चन्द्र चालीसा
चन्द्र देव को समर्पित चन्द्र
चालीसा एक लोकप्रिय स्तुति है। चन्द्रमा मन का कारक ग्रह है,
अतः नियमित रूप से श्रद्धा-भाव सहित
इस चालीसा का पाठ करने से मानशिक विकार दूर होता है। कुंडली में चंद्र की कमजोर
स्थिति में सुधार होता है।
चंद्र चालीसा का पाठ करने के क्या लाभ हैं?
चन्द्र चालीसा पाठ जीवन में शांति,
मानसिक स्थिरता और समृद्धि लाने वाला एक अद्भुत आध्यात्मिक उपाय है।
यह पाठ चंद्र ग्रह की कृपा पाने और मन के असंतुलन को समाप्त करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली
है। चंद्र देव, जिन्हें शीतलता और भावनाओं का स्वामी माना
जाता है, उनकी कृपा से जीवन में सुख-शांति आती है। चंद्र
चालीसा पाठ के माध्यम से मनुष्य अपनी आंतरिक शक्तियों को जागृत कर सकता है और
मानसिक संतुलन तथा भावनात्मक संतुलन बनाए रख सकता है। यह पाठ न केवल आध्यात्मिक
शांति देता है, बल्कि दैनिक जीवन की समस्याओं से भी मुक्ति
दिलाता है। सौंदर्य और आकर्षण में वृद्धि होती है। विवाह में आने वाली बाधाएं
समाप्त होती हैं। पारिवारिक कलह का नाश होता है। मन की चंचलता कम होती है। दांपत्य
जीवन सुखमय बनता है।
चंद्रमा चालीसा का पाठ किस दिन, किस
विधि और किस समय करना सबसे शुभ माना जाता है?
चंद्रमा का चालीसा का पाठ स्नान कर
स्वच्छ अथवा श्वेत वस्त्र पहनकर श्वेत अथवा कुशासन में बैठकर प्रातः काल सूर्योदय
से पहले सोमवार को पाठ प्रारंभ करें। ४१ दिन तक नियमित पाठ करें। चांदी की थाली
में दीपक जलाएं। चावल और सफेद फूल अर्पित करें। चंद्र देव का ध्यान कर चालीसा पाठ
करें।
पाठकों के लाभार्थ यहाँ दो चंद्र
चालीसा व आरती दिया जा रहा है।
चंद्र चालीसा
Chandra chalisa
चंद्रचालीसा
॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन,
मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम,
देहु अभय वरदान॥
॥चालीसा॥
चंद्र तेज धर आप सदा,
करुणा सिंधु भगवान।
धवल रूप मन मोहिनी,
चमत्कार गुण खान॥१॥
शीतलता के देव तुम,
मन को देते छांव।
ग्रह दोष सब हरते हो,
देते शुभ फल दांव॥२॥
चमक तुम्हारी अद्भुत,
जीवन का आधार।
सौम्यता के प्रतीक तुम,
करते सब उद्धार॥३॥
शिव शंकर के मस्तक पर,
शोभा बढ़ाते आप।
निशा के स्वामी चंद्र देव,
कृपा करो अब आप॥४॥
रात्रि में दिखते हो,
उज्जवल रूप महान।
जग को देते ज्योति तुम,
सब करते कल्याण॥५॥
कृष्ण पक्ष में घटते हो,
शुक्ल पक्ष में बढ़ते।
पूर्णिमा का रूप तुम्हारा,
चित्त को सुख देते॥६॥
तुमसे होते ज्वार-भाटा,
जल में रहते प्राण।
तुमसे ही है बंधुता,
यह सृष्टि का विधान॥७॥
शीतल किरणों से भरते,
मन में प्रेम अपार।
ज्योतिष में हो श्रेष्ठतम,
भाग्य बनाते संवार॥८॥
चंद्र देव की साधना,
हर दुख को हरती।
जीवन में लाती शांति,
राह नई दिखलाती॥९॥
शिव प्रिय चंद्र देव तुम,
साधक को दो ध्यान।
करो कृपा अब देवता,
पूर्ण करो अरमान॥१०॥
चंद्र दोष जो होते हैं,
उनसे मुक्त कराएं।
मन का संतुलन देकर,
जीवन सुखमय बनाएं॥११॥
सफेद वस्त्र धारण कर,
साधक करे अराध।
धूप,
दीप और अक्षत से, हो तुम शीघ्र प्रसन्न॥१२॥
श्रद्धा से जो जपे तुम्हें,
संकट हरते आप।
चंद्र चालीसा पाठ से,
पूर्ण हों सब ताप॥१३॥
तुमसे ही संतुलित होता,
जीवन का आधार।
तुम बिन शांति न होती,
कृपा करो अब अपार॥१४॥
करते जो आराधना,
उनके कष्ट मिटाते।
सफलता का आशीष देकर,
जीवन में खुशियां लाते॥१५॥
तुम्हीं से जल का प्रवाह,
प्रकृति की शान।
तुम्हारी कृपा से होता,
सृष्टि का उत्थान॥१६॥
चंद्र देव अब कृपा करो,
साधक की अरज सुनो।
चालीसा का यह पाठ सदा,
भक्ति में रमण करो॥१७॥
॥दोहा॥
जय जय चंद्र देव प्रभु,
सब पर करो उपकार।
कष्ट मिटाओ भक्त के,
जीवन हो सुखमय अपार॥
चन्द्र चालीसा १ समाप्त
