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गणेश भद्र मंडल
इससे पूर्व आपने डी॰पी॰कर्मकाण्ड भाग १७ में गौरी तिलक मण्डल विधि पढ़ा। अब इस डी॰पी॰कर्मकाण्ड भाग १८ में आप गणेश
भद्र मंडल के विषय में पढ़ेंगे।
डी॰पी॰कर्मकाण्ड भाग १८- गणेश भद्र मण्डल
गणेश भद्र मण्डल एक विशेष वैदिक
चक्र और एक प्राचीन वैदिक वेदी मण्डल है, जिसका
प्रयोग किसी भी शुभ अवसर, यज्ञादिक, देव
प्रतिष्ठा, मांगलिक पूजा महोत्सव, अनुष्ठान
इत्यादि देव कार्यों में विशेषकर गणेश
पूजन इसका सर्वविध उपयोग किया जाता है। इस चक्र को एक आधार पर सफेद कपड़े के ऊपर १६*१६
के २५६ खण्ड़ों में विभाजित किया गया है । इन खण्ड़ों के बाहरी परीधि पर सम,
रज और तम के प्रतीक के रूप में क्रमश: सफेद, लाल
एवं काले रंग का घेरा लगाया गया है तथा अन्य खण्डों पर विभिन्न रंगों का प्रयोग किया
गया है । गणपतिभद्र मण्डल मंगलप्रद एवं कल्याणकारी माना जाता है। इससे साधक के
अभीष्ट की सिद्धि होती है।
गणेश अथवा गणपति भद्र मण्डल
अथ गणपतिभद्रमण्डलदेवता स्थापनम्
गणपति भद्रमण्डल देवता आवाहन २ तरह
से है ।
(१) सर्वतोभद्रमण्डल देवताओं की
तरह आवाहन । (२) तांत्रिक क्रमेण भद्रमण्डल देवता आवाहन । इसमें गणपति के ही विशेष
अंग देवताओं को आवाहन है जो मुख्य है। अतः दोनों ही विधियों से देवता स्थापन क्रम
दिया जा रहा है। यथा रुचि आवाहन करें।
गणपतिभद्रमण्डल
(1) गणपति
भद्रमण्डले सर्वतोभद्र विधिनाऽवाहनम्
1. मध्ये -
उद्यद्दिनेश्वर रुचिं निजहस्त पद्म:
पाशांकुशाभय वरादन्दधतं गजास्यम् ।
रक्तांबरं सकलदुःखहर गणेशं
ध्यायेत्प्रसन्नामखिलाभरणाभिरामम् ॥
ततो “गणानानां त्वां” मंत्रेण गणपतिं आवाह्य ।
भो गणपति इहागच्छ इहतिष्ठ प्रसन्नो
भव ।
दिक्पालस्थापनम्-
परिधि समीप वापी व श्वेत खण्डेंदुओं में ।
२. ॐ भूर्भुवः स्वः सोमाय नमः । सोम
इहागच्छ इहतिष्ठ ।। (उत्तरे)
३. ॐ भूर्भुवः स्वः ईशानाय नमः ।
ईशान इहागच्छ इहतिष्ठ ।। (ईशान)
४. ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्राय नमः ।
इन्द्र इहागच्छ इहतिष्ठ ।। (पूर्वे)
५. ॐ भूर्भुवः स्वः अग्नेय नमः ।
अग्नि इहागच्छ इहतिष्ठ ।। (आग्नेय)
६. ॐ भूर्भुवः स्वः यमाय नमः । यम
इहागच्छ इहतिष्ठ ।। (दक्षिणे)
७. ॐ भूर्भुवः स्वः नैर्ऋत्यये नमः
। निर्ऋते इहागच्छ इहतिष्ठ।। (नैऋत्ये)
८. ॐ भूर्भुवः स्वः वरुणाय नमः ।
वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ ।। (पश्चिम)
९. ॐ भूर्भुवः स्वः वायवे नमः ।
वायो इहागच्छ इहतिष्ठ ।। (वायवे )
भद्रमण्डले स्थापनम्
(रक्तपुंजे)
१०. वायुसोमयोर्मध्ये –
ॐ भू. अष्ट वसुभ्यो नमः अष्टवसुं आवाहयामि स्थापयामि ।।
११. सोमईशानयोर्मध्ये- ॐ भू. एकादशरुद्रेभ्यो नमः एकदश रुद्र आवाहयामि स्थापयामि ।॥
१२. ईशानपूर्वयोर्मध्ये- ॐ भू. द्वादश आदित्येभ्यो नमः द्वादश आदित्य इहागच्छ इहतिष्ठ ।।
१३. इन्द्राग्न्योर्मध्ये- ॐ भू.
