भूर्भुवः स्वः विष्णवे
तेजोमण्डलाय नमः। विष्णुमावाहयामि स्थापयामि।
३. ॐ भूर्भुवः स्वः रुद्राय
तेजोमण्डलाय नमः। रुद्रमावाहयामि स्थापयामि।
४. ॐ भूर्भुवः स्वः अग्नये
तेजोमण्डलाय नमः। अग्निमावाहयामि स्थापयामि।
मध्ये:-
५. ॐ भूर्भुवः स्वः सूर्य
तेजोमण्डलाय नमः । सूर्यमावाहयामि स्थापयामि।
ध्यानम् :-
रक्ताम्बुजासनमशेष गुणैक सिंधुं
भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि ।
पद्मद्वयाभय वरान् दधतः कराब्जै
माणिक्य मौलिमरुणाङ्ग रुचिं
त्रिनेत्रम् ॥
ॐ आकृणेन रजसा... इति मंत्रेण
आवाह्य ।
भो सूर्य इहागच्छ इहतिष्ठ ।
प्रसन्नो वरदो भव ।
परिधि समीपे त्रिपद पीत भद्रों में
८ पीठ शक्तियों का आवाहन करें।
पूर्व ईशान मध्ये –
६. ॐ भूर्भुवः स्वः दीप्तायै नमः । दीप्तमावाहयामि
स्थापयामि।
पूर्व आग्नये मध्ये –
७. ॐ भूर्भुवः स्वः सूक्ष्मायै नमः
। सूक्ष्ममावाहयामि स्थापयामि।
आग्नये दक्षिण मध्ये –
८. ॐ भूर्भुवः स्वः जयायै नमः। जयामावाहयामि
स्थापयामि।
दक्षिण निर्ऋति मध्ये –
९. ॐ भूर्भुवः स्वः भद्रायै नमः । भद्रामावाहयामि
स्थापयामि।
निर्ऋति पश्चिम मध्ये –
१०. ॐ भूर्भुवः स्वः विभूत्यै नमः ।
विभूतिमावाहयामि स्थापयामि।
पश्चिम वायवो मध्ये –
११. ॐ भूर्भुवः स्वः विमलायै नमः । विमलामावाहयामि
स्थापयामि।
वायवोत्तर मध्ये –
१२. ॐ भूर्भुवः स्वः अमोघाय नमः । अमोघमावाहयामि
स्थापयामि।
उत्तरीशान मध्ये –
१३. ॐ भूर्भुवः स्वः विद्युतायै नमः
। विद्युतमावाहयामि स्थापयामि।
परिधि समीपे अष्ट ग्रहान्
स्थापयेत् :-
पूर्वे परिधि समीपे –
१४. ॐ भूर्भुवः स्वः शुक्राय नमः । शुक्रमावाहयामि
स्थापयामि।
आग्नेयां खंडेन्दौ –
१५. ॐ भूर्भुवः स्वः सोमाय नमः । सोममावाहयामि
स्थापयामि।
दक्षिणे परिधि समीपे –
१६. ॐ भूर्भुवः स्वः अंगारकायनमः । अंगारकमावाहयामि
स्थापयामि।
नैऋत्यां खंडेंदौ –
१७. ॐ भूर्भुवः स्वः राहवे नमः । राहूमावाहयामि
स्थापयामि।
पश्चिम परिधि समिपे –
१८. ॐ भूर्भुवः स्वः शनैश्चराय नमः
। शनैश्चरमावाहयामि स्थापयामि।
वायव्यां खंडेंदौ-
१९. ॐ भूर्भुवः स्वः केतवे नमः । केतूमावाहयामि
स्थापयामि।
उत्तरे परिधि समापे –
२०. ॐ भूर्भुवः स्वः गुरुवे नमः । गुरुमावाहयामि
स्थापयामि।
ईशान खंडेंदौ -
२१. ॐ भूर्भुवः स्वः बुधाय नमः । बुधमावाहयामि
स्थापयामि।
कृष्ण श्रृंखलायाम् सूर्य
पुत्रान् ईशान आग्नेयादि क्रमेण आवाहयेत्
