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गौरी तिलक मण्डल
इससे पूर्व आपने डी॰पी॰कर्मकाण्डभाग १६ में अग्न्युत्तारण प्राण प्रतिष्ठा विधि पढ़ा। अब इस डी॰पी॰कर्मकाण्ड भाग १७
में आप गौरी तिलक मण्डल के विषय में पढ़ेंगे।
डी॰पी॰कर्मकाण्ड भाग १७- गौरी तिलक भद्र मण्डल
गौरी तिलक भद्र मण्डल एक विशेष
वैदिक चक्र और एक प्राचीन वैदिक वेदी मण्डल है, जिसका प्रयोग किसी भी शुभ अवसर, यज्ञादिक, देव प्रतिष्ठा, मांगलिक पूजा महोत्सव, अनुष्ठान इत्यादि देव कार्यों में
विशेषकर देवि पूजन इसका सर्वविध उपयोग किया जाता है। इस चक्र को एक आधार पर
सफेद कपड़े के ऊपर १७*१७ के २८९ खण्ड़ों में विभाजित किया गया है । इन खण्ड़ों
के बाहरी परीधि पर सम, रज और तम के प्रतीक के रूप में क्रमश:
सफेद, लाल एवं काले रंग का घेरा लगाया गया है तथा अन्य खण्डों
पर विभिन्न रंगों का प्रयोग किया गया है । गौरी तिलक मंडल मंगलप्रद एवं
कल्याणकारी माना जाता है। इससे साधक के अभीष्ट की सिद्धि होती है।
गौरीतिलकभद्र मण्डल
अथ गौरी तिलक मंडल देवता पूजनम्
अगर तंत्रोक्त देवी यंत्र नहीं
बनायें तो गौरीतिलक मंडल अवश्य बनावें । तथा गौरीतिलक मंडल पर देवी यंत्र - प्रतिमा
स्थापन कर पूजा करें। गौरी तिलक मंडल का यंत्र चौपड़ की आकृति का बनता है।
गौरी तिलक मंडलम्
१. हाथ में अक्षत लेकर
(१) यंत्र के मध्य में कलश में मूल
मंत्र से देवी का आवाहन करें।
(२) चतुर्थी से आवाहन तथा प्रथमा से
स्थापन करें।
॥ गौरीतिलक मंडल ध्यान ॥
किं कार्यं कठिनं कुतः परिभवः
कुत्रापवादाद् भयं
किं मित्रं न हि किन्नु राजसदनं
गम्यं न विद्या च का ।
किं वाऽन्यज्जगतीतले प्रवद
यत्तेषामसम्भावितं
येषां हृत्कमले सदा वसति सा
तोषप्रदा सङ्कटा ॥
ॐ गौर्यै नमः गौरीं आवाहयामि
स्थापयामि ।
२. मंडल के मध्य में ८ पीत कोष्ठक
है इनमें ईशानादि ४ कोणों में
ईशान- १. ॐ महाविष्णवे नमः।
महाविष्णुम् आवाहयामि स्थापयामि ।
आग्नेय- २. महालक्ष्म्यै नमः।
महालक्ष्मीम् आवाहयामि स्थापयामि ।
नैऋत्य- ३. महेश्वराय नमः।
महेश्वरम् आवाहयामि स्थापयामि ।
वायव्य- ४. महामायाय नमः।
महामायाम् आवाहयामि स्थापयामि ।
पहले सभी श्वेत कोष्ठों के देवता की
पूजा करें मध्य पूर्व,अग्नि, दक्षिण, नैर्ऋत्य, उत्तर,
एवं ईशान कोष्ठकों में होगी।
३. षड्ङग पूजायाम्
हृदयांग पूजा-
श्वेत कोष्ठे मध्ये चतुर्षुश्वेत
कोष्ठेषु - (रक्त के चारों ओर)
पूर्व- १. ऋग्वेदाय नमः । ऋग्वेदम्
आवाहयामि स्थापयामि।
दक्षिण- २. यजुर्वेदाय नमः । यजुर्वेदम्
आवाहयामि स्थापयामि।
पश्चिम- ३. सामवेदाय नमः । सामवेदम्
आवाहयामि स्थापयामि।
उत्तर- ४. अथर्ववेदाय नमः । अथर्ववेदम्
आवाहयामि स्थापयामि।
परिधि समीपे पूर्वे श्वेत काष्ठेषु
वाम से दक्षिण की ओर
१ . ॐ अद्भयो नमः आवाहयामि
स्थापयामि।
२. ॐ जलोद्भयो नमः आवाहयामि
स्थापयामि।
३. ॐ ब्रह्मणे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।
४. ॐ प्रजापतये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।
५. ॐ शिवाय नमः आवाहयामि स्थापयामि।
अग्निकोण के दो श्वेत कोष्ठकों में –
१. ॐ अनंताय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।
