Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2022
(523)
-
▼
June
(42)
- मन्त्रमहोदधि तरङ्ग १७
- श्रीसुदर्शन शतक
- भुवनेश्वरी शतनाम स्तोत्र
- सुदर्शनचक्र स्तोत्र
- स्कन्द स्तोत्र
- रूद्रयामल तृतीय पटल
- मन्त्रमहोदधि तरङ्ग १६
- श्रीभुवनेश्वरीभकारादिसहस्रनामस्तोत्र
- भद्रकाली स्तुति
- श्रीकृष्ण प्रेमामृत स्तोत्र
- रूद्रयामल द्वितीय पटल भाग ४
- रूद्रयामल द्वितीय पटल भाग ३
- रूद्रयामल द्वितीय पटल भाग २
- रूद्रयामल द्वितीय पटल
- भैरवी कवच
- तारा शतनाम स्तोत्र
- नरसिंह स्तुति
- मन्त्रमहोदधि तरङ्ग १५
- विष्णु स्तुति
- महादेव स्तवन
- तारा तकारादिसहस्रनाम स्तोत्र
- वाराह स्तुति
- भुवनेश्वरी हृदय स्तोत्र
- तारा हृदय स्तोत्र
- श्रीगायत्री कवच
- गंगा प्रार्थना और आरती
- मन्त्रमहोदधि तरङ्ग १४
- नरसिंह स्तवन
- गरुड कवच
- ललिता स्तवराज
- गरुड द्वादशनाम स्तोत्र
- अभिलाषाष्टक स्तोत्र
- सन्तानगोपालस्तोत्र
- नरसिंह स्तुति
- गोपाल सहस्रनाम स्तोत्रम्
- रूद्रयामलम् प्रथम पटल ३
- नृसिंह कवच
- रूद्रयामल प्रथम पटल
- वैदिक गणेश स्तवन
- मन्त्रमहोदधि तरङ्ग १३
- भद्र सूक्तम्
- रूद्रयामल पटल १
-
▼
June
(42)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
गंगा प्रार्थना और आरती
श्री गंगाजी के नित्य प्रार्थना व
आरती करने से मन निर्मल,पवित्र होता और सारे पाप राशि नष्ट होकर पुण्य का उदय होता
है।
गंगा प्रार्थना और आरती
श्रीतुलसीदासजी की गंगा-प्रार्थना
जय जय भगीरथनन्दिनि,
मुनि-चय चकोर-चन्दिनि,
नर-नाग-बिबुध-बन्दिनि जय जलु बालिका
।
बिस्नु-पद-सरोजजासि,
ईस-सीसपर बिभासि,
त्रिपथगासि,
पुन्यरासि, पाप-छालिका ॥१॥
हे भगीरथनन्दिनी! तुम्हारी जय हो,
जय हो। तुम मुनियों के समूहरूपी चकोरों के लिये चन्द्रिकारूप हो।
मनुष्य, नाग और देवता तुम्हारी वन्दना करते हैं। हे जह्नु की
पुत्री! तुम्हारी जय हो। तुम भगवान् विष्णु के चरणकमल से उत्पन्न हुई हो; शिवजी के मस्तक पर शोभा पाती हो; स्वर्ग, भूमि और पाताल-इन तीन मार्गों से तीन धाराओं में होकर बहती हो। पुण्यों की
राशि और पापों को धोनेवाली हो॥१॥
बिमल बिपुल बहसि बारि,
सीतल त्रयताप-हारि,
भँवर बर बिभंगतर तरंग-मालिका ।
पुरजन पूजोपहार,
सोभित ससि धवलधार,
भंजन भव-भार,
भक्ति-कल्पथालिका ॥२॥
तुम अगाध निर्मल जल को धारण किये हो,
वह जल शीतल और तीनों तापों को हरनेवाला है। तुम सुन्दर भँवर और अति
चंचल तरंगों की माला धारण किये हो। नगर-निवासियों ने पूजा के समय जो सामग्रियाँ
भेंट चढ़ायी हैं, उनसे तुम्हारी चन्द्रमा के समान धवल धारा
शोभित हो रही है। वह धारा संसार के जन्म-मरणरूप भार को नाश करनेवाली तथा भक्तिरूपी
कल्पवृक्ष की रक्षा के लिये थाल्हारूप है॥२॥
निज तटबासी बिहंग,
जल-थर-चर पसु-पतंग,
कीट,
जटिल तापस सब सरिस पालिका ।
तुलसी तव तीर तीर सुमिरत रघुबंस-बीर,
बिचरत मति देहि मोह-महिष-कालिका॥३॥
तुम अपने तीर पर रहनेवाले पक्षी, जलचर, थलचर, पशु, पतंग, कीट और जटाधारी तपस्वी आदि सबका समान भाव से पालन करती हो। हे मोहरूपी महिषासुर को मारने के लिये कालिकारूप गङ्गाजी! मुझ तुलसीदास को ऐसी बुद्धि दो कि जिससे वह श्रीरघुनाथजी का स्मरण करता हुआ तुम्हारे तीर पर विचरा करे॥३॥ [विनय-पत्रिका]
गंगा प्रार्थना और आरती
श्रीगंगाजी की आरती
जय गंगा मैया-माँ जय सुरसरि मैया ।
भव-वारिधि उद्धारिणि अतिहि सुदृढ़
नैया ॥
हरि-पद-पद्म-प्रसूता विमल वारिधारा ।
मृतकी अस्थि तनिक तुव जल-धारा पावै ।
ब्रह्मद्रव भागीरथि शुचि पुण्यागारा
॥
सो जन पावन होकर परम धाम जावै ॥
शंकर-जटा विहारिणि हारिणि त्रय-तापा
।
तव तटबासी तरुवर,
जल-थल-चरप्राणी ।
सगर-पुत्र-गण-तारिणि,
हरणि सकल पापा ॥
पक्षी-पशु-पतंग गति पार्दै निर्वाणी
॥
'गंगा-गंगा' जो जन उच्चारत मुखसों ।
मातु! दयामयि कीजै दीननपर दाया ।
दूर देशमें स्थित भी तुरत तरत
सुखसों ॥
प्रभु-पद-पद्म मिलाकर हरि लीजै माया ॥
इति: गंगा प्रार्थना और आरती ॥
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: