पूजन विधि, ज्योतिष, स्तोत्र संग्रह, व्रत कथाएँ, मुहूर्त, पुजन सामाग्री आदि

आरती संग्रह

आरती संग्रह

आरती हिन्दू उपासना की एक विधि है। इसमें जलती हुई लौ या इसके समान कुछ खास वस्तुओं से आराध्य के सामाने एक विशेष विधि से घुमाई जाती है। ये लौ घी या तेल के दीये की हो सकती है या कपूर की।यहाँ पाठकों के लाभार्थ कुछ देवी-देवताओं की आरती संग्रह दिया जा रहा है ।

आरती संग्रह

आरती संग्रह

Aarti Sangrah

आरतीसंग्रह

गणेश जी की आरती

॥ श्री गणेश जी की आरती ॥

Shri Ganesh Ji Ki Aarti

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ।

माता जाकी पारवती पिता महादेवा ॥

एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी ।

माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी ॥

पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा ।

लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा ॥

अंधे को आँख देत कोढ़िन को काया ।

बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया ॥

सूर श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा ।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ॥

॥ इति आरती श्री गणेश सम्पूर्णम ॥

शिवजी की आरती

॥ शिवजी की आरती ॥

Shiv Ji Ki Aarti

जय शिव ओंकारा हर जय शिव ओंकारा

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्धांगी धारा ॥ टेक॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे

हंसानन गरुडासन वृषवाहन साजे ॥ जय॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे

तीनों रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ जय॥

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी

चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ जय॥

श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे

सनकादिक गरुडादिक भूतादिक संगे ॥ जय॥

कर मध्ये सुकमण्डल चक्र त्रिशूल धर्ता

जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ जय॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका

प्रणवाक्षर ॐ मध्ये ये तीनों एका ॥ जय॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दो ब्रह्मचारी

नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ जय॥

त्रिगुण स्वामी की आरती जो कोई नर गावे

कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ जय॥

॥ इति आरती शिवजी सम्पूर्णम ॥

श्री गुरुदेव जी की आरती

॥ आरती श्री गुरु देव जी की ॥

Aarti Shri Guru Dev Ji Ki

जय गुरुदेव दयानिधि दीनन हितकारी,

स्वामी भक्तन हितकारी ।

जय जय मोह विनाशक भव बंधन हारी ॥

ॐ जय जय जय गुरुदेव ।

ब्रह्मा विष्णु सदा शिव, गुरु मूरति धारी,

वेद पुराण बखानत, गुरु महिमा भारी । ॐ जय ।

जप तप तीरथ संयम दान बिबिध दीजै,

गुरु बिन ज्ञान न होवे, कोटि जतन कीजै । ॐ जय ।

माया मोह नदी जल जीव बहे सारे,

नाम जहाज बिठा कर गुरु पल में तारे । ॐ जय ।

काम क्रोध मद मत्सर चोर बड़े भारे,

ज्ञान खड्ग दे कर में, गुरु सब संहारे । ॐ जय ।

नाना पंथ जगत में, निज निज गुण गावे,

सबका सार बताकर, गुरु मारग लावे । ॐ जय ।

पाँच चोर के कारण, नाम को बाण दियो,

प्रेम भक्ति से सादा, भव जल पार कियो । ॐ जय ।

गुरु चरणामृत निर्मल सब पातक हारी,

बचन सुनत तम नाशे सब संशय हारी । ॐ जय ।

तन मन धन सब अर्पण गुरु चरणन कीजै,

ब्रह्मानंद परम पद मोक्ष गति लीजै । ॐ जय ।

श्री सतगुरुदेव की आरती जो कोई नर गावै,

भव सागर से तरकर, परम गति पावै । ॐ जय ।

जय गुरुदेव दयानिधि दीनन हितकारी,

स्वामी भक्तन हितकारी I

जय जय मोह विनाशक भव बंधन हारी ॥

ॐ जय जय जय गुरुदेव ।

॥ इति आरती श्री गुरु देव जी सम्पूर्णम ॥

श्री जगदीशजी आरती

॥ आरती श्री जगदीश जी ॥

Aarti Shri Jagdish Ji

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी !

जय जगदीश हरे।

भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ १ ॥

ॐ जय जगदीश हरे।

जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।

स्वामी दुःख विनसे मन का।

सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ २ ॥

ॐ जय जगदीश हरे।

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।

स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।

तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥ ३ ॥

ॐ जय जगदीश हरे।

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।

स्वामी तुम अन्तर्यामी।

पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ४ ॥

ॐ जय जगदीश हरे।

तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।

स्वामी तुम पालन-कर्ता।

मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ५ ॥

ॐ जय जगदीश हरे।

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

स्वामी सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ६ ॥

ॐ जय जगदीश हरे।

दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।

स्वामी तुम ठाकुर मेरे।

अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ७ ॥

ॐ जय जगदीश हरे।

विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।

स्वमी पाप हरो देवा।

श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥ ८ ॥

ॐ जय जगदीश हरे।

श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।

स्वामी जो कोई नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥ ९ ॥

ॐ जय जगदीश हरे।

॥ इति आरती श्री जगदीश जी सम्पूर्णम ॥

श्री नरसिंह भगवान की आरती

॥ आरती श्री नरसिंह भगवान की ॥

Aarti Shri Narasimha Bhagwan Ki

ॐ जय नरसिंह हरे, प्रभु जय नरसिंह हरे।

स्तम्भ फाड़ प्रभु प्रकटे,

स्तम्भ फाड़ प्रभु प्रकटे, जन का ताप हरे॥ १ ॥

ॐ जय नरसिंह हरे॥

तुम हो दीन दयाला,

भक्तन हितकारी, प्रभु भक्तन हितकारी।

अद्भुत रूप बनाकर,

अद्भुत रूप बनाकर, प्रकटे भय हारी॥ २ ॥

ॐ जय नरसिंह हरे॥

सबके ह्रदय विदारण,

दुस्यु जियो मारी, प्रभु दुस्यु जियो मारी।

दास जान अपनायो,

दास जान अपनायो, जन पर कृपा करी॥ ३ ॥

ॐ जय नरसिंह हरे॥

ब्रह्मा करत आरती,

माला पहिनावे, प्रभु माला पहिनावे।

शिवजी जय जय कहकर, पुष्पन बरसावे॥ ४ ॥

ॐ जय नरसिंह हरे॥

॥ इति आरती श्री नरसिंह भगवान सम्पूर्णम ॥

हनुमानजी की आरती

॥ हनुमानजी की आरती ॥

Hanuman Ji Ki Aarti

आरती किजे हनुमान लला की ।

दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

जाके बल से गिरवर काँपे ।

रोग दोष जाके निकट ना झाँके ॥

अंजनी पुत्र महा बलदाई ।

संतन के प्रभु सदा सहाई ॥

दे वीरा रघुनाथ पठाये ।

लंका जाये सिया सुधी लाये ॥

लंका सी कोट संमदर सी खाई ।

जात पवनसुत बार न लाई ॥

लंका जारि असुर संहारे ।

सियाराम जी के काज सँवारे ॥

लक्ष्मण मुर्छित पडे सकारे ।

आनि संजिवन प्राण उबारे ॥

पैठि पताल तोरि जम कारे ।

अहिरावन की भुजा उखारे ॥

बायें भुजा असुर दल मारे ।

दाहीने भुजा सब संत जन उबारे ॥

सुर नर मुनि जन आरती उतारे ।

जै जै जै हनुमान उचारे ॥

कचंन थाल कपूर लौ छाई ।

आरती करत अंजनी माई ॥

जो हनुमान जी की आरती गाये ।

बसहिं बैकुंठ परम पद पायै ॥

लंका विध्वंश किये रघुराई ।

तुलसीदास स्वामी किर्ती गाई ॥

आरती किजे हनुमान लला की ।

दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥

॥ इति आरती हनुमानजी सम्पूर्णम ॥

श्री कृष्णजी की आरती

॥ आरती श्री कृष्ण जी की ॥

Aarti Shri Krishan Ji Ki

ॐ जय श्री कृष्ण हरे, प्रभु जय श्री कृष्ण हरे ।

भक्तन के दुख टारे पल में दूर करे ॥

जय जय श्री कृष्ण हरे….

परमानन्द मुरारी मोहन गिरधारी ।

जय रस रास बिहारी जय जय गिरधारी ॥

जय जय श्री कृष्ण हरे….

कर कंचन कटि कंचन श्रुति कुंड़ल माला ।

मोर मुकुट पीताम्बर सोहे बनमाला ॥

जय जय श्री कृष्ण हरे….

दीन सुदामा तारे, दरिद्र दुख टारे ।

जग के फ़ंद छुड़ाए, भव सागर तारे ॥

जय जय श्री कृष्ण हरे….

हिरण्यकश्यप संहारे नरहरि रुप धरे ।

पाहन से प्रभु प्रगटे जन के बीच पड़े ॥

जय जय श्री कृष्ण हरे….

केशी कंस विदारे नर कूबेर तारे ।

दामोदर छवि सुन्दर भगतन रखवारे ॥

जय जय श्री कृष्ण हरे….

काली नाग नथैया नटवर छवि सोहे ।

फ़न फ़न चढ़त ही नागन, नागन मन मोहे ॥

जय जय श्री कृष्ण हरे….

राज्य विभिषण थापे सीता शोक हरे ।

द्रुपद सुता पत राखी करुणा लाज भरे ॥

जय जय श्री कृष्ण हरे….

ॐ जय श्री कृष्ण हरे ॥

॥ इति आरती श्रीकृष्ण सम्पूर्णम ॥

श्री कुंज बिहारी की आरती

॥ आरती श्री कुंज बिहारी की ॥

Aart Shri Kunj Bihari Ki

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥

गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला।

श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।

गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।

लतन में ठाढ़े बनमाली;भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक,

चंद्र सी झलक;ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।

गगन सों सुमन रासि बरसै;बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग,

ग्वालिन संग;अतुल रति गोप कुमारी की ॥

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।

स्मरन ते होत मोह भंगा;बसी सिव सीस, जटा के बीच,

हरै अघ कीच;चरन छवि श्रीबनवारी की ॥

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।

चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद,

कटत भव फंद;टेर सुन दीन भिखारी की ॥

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की

॥ इति आरती श्री कुंज बिहारी सम्पूर्णम ॥

श्री रामचन्द्रजी की आरती

॥ आरती श्री रामचन्द्रजी की ॥

Aarti Shri Ram Chandra Ji Ki

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं ।

नवकंज लोचन, कंजमुख, करकुंज, पदकंजारुणं ॥

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं ।

श्री राम श्री राम….

कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनीलनीरद सुन्दरं ।

पट पीत मानहु तडीत रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ॥

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं ।

श्री राम श्री राम….

भजु दीनबंधु दिनेश दानवदै त्यवंशनिकंदनं ।

रघुनंद आंनदकंद कोशलचंद दशरथनंदनं ॥

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं ।

श्री राम श्री राम

सिर मुकुट कूंडल तिलक चारु उदारु अंग विभुषणं ।

आजानु भुजा शरा चाप धरा, संग्राम जित खर दुषणं ॥

भुजा शरा चाप धरा, संग्राम जित खर दुषणं ॥

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं

इति वदित तुलसीदास शंकरशेषमुनिमनरंजनं ।

मम ह्रदयकंजनिवास कुरु, कमदि खल दल गंजनं ॥

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं ।

नवकंज लोचन, कंजमुख, करकुंज, पदकंजारुणं ॥

श्री राम श्री राम

॥ इति आरती श्री रामचन्द्रजी सम्पूर्णम ॥

श्री रामायण जी की आरती

॥ आरती श्री रामायण जी की ॥

Aarti Shri Ramayan Ji Ki

आरती श्री रामायण जी की

कीरत कलित ललित सिय पिय की।

गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद बाल्मीक विज्ञानी विशारद।

शुक सनकादि शेष अरु सारद वरनि पवन सुत कीरति निकी॥ १ ॥

आरती श्री रामायण जी की ..

संतन गावत शम्भु भवानी असु घट सम्भव मुनि विज्ञानी।

व्यास आदि कवि पुंज बखानी काकभूसुंडि गरुड़ के हिय की॥ २ ॥

आरती श्री रामायण जी की ….

चारों वेद पूरान अष्टदस छहों होण शास्त्र सब ग्रंथन को रस।

तन मन धन संतन को सर्वस सारा अंश सम्मत सब ही की॥ ३ ॥

आरती श्री रामायण जी की

कलिमल हरनि विषय रस फीकी सुभग सिंगार मुक्ती जुवती की।

हरनि रोग भव भूरी अमी की तात मात सब विधि तुलसी की ॥ ४ ॥

आरती श्री रामायण जी की ….