२. ॐ परमेष्ठिने नमः आवाहयामि
स्थापयामि।
पुन: अग्निकोण खण्ड में कृष्ण
कोष्ठक के चारों ओर श्वेत कोष्ठकों में -
१. ॐ धात्रे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।
२. ॐ विधात्रे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।
३. ॐ अर्यम्णे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।
४. ॐ मित्राय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।
दक्षिण दिशा में पांच श्वेत
कोष्ठकों में –
१. ॐ वरुणाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।
२. ॐ अंशुमते नमः आवाहयामि
स्थापयामि।
३. ॐ भगाय नमः आवाहयामि स्थापयामि।
४. ॐ इंद्राय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।
५. ॐ विवश्वते नमः आवाहयामि स्थापयामि।
नैऋत्यकोण के दो श्वेत कोष्ठकों में-
१. ॐ पूष्णे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।
२. ॐ पर्जन्याय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।
नैऋत्यकोण खण्ड के कृष्ण कोष्ठकों
के चारों ओर श्वेत कोष्ठकों में -
१. ॐ त्वष्ट्रे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ दक्षयज्ञाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ देववसवे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ महासुताय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
पश्चिम दिशा में पांच श्वेत
कोष्ठकों में –
१. ॐ सुधर्मणे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ शङ्खपदे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ महाबाहवे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ वपुष्मते नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ अनंताय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
वायव्य कोण के दो श्वेत कोष्ठों में
१. ॐ महेरणाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ विश्वावसवे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
वायव्य खण्ड कोण के कृष्ण कोष्ठकों
के चारों ओर श्वेत कोष्ठकों में -
१. ॐ सुपर्वणे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ विष्टराय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ रुद्रदेवताय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ ध्रुवाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
उनमें से पाँच श्वेत कोष्ठकों में -
१. ॐ धराय नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
२. ॐ सोमाय नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
३. ॐ आपवत्साय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ नलाय नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
५. ॐ अनिलाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
ईशान कोण खण्ड में कृष्ण कोष्ठ के
चारों ओर श्वेत कोष्ठों में -
१. ॐ आवर्त्ताय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ सांवर्त्ताय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ द्रोणाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४.
ॐ पुष्कराय नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
ईशान कोण के दो श्वेत कोष्ठों में
:-
१. ॐ प्रत्युषाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ प्रभासनाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
॥इति हृदयाङ्ग पूजा ॥
(४) अथ
शिरोङ्ग शक्ति पूजा - हरित कोष्ठों में
पूजा करें।
मंडल में ५ हरित कोष्ठक बनते है।
मध्यखण्ड १६ कोष्ठक का बनता है, बाकी चारों
कोणों में प्रत्येक खण्डों में तीन दिशाओं के मिलाकर ११ खण्ड बनते हैं उनमें पूजा
करें।
ईशान कोण की हरित श्रृंखला में ११
कोष्ठों में वायव्य से ईशान की ओर व निर्ऋत्य दिशा की तरफ ।
१. ॐ ह्रींकार्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ ह्रीयै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ कात्यायन्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ चामुण्डायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ महादिव्यायै नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
६. ॐ महाशब्दायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ सिद्धिदायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ ह्रींकार्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
९. ॐ ऐं नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
१०. ॐ श्रीं श्रियै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
११. ॐ ह्रीयै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
ईशान कोण में कृष्ण कोष्ठ के चारों
ओर आठ पीत कोष्ठों में-
१. ॐ लक्ष्म्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ श्रियै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ सुधायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ मेधायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ प्रज्ञायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ मत्यै नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
७. ॐ स्वाहायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ सरस्वत्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
अग्नि कोण की हरित शृङ्खला में
वायव्य कोण से नैर्ऋत्य की ओर ११ कोष्ठो में -
१. ॐ गौर्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ पद्मायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ शच्यै नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
४. ॐ सुमेधायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ सावित्र्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ विजयायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ देवसेनायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ स्वाहायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
९. ॐ स्वधायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१०. ॐ मात्रे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
११. ॐ गायत्र्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
अग्नि कोण में कृष्ण कोष्ठ के चारों
ओर पीत कोष्ठकों में-
१. ॐ लोकमात्रै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ धृत्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ पुष्ट्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ तुष्ट्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ आत्मकुल देवतायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ गणेश्वर्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ कुलमात्र्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ शान्त्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
पूवार्द्ध भागे पीत कोष्ठेषु (१०
खण्ड) उत्तर दिशा में दो पीत में से एक खण्ड, तीन
खण्ड ईशान, २ पूर्व, ३ अग्नि कोण,
एक दक्षिण का पीत खण्ड कुल दस खण्डों में। (उत्तर से दक्षिण तक
क्रमशः पूजन करें)
१. ॐ जयन्त्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ मंगलायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ काल्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ भद्रकाल्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ कपालिन्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ दुर्गायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ क्षमायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ शिवायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
९. ॐ धात्र्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१०. ॐ स्वधायै स्वाहाभ्यां नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
(५) अथ शिखाङ्ग देवपूजनम् –
नैऋत्य कोण की हरित श्रृंखला में ११ कोष्ठों में अग्निकोण से ईशान
की ओर -
१. ॐ दीप्यमानायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ दीप्तायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ सूक्ष्मयै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ विभूत्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ विमलायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ परायै नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
७. ॐ अमोघायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ विद्युतायै नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
९. ॐ सर्वतोमुख्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१०. ॐ आनन्दायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
११. ॐ नंदिन्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
नैऋत्य कोणे (खण्डे) - कृष्ण कोष्ठक
के चारों ओर ८ पीत कोष्ठों में
१. ॐ शक्त्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ महासूक्ष्मायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ करालिन्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ भारत्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ ज्यातिष्मत्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ ब्राह्म्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ माहेश्वर्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ कौमार्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
वायु कोण में हरित श्रृंखला के ११
कोष्ठों में नैऋत्य से ईशान की ओर -
१. ॐ वैष्णव्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ वारायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ इंद्राण्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ चंडिकायै नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
५. ॐ बुद्ध्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ लज्जायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ वपुष्मत्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ शान्त्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
९. ॐ कान्त्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१०. ॐ रत्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
११. ॐ प्रीत्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
वायु कोण खण्ड में कृष्ण खंड के
चारों ओर ८ पीत खंडों में -
१. ॐ कीर्त्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ प्रभायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ काम्यायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ कान्त्यायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ दयायै नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
६. ॐ ऋद्ध्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ शिवदूत्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ श्रद्धायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
पश्चिमार्द्ध पीतकोष्ठेषु- दक्षिण
का एक नैऋत्य के तीन, पश्चिम के दो
वायव्य के तीन तथा उत्तर का एक खण्ड (१० खण्डों ) में -
१. ॐ क्षमायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ क्रियायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ विद्यायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ मोहिन्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ यशोवत्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ कृपावत्यै नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
७. ॐ सलीलायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ सुशीलायै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
९. ॐ ईश्वर्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१०. ॐ सिद्धश्वर्यै नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
(६) अथ कवचाङ्गेषु- परिधि समिपे
अरुण कोष्ठये ऋषीन् पूजयेत्
पूर्वे - १. ॐ द्वैपायनाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ भारतद्वाजाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
दक्षिणे-
१. ॐ गौतमाय नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
२. ॐ सुमन्तवे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
पश्चिमे - १. ॐ देवलाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ व्यासाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
उत्तरे - १. ॐ वसिष्ठाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ च्यवनाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
ईशाने एको कृष्ण कोष्ठये- १. ॐ
कण्वाय नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
अग्निकोण एको कृष्ण कोष्ठये - १.
