गणेश कवच
छियासी श्रीगणेशपुराण उत्तरखण्ड के
८६ वें अध्याय में वर्णित इस गणेश कवच का नियमित पाठ करने से भक्त पर किसी भी
प्रकार का तंत्र, मंत्र प्रभावी नहीं
होता है, यह कवच भक्तजनों की विभिन्न दुखों और आपदाओं से भी
सुरक्षा करता है।
श्रीगणेश कवचम्
Shri Ganesh Kavacham
श्रीगणेश कवचं
श्री गणपति कवच
गणेशकवच
गौर्युवाच
एषोऽतिचपलो दैत्यान्बाल्येऽपि
नाशयत्यहो ।
अग्रे किं कर्म कर्तेति न जाने
मुनिसत्तम ॥ १॥
पार्वती जी बोले: हे ऋषि श्रेष्ठ
(मरीचि मुनि) ! हमारा पुत्र गणेश अत्यधिक चपल हो गया है बचपन से इन्होंने दुष्टों
को मारा है और आश्चर्यचकित कार्य कर दिखाए हैं इससे आगे क्या होगा मुझे मालूम नहीं
है।
दैत्या नानाविधा दुष्टाः
साधुदेवद्रुहः खलाः ।
अतोऽस्य कण्ठे किंचित्त्वं रक्षार्थं
बद्धुमर्हसि ॥ २ ॥
नकारात्मक प्रवृत्तियों वाले
व्यक्तियों से बचने के लिए बाल गणेश के गले में ताबीज आदि बांधने के विषय में कहो।
गणपति कवचं
मुनिरुवाच
ध्यायेत्सिंहहतं विनायकममुं
दिग्बाहुमाद्ये
युगेत्रेतायां तु मयूरवाहनममुं
षड्बाहुकं सिद्धिदम् ।
द्वापारे तु गजाननं युगभुजं
रक्ताङ्गरागं विभुम्तुर्ये
तु द्विभुजं सिताङ्गरुचिरं
सर्वार्थदं सर्वदा ॥ ३॥
मुनि जी बोले: सतयुग में दस हाथ
धारण करके सिंह पर सवार होने वाले विनायक जी का ध्यान करें। त्रेता युग में छः हाथ
धारण करके व मयूर की सवारी करने वाले, द्वापर
युग में चार भुजावाले, नाव में अवतरित रक्तवर्ण गजानन का
ध्यान करें तथा कलयुग में दो हाथ व सुंदर श्वेत स्वरूप धारण करके अवतार लेने वाले
और अपने भक्तों को सभी प्रकार के सुख देने वाले गणेश जी का ध्यान करें।
विनायकः शिखां पातु परमात्मा
परात्परः ।
अतिसुन्दरकायस्तु मस्तकं सुमहोत्कटः
॥ ४॥
परमात्मा विनायक आप शिखा स्थान में
हमारी रक्षा करें। अतिशय सुंदर शरीर वाले अत्यंत समर्थवान गणेश जी मस्तक में रक्षा
करें।
ललाटं कश्यपः पातु भृयुगं तु महोदरः
।
नयने भालचन्द्रस्तु
गजास्यस्त्वोष्ठपल्लवौ ॥ ५॥
कश्यप के पुत्र गणेश ललाट में हमारी
रक्षा करें, विशाल उधर वाले गणेश जी हमारी
भोहों में रक्षा करें। भालचंद्र गणेश जी हमारी आंखों की रक्षा करें और गज बदन गणेश
मुख्य की एवं दोनों होठों की रक्षा करें।
जिह्वां पातु गणक्रीडश्चिबुकं
गिरिजासुतः ।
वाचं विनायकः पातु दन्तान् रक्षतु
विघ्नहा ॥ ६॥
शिवगणों में बराबर क्रीड़ा करने
वाले गणेश जी हमारे ठोडी की रक्षा करें, गिरिजेश
पुत्र गणेश जी हमारे तालु की रक्षा करें, विनायक हमारी वाणी
की रक्षा करें और विघ्नहर्ता गणेश जी दांतो की रक्षा करें।
श्रवणौ पाशपाणिस्तु नासिकां
चिन्तितार्थदः ।
गणेशस्तु मुखं कण्ठं पातु देवो
गणञ्जयः ॥ ७॥
हाथों के मध्य पाश धारण करने वाले
गणेश जी दोनों कानों की रक्षा करें, मनोवांछित
फल देने वाले गणेश जी नाक की रक्षा करें। गणों के अधिपति गणेश जी हमारे मुख एवं
गले की रक्षा करें।
स्कन्धौ पातु गजस्कन्धः स्तनौ
विघ्नविनाशनः ।
हृदयं गणनाथस्तु हेरंबो जठरं महान्
॥ ८॥
गजस्कंध गणेश जी स्कंधों की रक्षा
