मंगल चालीसा
श्री मंगल देव को समर्पित मंगल चालीसा एक भक्ति स्तुति है। मंगल शरीर में रक्त का कारक ग्रह है, मंगल ग्रह को साहस, शक्ति, और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। मंगल देव हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवता और ग्रह हैं। उन्हें साहस, शक्ति, और ऊर्जा के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। मंगल देव का स्वभाव उग्र और क्रियाशील है और वे युद्ध और जीत के देवता माने जाते हैं। ज्योतिष में, मंगल ग्रह को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह व्यक्ति की ऊर्जा, साहस, प्रतिस्पर्धात्मकता, और सैन्य गुणों को प्रभावित करता है। एक कथा अनुसार, मंगल देव का जन्म धरती माता (भूदेवी) और भगवान विष्णु के पसीने से हुआ माना जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार, मंगल देव का जन्म भगवान शिव और माता पार्वती के तेज से हुआ था। उनका लाल रंग उग्रता और शक्ति का प्रतीक है।
मंगल चालीसा का पाठ करने के क्या लाभ हैं?
मंगल चालीसा का पाठ कुंडली में
मौजूद मंगल दोष को शांत करता है। मानसिक और शारीरिक बल प्रदान करता है। शत्रुओं और
विरोधियों से रक्षा करता है। जीवन में आर्थिक स्थिरता और समृद्धि लाता है। वैवाहिक
कलह को समाप्त कर सुखद जीवन प्रदान करता है। यह चालीसा अशुभ ग्रह योगों को शांत
करने में सहायक होती है। जीवन से नकारात्मक प्रभावों को समाप्त कर,
सुख-समृद्धि प्रदान करता है तथा सभी प्रकार के ऋण बाधाओं से मुक्ति
दिलाता है।
मङ्गल चालीसा का पाठ किस दिन और किस
समय करना सबसे शुभ माना जाता है?
मंगल चालीसा का पाठ लाल वस्त्र पहनकर
और लाल आसन में बैठकर सूर्योदय से पहले या सुबह के समय तथा मंगलवार का दिन से प्रारंभ
करना शुभ माना जाता है। चालीसा का पाठ करने से पूर्व मंगलदेव का पूजन करें। पूजा
स्थल को स्वच्छ करें और पवित्र जल छिड़कें। मंगल ग्रह का यंत्र या चित्र स्थापित
करें और मिट्टी का दीपक और सरसों का तेल दीपक जलाएं। लाल पुष्प,
लाल चंदन, गुड़, मिश्री, और लाल मिठाई चढ़ावें । संभव हो तो "ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः"
अथवा मंगल गायत्री मंत्र:
"ॐ अंगारकाय विद्महे शक्ति
हस्ताय धीमहि। तन्नो भौमः प्रचोदयात्।"
मंत्र का 108 बार जाप करें। श्रद्धा
और भक्ति के साथ श्री मंगल चालीसा का पाठ करें। अंत में भगवान मंगलदेव से सभी
कष्टों और दोषों के निवारण की प्रार्थना करें।
श्री मंगल चालीसा
Mangal Chalisa
मंगलचालीसा
॥दोहा॥
जय-जय मंगल मोर,
कृपा करो गुरु देव।
संकट सब हर हरो,
करि मंगल सदा सेव॥
॥चौपाई॥
जय मंगल ग्रह मुनि पूजित,
शुभ फल दायक नाथ।
धातु रुधिर अधिदेव तम,
शरणागत करे त्राण॥
रक्तवर्ण तन सुंदर,
मस्तक मुकुट विराजत।
गदाहस्त त्रिनयन मनोहर,
मंगल शुभफलदायक॥
अमित तेज,
बल, मोह नाशक, पिंगल तन
अति शोभित।
धरणी पुत्र अति,
वैभवशाली, पाप-ताप सब हर्ता॥
अस्त्र,
शस्त्र, गदा धारण कर, रजत
सिंह पर सवार।
