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कर्मकाण्ड

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त्रैलोक्य मंगल सूर्य कवच

त्रैलोक्य मंगल सूर्य कवच

श्री ब्रह्मयामल में (यामल-तन्त्र ग्रन्थ) वर्णित तीनों लोकों का कल्याण करने वाला भगवान भास्कर को प्रसन्न करने के लिए त्रैलोक्य मंगल सूर्य कवच का सूर्योदय से पूर्व नित्य पाठ करने से मन में को शांति मिलती है। मनोबल एवं आत्मविश्वास बढ़ता और डिप्रेशन दूर होता है।त्रैलोक्य मंगल सूर्य कवच

त्रैलोक्यमङ्गल सूर्यकवचम्

Trailokya mangal Surya kavach

॥ अथ त्रैलोक्य मंगल सूर्य कवचम् ॥

श्रीसूर्य उवाच।

साम्ब साम्ब महाबाहो शृणु मे कवचं शुभम् ।

त्रैलोक्यमङ्गलं नाम कवचं परमाद्भूतम् ॥१ ॥

भगवान सूर्य ने कहा:- हे महाबली साम्ब! मेरा शुभ कवच सुनो। यह कवच तीनों लोकों का हित करने वाला बहुत अद्भुत है।

यज्ज्ञात्वा मंत्रवित्सम्यक् फलमाप्नोति निश्चितम् ।

यद्धृत्वा च महादेवो गणानामधिपो ऽभवत् ॥२॥

भली प्रकार से जो मन्त्र का ज्ञाता होता है, वह निश्चय ही इसका श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त करता है। और जिसे जान कर महादेव भी अपने गणों के अधिपति हो गये हैं।

पाठनाद् धारणाद् विष्णुः सर्वेषां पालकः सदा ।

एवमिन्द्रादयः सर्वे सर्वैश्वर्यमवाप्नुयुः ॥३॥

इस श्री सूर्य कवच को पढ़ने से और धारण करने से श्री विष्णु भगवान सदा के लिए सबका पालन करने लगे। इसी प्रकार इन्द्र आदि सभी देवों ने सब प्रकार का ऐश्वर्य प्राप्त किया।

त्रैलोक्यमंगल सूर्य कवचम्

विनियोगः- हाथों में जल लेकर विनियोग करें

ॐ अस्य श्रीसूर्य कवचस्य श्रीब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीसूर्य देवता, आरोग्य यशो मोक्षार्थे पाठे विनियोगः ।

इस सूर्य कवच के "ब्रह्मा" ऋषि, "अनुष्टुप" छन्द कहा गया है और सभी देवता जिसे नमस्कार करते हैं, वे सूर्य ही इस कवच के देवता हैं। यश, आरोग्य और मोक्ष में यह विनियोग है। (हथेली का जल अपने समक्ष धरती पर छोड़ दें)

ऋष्यादिन्यास: -

श्रीब्रह्मा ऋषये नम: शिरसि ।

अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे ।

श्रीसूर्य देवतायै नमः हृदि ।

आरोग्य यश मोक्षार्थ्ये पाठे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।

त्रैलोक्य मङ्गल सूर्यकवच

प्रणवो मे शिरः पातु घृणिर्मे पातु भालकम् ।

सूर्य्योऽव्यान्नयन द्वंदमादित्यः कर्णयुग्मकम् ॥१॥

ओम प्रणव मेरे सिर की रक्षा करें, घृणि मेरे माथे की रक्षा करें, भगवान सूर्य मेरी दोनों आँखों की रक्षा करें, आदित्य मेरे दोनों कानों की रक्षा करें।

अष्टाक्षरो महामंत्र: सर्वाभीष्टफलप्रदः ।

ह्रीं बीजं मे शिखां पातु हृदये भुवनेश्वरः ॥२ ॥

आठ अक्षरों वाला मंत्र सभी इच्छाओं को पूरा करता है। ह्रीं बीज मंत्र मेरे शिखा की रक्षा करें, समस्त लोकों की देवी मेरे हृदय की रक्षा करें।

चन्द्रबीजं विसर्गाढ्यं पातु मे गुह्यदेशकम् ।

त्र्यक्षरोऽसौ महामंत्र सर्वतंत्रेषु गोपितः ॥३॥

चन्द्रबिम्ब अपनी सम्पूर्ण कलाओं के साथ हमारे (गुह्य) शरीर के गुप्त भाग की रक्षा करें। सभी-तन्त्रों में त्र्यक्षर का यह महामन्त्र बहुत गुप्त है।

शिवो वह्नि समायुक्तो वामाक्षि बिन्दु भूषितः ।

एकाक्षरो महामंत्र श्रीसूर्यस्य प्रकीर्तितः ॥४ ॥

यह बाईं आँख-के बिन्दु की तरह शोभित होने वाला (वह्नि) ज्ञान के प्रकाश से युक्त सबका (शिव) कल्याण करने वाला है। भगवान् श्रीसूर्य का यह एक अक्षरवाला महामन्त्र कहा गया है।