॥ इति आरती श्री रामायण सम्पूर्णम ॥

श्री सत्यानारायणजी की आरती

॥ आरती श्री सत्यानारायण जी की ॥

Aarti Shri Satya Narayan Ji Ki

ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी जय लक्ष्मीरमणा ।

सत्यनारायण स्वामी ,जन पातक हरणा

रत्नजडित सिंहासन , अद्भुत छवि राजें ।

नारद करत निरतंर घंटा ध्वनी बाजें ॥

ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी….

प्रकट भयें कलिकारण ,द्विज को दरस दियो ।

बूढों ब्राम्हण बनके ,कंचन महल कियों ॥

ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी…..

दुर्बल भील कठार, जिन पर कृपा करी ।

च्रंदचूड एक राजा तिनकी विपत्ति हरी ॥

ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी…..

वैश्य मनोरथ पायों ,श्रद्धा तज दिन्ही ।

सो फल भोग्यों प्रभूजी , फेर स्तुति किन्ही ॥

ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी…..

भाव भक्ति के कारन .छिन छिन रुप धरें ।

श्रद्धा धारण किन्ही ,तिनके काज सरें ॥

ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी…..

ग्वाल बाल संग राजा ,वन में भक्ति करि ।

मनवांचित फल दिन्हो ,दीन दयालु हरि ॥

ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी…..

चढत प्रसाद सवायों ,दली फल मेवा ।

धूप दीप तुलसी से राजी सत्य देवा ॥

ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी…..

सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे ।

ऋद्धि सिद्धी सुख संपत्ति सहज रुप पावे ॥

ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी…..

ॐ जय लक्ष्मीरमणा स्वामी जय लक्ष्मीरमणा।

सत्यनारायण स्वामी ,जन पातक हरणा ॥

॥ इति आरती श्री सत्यानारयण जी सम्पूर्णम ॥

श्री सूर्यदेव जी आरती

॥ आरती श्री सूर्य जी ॥

Aarti Shri Surya Ji

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

त्रिभुवन तिमिर निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन॥ १ ॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी।

दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी॥ २ ॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

सुर मुनि भूसुर वन्दित, विमल विभवशाली।

अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥ ३ ॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

सकल सुकर्म प्रसविता, सविता शुभकारी।

विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥ ४ ॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा।

सेवत साहज हरत अति मनसिज-संतापा॥ ५ ॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी।

वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥ ६ ॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।

हर अज्ञान-मोह सब, तत्त्वज्ञान दीजै॥ ७ ॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

॥ इति आरती श्री सूर्य जी सम्पूर्णम ॥

बृहस्पति देव की आरती

॥ आरती बृहस्पति देव की ॥

Aarti Brahaspati Dev Ki

जय बृहस्पति देवा, ऊँ जय बृहस्पति देवा ।

छि छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ॥१॥

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।

जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥२॥

चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।

सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥३॥

तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।

प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े ॥४॥

दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।

पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥५॥

सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।

विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ॥६॥

जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहत गावे ।

जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥७॥

॥ इति आरती बृहस्पति देव सम्पूर्णम ॥

श्री शनि देवजी की आरती

॥ आरती श्री शनि देवजी की ॥

Aarti Shri Shani Dev Ji Ki

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।

सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥ जय॥ १

श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी।

नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥ जय॥ २

क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी।

मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥ जय॥ ३

मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।

लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥ जय॥ ४

देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी।

विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥जय॥ ५

॥ इति आरती श्री शनि देवजी सम्पूर्णम ॥

श्री कालीमाता की आरती

॥ आरती श्री कालीमाता की ॥

Aarti Shri Kalimata Ki

मंगल की सेवा सुन मेरी देवा ,हाथ जोड तेरे द्वार खडे।

पान सुपारी ध्वजा नारियल ले ज्वाला तेरी भेट धरेसुन॥१॥

जगदम्बे न कर विलम्बे, संतन के भडांर भरे।

सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जै काली कल्याण करे ॥२॥

बुद्धि विधाता तू जग माता ,मेरा कारज सिद्व रे।

चरण कमल का लिया आसरा शरण तुम्हारी आन पडे॥३॥

जब जब भीड पडी भक्तन पर, तब तब आप सहाय करे।

गुरु के वार सकल जग मोहयो, तरूणी रूप अनूप धरेमाता॥४॥

होकर पुत्र खिलावे, कही भार्या भोग करेशुक्र सुखदाई सदा।

सहाई संत खडे जयकार करे ॥५॥

ब्रह्मा विष्णु महेश फल लिये भेट तेरे द्वार खडेअटल सिहांसन।

बैठी मेरी माता, सिर सोने का छत्र फिरेवार शनिचर॥६॥

कुकम बरणो, जब लकड पर हुकुम करे ।

खड्ग खप्पर त्रिशुल हाथ लिये, रक्त बीज को भस्म करे॥७॥

शुम्भ निशुम्भ को क्षण मे मारे ,महिषासुर को पकड दले ।

आदित वारी आदि भवानी ,जन अपने को कष्ट हरे ॥८॥

कुपित होकर दनव मारे, चण्डमुण्ड सब चूर करे।

जब तुम देखी दया रूप हो, पल मे सकंट दूर करे॥९॥

सौम्य स्वभाव धरयो मेरी माता ,जन की अर्ज कबूल करे ।

सात बार की महिमा बरनी, सब गुण कौन बखान करे॥१०॥

सिंह पीठ पर चढी भवानी, अटल भवन मे राज्य करे।

दर्शन पावे मंगल गावे ,सिद्ध साधक तेरी भेट धरे ॥११॥

ब्रह्मा वेद पढे तेरे द्वारे, शिव शंकर हरी ध्यान धरे।

इन्द्र कृष्ण तेरी करे आरती, चॅवर कुबेर डुलाय रहे॥१२॥

जय जननी जय मातु भवानी , अटल भवन मे राज्य करे।

सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, मैया जै काली कल्याण करे॥१३॥

॥ इति आरती श्री कालीमाता सम्पूर्णम ॥

श्री दुर्गा जी की आरती

॥ आरती श्री दुर्गा जी की ॥

Aarti Shri Durga Ji Ki

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी तुम को निस दिन ध्यावत

मैयाजी को निस दिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवजी ॥ जय अम्बे गौरी ॥ १ ॥