श्री चन्द्र चालीसा २
चंद्रमा चालीसा
शीश नवा अरिहंत को,
सिद्धन करूं प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का,
ले सुखकारी नाम।।
सर्व साधु और सरस्वती,
जिन मंदिर सुखकर।
चन्द्रपुरी के चन्द्र को,
मन मंदिर में धार।।
।। चौपाई ।।
जय-जय स्वामी श्री जिन चन्दा,
तुमको निरख भये आनन्दा।
तुम ही प्रभु देवन के देवा,
करूँ तुम्हारे पद की सेवा।।
वेष दिगम्बर कहलाता है,
सब जग के मन भाता है।
नासा पर है द्रष्टि तुम्हारी,
मोहनि मूरति कितनी प्यारी।।
तीन लोक की बातें जानो,
तीन काल क्षण में पहचानो।
नाम तुम्हारा कितना प्यारा ,
भूत प्रेत सब करें निवारा।।
तुम जग में सर्वज्ञ कहाओ,
अष्टम तीर्थंकर कहलाओ।
महासेन जो पिता तुम्हारे,
लक्ष्मणा के दिल के प्यारे।।
तज वैजंत विमान सिधाये ,
लक्ष्मणा के उर में आये।
पोष वदी एकादश नामी ,
जन्म लिया चन्दा प्रभु स्वामी।।
मुनि समन्तभद्र थे स्वामी,
उन्हें भस्म व्याधि बीमारी।
वैष्णव धर्म जभी अपनाया,
अपने को पण्डित कहाया।।
कहा राव से बात बताऊं ,
महादेव को भोग खिलाऊं।
प्रतिदिन उत्तम भोजन आवे ,
उनको मुनि छिपाकर खावे।।
इसी तरह निज रोग भगाया ,
बन गई कंचन जैसी काया।
इक लड़के ने पता चलाया ,
फौरन राजा को बतलाया।।
तब राजा फरमाया मुनि जी को,
नमस्कार करो शिवपिंडी को।
राजा से तब मुनि जी बोले,
नमस्कार पिंडी नहिं झेले।।
राजा ने जंजीर मंगाई ,
उस शिवपिंडी में बंधवाई।
मुनि ने स्वयंभू पाठ बनाया ,
पिंडी फटी अचम्भा छाया।।
चन्द्रप्रभ की मूर्ति दिखाई,
सब ने जय-जयकार मनाई।
नगर फिरोजाबाद कहाये ,
पास नगर चन्दवार बताये।।
चन्द्रसैन राजा कहलाया ,
उस पर दुश्मन चढ़कर आया।
राव तुम्हारी स्तुति गई ,
सब फौजो को मार भगाई।।
दुश्मन को मालूम हो जावे ,
नगर घेरने फिर आ जावे।
प्रतिमा जमना में पधराई ,
नगर छोड़कर परजा धाई।।
बहुत समय ही बीता है कि ,
एक यती को सपना दीखा।
बड़े जतन से प्रतिमा पाई ,
मन्दिर में लाकर पधराई।।
वैष्णवों ने चाल चलाई ,
प्रतिमा लक्ष्मण की बतलाई।
अब तो जैनी जन घबरावें ,
चन्द्र प्रभु की मूर्ति बतावें।।
चिन्ह चन्द्रमा का बतलाया ,
तब स्वामी तुमको था पाया।
सोनागिरि में सौ मन्दिर हैं ,
इक बढ़कर इक सुन्दर हैं।।
समवशरण था यहां पर आया ,
चन्द्र प्रभु उपदेश सुनाया।
चन्द्र प्रभु का मंदिर भारी ,
जिसको पूजे सब नर - नारी।।
सात हाथ की मूर्ति बताई ,
लाल रंग प्रतिमा बतलाई।
मंदिर और बहुत बतलाये ,
शोभा वरणत पार न पाये।।
पार करो मेरी यह नैया ,
तुम बिन कोई नहीं खिवैया।
प्रभु मैं तुमसे कुछ नहीं चाहूं ,
भव - भव में दर्शन पाऊँ।।
मैं हूं स्वामी दास तिहारा ,
करो नाथ अब तो निस्तारा।
स्वामी आप दया दिखलाओ ,
चन्द्रदास को चन्द्र बनाओ।।
।।सोरठ।।
नित चालीसहिं बार ,
पाठ करे चालीस दिन।
खेय सुगन्ध अपार ,
सोनागिर में आय के।।
होय कुबेर सामान ,
जन्म दरिद्री होय जो।
जिसके नहिं संतान ,
नाम वंश जग में चले।।
इति: चन्द्र चालीसा ॥
चन्द्र देव आरती
ॐ जय सोम देवा,
स्वामी जय सोम देवा ।
दुःख हरता सुख करता,
जय आनन्दकारी ।।
रजत सिंहासन राजत,
ज्योति तेरी न्यारी ।
दीन दयाल दयानिधि,
भव बन्धन हारी ।।
जो कोई आरती तेरी,
प्रेम सहित गावे ।
सकल मनोरथ दायक,
निर्गुण सुखराशि ।।
योगीजन हृदय में,
तेरा ध्यान धरें ।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव,
सन्त करें सेवा ।।
वेद पुराण बखानत,
भय पातक हारी ।
प्रेमभाव से पूजें,
सब जग के नारी ।।
शरणागत प्रतिपालक,
भक्तन हितकारी ।
धन सम्पत्ति और वैभव,
सहजे सो पावे ।।
विश्व चराचर पालक,
ईश्वर अविनाशी ।
सब जग के नर नारी,
पूजा पाठ करें ।।
ॐ जय सोम देवा,
स्वामी जय सोम देवा ।।
श्री चंद्र चालीसा व आरती समाप्त ।।

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