ईशाने कृष्ण श्रृंखलायाम् -
२२. ॐ भूर्भुवः स्वः वैवस्वतमनवे नमः
॥ वैवस्वतमावाहयामि स्थापयामि।
आग्नेयां कृष्ण श्रृंखलायाम् –
२३. ॐ भूर्भुवः स्वः
अश्विनीकुमाराभ्यां नमः । अश्विनीकुमारमावाहयामि स्थापयामि।
नैऋत्यै कृष्ण श्रृंखलायाम् –
२४. ॐ भूर्भुवः स्वः संवीर्णाय नमः
। संवीर्णमावाहयामि स्थापयामि।
वायवे कृष्ण श्रृंखलायाम् –
२५. ॐ भूर्भुवः स्वः रेवताय
प्रभाताय नमः । रेवतमावाहयामि स्थापयामि।
प्रतिकोणे ७ पद द्वौ द्वौ
नीलवल्ली अस्ति तेषां ईशानादि क्रमेण-
ईशाने-
२६. ॐ भूर्भुवः स्वः भूर्भुवादि
सप्त लोकेभ्यः नमः । सप्तलोकमावाहयामि स्थापयामि।
२७. ॐ भूर्भुवः स्वः रेवन्तादि
सप्ताश्वाय नमः । सप्ताश्वमावाहयामि स्थापयामि।
आग्नेये –
२८. ॐ भूर्भुवः स्वः सुषुम्णा,
सुरादना, उदन्वसु, विश्वकर्मा,
उदावसु, विश्वव्यचा हरिकेशादि सप्त रश्मि
देवतायै नमः । सप्तरश्मिमावाहयामि स्थापयामि।
२९. ॐ भूर्भुवः स्वः काली कराली
मनोजवादि सप्त जिह्वा देवतायै नमः । सप्तजिह्वामावाहयामि स्थापयामि।
आग्नेयां द्वितीय वल्लीमध्ये-
३०. ॐ भूर्भुवः स्वः सप्तगंधर्व
अप्सरसः देवतायै नमः । सप्तगंधर्वाप्सरामावाहयामि स्थापयामि।
नैऋत्यां –
३१. ॐ भूर्भुवः स्वः दक्षादि
सप्तगणेभ्यो नमः । सप्तगणमावाहयामि स्थापयामि।
३२. ॐ भूर्भुवः स्वः तल,
अतल, वितल आदि सप्त पातालाअधिपतये नमः । सप्तपातालाधिपतिमावाहयामि
स्थापयामि।
वायव्यां –
३३. ॐ भूर्भुवः स्वः आवहाय,
प्रवहाय, उद्वहाय, वहाय,
विवहाय, परावहाय परिचहाय आदि सप्तमरूद गणेभ्यो
नमः । सप्तमरूदगणमावाहयामि स्थापयामि।
३४. ॐ भूर्भुवः स्वः सप्त ऋषिभ्यो नमः
। सप्तऋषिमावाहयामि स्थापयामि।
मंडलमध्ये कर्णिका समीपे
चतुष्पद श्वेत भद्रे पूर्वार्दक्रमेण –
पूर्वे –
३५. ॐ भूर्भुवः स्वः आदित्याय नमः ।
आदित्यमावाहयामि स्थापयामि।
दक्षिणे –
३६. ॐ भूर्भुवः स्वः रवये नमः । रवमावाहयामि
स्थापयामि।
पश्चिमे-
३७. ॐ भूर्भुवः स्वः भानवे नमः । भानमावाहयामि
स्थापयामि।
उत्तरे –
३८. ॐ भूर्भुवः स्वः भास्कराय नमः ।
भास्करमावाहयामि स्थापयामि।
मण्डल मध्ये चतुर्दिक्षु
द्वादश पद रक्त भद्राणि सन्तिः तेषां पूर्वादिक्रमेण :-
पूर्वे -
३९. ॐ भूर्भुवः स्वः उषायै नमः । उषामावाहयामि
स्थापयामि।
दक्षिणे –
४०. ॐ भूर्भुवः स्वः प्रज्ञायै नमः
। प्रज्ञामावाहयामि स्थापयामि।
पश्चिमे
४१. ॐ भूर्भुवः स्वः प्रभायै नमः । प्रभामावाहयामि
स्थापयामि।
उत्तरे –
४२. ॐ भूर्भुवः स्वः संध्यायै नमः ।
संध्यामावाहयामि स्थापयामि।
मण्डलमध्ये
सूर्यस्य वामभागे –
४३. ॐ भूर्भुवः स्वः संज्ञायै नमः ।
संज्ञामावाहयामि स्थापयामि।
सूर्यस्य दक्षिण भागे –
४४. ॐ भूर्भुवः स्वः छायायै नमः । छायामावाहयामि
स्थापयामि।
सूर्यस्य पादमूले-
४५. ॐ भूर्भुवः स्वः यमुनायै नमः । यमुनामावाहयामि
स्थापयामि।
तत्रैव -
४६. ॐ भूर्भुवः स्वः तात्प्यै नमः ।
ताप्तीमावाहयामि स्थापयामि।
तत्रैव-
४७. ॐ भूर्भुवः स्वः सप्तसागरेभ्यो
नमः । सप्तसागरमावाहयामि स्थापयामि।
सूर्यस्य मस्तकोपरि –
४८. ॐ भूर्भुवः स्वः मेरवे नमः । मेरूमावाहयामि
स्थापयामि।
तत: द्वादशमासाधिपति
द्वादश सूर्यान् आवाहयेत्-
चैत्र,
वैशाख, जेष्ठादि मासों के नाम क्रमशः मधु,
माधव, शक्र, शुचि, नभ, नभस्य, तप, तपस्य, सह, पुष्य, इस्र, एवं ऊर्ज है। अतः उनके मास स्वामि सूर्य का
पूर्वादि क्रम से (प्रत्येक दिशा में तीन-तीन) आवाहन करें।
पूर्वे प्रथम –
मधुमासाधिपतये –
४९. ॐ भूर्भुवः स्वः धाताये नमः । धातामावाहयामि
स्थापयामि।
माधव मासधिपतये
५०. ॐ भूर्भुवः स्वः अर्यमाये नमः ।
अर्यमामावाहयामि स्थापयामि।
शक्रमासाधिपतये –
५१. ॐ भूर्भुवः स्वः मित्राय नमः । मित्रमावाहयामि
स्थापयामि।
(दक्षिणे) शुचिमासाधिपतये –
५२. ॐ भूर्भुवः स्वः वरुणाय नमः । वरुणमावाहयामि
स्थापयामि।
नभ (श्रावण) मासाधिपतये –
५३. ॐ भूर्भुवः स्वः शक्राय नमः । शक्रमावाहयामि
स्थापयामि।
नभस्य (भाद्रपद) मासा धिपतये
५४. ॐ भूर्भुवः स्वः विवस्वाने नमः
। विवस्वानमावाहयामि स्थापयामि।
पश्चिमे तप (आश्विन) मासाधिपतये –
५५. ॐ भूर्भुवः स्वः पूषायै नमः । पूषामावाहयामि
स्थापयामि।
तपस्यमासाधिपतये –
५६. ॐ भूर्भुवः स्वः पर्जन्याय नमः
। पर्जन्यमावाहयामि स्थापयामि।
सहमासाधिपतये –
५७. ॐ भूर्भुवः स्वः अंशुवे नमः । अंशुमावाहयामि
स्थापयामि।
(उत्तरे) पुष्यमासाधिपतये-
५८. ॐ भूर्भुवः स्वः भङ्गाय नमः । भङ्गमावाहयामि
स्थापयामि।
इस्रमासाधिपतये
५९. ॐ भूर्भुवः स्वः त्वष्टायै नमः
। त्वष्टामावाहयामि स्थापयामि।
ऊर्ज मासाधिपतये
६०. ॐ भूर्भुवः स्वः विष्णवे नमः । विष्णुमावाहयामि
स्थापयामि।
सप्तपरिधौ पूर्वादिक्रमेण
:-
पूर्वे
६१. ॐ भूर्भुवः स्वः इंद्राय नमः।
इंद्रमावाहयामि स्थापयामि।
आग्नयां –
६२. ॐ भूर्भुवः स्वः अग्नये नमः।
अग्निमावाहयामि स्थापयामि।