करें। विघ्नों के विनाशक गणेश जी हमारे स्तनों की रक्षा करें। गणनाथ गणेश हमारे
हृदय की रक्षा करें और परम श्रेष्ठ हेरम्ब हमारे पेट की रक्षा करें।
धराधरः पातु पार्श्वौ पृष्ठं
विघ्नहरः शुभः ।
लिङ्गं गुह्यं सदा पातु वक्रतुण्डो
महाबलः ॥ ९॥
धरणीधर गणेश जी हमारे दोनों बांहों
की रक्षा करें। सर्वमंगल व विघ्नहर्ता गणेश जी आप हमारे पीठ की रक्षा करें।
वक्रतुंड और महा सामर्थवान गणेश जी हमारे लिंग व गुह्म की रक्षा करें।
गणक्रीडो जानुसङ्घे ऊरु
मङ्गलमूर्तिमान् ।
एकदन्तो महाबुद्धिः पादौ गुल्फौ
सदाऽवतु ॥ १०॥
गणक्रीडा नाम धारण करने वाले गणेश
जी आप हमारे दोनों घुटनों के जांघों की रक्षा करें। मंगलमूर्ति दोनों ऊरू की रक्षा
करें। एकदंत गणेश जी आप हमारे दोनों पांव और महाबुद्धि वाले गणेश जी हमारे गुल्फों
की रक्षा करें।
क्षिप्रप्रसादनो बाहू पाणी
आशाप्रपूरकः ।
अङ्गुलीश्च नखान्पातु
पद्महस्तोऽरिनाशनः ॥ ११॥
शीघ्र प्रसन्न होने वाले गणेश जी
दोनों बाहुओं की रक्षा करें, भक्तों की
मनोकामना पूर्ण करने वाले हमारे हाथों की रक्षा करें। हाथों में पदम धारण करने
वाले और शत्रुओं का नाश करने वाले गणेश जी आप हमारी उंगलियों तथा नाखूनों की रक्षा
करें।
सर्वाङ्गानि मयूरेशो विश्वव्यापी
सदाऽवतु ।
अनुक्तमपि यत्स्थानं धूम्रकेतुः
सदाऽवतु ॥ १२॥
संपूर्ण विश्वव्यापी मयूरेश
सर्वांगों अर्थात सभी अंगों की रक्षा करें। जो स्थान स्त्रोत में नहीं कहे गए हो
उनकी रक्षा धूम्रकेतु नामक गणेश जी महाराज करें।
आमोदस्त्वग्रतः पातु प्रमोदः
पृष्ठतोऽवतु ।
प्राच्यां रक्षतु बुद्धीश आग्नेयां
सिद्धिदायकः ॥१३॥
प्रसन्नचित्त नाव में विचरण करने
वाले गणेश जी बाजूओं के पीछे की रक्षा करें और बाजुओं के आगे की रक्षा करें,
बुद्धि के अधिपति पूर्व दिशा में हमारी रक्षा करें तथा सिद्धिदायक
आग्नेय दिशा में हमारी रक्षा करें।
दक्षिणास्यामुमापुत्रो नैरृत्यां तु
गणेश्वरः ।
प्रतीच्यां
विघ्नहर्ताऽव्याद्वायव्यां गजकर्णकः ॥ १४॥
उमा के पुत्र गणेश जी दक्षिण दिशा
में हमारी रक्षा करें, गणों के अधिपति
नेत्रत्य दिशा में हमारी रक्षा करें। विघ्नहर्ता गणेश जी पश्चिम दिशा में हमारी
रक्षा करें और गजकर्ण वायव्य दिशा में हमारी रक्षा करें।
कौबेर्यां निधिपः
पायादीशान्यामीशनन्दनः ।
दिवाऽव्यादेकदन्तस्तु रात्रौ
सन्ध्यासु विघ्नहृत् ॥ १५॥
निधि में अधिपति गणेश जी उत्तर दिशा
में हमारी रक्षा करें। शिवपुत्र गणेश जी ईशान दिशा में हमारी रक्षा करें,
एकदंत गणेश जी आप दिन में हमारी रक्षा करें। विघ्नहर्ता रात्रि व
संध्याकाल में हमारी रक्षा करें।
राक्षसासुरवेतालग्रहभूतपिशाचतः ।
पाशाङ्कुशधरः पातु रजःसत्त्वतमः
स्मृतिः ॥ १६॥
पाश अंकुश धारण करने वाले व सत रज
तम तीन गुणों से जाने जाने वाले गणेश जी आप राक्षस, दैत्य, वैताल, ग्रह, भूत पिशाच आदि से हमारी रक्षा करें।
ज्ञानं धर्मं च लक्ष्मीं च लज्जां
कीर्ति तथा कुलम् ।
वपुर्धनं च धान्यं च
गृहान्दारान्सुतान्सखीन् ॥ १७॥
ज्ञान,
