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बुध चालीसा

बुध चालीसा

बुध चालीसा बुध ग्रह को समर्पित एक भक्ति गीत है, जिसमें 40 छंदों के माध्यम से बुध देव की महिमा, उनके गुण, और उनकी कृपा का वर्णन किया गया है। बुध ग्रह को बुद्धि, वाणी, और व्यापार का स्वामी माना जाता है। इसका नियमित पाठ बुध ग्रह के अशुभ प्रभाव को शांत करने और उनके आशीर्वाद को पाने का एक महत्वपूर्ण साधन है।

बुध चालीसा

बुध चालीसा का पाठ करने के क्या लाभ हैं?

बुध चालीसा का पाठ बुद्धि और वाणी को तेज बनाता है। वाणी में मधुरता लाता है और दोषों को दूर करता है। बुध ग्रह व्यापार और धन के स्वामी हैं। उनकी कृपा से व्यापार में वृद्धि होती है। रोग और दोषों को दूर करता है, और सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं। उनके आशीर्वाद से ग्रह दोष शांत होते हैं और जीवन में सकारात्मकता,  सुख, समृद्धि और मानसिक शांति और संतोष प्राप्त होती है।

बुध चालीसा का पाठ किस दिन और किस समय करना सबसे शुभ माना जाता है?

बुध चालीसा का पाठ हरे रंग के वस्त्र पहनकर और हरे रंग के आसन में बैठकर प्रातः काल - बुधवार का दिन से प्रारंभ करना सर्वोत्तम है। चालीसा का पाठ करने से पूर्व बुधदेव का पूजन करें। पूजा स्थल को स्वच्छ करें और बुध देव का चित्र या यंत्र स्थापित करें और तुलसी पत्र से पूजा करें। हरे मूंग और गुड़ का भोग लगाएं। संभव हो तो  

बीज मंत्र:

"ॐ बुं बुधाय नमः।"

अथवा बुध गायत्री मंत्र:

"ॐ गजाननाय विद्महे सुशांताय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात्।"

मंत्र का 108 बार जाप करें। "बुध चालीसा" का पाठ करें और अंत में, प्रसाद वितरित करें और बुध देव से आशीर्वाद प्राप्त करें।

श्री बुध चालीसा

Budh Chalisa

बुध चालीसा

॥ दोहा ॥

नमो नमो जय श्री बुध राजा ।

करहुं कृपा मोहि जानि कायर अधम का ॥

करहुं कृपा कृपानिधि बुध सदा सहाय ।

रोग दोष दुख हरो अनाथ के नाथ ॥

॥ चौपाई ॥

जयति जयति बुध देव दयाला ।

सदा करत जो सुकृत प्रतिपाला ॥

जटा मुकुट सिर शोभित भारी ।

त्रिपुण्ड चंदन रेखा प्यारी ॥

गरल कनठ सर्प जग माला ।

नाग कंकन कर मंडित भाला ॥

ब्रह्म रूप वर शुभ्र सरीरा ।

करत सदा जन कल्याण अधीरा ॥

श्वेत कमल आसन मन भावा ।

संत करत सदा मंगल ध्यावा ॥

कुंजल बिराजत छवि नयनी ।

अति मनोहर मंगल गुन खानी ॥

काटत पातक पंक भरारा ।

बुध ग्रह दुष्ट नरक सँसारा ॥

सुख सृखावत सब फल साता ।

रोग दोष संकट हरण विधाता ॥

बुध की महिमा अपरंपारा ।

किया जानि मनुज दुख निवारा ॥

लाख के वचन धरत दर साता ।

रोग हरण बुध दया विहाता ॥

ग्रह अनिष्ट जो नर पर छाए ।

रोग दोष भय मिटै नहिं जाऐ ॥

तिन्ह पर बुद्ध अनुग्रह होई ।

काटि दै सब संकट मोहे ॥

जनम जनम के पातक भारी ।

काटि दै सब बुध मति तारी ॥

सुर नर मुनि नित्य गुण गावे ।

यश गावत बुध सुख पावे ॥

रोग दोष संकट सब हारी ।

धरहुं धीर बुध हरहु पाप भारी ॥

नित नव मंगल करत सवारी ।

रोग दोष बुध हरहु भारी ॥

अधम कायर मतिहीन हमारा ।

करहुं कृपा बुध हरो दुख सारा ॥

सुख संपत्ति दै करहुं उपाई ।

जन मन रंजन मंगल लाई ॥

बुध सुधी सील रूप सुहावा ।

संत ध्यावत मंगल भावा ॥

विनय करौं बुध देव तुम्हारी ।

संकट हरो हे पातक भारी ॥

अधम कायर सुबुद्धि सुधारा ।

करहुं कृपा हरो दुख सारा ॥

महा संकट में तिन्हें उबारो ।

अधम कायर सुबुद्धि सुधारो ॥

हरहुं पाप बुध महा विधाता ।

सुर नर मुनि सदा शुभ गाता ॥

बुध की महिमा अपार पावे ।

अधम कायर सब संकट हरे ॥

जयति जयति बुध देव सहाय ।

कृपा करहुं हरहुं सब भय ॥

॥ दोहा ॥

नमो नमो जय बुध सुख कारी ।

दुख दारिद्र्य मिटाओ भारी ॥

यह चालीसा बुध ग्रह का पाठ ।

करहुं कृपा बुध हरो सब कष्ट ॥

॥ इति संपूर्णंम् ॥

बुध देव की आरती

जय श्री बुधदेवा, स्वामी जय श्री बुधदेवा ।

छोटे बड़े सभी नर-नारी, करें तेरी सेवा ॥

सुख करता दुख हरता, जय जय आनन्द दाता।

जो प्रेम भाव से पूजे, वह सब कुछ है पाता ॥

सिंह आपका वाहन है, है ज्योति सबसे न्यारी ।

शरणागत प्रतिपालक, हो भक्त के हितकारी ।।

तुम हो दीनदयाल दयानिधि, भव बन्धन हारी ।

वेद पुराण बखानत, तुम हो भय-पातक हारी ॥

सद् गृहस्थ हृदय में, बुधराजा तेरा ध्यान धरें ।

जग के सब नर-नारी, व्रत और पूजा-पाठ करें ॥

विश्व चराचर पालक, कृपासिन्धु शुभ कर्ता ।

सकल मनोरथ पूर्णकर्ता, भव बन्धन हर्ता ॥

श्री बुध देव की आरती, जो प्रेम सहित गावे ।

सब संकट मिट जाएँ, अतुलित धन वैभव पावे ।।

श्री बुध चालीसा व आरती समाप्त ।।

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