माँग सिन्दूर विराजत टीको मृग मद को ।मैया टीको मृगमद को

उज्ज्वल से दो नैना चन्द्रवदन नीको॥ जय अम्बे गौरी ॥ २ ॥

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर साजे। मैया रक्ताम्बर साजे

रक्त पुष्प गले माला कण्ठ हार साजे॥ जय अम्बे गौरी ॥ ३ ॥

केहरि वाहन राजत खड्ग कृपाण धारी। मैया खड्ग कृपाण धारी

सुर नर मुनि जन सेवत तिनके दुख हारी॥ जय अम्बे गौरी ॥ ४ ॥

कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती। मैया नासाग्रे मोती

कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योति॥ जय अम्बे गौरी ॥ ५ ॥

शम्भु निशम्भु बिडारे महिषासुर घाती। मैया महिषासुर घाती

धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती॥ जय अम्बे गौरी ॥ ६ ॥

चण्ड मुण्ड शोणित बीज हरे। मैया शोणित बीज हरे

मधु कैटभ दोउ मारे सुर भयहीन करे॥ जय अम्बे गौरी ॥ ७ ॥

ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी। मैया तुम कमला रानी

आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी॥ जय अम्बे गौरी ॥ ८ ॥

चौंसठ योगिन गावत नृत्य करत भैरों। मैया नृत्य करत भैरों

बाजत ताल मृदंग और बाजत डमरू॥ जय अम्बे गौरी ॥ ९ ॥

तुम हो जग की माता तुम ही हो भर्ता। मैया तुम ही हो भर्ता

भक्तन की दुख हर्ता सुख सम्पति कर्ता॥ जय अम्बे गौरी ॥ १० ॥

भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी। मैया वर मुद्रा धारी

मन वाँछित फल पावत देवता नर नारी॥ जय अम्बे गौरी ॥ ११ ॥

कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती। मैया अगर कपूर बाती

माल केतु में राजत कोटि रतन ज्योती॥ बोलो जय अम्बे गौरी ॥ १२ ॥

माँ अम्बे की आरती जो कोई नर गावे। मैया जो कोई नर गावे

कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पति पावे॥ जय अम्बे गौरी ॥ १३ ॥