द्वादश अश्विनाभ्यां नमः अश्विनौ इहागच्छ इहतिष्ठ ।
१४. अग्नियमयोर्मध्ये- ॐ भू.
विश्वेभ्यो देवेभ्यो पितृभ्यो नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
१५. यमनिर्ऋतिमध्ये- ॐ भू.
सप्तयक्षेभ्यो नमः । सप्तयक्षान् आवाहयामि स्थापयामि ॥
१६. निर्ऋतिवरुणयोर्मध्ये-
ॐ भू. भूतनागेभ्यो नमः । भूतनाग आवाहयामि स्थापयामि ॥
१७. वरुणवायय्वोर्मध्ये - ॐ भू.
गंधर्वप्सरेभ्यो नमः । गंधर्वप्सरसः आवाहयामि स्थापयामि ॥
वाप्याम् (श्वेत भद्रे)
उत्तर पूर्वादि क्रमेण
१८. उत्तरे- ॐ भू. प्रमोदाय नमः प्रमोदं आवाहयामि स्थापयामि
॥
१९. पूर्वे- ॐ भू. सुमुखाय नमः
सुमुखं आवाहयामि स्थापयामि ॥
२०. दक्षिणे- ॐ भू. दुर्मुखाय नमः
दुर्मुखं आवाहयामि स्थापयामि ॥
२१.पश्चिमे- ॐ भू. विघ्ननाशाय नमः
विघ्ननाश आवाहयामि स्थापयामि ॥
वल्ल्याम् ईशान आग्नेयादि
क्रमेण -
२२. ब्रह्म ईशानमध्ये- ॐ भू.
दक्षादि सप्तगणेभ्यो नमः दक्षादिगणान् आवाहयामि स्थापयामि ॥
२३. ब्रह्माग्नियोर्मध्ये- ॐ भू.
स्वधायै नमः स्वधां आवाहयामि स्थापयामि ॥
२४. ब्रह्मनित्योर्मध्ये- ॐ भू.
सूर्याय नमः सूर्य आवाहयामि स्थापयामि ॥
२५. ब्रह्मवायव्योर्मध्ये- ॐ भू.
मरुद्धयो नमः मरुतः आवाहयामि स्थापयामि ॥
२६. कर्णिका वापीयोर्मध्ये उत्तरे-
ॐ भू. स्कंदाय नमः स्कंद आवाहयामि स्थापयामि ॥
२७. स्कंदस्योत्तरे - ॐ भू. नंदिने
नमः नंदी आवाहयामि स्थापयामि ॥
२८. नंदीस्योत्तरे - ॐ भू.
शूलमहाकालाभ्यां नमः शूलमहाकाल आवाहयामि स्थापयामि ॥
२९. ब्रह्मइंद्रयोर्मध्ये वाप्याम्-
ॐ भू. दुर्गायै नमः दुर्गा आवाहयामि स्थापयामि ॥
३०. दुर्गा पूर्वे- ॐ भू. विष्णवे
नमः विष्णुं आवाहयामि स्थापयामि ॥
३१. ब्रह्मयमयोर्मध्ये- ॐ भू.
मृत्युरोगाभ्यां नमः मृत्युरोगान् आवाहयामि स्थापयामि ॥
३२. ब्रह्मणपादमूले- ॐ भू. पृथिव्यै
नमः पृथ्वी आवाहयामि स्थापयामि ॥
३३. तत्रैव पृथिव्योत्तरतः- ॐ भू.
गंगादिसरितभ्यो नमः गंगादिसप्तसरित: आवाहयामि स्थापयामि ॥
३४. तत्रैव गङ्गाद्युतरे- ॐ भू.
