रुद्र कवच

रुद्र कवच

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल ८ में वर्णित इस रुद्र कवच का पाठ करने से सभी रोगों व पापों का नाश होता है तथा सुख एवं आरोग्यता प्राप्त होती है।

रुद्रकवचम्

रुद्रकवचम्

Rudra kavach

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल ८ - रुद्रकवच

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज अष्टम पटल

रुद्रकवच स्तोत्र

क्रियोड्डीशमहातन्त्रराजः

अथाष्टमः पटल:

रुद्रकवचम्

भैरव उवाच

वक्ष्यामि देवि! कवचं मङ्गलं प्राणरक्षकम् ।

अहोरात्रं महादेवरक्षार्थं देवमण्डितम् ।।१।।

भैरव ने कहा- हे देवि! मंगलप्रद प्राणरक्षक रुद्रकवच को अब मैं कहता हूँ। यह कवच दिन-रात रक्षा करने में समर्थ है। यह श्री महादेव की रक्षा हेतु देववृन्द से मण्डित है।

अस्य श्रीमहादेवकवचस्य वामदेव ऋषिः पंक्तिश्छन्द सौः बीजं रुद्राः देवता सर्वार्थसाधने विनियोगः ।

इस कवच के ऋषि वामदेव, छन्द पंक्ति, बीज: सौः एवं देवता रुद्र हैं ॥१॥

रुद्रो मामग्रतः पातु पृष्ठतः पातु शङ्करः ।

कपर्दी दक्षिणे पातु वामपार्श्वे तथा हरः ।। २।।

शिवः शिरसि मां पातु ललाटे नीललोहितः ।

नेत्रं मे त्र्यम्बकः पातु बाहुयुग्मं महेश्वरः ।।३।।

हृदये च महादेव ईश्वरश्च तथोदरे ।

नाभौ कुक्षौ कटिस्थाने पादौ पातु महेश्वरः । । ४ । ।

मेरे अग्रभाग में रुद्रदेव रक्षा करें। पृष्ठ भाग में श्रीशंकर, दक्षिण भाग में कपर्दी, वामभाग में हर, शिव मेरे शिर की, नीललोहित ललाट की एवं नेत्रों की त्रयम्बक रक्षा करें। महेश्वर दोनों भुजाओं की, हृदय की महादेव, उदर की ईश्वर तथा नाभि कुक्षि-कटि एवं पैर की रक्षा महेश्वर करें।

सर्वं रक्षतु भूतेशः सर्वगात्राणि मे हरः ।

पाशं शूलञ्च दिव्यास्त्रं खड्गं वज्रं तथैव च ॥५॥

नमस्करोमि भूतेश रक्ष मां जगदीश्वर ।

पापेभ्यो नरकेभ्यश्च त्राहि मां भक्तवत्सल ।।६।।

जन्ममृत्युजराव्याधिकामक्रोधादपि प्रभो ।

लोभमोहान्महादेव रक्ष मां त्रिदशेश्वर ।।७।।

त्वं गतिस्त्वं मतिश्चैव त्वं भूमिस्त्वं परायणः ।

कायेन मनसा वाचा त्वयि भक्तिर्दृढ़ास्तु मे ।।८।।

पाश, शूल, खड्ग, वज्र और दिव्यास्त्र धारण करनेवाले भगवान भूतेश एवं हर मेरे सभी अंगों की रक्षा करें। हे भूतेश! आपको नमस्कार है। हे जगदीश्वर ! आप मेरी रक्षा करें। हे भक्तवत्सल! पाप एवं नरक से मेरी सदा रक्षा करें। हे प्रभो! हे त्रिदशेश्वर महादेव ! जन्म-मृत्यु, बुढ़ापा, रोग, काम, क्रोध, लोह एवं मोह से आप मेरी रक्षा करें। आप ही मेरी गति हैं; अतः हे प्रभो! शरीर-मन एवं वचन द्वारा आपमें मेरी व्यक्ति दृढ़ हो।

रुद्रकवच फलश्रुति:

इत्येतद्रुद्रकवचं पाठनात्पापनाशनम् ।

महादेवप्रसादेन भैरवेन च कीर्तितम् ।।९।।

इस रुद्रकवच का पाठ करने से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। महादेव की प्रसन्नता के लिये यह कवच भैरव ने कहा है।

न तस्य पापं देहेषु न भयं तस्य विद्यते ।

प्राप्नोति सुखमारोग्यं पुत्रमायुः प्रवर्द्धनम् ।।१०।।

इसके पाठ से शरीर पापरहित हो जाता है, सुख एवं आरोग्यता प्राप्त होती है तथा पुत्र की आयु बढ़ती है।

पुत्रार्थी लभते पुत्रान्धनार्थी धनमाप्नुयात् ।

विद्यार्थी लभते विद्यां मोक्षार्थी मोक्षमेव च ।। ११ ।।

इसके पाठ से पुत्रार्थी को पुत्र, धनार्थी को धन, विद्यार्थी को विद्या एवं मोक्षार्थी को मोक्ष प्राप्त होता है।

व्याधितो मुच्यते रोगाद्वद्धो मुच्येत बन्धनात् ।

ब्रह्महत्यादि पापं च पठनादेव नश्यति ।।१२।।

रोगी को रोग से एवं बन्धक को बन्धन से मुक्ति मिल जाती है। इस कवच के पाठ से ब्रह्महत्यादि पाप भी नष्ट हो जाते हैं ॥९-१२ ॥

इति क्रियोड्डीशे महातन्त्रराजे देवीश्वर- संवादे रुद्रकवचम् अष्टमः पटलः ।।८।।

क्रियोड्डीश महातन्त्रराज में देवी-ईश्वरसंवादात्मक रुद्र कवच का आठवाँ पटल पूर्ण हुआ ।।८।।

आगे जारी...... क्रियोड्डीश महातन्त्रराज पटल 9

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