॥ देवी वन्दना ॥

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ॥

॥ इति आरती श्री दुर्गा जी सम्पूर्णम ॥

श्री चामुण्डा देवी जी की आरती

॥ आरती श्री चामुण्डा देवी जी की ॥

Aarti Shri Chamunda Devi Ji Ki

जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी।

निशिदिन तुमको ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी॥ जय अम्बे

माँग सिन्दूर विराजत, टीको, मृगमद को।

उज्जवल से दोउ नयना, चन्द्रबदन नीको॥ जय अम्बे

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजे।

रक्त पुष्प गलमाला, कंठ हार साजे॥ जय अम्बे

हरि वाहन राजत खड्ग खप्पर धारी।

सुर नर मुनिजन सेवत, तिनके दु:ख हारी॥ जय अम्बे

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।

कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम जोती॥ जय अम्बे

शुम्भ-निशुम्भ विदारे, महिषासुर घाती।

धूम्र-विलोचन नयना, निशदिन मदमाती॥ जय अम्बे

चण्ड-मुण्ड संहारे शोणित बीज हरे।

मधु-कैटभ दोऊ मारे, सुर भय दूर करे॥ जय अम्बे

ब्रह्माणी रुद्राणी, तुम कमला रानी।

आगम-निगम बखानी, तुम शिव पटरानी॥ जय अम्बे

चौंसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरों।

बाजत ताल मृदंगा, और बाजत डमरु॥ जय अम्बे

तुम हो जग की माता, तुम ही हो भरता।

भक्तन की दुख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥ जय अम्बे

भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी।

मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी॥ जय अम्बे

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।

मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥ जय अम्बे

॥ इति आरती श्री चामुण्डा देवी जी सम्पूर्णम ॥

श्री विन्ध्येश्वरी जी की आरती

॥ आरती श्री विन्ध्येश्वरी जी की ॥

Aarti Shri Vindheshvari Ji Ki

सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी तेरा पार न पाया ॥ टेक.॥

पान सुपारी ध्वजा नारियल ले तरी भेंट चढ़ाया । सुन.।

सुवा चोली तेरे अंग विराजे केसर तिलक लगाया । सुन.।

नंगे पग अकबर आया सोने का छत्र चढ़ाया । सुन.।

उँचे उँचे पर्वत भयो दिवालो नीचे शहर बसाया । सुन.।

कलियुग द्वापर त्रेता मध्ये कलियुग राज सबाया । सुन.।

धूप दीप नैवेद्य आरती मोहन भोग लगाया । सुन.।

ध्यानू भगत मैया तेरे गुण गावैं मनवांछित फल पाया । सुन.।

॥ इति श्री विन्ध्येश्वरी आरती सम्पूर्णम ॥

श्री लक्ष्मीजी की आरती

॥ श्री लक्ष्मीजी की आरती ॥

Shri Lakshmi Ji Ki Aarti

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता

तुम को निशदिन सेवत मैयाजी को निस दिन सेवत

हर विष्णु विधाता । ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता ।

ओ मैया तुम ही जग माता । सूर्य चन्द्र माँ ध्यावत

नारद ऋषि गाता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

दुर्गा रूप निरंजनि सुख सम्पति दाता,

ओ मैया सुख सम्पति दाता ।

जो कोई तुम को ध्यावत ऋद्धि सिद्धि धन पाता,

ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

तुम पाताल निवासिनि तुम ही शुभ दाता,

ओ मैया तुम ही शुभ दाता ।

कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भव निधि की दाता,

ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

जिस घर तुम रहती तहँ सब सद्गुण आता,

ओ मैया सब सद्गुण आता ।

सब संभव हो जाता मन नहीं घबराता,

ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता,

ओ मैया वस्त्र न कोई पाता ।

खान पान का वैभव सब तुम से आता,

ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरोदधि जाता,

ओ मैया क्षीरोदधि जाता ।

रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता ,

ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

महा लक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता,

ओ मैया जो कोई जन गाता ।

उर आनंद समाता पाप उतर जाता ,

ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

स्थिर चर जगत बचावे कर्म प्रेम ल्याता ।

ओ मैया जो कोई जन गाता ।

राम प्रताप मैय्या की शुभ दृष्टि चाहता,

ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

॥ इति श्री लक्ष्मी आरती सम्पूर्णम ॥

श्री सरस्वती जी की आरती

॥ आरती श्री सरस्वती जी की ॥

Aarti Shri Saraswati Ji Ki

कज्जल पुरित लोचन भारे,

स्तन युग शोभित मुक्त हारे ।

वीणा पुस्तक रंजित हस्ते,

भगवती भारती देवी नमस्ते॥

जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता ।

सदगुण वैभव शालिनी ,त्रिभुवन विख्याता॥

जय सरस्वती माता……

चंद्रवदनि पदमासिनी , घुति मंगलकारी ।

सोहें शुभ हंस सवारी,अतुल तेजधारी ॥

जय सरस्वती माता……

बायेँ कर में वीणा ,दायें कर में माला ।

शीश मुकुट मणी सोहें ,गल मोतियन माला ॥

जय सरस्वती माता……

देवी शरण जो आयें ,उनका उद्धार किया ।

पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया ॥

जय सरस्वती माता……

विद्या ज्ञान प्रदायिनी , ज्ञान प्रकाश भरो ।

मोह और अज्ञान तिमिर का जग से नाश करो ॥

जय सरस्वती माता……

धुप ,दिप फल मेवा माँ स्वीकार करो ।

ज्ञानचक्षु दे माता , भव से उद्धार करो ॥

जय सरस्वती माता……

माँ सरस्वती जी की आरती जो कोई नर गावें ।

हितकारी ,सुखकारी ग्यान भक्ती पावें ॥

सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता ।

सदगुण वैभव शालिनी ,त्रिभुवन विख्याता॥

जय सरस्वती माता ,जय जय हे सरस्वती माता ।

॥ इति आरती श्री सरस्वती सम्पूर्णम ॥

श्री गायत्री माता की आरती

॥ आरती श्री गायत्री माता की ॥

Aarti Shri Gayatri Mata Ki

जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता ।

आदि शक्ति तुम अलख निरंजन जग पालन कर्त्री ।

दुःख शोक भय क्लेश कलह दारिद्र्य दैन्य हर्त्री ॥१॥

ब्रह्मरूपिणी, प्रणत पालिनी, जगत धातृ अम्बे ।

भव-भय हारी, जन हितकारी, सुखदा जगदम्बे ॥२॥

भयहारिणि, भवतारिणि, अनघे अज आनन्द राशी ।

अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी ॥३॥

कामधेनु सत-चित-आनन्दा जय गंगा गीता ।

सविता की शाश्वती, शक्ति तुम सावित्री सीता ॥४॥

ऋग्, यजु, साम, अथर्व, प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे ।

कुण्डलिनी सहस्रार सुषुम्रा शोभा गुण गरिमे ॥५॥

स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रह्माणी, राधा, रुद्राणी ।

जय सतरूपा वाणी, विद्या, कमला, कल्याणी ॥६॥

जननी हम हैं दीन, हीन, दुःख दारिद के घेरे ।

यदपि कुटिल, कपटी कपूत तऊ बालक हैं तेरे ॥७॥

स्नेह सनी करुणामयि माता चरण शरण दीजै ।

बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे दया दृष्टि कीजै ॥८॥

काम, क्रोध, मद, लोभ, दम्भ, दुर्भाव द्वेष हरिये ।

शुद्ध, बुद्धि, निष्पाप हृदय, मन को पवित्र करिये ॥९॥

तुम समर्थ सब भाँति तारिणी, तुष्टि, पुष्टि त्राता ।

सत मारग पर हमें चलाओ जो है सुखदाता ॥१०॥

जयति जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता ॥

॥ इति आरती श्री गायत्री माता सम्पूर्णम ॥

श्रीअन्नपूर्णा जी की आरती

॥ आरती देवी अन्नपूर्णा जी की ॥

Aarti Devi Annapoorna Ji Ki

बारम्बार प्रणाम, मैया बारम्बार प्रणाम

जो नहीं ध्यावे तुम्हें अम्बिके, कहां उसे विश्राम ।

अन्नपूर्णा देवी नाम तिहारो, लेत होत सब काम ॥ बारम्बार

प्रलय युगान्तर और जन्मान्तर, कालान्तर तक नाम ।

सुर सुरों की रचना करती, कहाँ कृष्ण कहाँ राम ॥ बारम्बार

चूमहि चरण चतुर चतुरानन, चारु चक्रधर श्याम ।

चंद्रचूड़ चन्द्रानन चाकर, शोभा लखहि ललाम ॥ बारम्बार

देवि देव! दयनीय दशा में दया-दया तब नाम ।

त्राहि-त्राहि शरणागत वत्सल शरण रूप तब धाम ॥ बारम्बार

श्रीं, ह्रीं श्रद्धा श्री ऐ विद्या श्री क्लीं कमला काम ।

कांति, भ्रांतिमयी, कांति शांतिमयी, वर दे तू निष्काम ॥ बारम्बार

॥ इति आरती देवी अन्नपूर्णा सम्पूर्णम ॥

श्री तुलसी माता की आरती

॥ आरती श्री तुलसी माता की ॥

Aarti Shri Tulsi Mata Ki

जय जय तुलसी माता

सब जग की सुख दाता, वर दाता

जय जय तुलसी माता ॥ १ ॥

सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर

रुज से रक्षा करके भव त्राता

जय जय तुलसी माता ॥ २ ॥

बटु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या

विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता

जय जय तुलसी माता ॥ ३ ॥

हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वन्दित

पतित जनो की तारिणी विख्याता

जय जय तुलसी माता ॥ ४ ॥

लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में

मानवलोक तुम्ही से सुख संपति पाता

जय जय तुलसी माता ॥ ५ ॥

हरि को तुम अति प्यारी, श्यामवरण तुम्हारी

प्रेम अजब हैं उनका तुमसे कैसा नाता

जय जय तुलसी माता ॥ ६ ॥

॥ इति आरती तुलसी माता सम्पूर्णम ॥

श्री सीता जी की आरती

॥ आरती श्री सीता जी की ॥

Aarti Shri Sita Ji Ki

सीता बिराजथि मिथिलाधाम सब मिलिकय करियनु आरती।

संगहि सुशोभित लछुमन-राम सब मिलिकय करियनु आरती ॥

विपदा विनाशिनि सुखदा चराचर,सीता धिया बनि अयली सुनयना घर

मिथिला के महिमा महानसब मिलिकय करियनु आरती ॥सीता बिराजथि..