सप्तसागरेभ्यो नमः सप्तसागरान् आवाहयामि स्थापयामि ॥
३५. ब्रह्मणः मस्तके कर्णिकोपरि- ॐ
भू. मेरवे नमः मेरुं आवाहयामि स्थापयामि ॥
सत्वपरिधौ उतर, ईशान, क्रमेण वायव्यपर्यन्त
आयुधानि स्थापयेत् ।
३६. ॐ भू. गदायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
३७. ॐ भू. त्रिशूलाय नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
३८. ॐ भू. वज्राय नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
३९. ॐ भू. शक्त्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
४०. ॐ भू. दण्डाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
४१. ॐ भू. खड्गाय नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
४२. ॐ भू. पाशाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
४३. ॐ भू. अंकुशाय नमः अंकुशं आवाहयामि
स्थापयामि ॥
रजपरिधौ उत्तर ईशान
क्रमेण वायव्य पर्यन्त ऋषीन् आवाह्य।
४४. ॐ भू. गौतमाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
४५. ॐ भू. भारद्वाजाय नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
४६. ॐ भू. विश्वामित्राय नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
४७. ॐ भू. कश्यपाय नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
४८. ॐ भू. जमदग्नये नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
४९. ॐ भू. वसिष्ठाय नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
५०. ॐ भू. अत्र्यै नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
५१. ॐ भू. अरुन्धत्यै नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
तमः परिधौ पूर्वादिक्रमेण
ईशान पर्यन्त मातृका आवाह्य।
५२. ॐ भू. ऐन्द्र्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
५३. ॐ भू. कौमार्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
५४. ॐ भू. बाये नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
५५. ॐ भू. वारायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
५६. ॐ भू. चामुण्डायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
५७. ॐ भू. वैष्णव्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
५८. ॐ भू. माहेश्वर्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
५९. ॐ भू. वैनाक्यै नमः वैनाकीं आवाहयामि
स्थापयामि ॥
ततो मनोजूति मंत्रेण सुप्रतिष्ठा
कुर्यात् एवं षोडशोपचारै संपूज्य पुष्पांजलिं मादाय ।
प्रार्थयेत् -
गलद्दान गण्डं महाहस्ति तुण्डं
सुपर्व प्रचण्डं धृतार्द्धेन्दु
खण्डम् ।
करास्फोटि ताण्डं महाहस्त दण्डं
हृताढ्यारि मुण्डं भजे वक्रतुण्डम्
॥ १ ॥
स्मरणास्तव शंभु विध्यजेद्विन
शक्रादि सुराः कृतार्थताम् ।
गणपाऽऽपुरद्याधभंजन-द्विपराजास्य
सदैव पाहिमाम् ॥२॥
शरणं भगवान्विनायकः शरणं मे सततं च
सिद्धि का ।
गणपति भद्रमण्डल देवता स्थापनम्
शरणं पुनरेवतावुभा शरणं नान्यदुपैमि
दैवतम् ॥३॥
अथ गणपतिभद्रमण्डले
तंत्रोक्तविधिना देवता स्थापनम्
इस विधि में गणपति के प्रधान
स्वरूपों का विशेष आवाहन है अतः इसका विशेष महत्व है।
१. गणपति भद्रमण्डले मध्ये गणानां
त्वां इति मंत्रेण गणपतिं आवाह्य भो वरद गणपतिं इहागच्छ इहतिष्ठ प्रसन्नो वरदो भव
।
सत्व परिधौ समीपे उत्तरारंभ वायव्य
पर्यन्त तत् पश्चात् मंडल मध्ये गणपति पीठ शक्तिं आवाह्य ।
२. पूर्वे परिधि समीपे - ॐ भू.
तीव्रायै नमः तीव्रां आवाहयामि स्थापयामि ॥
३. आग्नेय खण्डेदौ समीपे - ॐ भू.
चालिन्यै नमः चालिनीं आवाहयामि स्थापयामि ॥
४. दक्षिणे - ॐ भू. नंदायै नमः नंदा
आवाहयामि स्थापयामि ॥
५. नैऋत्यां खण्डेदों- ॐ भू.
भोगदायै नमः भोगदा आवाहयामि स्थापयामि ॥
६. पश्चिमे परिधि समीपे - ॐ भू.
कामरूपिण्यै नमः कामरूपिणीं आवाहयामि स्थापयामि ॥
७. वायवे खण्डेदौ समीपे - ॐ भू.
उग्रायै नमः उग्रां आवाहयामि स्थापयामि ॥
८. उत्तरे परिधि समिपै - ॐ भू.