ॐ मैत्रेयाय नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
नैर्ऋत्य कोणे कृष्ण कोष्ठये-
१. ॐ कवये नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
वायव्यकोणे एको कृष्ण कोष्ठये - १.
ॐ विश्वामित्राय नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
मध्ये खण्डे अष्ट पीतकोष्ठेषु (रक्त
कोष्ठ के चारों ओर)
१. ॐ वामदेवाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ सुमन्ताय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ जैमिन्ये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ क्रतवे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ पिप्पलादाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ पाराशराय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ गर्गाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ वैशम्पाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
मध्य खण्डे द्वादश कृष्ण कोष्ठेषु
प्रागेषु ईशानतः –
१. ॐ दक्षाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ मार्कण्डेयाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ मृकण्डाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ लोमशाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ पुलहाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ पुलस्त्याय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ बृहस्पतये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ जमदग्नये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
९. ॐ जामदग्न्याय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१०. ॐ दलभ्याय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
११. ॐ शिलोञ्छनाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१२. ॐ गालवाय नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
मध्ये षोडश हरितुकोष्ठेषु
पूर्वादिक्रमेण ईशानतः
१. ॐ याज्ञवल्क्याय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ दुर्वासाये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ सौरभाये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ जावालये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ वाल्मीकये नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
६. ॐ बहृचाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ इन्द्रप्रमितये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ देवमित्राय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
९. ॐ जाजलये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१०. ॐ शाकल्याय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
११. ॐ मुद्गलाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१२. ॐ जातुकर्ण्याय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१३. ॐ बलाकाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१४. ॐ कृपाचार्याय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१५. ॐ सुकर्मणे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१६. ॐ कौशल्याय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
(७) अथ नेत्राङ्ग पूजनम्
(१) (ईशान कोणे द्वादाश
अरुणकोष्ठेषु प्राग्रषु ईशानत:)
१. ॐ ब्रह्माग्नये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ गार्हष्पत्याग्नये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ ईश्वराग्नये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ दक्षिणाग्नये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ वैष्णवाग्नये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ आहवानीयाग्नये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ सप्तजिह्वाग्नये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ इध्मजिह्वाग्नये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
९. ॐ प्रवर्ग्याग्नये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१०. ॐ बडवाग्नये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
११. ॐ जठराग्नये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१२. ॐ लोकिकाग्नये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
(२) अग्निकोणे द्वादश अरुण
कोष्ठेषु –
१. ॐ सूर्याय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ वेदाङ्गाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ भानवे नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
४. ॐ इंद्राय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ खगाय नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
६. ॐ गभस्तिने नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ यमाय नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
८. ॐ अंशुमते नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
९. ॐ हिरण्यरेतसे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१०. ॐ दिवाकराय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
११. ॐ मित्राय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१२. ॐ विष्णवे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
(३) नैऋत्यकोणे द्वादश अरुण
कोष्ठेषु –
१. ॐ शम्भवे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ गिरिशयाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ अजैक पदे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ अहिर्बुध्न्याय नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
५. ॐ पिनाकपाणये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ अपराजिताय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ भुवनाधीश्वराय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ कपालिने नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
९. ॐ विशाम्पतये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१०. ॐ रुद्राय नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