सप्त धातु का हो प्रदाता,
वैद्य, विद्या सुधाकर॥
न्यायप्रिय,
धर्मरत, भूतिहारी, मंद
गति से विख्यात।
कुंडली दोष,
अशुभ प्रभाव, जीवन में सब हरता॥
राजस्थान पूजित शिरोमणि,
गुरु ग्रह का आभासक।
भक्त जनों का संकट हरते,
तुम शुभ मंगलकारी॥
बुद्धिवर्धक,
ज्ञानदायक, धर्म-अर्थ-काम प्रदायक।
तृण-ताप,
विपदा हरो, करि सुखदायक मंगल॥
महाबली वीर विक्रम,
तापत्रय हरो अपार।
मंगल ग्रह की कृपा से,
सकल मंगल हो साधन॥
रोग-क्लेश,
पीड़ा हरो, विद्या-बुद्धि बढ़ाओ।
शत्रु,
समस्त भय हरो, मंगल मूर्ति विराजो॥
रूद्र रूप धर,
दानव दलन, आप विनाशक दुष्ट।
शत्रु नाश,
भय निवारण, मंगल भव भय हर्ता॥
धीर,
वीर, मंगल रूप, संकट में
संगी।
मंगलग्रह की कृपा से,
सब मनोरथ पूर हो॥
शिव के चरणों में शीश नवायें,
सुर मुनिजन वन्दित।
मंगल ग्रह कृपा करें,
भक्त जीवन सफल हो॥
विघ्न,
विपत्ति, संकट हरो, शुभ
मंगल करि।
मंगल चालीसा जो पढ़े,
सब संकट से मुक्त हो॥
॥दोहा॥
जय-जय मंगल मोर,
कृपा करो गुरु देव।
संकट सब हर हरो,
करि मंगल सदा सेव॥
॥ इति संपूर्णंम् ॥
मंगलदेव की आरती
मंगल मूरति जय जय हनुमन्ता ।
मंगल- मंगल देव अनन्ता ॥
हाथ वज्र और ध्वजा विराजे,
कांधे मूंज जनेऊ साजे ।
शंकर सुवन केसरी नन्दन,
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥
मंगल मूरति जय जय हनुमन्ता ॥
लाल लंगोट लाल दोऊ नयना,
पर्वत सम फारत है सेना ।
काल अकाल जुद्ध किलकारी,
देश उजारत क्रुद्ध अपारी ॥
मंगल मूरति जय जय हनुमन्ता ॥
रामदूत अतुलित बलधामा,
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ।
महावीर विक्रम बजरंगी,
कुमति निवार सुमति के संगी॥
मंगल मूरति जय जय हनुमन्ता ॥
भूमि पुत्र कंचन बरसावे,
राजपाट पुर देश दिवावे।
शत्रुन काट-काट महिं डारे,
बन्धन व्याधि विपत्ति निवारें ॥
मंगल मूरति जय जय हनुमन्ता ॥
आपन तेज सम्हारो आपै,
तीनों लोक हाँक तें कांपै।
सब सुख लहैं तुम्हारी शरणा,
तुम रक्षक काहू को डरना ॥
मंगल मूरति जय जय हनुमन्ता ॥
तुम्हरे भजन सकल संसारा,
दया करो सुख दृष्टि अपारा।
रामदण्ड कालहु को दण्डा,
तुम्हरे परस होत जब खण्डा ॥
मंगल मूरति जय जय हनुमन्ता ॥
पवन पुत्र'धरती के पूता,
दोऊ मिल काज करो अवधूता ।
हर प्राणी शरणागत आये,
चरण कमल में शीश नवाये ॥
मंगल मूरति जय जय हनुमन्ता ॥
रोग शोक बहुत विपत्ति घिराने,
दरिद्र दुःख बन्धन प्रकटाने ।
तुम तज और न मेटनहारा,
दोऊ तुम हो महावीर अपारा ॥
मंगल मूरति जय जय हनुमन्ता ॥
दारिद्र दहन ऋण त्रासा
करो रोग दुःख स्वप्न विनाशा ।
शत्रुन करो चरन के चेरे,
तुम स्वामी हम सेवक तेरे ॥
मंगल मूरति जय जय हनुमन्ता ॥
विपत्ति हरण मंगल देवा,
अङ्गीकार करो यह सेवा ।
मुदित भक्त विनती यह मोरी,
देऊ महाधन लाख करोरी ॥
मंगल मूरति जय जय हनुमन्ता॥
श्री मंगल जी की आरती,
हनुमत सहितासु गाई।
होई मनोरथ सिद्ध जब,
अन्त विष्णुपुर जाई ॥
मंगल मूरति जय जय हनुमन्ता ॥
श्री मंगल चालीसा व आरती समाप्त ।।

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