तारा शतनाम स्तोत्र
स्वर्णमालातन्त्र और मुण्डमालातन्त्र के अष्टम पटल के श्लोक ४५-६३ में यह तारा तारणीशतनामस्तोत्र वर्णित है, जो समस्त सिद्धियों को देनेवाला है।
तारा तारणी शतनामस्तोत्रम्
श्री पार्वत्युवाच
शृणु देव ! जग्बन्धो! मद्वाक्यं
दृढ़ निश्चितम् ।
तव प्रासादाद् देवेश! श्रुतं
कालीरहस्यकम् ।
इदानीं श्रोतुमिच्छामि ताराया वद
साम्प्रतम् ।।१ ।।
श्री पार्वती ने कहा
- हे देव ! हे जगद्वन्धो ! दृढ़ निश्चित होकर मेरे वाक्य को सुने । हे देवेश !
आपके अनुग्रह से मैंने कालीरहस्य को सुना है । सम्प्रति तारा के रहस्य को
सुनने की इच्छा कर रही हूँ। सम्प्रति आप इसे बतावें ।
श्री शिव उवाच -
धन्यासि देवदेवेशि ! दुर्गे !
दुर्गार्त्तिनाशिनि ! ।
यं श्रुत्वा मोक्षमाप्नोति पठित्वा
नगनन्दिनि ! ॥ २ ॥
श्री शिव ने कहा
- हे देवदेवेशि ! हे दुर्गे ! हे दुर्गार्त्तिनाशिनि ! आप धन्य हैं । हे नगनन्दिनि
! जिस रहस्य-स्तोत्र का श्रवण कर एवं पाठ कर लोग मोक्ष लाभ करते हैं,
उसे सुनें ।
अथ श्री तारा शतनाम स्तोत्रम्
तारिणी तरला तन्वी तारा तरुणवल्लरी
।
तीररूपा तरी श्यामा तनुक्षीणपयोधरा
॥ १॥
तुरीया तरला तीव्रगमना नीलवाहिनी ।
उग्रतारा जया चण्डी श्रीमदेकजटाशिराः
॥ २॥
तरुणी शाम्भवीछिन्नभाला च
भद्रतारिणी ।
उग्रा चोग्रप्रभा नीला कृष्णा
नीलसरस्वती ॥ ३॥
द्वितीया शोभना नित्या नवीना
नित्यनूतना ।
चण्डिका विजयाराध्या देवी गगनवाहिनी
॥ ४॥
अट्टहास्या करालास्या चरास्या
दितिपूजिता ।
सगुणा सगुणाराध्या हरीन्द्रदेवपूजिता
॥ ५॥
रक्तप्रिया च रक्ताक्षी
रुधिरास्यविभूषिता ।
बलिप्रिया बलिरता दुर्गा बलवती बला
॥ ६॥
बलप्रिया बलरता बलरामप्रपूजिता ।
अर्धकेशेश्वरी केशा केशवासविभूषिता
॥ ७॥
पद्ममाला च पद्माक्षी कामाख्या
गिरिनन्दिनी ।
दक्षिणा चैव दक्षा च दक्षजा दक्षिणे
रता ॥ ८॥
वज्रपुष्पप्रिया रक्तप्रिया
कुसुमभूषिता ।
माहेश्वरी महादेवप्रिया
पञ्चविभूषिता ॥ ९ ॥
इडा च पिङ्गला चैव सुषुम्ना
प्राणरूपिणी ।
गान्धारी पञ्चमी पञ्चाननादि
परिपूजिता ॥ १०॥
तथ्यविद्या तथ्यरूपा
तथ्यमार्गानुसारिणी ।
तत्त्वप्रिया तत्त्वरूपा
तत्त्वज्ञानात्मिकाऽनघा ॥ ११॥
ताण्डवाचारसन्तुष्टा
ताण्डवप्रियकारिणी ।
तालदानरता क्रूरतापिनी तरणिप्रभा ॥
१२॥
त्रपायुक्ता त्रपामुक्ता तर्पिता
तृप्तिकारिणी ।
तारुण्यभावसन्तुष्टा
शक्तिर्भक्तानुरागिणी ॥ १३॥
शिवासक्ता शिवरतिः शिवभक्तिपरायणा ।
ताम्रद्युतिस्ताम्ररागा
ताम्रपात्रप्रभोजिनी ॥ १४॥
बलभद्रप्रेमरता बलिभुग्बलिकल्पिनी ।
रामरूपा रामशक्ती रामरूपानुकारिणी ॥
१५॥
तारा तारणी शतनामस्तोत्र भावार्थ
तारिणी,
तरला, तन्वी, तारा,
तरणवल्लरी (तरुणवल्लरी), तीव्ररूपा, तरा, त्यामा, तनुक्षीणा,
पयोधरा, तुरीया, तरला, तीव्रगमना,
नीलवाहिनी, उग्रतारा, जया,
चण्डी, श्रीमदेकजटा, शवा,
तरुणा, शाम्भवी, छिन्ना, भागा, भद्रतारिणी, उग्रा,
उग्रप्रभा, नीला, कृष्णा,
नीलसरस्वती, द्वितीया, शोभिनी, नित्या नवीना, नित्यनूतना, चण्डिका,
विजया, आराध्या, देवी,
गगनवाहिनी, अट्टहास्या, करालास्या, चतुरास्यादि पूजिता (ब्रह्मादि-पूजिता), रौद्रा,
रौद्रमयी, मूर्ति, विशोका,
शोकनाशिनी, शिवपूज्या, शिवाराध्या, शिवध्येया, सनातनी, ब्रह्मविद्या,
जगद्धात्री, निर्गुणा, गुण-पूजिता,
सगुणा, सगुणाराध्या, हरीन्द्रदेव-पूजिता,
रक्तप्रिया, रक्ताक्षी, रुधिर
एवं आसव के द्वारा भूषिता, बलिप्रिया, बलिरता, दुर्गा, बलवती, बला, बलप्रिया, बलरता, बलरामप्रपूजिता,
अर्द्धकेशेश्वरी, केशा, केशवेश-विभूषिता,
पद्ममाला, पद्माक्षी, कामाक्षी,
गिरिनन्दिनी, दक्षिणा, दक्षा, दक्षजा, दक्षिणेतरा, वज्रपष्पप्रिया,
रक्तप्रिया, कुसुमभुषिता, माहेश्वरी, महादेवप्रिया, पञ्चविभूषिता, इड़ा,
पिङ्गला, सुषुम्ना, प्राणधारिणी,
गान्धारी, पञ्चमी, पञ्चाननादि-परिपूजिता,
तथ्यविद्या, तथ्यरूपा, तथ्यमार्गानुसारिणी, तत्त्वप्रिया, तत्त्वरूपा,
तत्त्वज्ञानात्मिका, अनघा, ताण्डवाचारसन्तुष्टा, ताण्डवप्रियकारिणी, तालदानरता,
क्रूरतापिनी, तरणिप्रभा, त्रपायुक्ता, त्रपामुक्ता, तर्पिता, तृप्तिकारिणी,
तारुण्यभावसन्तुष्टा, शक्तिर्भक्तानुरागिणी, शिवासक्ता, शिवरति, शिवभक्तिपरायणा,
ताम्रद्युतिस्ताम्ररागा, ताम्रपात्रप्रभोजिनी, बलभद्रप्रेमरता, बलिभुग्बलिकल्पिनी,
रामरूपा, रामशक्ती, रामरूपानुकारिणी ।
श्रीताराशतनामस्तोत्रम् फलश्रुति:
इत्येतत्कथितं देवि रहस्यं
परमाद्भुतम् ।
श्रुत्वा मोक्षमवाप्नोति
तारादेव्याः प्रसादतः ॥ १६॥
यह तारारहस्य स्तोत्र (तारा
तारणीशतनामस्तोत्रम्) परम अद्भुत है,इसे
सुनने मात्र से ही माता तारा की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
य इदं पठति स्तोत्रं
तारास्तुतिरहस्यकम् ।
सर्वसिद्धियुतो भूत्वा विहरेत्
क्षितिमण्डले ॥ १७॥
जो इस तारारहस्य स्तोत्र को पढ़ता
है,
वह समस्त सिद्धियों से युक्त होकर सारे भूमण्डल पर विचरण करता है।
तस्यैव मन्त्रसिद्धिः
स्यान्ममसिद्धिरनुत्तमा ।
भवत्येव महामाये सत्यं सत्यं न
संशयः ॥ १८॥
उसी की मन्त्रसिद्धि होती है और
मेरी भी सर्वोत्तम मन्त्रसिद्धि होती है। हे महामाये! मैं सत्य कहता हूं,
सत्य कहता हूं। इसमें कोई संशय नहीं है।
मन्दे मङ्गलवारे च यः पठेन्निशि
संयतः ।
तस्यैव
मन्त्रसिद्धिस्स्याद्गाणपत्यं लभेत सः ॥ १९॥
शनिवार तथा मङ्गलवार की रात्रि में
जो संयत होकर इसका पाठ करे, उसी की
मन्त्रसिद्धि तथा गणपति की भक्तिसिद्धि हो सकती है।
श्रद्धयाऽश्रद्धया वापि
पठेत्तारारहस्यकम् ।
सोऽचिरेणैव कालेन जीवन्मुक्तः शिवो
भवेत् ॥ २०॥
जो मनुष्य श्रद्धा या अश्रद्धा से
तारारहस्य का पाठ करता है वह स्वल्पकाल में ही जीवन्मुक्त और शिव हो जाता है।
सहस्रावर्तनाद्देवि पुरश्चर्याफलं
लभेत् ।
एवं सततयुक्ता ये
ध्यायन्तस्त्वामुपासते ।
ते कृतार्था महेशानि
मृत्युसंसारवर्त्मनः ॥ २१॥
हे देवि! एक हजार बार पाठ करने पर
मनुष्य पुरश्चरण का फल प्राप्त करता है। इस प्रकार जो निरन्तर युक्त होकर तुम्हारी
उपासना करते हैं, वे हे महेशानि! सब
इस संसार मार्ग में कृतार्थ हो जाते हैं।
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