११. ॐ वीरभद्राय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१२. ॐ अश्विनीकुमाराभ्यां नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
(४) वायु कोणे द्वादश कोष्ठेषु –
१. ॐ आवहाय नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
२. ॐ प्रवहाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ उद्वहाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ सम्वहाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ विवहाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ परीवहाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ परीवहाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ धरायै नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
९. ॐ अद्भयो नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१०. ॐ अग्नये नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
११. ॐ वायवे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१२. ॐ आकाशाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
(८) अथास्त्राङ्ग पूजानंतरे 48 कृष्ण कोष्ठकेषु ऋषीन्पूजयेत्- प्रत्येक दिशा में १ + १+७+१+१ के अनुसार ११ कृष्ण कोष्ठक है कुल चारो दिशाओं में ४४ हुये तथा मध्य खण्डों के १-१ करके चार कुल ४८ हुये।
(१) पूर्व दिशायाम् ( ईशान से
अग्नि कोण तक १ + १ + ७ + १ + १)
१. ॐ हिरण्यनाभाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ पुष्पञ्जयाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ द्रोणाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ शृङ्गिणे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ वादराणाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ अगस्त्याय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ मनवे नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
८. ॐ कश्यपाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
९. ॐ धौम्याय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१०. ॐ भृगवे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
११. ॐ वीतिहोत्राय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
(२) दक्षिणे कृष्ण कोष्ठेषु -
(अग्नि कोण से नैर्ऋत्य तक १ + १ + ७ + १ + १)
१. ॐ मधुछन्दसे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ वीरसेनाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ कृतवृष्णवे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ अत्रये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ मेधातिथये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ अरिष्टनेमये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ अङ्गिरसाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ इंद्रप्रमादाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
९. ॐ इध्मबाहवे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१०. ॐ पिप्पलादाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
११. ॐ नारदाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
(३) पश्चिमे कृष्ण कोष्ठेषु- (नैर्ऋत्य कोण से वायव्य कोण तक १ + १ + ७ + १ + १)
१. ॐ अरिष्टसेनाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ अरुणाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ सनकाय नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
४. ॐ सनन्दनाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ सनातनाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ सनत्कुमाराय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ कपिलाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ कर्दमाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
९. ॐ मरीचये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१०. ॐ क्रतवे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
११. ॐ प्रचेतसे नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
(४) उत्तरे कृष्ण कोष्ठेषु- (वायव्य से ईशान कोण तक १ +१ + ७ + १ + १)
१. ॐ उत्तमाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ दधीचये नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ श्राद्धदेवताभ्यो नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ गणदेवेभ्यो नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
५. ॐ विद्याधरेभ्यो नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
६. ॐ अप्सरेभ्यो नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
७. ॐ यक्षेभ्यो नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
८. ॐ रक्षेभ्यो नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
९. ॐ गंधर्वेभ्यो नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
१०. ॐ पिशाचेभ्यो नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
११. ॐ गुह्यकेभ्यो नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
(५) मध्ये चतुकृष्ण कोष्ठेषु
ईशानात वायव्य पर्यन्त –
१. ॐ सिद्धदेवताभ्यो नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
२. ॐ औषधीभ्यो नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
३. ॐ भूतग्रामाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
४. ॐ चतुर्विधभूतग्रामाय नमः आवाहयामि
स्थापयामि।।
प्रतिष्ठापना -
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य
बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु ।
विश्वे
देवास इह मादयन्तामो३म्प्रतिष्ठ ॥
ॐ गौरीतिलकमण्डलावाहितदेवताः
सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।
अब मण्डल में आवाहित देवों का
लब्धोपचार पूजन करे।
समर्पण - कृतेन अनेन पूजनेन गौरीतिलकमण्डलावाहितदेवताः
प्रीयन्तां न मम ।
।। इति हेमाद्रि लिखित गौरीतिलक पूजनम् ।।
आगे जारी- डी॰पी॰कर्मकाण्ड भाग 18
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