तेजोवत्यै नमः तेजवती आवाहयामि स्थापयामि ॥
९. ईशान खण्डेदौ समीपे - ॐ भू.
सत्यायै नमः सत्यां आवाहयामि स्थापयामि ॥
१०. मण्डल मध्ये - ॐ भू.
विघ्ननाशिन्यै नमः विघ्ननाशिनीं आवाहयामि स्थापयामि ॥
अष्टभद्रे (रक्त पुंजेषु)
गणपति शक्ति आवाह्य ।
११. ईशान पूर्व मध्ये - ॐ भू.
विद्यायै नमः विद्यां आवाहयामि स्थापयामि ॥
१२. पूर्वआग्नेय मध्ये - ॐ भू.
विधात्रे नमः विधात्री आवाहयामि स्थापयामि ॥
१३. आग्नेय दक्षिणमध्ये - ॐ भू.
भोगदायै नमः भोगदा आवाहयामि स्थापयामि ॥
१४. दक्षिण निर्ऋति मध्ये - ॐ भू.
विघ्नघातिन्यै नमः विघ्नघातिनीं आवाहयामि स्थापयामि ॥
१५. निर्ऋति पश्चिममध्ये - ॐ भू.
निधिप्रदायै नमः निधिप्रदां आवाहयामि स्थापयामि ॥
१६. पश्चिम वायोवोर्मध्ये ॐ भू.
पापघ्नै नमः पापघ्नीं आवाहयामि स्थापयामि ॥
१७. वायुसोमयोर्मध्ये - ॐ भू.
पुण्याय नमः पुण्यां आवाहयामि स्थापयामि ॥
१८. सोमईशानयोर्मध्ये - ॐ भू.
शशिप्रायै नमः शशिप्रभां आवाहयामि स्थापयामि ॥
सत्त्वपरिधौ समीपे -
दशगणपति स्वरूपं आवाह्य
१९. पूर्वे वाप्याम् - ॐ भू. एक
वक्रतुण्डाय नमः वक्रतुंड आवाहयामि स्थापयामि ॥
२०. आग्नेयां खंडेदों - ॐ भू. एक
दंष्ट्राय नमः एकदंष्ट्रं आवाहयामि स्थापयामि ॥
२१. दक्षिणे वाप्याम् - ॐ भू.
लंबादराय नमः लंबोदरं आवाहयामि स्थापयामि ॥
२२. निर्ऋत्यां खण्डेदों- ॐ भू.
विकटाय नमः विकट आवाहयामि स्थापयामि ॥
२३. पश्चिमे वाप्याम् - ॐ भू.
धूम्रवर्णाय नमः धूम्रवर्ण आवाहयामि स्थापयामि ॥
२४. वायव्यां खण्डेदों- ॐ भू.
विघ्नराजाय नमः विघ्नराजं आवाहयामि स्थापयामि ॥
२५. उतरे वापी समीपे ॐ भू. गजाननाय
नमः गजाननं आवाहयामि स्थापयामि ॥
२६. ईशान खण्डॆदौ- ॐ भू. विनायकाय
नमः विनायक आवाहयामि स्थापयामि ॥
२७. प्राची ईशानमध्ये- ॐ भू. गणपतये
नमः गणपति आवाहयामि स्थापयामि ॥
२८. पश्चिम निऋति मध्ये - ॐ भू.
हस्तिदंताय नमः हस्तिदंत आवाहयामि स्थापयामि ॥
ईशानकोणसमारभ्यवायव्य
पर्यन्त कृष्णश्रृंखलायेषु
२९. ईशाने कृष्ण श्रृंखलां - ॐ भू.
विष्णवे नमः विष्णुं आवाहयामि स्थापयामि ॥
३०. आग्नेय कृष्ण श्रृंखलां - ॐ भू.
शिवाय नमः शिवं आवाहयामि स्थापयामि ॥
३१. ऋये कृष्ण श्रृंखलां - ॐ भू.