सीता सर्वेश्वरि ममता सरोवर,बायाँ कमल कर दायाँ अभय वर

सौम्या सकल गुणधाम..सब मिलिकय करियनु आरती ॥ सीता बिराजथि..

रामप्रिया सर्वमंगल दायिनि,सीता सकल जगती दुःखहारिणि

करथिन सभक कल्याण..सब मिलिकय करियनु आरती ॥ सीता बिराजथि..

सीतारामक जोड़ी अतिभावन,नैहर सासुर कयलनि पावन

सेवक छथि हनुमान..सब मिलिकय करियनु आरती ॥सीता बिराजथि..

ममतामयी माता सीता पुनीता,संतन हेतु सीता सदिखन सुनीता

धरणी-सुता सबठाम..सब मिलिकय करियनु आरती ॥ सीता बिराजथि..

शुक्ल नवमी तिथि वैशाख मासे,’चंद्रमणिसीता उत्सव हुलासे

पायब सकल सुखधाम..सब मिलिकय करियनु आरती ॥

सीता बिराजथि मिथिलाधाम सब मिलिकय करियनु आरती ॥

॥ इति आरती श्री सीता जी सम्पूर्णम ॥

श्री सन्तोषी माता की आरती

॥ श्री सन्तोषी माता की आरती ॥

Shri Santoshi Mata Ki Aarti

जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता ।

अपने सेवक जन की सुख् सम्पति दाता ।

मैया जय सन्तोषी माता ।

सुन्दर चीर सुनहरी माँ धारण कीन्हो, मैया माँ धारण कीन्हो,

हीरा पन्ना दमके तन शृंगार कीन्हो, मैया जय सन्तोषी माता ।

गेरू लाल छटा छबि बदन कमल सोहे, मैया बदन कमल सोहे,

मंद हँसत करुणामयि त्रिभुवन मन मोहे, मैया जय सन्तोषी माता ।

स्वर्ण सिंहासन बैठी चँवर डुले प्यारे, मैया चँवर डुले प्यारे,

धूप् दीप मधु मेवा, भोज धरे न्यारे, मैया जय सन्तोषी माता ।

गुड़ और चना परम प्रिय ता में संतोष कियो, मैया ता में सन्तोष कियो,

संतोषी कहलाई भक्तन विभव दियो, मैया जय सन्तोषी माता ।

शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सो ही, मैया आज दिवस सो ही,

भक्त मंडली छाई कथा सुनत मो ही, मैया जय सन्तोषी माता ।

मंदिर जग मग ज्योति मंगल ध्वनि छाई, मैया मंगल ध्वनि छाई,

बिनय करें हम सेवक चरनन सिर नाई, मैया जय सन्तोषी माता ।

भक्ति भावमय पूजा अंगीकृत कीजै, मैया अंगीकृत कीजै,

जो मन बसे हमारे इच्छित फल दीजै, मैया जय सन्तोषी माता ।

दुखी दरिद्री रोगी संकट मुक्त किये, मैया संकट मुक्त किये,

बहु धन धान्य भरे घर सुख सौभाग्य दिये, मैया जय सन्तोषी माता ।

ध्यान धरे जो तेरा वाँछित फल पायो, मनवाँछित फल पायो,

पूजा कथा श्रवण कर घर आनन्द आयो, मैया जय सन्तोषी माता ।

चरण गहे की लज्जा रखियो जगदम्बे, मैया रखियो जगदम्बे,

संकट तू ही निवारे दयामयी अम्बे, मैया जय सन्तोषी माता ।

सन्तोषी माता की आरती जो कोई जन गावे, मैया जो कोई जन गावे,

ऋद्धि सिद्धि सुख सम्पति जी भर के पावे, मैया जय सन्तोषी माता ।

॥ इति आरती श्री सन्तोषी माता सम्पूर्णम ॥

श्री वैष्णो देवी की आरती

॥ आरती श्री वैष्णो देवी ॥

Aarti Shri Vashno Devi

जय वैष्णवी माता, मैया जय वैष्णवी माता।

हाथ जोड़ तेरे आगे, आरती मैं गाता॥ १

शीश पे छत्र विराजे, मूरतिया प्यारी।

गंगा बहती चरनन, ज्योति जगे न्यारी॥ २ ॥

ब्रह्मा वेद पढ़े नित द्वारे, शंकर ध्यान धरे।

सेवक चंवर डुलावत, नारद नृत्य करे॥ ३ ॥

सुन्दर गुफा तुम्हारी, मन को अति भावे।

बार-बार देखन को, ऐ माँ मन चावे॥ ४ ॥

भवन पे झण्डे झूलें, घंटा ध्वनि बाजे।

ऊँचा पर्वत तेरा, माता प्रिय लागे॥ ५ ॥

पान सुपारी ध्वजा नारियल, भेंट पुष्प मेवा।

दास खड़े चरणों में, दर्शन दो देवा॥ ६ ॥

जो जन निश्चय करके, द्वार तेरे आवे।

उसकी इच्छा पूरण, माता हो जावे॥ ७ ॥

इतनी स्तुति निश-दिन, जो नर भी गावे।

कहते सेवक ध्यानू, सुख सम्पत्ति पावे॥ ८ ॥

॥ इति आरती श्री वैष्णो देवी सम्पूर्णम ॥

श्री राधा जी आरती

॥ आरती श्री राधा जी ॥

Aarti Shri Radha Ji

ॐ जय श्री राधा जय श्री कृष्ण

ॐ जय श्री राधा जय श्री कृष्ण

श्री राधा कृष्णाय नमः ..

घूम घुमारो घामर सोहे जय श्री राधा

पट पीताम्बर मुनि मन मोहे जय श्री कृष्ण .

जुगल प्रेम रस झम झम झमकै

श्री राधा कृष्णाय नमः ..

राधा राधा कृष्ण कन्हैया जय श्री राधा

भव भय सागर पार लगैया जय श्री कृष्ण

मंगल मूरति मोक्ष करैया

श्री राधा कृष्णाय नमः ..