धर्म, धन, धान्य, लज्जा, कीर्ति, कुल, शरीर, स्त्री, पुत्र और मित्रों की रक्षा करें।
सर्वायुधधरः पौत्रान्
मयूरेशोऽवतात्सदा ।
कपिलोऽजादिकं पातु
गजाश्वान्विकटोऽवतु ॥ १८॥
सर्व आयुध धारण करने वाले गणेश जी
पोत्रों की रक्षा करें। कपिल नाम गणेश बकरी, गाय
आदि की रक्षा करें। हाथी घोड़ों की रक्षा विकट नाम के गणेश जी करें।
गणपति कवच फलश्रुति:
भूर्जपत्रे लिखित्वेदं यः कण्ठे
धारयेत्सुधीः ।
न भयं जायते तस्य यक्षरक्षःपिशाचतः
॥ १८॥
जो उत्कृष्ट बुद्धिमान मनुष्य इस
कवच को भोजपत्र पर लिखकर गले में धारण करता है। उसके सामने कभी यक्ष राक्षस व
पिशाच नहीं आते।
त्रिसन्ध्यं जपते यस्तु
वज्रसारतनुर्भवेत् ।
यात्राकाले पठेद्यस्तु निर्विघ्नेन
फलं लभेत् ॥ २०॥
जो कोई प्रातः दोपहर व संध्याकाल
तीनों काल में कवच स्त्रोत का पाठ करता है तथा विधि पूर्वक जब करता है उसका शरीर
वज्र जैसा कठोर बन जाता है। जो कोई यात्रा के समय इसका पाठ करता है उसकी यात्रा
सफल होती है, बिना विघ्न के उसे अच्छा फल
मिलता है।
युद्धकाले पठेद्यस्तु विजयं
चाप्नुयाद्द्रुतम् ।
मारणोच्चाटकाकर्षस्तम्भमोहनकर्मणि ॥
२१॥
युद्ध के समय वीर पुरुष इस कवच को
पढ़ने से शत्रु पर विजय पता है। मारण, उच्चाटन,
आकर्षण, स्तंभन व मोहन ऐसी क्रिया करते हैं
जिससे शत्रु पर विजय प्राप्त होती है।
सप्तवारं जपेदेतद्दिनानामेकविंशतिम्
।
तत्तत्फलवाप्नोति साधको नात्रसंशयः
॥२२॥
जो कोई प्रतिदिन सात बार इसका पाठ
करता है या इक्कीसवे दिन इस कवच का पाठ करने से साधक को अभीष्ट फल की प्राप्ति
होती है।
एकविंशतिवारं च पठेत्तावद्दिनानि यः
।
कारागृहगतं सद्योराज्ञा वध्यं च
मोचयेत् ॥ २३॥
जो कोई प्रतिदिन इक्कीस बार के नियम
से इक्कीस दिन लगातार इसका पाठ करता है तो वह कारागृह एवं राज बंधन से मुक्त हो
जाता है।
राजदर्शनवेलायां पठेदेतत्त्रिवारतः
।
स राजसं वशं नीत्वा प्रकृतीश्च सभां
जयेत् ॥ २४॥
राजा के दर्शन के समय जो कोई पुरुष
इस कवच को तीन बार पाठ करें तो निश्चित ही वह राजा को वश में करके राज सभा में
विजय व सम्मान प्राप्त करता है।
इदं गणेशकवचं कश्यपेन समीरितम् ।
मुद्गलाय च ते नाथ माण्डव्याय
महर्षये ॥ २५॥
मरीच ऋषि पार्वती से बोले कि यह
गणेश कवच कश्यप जी ने मुद्गल ऋषि को सुनाया तथा मुद्गल ऋषि ने मांडव्य ऋषि को
सुनाया।
मह्यं स प्राह कृपया कवचं
सर्वसिद्धिदम् ।
न देयं भक्तिहीनाय देयं श्रद्धावते
शुभम् ॥ २६॥
मांडव्य ऋषि ने सर्वसिद्धि देने
वाली यह कवच पाठ मुझे पढ़ाया, हे देवी इसे
भक्तिहीन मनुष्य को नहीं देना चाहिए। श्रद्धावान मनुष्य को यह कवच पाठ देना
लाभदायक होता है।
यस्यानेन कृता रक्षा न बाधास्य
भवेत्क्वचित् ।
राक्षसासुरवेतालदैत्यदानवसम्भवा ॥
२७॥
हे देवी इस गणेश कवच के पाठ से बाल
गणेश की रक्षा होगी। हमारे शत्रु, राक्षस,
दैत्य, दानव, असुर से
कोई भय नहीं रहेगा। यह सुनिश्चित समझो।
॥ इति श्रीगणेशपुराणे उत्तरखण्डे बालक्रीडायां षडशीतितमेऽध्याये गणेशकवचं सम्पूर्णम् ॥

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