गुह्याद् गुह्यतरो मंत्रो वाञ्छाचिंतामणिः स्मृतः ।

शीर्षादि पादपर्यन्तं सदापातु मनूत्तमम् ॥५ ॥

यह महामन्त्र गुप्त से भी अधिक गुप्त है। इच्छाओं को पूर्ण करने वाला चिन्तामणि के रूप में यह महामन्त्र स्मरण किया जाता है। मन को सदा पवित्र रखने वाला यह मन्त्र शिर से लेकर पैर तक सदैव मेरी रक्षा करें ।

इति ते कथितं दिव्यं त्रिषु लोकेषु दुर्लभम् ।

श्रीप्रदं कांतिदं नित्यं धनारोग्यविवर्धनम् ॥६॥

(श्रीसूर्य ने साम्ब से कहा मैंने) तुम्हें तीनों लोको में यह दुर्लभ और दिव्य मन्त्र बताया है। यह महामन्त्र नित्य तथा यह धन प्रदान करने वाला, सर्वदा तेजस्वी रहने वाला तथा धन और आरोग्य बढ़ाने वाला है।

त्रैलोक्य मंगल सूर्य कवच महात्म्य

कुष्ठादिरोगशमनं महाव्याधि विनाशनम् ।

त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यमरोगी बलवान्भवेत् ॥७॥

इससे कुष्ठादि रोग दूर हो जाता है तथा सभी बड़े-बड़े रोगों; को नष्ट हो जाते हैं। जो तीनों सन्ध्याओं (प्रातः, दोपहर, सायंकाल) को नित्य इसका पाठ करने से मनुष्य रोगों से मुक्ति प्राप्त कर बलवान बन जाता है।

बहुना किमिहोक्तेन यद्यन्मनसि वर्तते ।

तत्तत्सर्व भवत्येव कवचस्य च धारणात् ॥८ ॥

यहाँ इस विषय में अधिक कहने से क्या? इस कवच को धारण करने से मन में जो-जो कामनाएँ हों, वे सभी पूर्ण हो जाती हैं।

भूतप्रेत पिशाचाश्च यक्ष गंधर्व राक्षसाः ।

ब्रह्म राक्षस वेताला नैव द्रष्टुमपि क्षमाः ॥ ९ ॥

दूरादेव पलायंते तस्य संकीर्तनादपि ।

भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व, राक्षस ब्रह्मराक्षस, वेताल आदि द्वारा सताने की कौन कहे, ये उसको देखने में भी समर्थ नहीं है। क्योंकि इस कवच को कह देने मात्र से ये सारे दुष्ट जीव दूर भाग जाते हैं।

भूर्जपत्रे समालिख्य रोचनागुरु कुंकुमैः ॥१० ॥

रविवारे च संक्रांत्यां सप्तम्यां च विशेषतः ।

धारयेत् साधक श्रेष्ठस्त्रैलोक्यविजयी भवेत् ॥ ११ ॥

रविवार, संक्रान्ति और विशेषकर सप्तमी (किसी भी पक्ष की) को भोजपत्र पर रचना,सुगन्धि चन्दन और रोली से इस कवच को लिखकर धारण करनेवाला साधक श्रेष्ठ तीनों लोकों में विजयी होता है।

त्रिलोहमध्यगं कृत्वा धारयेद् दक्षिणेभुजे ।

शिखायामथवा कंठे सोऽपि सूर्य्यो न संशयः ॥१२॥

(त्रिलोह) लोहा, तांबा और चाँदी के ताबीज में बन्द करके दाहिने हाथ में, शिखा अथवा कण्ठ में या गले में धारण किया जाए तो वह निः संदेह सूर्य के समान या भगवान सूर्य का बड़ा प्रिय होता है।

इति ते कथितं साम्ब त्रैलोक्ये मङ्गलाधिपम् ।

कवचं दुर्लभं लोके तव स्नेहात्प्रकाशितम् ॥ १३ ॥

हे साम्ब। तुम्हारे स्नेहवश संसार में मैंने यह दुर्लभ त्रैलोक्य मङ्गल नामक़ श्री सूर्यकवच कहा ।

अज्ञात्वा कवचं दिव्यं यो जपेत्सूर्यमुत्तमम् ।

सिद्धिर्न जायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि ॥ १४ ॥

इस अज्ञात दिव्य कवच को जाने बिना, यदि कोई महान सूर्य भगवान के नाम का जप करता है, तो उसे करोड़ों युगों तक भी कोई (सिद्धि) शक्ति नहीं मिलती है।

॥ इति ब्रह्मयामले त्रैलोक्यमंगलं नाम सूर्य कवचं समाप्तम् ॥

इस प्रकार श्री ब्रह्मयामल में त्रैलोक्य मंगल नाम का श्री सूर्यकवच सम्पूर्ण हुआ।

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