॥ इति आरती श्री राधा जी सम्पूर्णम ॥

अहोई माता की आरती

॥ आरती अहोई माता की ॥

Aarti Ahoi Mata Ki

ज़य अहोई माता ज़य अहोई माता।

तुमको निसदिन ध्यावत हरि विष्णु धाता॥ १ ॥

ब्राहमणी रुद्राणी कमला तू हे है जग दाता।

सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता॥ २ ॥

माता रूप निरंजन सुख संपत्ती दाता।

जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता॥ ३ ॥

तू हे है पाताल बसंती तू हे है सुख दाता।

कर्मा प्रभाव प्रकाशक जज्निदधि से त्राता॥ ४ ॥

जिस घर तारो वास वही में गुण आता।

कर ना सके सोई कर ले मन नहीं घबराता॥ ५ ॥

तुम बिन सुख ना होवय पुतरा ना कोई पाता।

खान-पान का वैभव तुम बिन नहीं आता॥ ६ ॥

सुभ गुण सुन्दर युक्ता शियर निदधि जाता।

रतन चतुर्दर्श तौकू कोई नहीं पाता॥ ७ ॥

श्री अहोई मा की आरती जो कोई गाता।

उर् उमंग अत्ती उपजय पाप उत्तर जाता॥ ८ ॥

॥ इति आरती अहोई माता सम्पूर्णम ॥

भैरव जी की आरती

॥ भैरव जी की आरती ॥

Bhairava Ji Ki Aarti

जय भैरव देवा प्रभु जय भैरव देवा ।

जय काली और गौरा देवी कृत सेवा ॥ जय॥

तुम्ही पाप उद्धारक दुःख सिन्धु तारक ।

भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक ॥ जय॥

वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी ।

महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी ॥ जय॥

तुम बिन सेवा देवा सफल नहीं होवे ।

चौमुख दीपक दर्शन सबका दुःख खोवे ॥ जय॥

तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी ।

कृपा करिये भैरव करिये नहीं देरी ॥ जय॥

पाव घूंघरु बाजत अरु डमरु डमकावत ।

बटुकनाथ बन बालकजन मन हरषावत ॥ जय॥

बटुकनाथ की आरती जो कोई नर गावे ।

कहे धरणीधर नर मनवांछित फल पावे ॥ जय॥

॥ इति भैरव आरती सम्पूर्णम ॥

आरती श्री श्यामजी की आरती

॥ आरती श्री श्यामबाबा की ॥

Aarti Shri Shyam Baba Ki

ॐ जय श्री श्याम हरे , बाबा जय श्री श्याम हरे ।

खाटू धाम विराजत, अनुपम रुप धरे ॥

ॐ जय श्री श्याम हरे……

रत्न जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुले ।

तन केशरिया बागों, कुण्डल श्रवण पडे ॥

ॐ जय श्री श्याम हरे……

गल पुष्पों की माला, सिर पर मुकुट धरे।

खेवत धूप अग्नि पर, दिपक ज्योती जले॥

ॐ जय श्री श्याम हरे……

मोदक खीर चुरमा, सुवरण थाल भरें ।

सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करें ॥

ॐ जय श्री श्याम हरे……

झांझ कटोरा और घसियावल, शंख मृंदग धरे।

भक्त आरती गावे, जय जयकार करें ॥

ॐ जय श्री श्याम हरे……

जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे।

सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम श्याम उचरें ॥

ॐ जय श्री श्याम हरे……

श्रीश्याम बिहारीजी की आरती जो कोई नर गावे।

कहत मनोहर स्वामी मनवांछित फल पावें ॥

ॐ जय श्री श्याम हरे….

