लिङ्ग स्तव
इस लिङ्ग स्तव का एकाग्रचित्त होकर पाठ
करने से निर्मलाभोग! हे समस्त व्याधियों- दुःखों का नाश होता है तथा सर्वार्थ
सिद्धि प्राप्त होता है।
लिङ्ग स्तवन
Linga stav
लिङ्गस्तव:
लिङ्गस्तवन स्तोत्र
लिंगस्तव
सर्वज्ञज्ञानविज्ञानप्रदानैकमहात्मने
।
नमस्ते देवदेवेश सर्वभूतहिते रत ।।
१४ ।।
हे सर्वज्ञ ! हे सर्वदेवदेवेश ! हे
सर्वभूतहिते रत! ज्ञान-विज्ञान प्रदान करने वाले! आपको नमस्कार है।
अनन्तकान्तिसम्पन्न अनन्तासनसंस्थित
।
अनन्तकान्तिसम्भोग परमेश नमोऽस्तु
ते ।। १५ ।।
हे अनन्तकान्तिसम्पन्न! हे
अनन्तासनसंस्थित! हे अनन्तकान्तिसम्भोग! हे परमेश्वर! आपको नमस्कार है।
परापरपरातीत उत्पत्तिस्थितिकारक ।
सर्वार्थसाधनोपाय विश्वेश्वर
नमोऽस्तु ते ।। १६ ।।
हे परातीत! हे उत्पत्तिस्थितिकारक !
हे सर्वार्थ साधनों के उपाय ! हे विश्वेश्वर ! आपको नमस्कार है।
सर्वार्थनिर्मला भोग
सर्वव्याधिविनाशन ।
योगियोगी महायोगी योगीश्वर नमोऽस्तु
ते ।।१७।।
हे सर्वार्थ निर्मलाभोग! हे समस्त
व्याधियों के विनाशक! योगियों के भी योगी हे महायोगी ! हे योगीश्वर ! आपको नमस्कार
है।
कृत्वा लिङ्गप्रतिष्ठाच ध्यात्वा
देवं सदाशिवम् ।
पूजयित्वा विधानेन स्तवपाठमुदीरयेत्
।। १८ ।।
इस प्रकार लिङ्ग की प्रतिष्ठा एवं
सदाशिव का ध्यान कर विधिविधान से पूजन कर स्तव का पाठ करना चाहिये।
लिङ्गस्तवं महापुण्यं यः शृणोति सदा
नरः ।
नोत्पद्यते च संसारे स्थानं
प्राप्नोति शाश्वतम् ।।१९।।
यह लिङ्गस्तव महापुण्य-प्रदायक है।
जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर इस स्तव का पाठ करते हैं,
उनको इस संसार के दुःख नहीं भोगने पड़ते और वे शाश्वत स्थान को
प्राप्त होते हैं।
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन शृणुयाच्च
सुसंस्तवम् ।
पापकर्ता कलेर्मुक्तः प्राप्नोति परमं
पदम् ।।२०।।
इसलिये सभी प्रकार से प्रयत्न करके
इस स्तव का पाठ व श्रवण करना चाहिए। इसके पाठ मात्र से ही महापापी व्यक्ति भी
सम्पूर्ण दुःखों से मुक्त होकर परम पद को प्राप्त कर लेता है। । १४ - २० ।।
इति क्रियोड्डीशे महातन्त्रराजे लिङ्गस्तव: सप्तमः पटलः ।।७।।
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