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शुक्र चालीसा

शुक्र चालीसा

शुक्र चालीसा श्री शुक्र देव को समर्पित एक भक्ति स्तुति है। शुक्र देवता को धन, वैभव, सौंदर्य, प्रेम, कला, और संगीत का स्वामी माना जाता है। शुक्र ग्रह कुंडली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसका सकारात्मक प्रभाव व्यक्ति को रचनात्मकता, आकर्षण, और सफलता प्रदान करता है। नियमित रूप से इस चालीसा का पाठ शुक्र दोष को समाप्त कर जीवन में खुशहाली लाता है, जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करता है और कुंडली में शुक्र ग्रह के अशुभ प्रभावों को कम करता है। शुक्र देव की आराधना से दांपत्य जीवन में प्रेम और सौहार्द बढ़ता है तथा शुक्र देव की कृपा से शुभ कार्य सफल होते हैं।

शुक्र चालीसा

शुक्र चालीसा का पाठ करने के क्या लाभ हैं?

श्री शुक्र चालीसा व्यक्ति को समृद्धि, शांति, और वैवाहिक सौहार्द प्रदान करती है। शुक्र देव की कृपा से सभी प्रकार के संकट समाप्त होते हैं और व्यक्ति के जीवन में रचनात्मकता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। नियमित पाठ करने से व्यक्ति को आत्मिक और भौतिक उन्नति प्राप्त होती है। श्री शुक्र चालीसा में शुक्र देव के शांत, सुशोभित, और दयालु स्वरूप का वर्णन किया गया है। उनकी कृपा से व्यक्ति के जीवन में धन, वैभव, और प्रेम का संचार होता है। उनके आशीर्वाद से सभी प्रकार के रोग, कष्ट, और बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। इसका पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक शांति, आत्मिक संतुलन और भौतिक समृद्धि प्राप्त होती है।

शुक्र चालीसा का पाठ किस दिन और किस समय करना सबसे शुभ माना जाता है?

शुक्र चालीसा का पाठ गुलाबी या चटकदार अथवा स्वच्छ श्वेत वस्त्र पहनकर और गुलाबी रंग के आसन में बैठकर प्रातःकाल या सूर्यास्त के समय शुक्रवार का दिन से प्रारंभ करना सर्वोत्तम है। चालीसा का पाठ करने से पूर्व शुक्रदेव का पूजन करें। पूजा स्थल को स्वच्छ करें और शुक्र देव का चित्र या यंत्र स्थापित करें। घी का दीपक और अगरबत्ती जलाकर पूजा प्रारंभ करें। शुद्ध जल और सफेद पुष्प, चंदन, पंचामृत और तुलसी के पत्ते अर्पित करें। मिश्री और सफेद मिठाई का भोग लगाएं। संभव हो तो  

श्री शुक्र देव के बीज मंत्र:

"ॐ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः।"

शुक्र गायत्री मंत्र:

"ॐ भृगु पुत्राय विद्महे धीराय धीमहि। तन्नः शुक्रः प्रचोदयात।"

अथवा

"ॐ शुक्राय नमः" मंत्र का जाप 108 बार करें। श्रद्धा और भक्ति से श्री शुक्र चालीसा का पाठ करें। पूजा समाप्ति पर प्रसाद वितरित करें और शुक्र देव से कृपा की प्रार्थना करें।