ॐ जय श्री श्याम हरे , बाबा जय श्री श्याम हरे ।

निज भक्तों के तुम ने पूर्ण काज करें ॥

ॐ जय श्री श्याम हरे……

ॐ जय श्री श्याम हरे , बाबा जय श्री श्याम हरे ।

खाटू धाम विराजत , अनुपम रुप धरे ॥

ॐ जय श्री श्याम हरे

॥ इति आरती श्री श्यामबाबा सम्पूर्णम ॥

श्री चित्रगुप्त महाराज की आरती

॥ आरती श्री चित्रगुप्त महाराज की ॥

Aarti Shri Chitragupta Maharaj Ki

श्री विरंचि कुलभूषण, यमपुर के धामी।

पुण्य पाप के लेखक, चित्रगुप्त स्वामी॥ १ ॥

सीस मुकुट, कानों में कुण्डल अति सोहे।

श्यामवर्ण शशि सा मुख, सबके मन मोहे॥ २ ॥

भाल तिलक से भूषित, लोचन सुविशाला।

शंख सरीखी गरदन, गले में मणिमाला॥ ३ ॥

अर्ध शरीर जनेऊ, लंबी भुजा छाजै।

कमल दवात हाथ में, पादुक परा भ्राजे॥ ४ ॥

नृप सौदास अनर्थी, था अति बलवाला।

आपकी कृपा द्वारा, सुरपुर पग धारा॥ ५ ॥

भक्ति भाव से यह आरती जो कोई गावे।

मनवांछित फल पाकर सद्गति पावे॥ ६ ॥

॥ आरती श्री चित्रगुप्त महाराज की ॥

भगवान महावीर की आरती

॥ आरती भगवान महावीर की ॥

Aarti Bhagwan Mahavir Ki

जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो।

कुंडलपुर अवतारी, त्रिशलानंद विभो॥ ॥ ॐ जय…..॥ १ ॥

सिद्धारथ घर जन्मे, वैभव था भारी, स्वामी वैभव था भारी।

बाल ब्रह्मचारी व्रत पाल्यौ तपधारी ॥ ॐ जय…..॥ २ ॥

आतम ज्ञान विरागी, सम दृष्टि धारी।

माया मोह विनाशक, ज्ञान ज्योति जारी ॥ ॐ जय…..॥ ३ ॥

जग में पाठ अहिंसा, आपहि विस्तार्यो।

हिंसा पाप मिटाकर, सुधर्म परिचार्यो ॥ ॐ जय…..॥ ४ ॥

इह विधि चांदनपुर में अतिशय दरशायौ।

ग्वाल मनोरथ पूर्‌यो दूध गाय पायौ ॥ ॐ जय…..॥ ५ ॥

प्राणदान मन्त्री को तुमने प्रभु दीना।

मन्दिर तीन शिखर का, निर्मित है कीना ॥ ॐ जय…..॥ ६ ॥

जयपुर नृप भी तेरे, अतिशय के सेवी।

एक ग्राम तिन दीनों, सेवा हित यह भी ॥ ॐ जय…..॥ ७ ॥

जो कोई तेरे दर पर, इच्छा कर आवै।

होय मनोरथ पूरण, संकट मिट जावै ॥ ॐ जय…..॥ ८ ॥

निशि दिन प्रभु मन्दिर में, जगमग ज्योति जरै।

हरि प्रसाद चरणों में, आनन्द मोद भरै ॥ ॐ जय…..॥ ९ ॥

॥ इति आरती भगवान महावीर सम्पूर्णम ॥

भगवान श्री धन्वंतरि जी की आरती

॥ आरती भगवान श्री धन्वंतरि जी की ॥

Aarti Bhagwan Shri Dhanwantri Ji Ki

जय धन्वंतरि देवा, जय धन्वंतरि जी देवा।

जरा-रोग से पीड़ित, जन-जन सुख देवा।।जय धन्वं.॥ १ ॥

तुम समुद्र से निकले, अमृत कलश लिए।

देवासुर के संकट आकर दूर किए।।जय धन्वं.॥ २ ॥

आयुर्वेद बनाया, जग में फैलाया।

सदा स्वस्थ रहने का, साधन बतलाया।।जय धन्वं.॥ ३ ॥

भुजा चार अति सुंदर, शंख सुधा धारी।

आयुर्वेद वनस्पति से शोभा भारी।।जय धन्वं.॥ ४ ॥

तुम को जो नित ध्यावे, रोग नहीं आवे।

असाध्य रोग भी उसका, निश्चय मिट जावे।।जय धन्वं.॥ ५ ॥

हाथ जोड़कर प्रभुजी, दास खड़ा तेरा।

वैद्य-समाज तुम्हारे चरणों का घेरा।।जय धन्वं.॥ ६ ॥

धन्वंतरिजी की आरती जो कोई नर गावे।

रोग-शोक न आए, सुख-समृद्धि पावे।।जय धन्वं.॥ ७ ॥

॥ इति आरती भगवान श्री धन्वंतरि सम्पूर्णम ॥

एकादशी की आरती

॥ आरती एकादशी की ॥

Aarti Ekadashi Ki

ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता ।

विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ॥ ॐ॥ १

तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी ।

गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ॥ॐ॥ २

मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।

शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥ ॐ॥ ३

पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है,

शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ॥ ॐ ॥ ४

नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।

शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ॥ ॐ ॥ ५

विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,

पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ॥ ॐ ॥ ६

चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,

नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ॥ ॐ ॥ ७

शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,

नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥ ॐ ॥ ८

योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।

देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ॥ ॐ ॥ ९

कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।

श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥ ॐ ॥ १०

अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।

इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥ ॐ ॥ ११

पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।

रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ॥ ॐ ॥ १२

देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।

पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ॥ ॐ ॥ १३

परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी॥

शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी ॥ ॐ ॥ १४

जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।

जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥ ॐ ॥ १५

॥ इति आरती एकादशी सम्पूर्णम ॥

श्री बाबा बालक नाथ जी की आरती

॥ आरती श्री बाबा बालक नाथ जी की ॥

Aarti Shri Baba Balak Nath Ji Ki

ॐ जय कलाधारी हरे, स्वामी जय पौणाहारी हरे,

भक्त जनों की नैया, दस जनों की नैया भव से पार करे,

ॐ जय कलाधारी हरे

बालक उमर सुहानी, नाम बालक नाथा,

अमर हुए शंकर से, सुन के अमर गाथा ।

ॐ जय कलाधारी हरे

शीश पे बाल सुनैहरी, गले रुद्राक्षी माला,

हाथ में झोली चिमटा, आसन मृगशाला ।

ॐ जय कलाधारी हरे

सुंदर सेली सिंगी, वैरागन सोहे,

गऊ पालक रखवालक, भगतन मन मोहे ।

ॐ जय कलाधारी हरे

अंग भभूत रमाई, मूर्ति प्रभु रंगी,

भय भज्जन दुःख नाशक, भरथरी के संगी ।

ॐ जय कलाधारी हरे

रोट चढ़त रविवार को, फल, फूल मिश्री मेवा,

धुप दीप कुदनुं से आनंद सिद्ध देवा ।

ॐ जय कलाधारी हरे

भक्तन हित अवतार लियो, प्रभु देख के कल्लू काला,

दुष्ट दमन शत्रुहन , सबके प्रतिपाला ।

ॐ जय कलाधारी हरे

श्री बालक नाथ जी की आरती, जो कोई नित गावे,

कहते है सेवक तेरे, मन वाच्छित फल पावे ।

ॐ जय कलाधारी हरे

ॐ जय कलाधारी हरे, स्वामी जय पौणाहारी हरे,

भक्त जनों की नैया , दस जनों की नैया भव से पार करे,

ॐ जय कलाधारी हरे ।

॥ इति आरती श्री बाबा बालक नाथ सम्पूर्णम ॥

श्री गुरु गोरख नाथ जी की आरती

॥ आरती श्री गुरु गोरख नाथ जी की ॥

Aarti Shri Guru Gorakh Nath Ji Ki

जय गोरख देवा जय गोरख देवा ।

कर कृपा मम ऊपर नित्य करूँ सेवा ।

शीश जटा अति सुंदर भाल चन्द्र सोहे ।

कानन कुंडल झलकत निरखत मन मोहे ।

गल सेली विच नाग सुशोभित तन भस्मी धारी ।

आदि पुरुष योगीश्वर संतन हितकारी ।

नाथ नरंजन आप ही घट घट के वासी ।

करत कृपा निज जन पर मेटत यम फांसी ।

रिद्धी सिद्धि चरणों में लोटत माया है दासी ।

आप अलख अवधूता उतराखंड वासी ।

अगम अगोचर अकथ अरुपी सबसे हो न्यारे ।

योगीजन के आप ही सदा हो रखवारे ।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हारा निशदिन गुण गावे ।

नारद शारद सुर मिल चरनन चित लावे ।

चारो युग में आप विराजत योगी तन धारी ।

सतयुग द्वापर त्रेता कलयुग भय टारी ।

गुरु गोरख नाथ की आरती निशदिन जो गावे ।

विनवित बाल त्रिलोकी मुक्ति फल पावे ।

॥ इति आरती श्री गुरु गोरख नाथ जी सम्पूर्णम ॥

Post a Comment

Previous Post Next Post