सूर्याय नमः सूर्य आवाहयामि स्थापयामि ॥
३२. वायव्ये कृष्ण श्रृंखलां - ॐ
भू. देव्यै नमः देवी आ. स्था. ।।
ईशान, आग्नेय, निर्ऋति, वायव्य कोणे नील वल्ल्याम् प्रतिकोणेषु द्वौ द्वौ मातृकां स्थापयेत् ।
ईशानकोणे -
३३. ॐ भूर्भुव: स्व: ब्राह्म्यै नमः
ब्राह्मीं आवाहयामि स्थापयामि ॥
३४. ॐ भूर्भुवः स्वः माहेश्वर्यै
नमः माहेश्वरी आवाहयामि स्थापयामि ॥
आग्नेयकोणे -
३५. ॐ भूर्भुवः स्वः कौमार्यै नमः
कौमारी आवाहयामि स्थापयामि ॥
३६. ॐ भूर्भुवः स्वः वैष्णव्यै नमः
वैष्णवीं आवाहयामि स्थापयामि ॥
नैऋतिकोणे -
३७. ॐ भूर्भुवः स्वः वारायै नमः
वाराहीं आवाहयामि स्थापयामि ॥
३८. ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्राण्यै
नमः इंद्राणी आवाहयामि स्थापयामि ॥
वायव्यकोणे -
३९. ॐ भूर्भुवः स्वः चामुण्डायै नमः
चामुण्डा आवाहयामि स्थापयामि ॥
४०. ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्म्यै
नमः महालक्ष्मी आवाहयामि स्थापयामि ॥
श्वेतभद्रे वाप्यां
पूर्वादि क्रमेण -
४१. पूर्ववाप्याम्- ॐ भूर्भुवः स्वः
सुमुखाय नमः सुमुखं आवाहयामि स्थापयामि ॥
४२. दक्षिण वाप्याम् - ॐ भूर्भुवः
स्वः दुर्मुखाय नमः दुर्मुख आवाहयामि स्थापयामि ॥
४३. पश्चिम वाप्याम् ॐ भूर्भुवः
स्वः विघ्ननाशाय नमः विघ्ननाश आवाहयामि स्थापयामि ॥
४४. उत्तर वाप्याम् - ॐ भूर्भुवः
स्वः प्रमोदाय नमः प्रमोद आवाहयामि स्थापयामि ॥
ततौ सत्त्व परिधौ दिक्पाल तथा रजः
परिधौ आयुध एवं तमः परिधौ अष्टभैरवं आवाहयेत् ।
सत्त्वपरिधौ -
४५. पूर्वे - इंद्राय नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
४६. आग्नेयां - अग्नये नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
४७. दक्षिणे- यमाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
४८. नैऋत्ये –
नैऋत्ये नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
४९. पश्चिमे - वरुणाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
५०. वायव्यां - वायवे नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
५१. उत्तरे - कुबेराय नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
रजपरिधौः –
५२. पूर्वे वज्राय नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
५३. आग्नेयां - शक्त्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
५४. दक्षिणे - दण्डाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
५५. नैऋत्यां- खड्गाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
५६. पश्चिमे- पाशाय नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
५७. वायव्यां - अंकुशाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
५८. उत्तरे - गदाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
५९. ईशाने - त्रिशूलाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
तमः परिधौ पूवौदिक्रमेण
अष्टभैरवं आवाहयेत् ।
६०. पूर्वे- ॐ भू. असितांग भैरवाय
नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
६१. आग्नेये –
ॐ भू. रुरुवभैरवाय नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
६२. दक्षिणे - ॐ भू. चण्डभैरवाय नमः
आवाहयामि स्थापयामि ॥
६३. नैऋत्यां - ॐ भू. क्रोधभैरवाय
नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
६४. पश्चिमे –
ॐ भू. उन्मत्त भैरवाय नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
६५. वायव्यां - ॐ भू. कापालि भैरवाय
नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
६६. उत्तरे - ॐ भू. भीषणभैरवाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि ॥
६७. ईशाने - ॐ भू.. संहार भैरवाय
नमः आवाहयामि स्थापयामि ॥
प्रतिष्ठापना -
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य
बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु ।
विश्वे
देवास इह मादयन्तामो३म्प्रतिष्ठ ॥
ॐ गणपतिभद्रमण्डलावाहितदेवताः
सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।
अब मण्डल में आवाहित देवों का
लब्धोपचार पूजन करे।
समर्पण - कृतेन अनेन पूजनेन गणपतिभद्रमण्डलावाहितदेवताः
प्रीयन्तां न मम ।
।। इति गणपतिभद्रमण्डल पूजनम् ।।
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