श्री शुक्र चालीसा

Shukra Chalisa

शुक्रचालीसा

॥दोहा॥

श्री गणपति गुरु गउ़रि, शंकर हनुमत कीन्ह ।

बिनवउं शुभ फल देन हरि, मुद मंगल दीन ॥

॥चौपाई॥

जयति जयति शुक्र देव दयाला ।

करत सदा जनप्रतिपाला ॥

श्वेताम्बर, श्वेत वारन, शोभित ।

मुख मंद, चंदन हिय लोभित ॥

सुन्दर रत्नजटित आभूषण ।

प्रियहिं मधुर, शीतल सुवासण ॥

सप्त भुज, सोभा निधि लावण्य ।

करत सदा जन, मंगल कान्य ॥

मंगलमय, सुख सदा सवारथ ।

दीनदयालु, कृपा निधि पारथ ॥

शुभ्र स्वच्छ, गंगा जल जैसा ।

दर्शन से, हरषाय मनैसा ॥

त्रिभुवन, महा मंगल कारी ।

दीनन हित, कृपा निधि सारी ॥

देव दानव, ऋषि मुनि भक्तन ।

कष्ट मिटावन, भंजन जगतन ॥

मोहबारी, मनहर हियरा ।

सर्व विधि सुख, सौख्य फुलारा ॥

करत क्रोध, चपल भुज धारी ।

कष्ट निवारण, संत दुखारी ॥

शुभ्र वर्ण, तनु मंद सुहाना ।

कष्ट मिटावन, हर्षित नाना ॥

दुष्ट हरण, सुजनन हितकारी ।

सर्व बाधा, निवारण न्यारी ॥

सुर पतिहिं, प्रभु कृपा विलासिन ।

कष्ट निवारण, शुभ्र सुवासिन ॥

वेद पुरान, पठत जन स्वामी ।

मनहरण, मोहबारी कामी ॥

सप्त भुज, रत्नजटित माला ।

कष्ट निवारण, शुभ फलशाला ॥

सुख रक्षक, सर्वसुख दाता ।

सर्व कामना, फल दाता ॥

मानव कृत, पाप हरे प्रभु ।

सर्व बाधा, निवारण रघु ॥

रोग निवारण, दुख हरणकर ।

सर्व विधि, शुभ फल देनेकर ॥

नमन सकल, सुर नर मुनि करते ।

व्रत उपासक, दुख हरण करते ॥

शरणागत, कृपा निधि सोइ ।

जन रक्षक, मोहे दुख होई ॥

शुद्ध भाव, से जो नित गावै ।

सर्व सुख, परम पद पावै ॥

वृन्दावन में, मंदिर निर्मित ।

जहां शुद्ध भक्तन, सदा शरणागत ॥

संत जनन के, कष्ट मिटावत ।

भवबंधन से, सहज छुड़ावत ॥

सकल कामना, पूर्ण करावत ।

मोहभंग, भवसागर तरावत ॥

जयति जयति, कृपानिधान ।

शुक्र देव, श्री विश्व विद्धान ॥

प्रणवउं, नाथ सकल गुण सागर ।

विविध विघ्न हरन, सुखदायक ॥

सुर मुनि जनन, अति प्रिय स्वामी ।

शुभ्र वर्ण, रूप मनहारी ॥

जय जय जय, श्री शुक्र दयाला ।

करहुं कृपा, भव बंधन ताला ॥

ध्यान धरत, जन होउं सुखारी ।

कृपा दृष्टि, शांति हितकारी ॥

अधम कायर, सुबुद्धि सुधारो ।

मोह निवारण, कष्ट निवारो ॥

लक्ष्मीपति, शुभ फल दाता ।

संतजनन, दुख भंजन राता ॥

जय जय जय, कृपा निधि शुक्र ।

करहुं कृपा, हरहुं सब दु:ख ॥

प्रणवउं नाथ, सकल गुण सागर ।

विविध विघ्न हरन, सुखदायक ॥

रूप तेज बल, संपन्न सदा ।

शांति दायक, जन सुख दाता ॥

त्रिभुवन में, मंगल करतू ।

सर्व बाधा, हरता शुकृ ॥

मानव कृत, पाप हरे प्रभु ।

सर्व बाधा, निवारण रघु ॥

रोग निवारण, दुख हरणकर ।

सर्व विधि, शुभ फल देनेकर ॥

प्रणवउं नाथ, सकल गुण सागर ।

विविध विघ्न हरन, सुखदायक ॥

ध्यान धरत, जन होउं सुखारी ।

कृपा दृष्टि, शांति हितकारी ॥

जय जय जय, कृपा निधि शुक्र ।

करहुं कृपा, हरहुं सब दु:ख ॥

॥दोहा॥

नमो नमो श्री शुक्र सुहावे ।

सर्व बाधा, कष्ट मिटावे ॥

यह चालीसा, जो नित गावै ।

सुख संपत्ति, परम पद पावै ॥

॥ इति संपूर्णंम् ॥

श्री शुक्रवार की आरती

शुक्र ग्रह के लिए कोई विशेष "शुक्र देव आरती" नहीं है, बल्कि शुक्रवार के दिन भगवान लक्ष्मण जी की आरती की जाती है, जिसमें शुक्रवार आरती लिखा होता है, क्योंकि कुछ लोग मानते हैं कि शुक्र देव की कृपा के लिए यह आरती करनी चाहिए। इस आरती के बोल हैं: "आरती लक्ष्मण बालजती की, असुर संहारण प्राणपति की।

शुक्रवार की आरती

आरती लक्ष्मण बालजती की,

असुर संहारन प्राणपति की। टेक।

जगमग ज्योत अवधपुरी राजे,

शेषाचल पे आप बिराजै।

घंटा ताल पखावज बाजै,

कोटि देव मुनि आरती साजै।

क्रीट मुकुट कर धनुष विराजै,

तीन लोक जाकी शोभा राजै।

कंचन थार कपूर सुहाई,

आरती करत सुमित्रा माई।

आरती कीजै हरि की तैसी,

ध्रुव प्रह्लाद वि‍भीषण जैसी।

प्रेम मगन होय आरती गावैं,

बसि बैकुंठ बहुरि नहिं आवै।

भक्ति हेतु लाड़ लड़वै,

जब घनश्याम परम पद पावै।

श्री शुक्र चालीसा व आरती समाप्त ।।

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