दक्षिणे
६३. ॐ भूर्भुवः स्वः यमाय नमः।
यममावाहयामि स्थापयामि।
नैऋत्यां –
६४. ॐ भूर्भुवः स्वः नैर्ऋतये नमः।
नैर्ऋतिमावाहयामि स्थापयामि।
पश्चिमे--
६५. ॐ भूर्भुवः स्वः वरुणाय नमः।
वरुणमावाहयामि स्थापयामि।
वायव्यां
६६. ॐ भूर्भुवः स्वः वायवे नमः।
वायुमावाहयामि स्थापयामि।
उत्तरे
६७. ॐ भूर्भुवः स्वः कुबेराय नमः।
कुबेरमावाहयामि स्थापयामि।
ईशाने
६८. ॐ भूर्भुवः स्वः ईशानाय नमः।
ईशानमावाहयामि स्थापयामि।
रजः परिधौ पुनः
पूर्वादिक्रमेण :-
६९. ॐ भूर्भुवः स्वः वज्राय नमः ।
वज्रमावाहयामि स्थापयामि।
७०. ॐ भूर्भुवः स्वः शक्तये नमः ।
शक्तिमावाहयामि स्थापयामि।
७१. ॐ भूर्भुवः स्वः दण्डाय नमः ।
दण्डमावाहयामि स्थापयामि।
७२. ॐ भूर्भुवः स्वः खड्गाय नमः ।
खड्गमावाहयामि स्थापयामि।
७३. ॐ भूर्भुवः स्वः पाशाय नमः ।
पाशमावाहयामि स्थापयामि।
७४. ॐ भूर्भुवः स्वः अंकुशाय नमः ।
अंकुशमावाहयामि स्थापयामि।
७५. ॐ भूर्भुवः स्वः गदायै नमः ।
गदामावाहयामि स्थापयामि।
७६. ॐ भूर्भुवः स्वः त्रिशूलाय नमः
। त्रिशूलमावाहयामि स्थापयामि।
ततः परिधौ पुनः
पूर्वादिक्रमेण अष्टमातृकां आवाहयेत्-
७७. ॐ भूर्भुवः स्वः ब्राह्म्यै
नमः। ब्रह्मीमावाहयामि स्थापयामि।
अग्नये-
७८. ॐ भूर्भुवः स्वः माहेश्वर्यै
नमः। माहेश्वरी आवाहयामि स्थापयामि ॥
दक्षिणे-
७९. ॐ भूर्भुवः स्वः कौमार्यै नमः।
कौमारीमावाहयामि स्थापयामि।
नैऋत्यां
८०. ॐ भूर्भुवः स्वः वैष्णव्यै नमः।
वैष्णवीमावाहयामि स्थापयामि।
पश्चिमे –
८१. ॐ भूर्भुवः स्वः वाराह्यै नमः।
वाराहीमावाहयामि स्थापयामि।
वायव्यां –
८२. ॐ भूर्भुवः स्वः इंद्राण्यै
नमः। इंद्राणीमावाहयामि स्थापयामि।
उत्तरे -
८३. ॐ भूर्भुवः स्वः चामुण्डायै
नमः। चामुण्डामावाहयामि स्थापयामि।
ईशाने
८४. ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्म्यै नमः । महालक्ष्मिमावाहयामि स्थापयामि।
“ॐ मनोजूति” इति मंत्रेण प्रतिष्ठाप्य सूर्य मण्डल मध्ये प्राण-प्रतिष्ठा
पूर्वकं संस्थाप्य एवं मण्डल परिवारदेवतायै सर्वोपचाराय पूजनं कुर्यात्।
प्रार्थना-
ॐ ओजो: असि ओजो: महि: देहि,
तेजो असि तेजो महि देहि,
बलं असि बलं महि देहि,
सहो असि सहो महि देहि ॥
समर्पण –
अनेन पूजने श्रीसूर्यभद्र मंडल
देवता प्रियतां न मम् ॥
।। इति सूर्यभद्रमंडलदेवता पूजनम् ।।
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