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- श्रीगणपत्यथर्वशीर्षम्
- डी पी कर्मकांड भाग २ गौरी गणेश पूजन विधि
- आचमन-प्राणायाम विधि- डी पी कर्मकांड भाग-१
- श्री सत्यनारायण पूजा पद्धति
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
श्री सत्यनारायण पूजा पद्धति
श्री सत्यनारायण पूजा पद्धति- संसार में एकमात्र नारायण ही सत्य हैं, बाकी सब माया है। सत्य को नारायण (विष्णु) के रूप में पूजना ही सत्यनारायण की पूजा है। भगवान की पूजा कई रूपों में की जाती है, उनमें से उनका सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में बताया गया है।
श्रीसत्यनारायण पूजन पद्धति
"श्री सत्यनारायण पूजा
पद्धति" - श्री सत्यनारायण पूजा के
लिए सपत्नीक यजमान नित्यक्रिया संपन्न कर पूजन सामाग्री एकत्र कर शुभ मूहूर्त में
पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख ग्रंथि बंधन कर आसन पर बैठें और पूजन प्रारम्भ करें ।
श्रीसत्यनारायण पूजा विधि
सबसे पहले पवित्रीकरण करें-
पवित्रीकरण
( शरीर शुद्धि )-
ॐ अपवित्रः पवित्रो व सर्वावास्थांग गतोपिवा ।
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं
सबाह्याभ्यंतर: शुचिः ॥
ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु ,
ॐ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु , ॐ पुण्डरीकाक्ष:
पुनातु ।
आचमन -
निम्न मंत्रो से ३बार जल पीये -
ॐ केशवाय नमः । ॐ नारायणाय नमः । ॐ माधवाय नमः ।
आचमन के पश्चात ॐ हृशीकेशाय नमः
। कह
कर हाथ धो लेना चाहिए ।
आसन शुद्धि
- आचमनी में जल लेकर विनियोग करें-
ॐ पृथ्वीति मंत्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषि:
सुतलं छंद: कूर्मो देवता आसनोंपवेशने विनियोग: ।(जल पृथ्वि पर आसन के समीप छोड़ दें)
अब निम्न मंत्र पढ़कर आसन का स्पर्श कर मस्तक पर लगावें-
ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं
विष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु
चासनम् ॥
शिखा बंधन-
निम्न मंत्र से यजमान अपनी शिखा को बाँध लें-
ॐ चिद्रुपिणि महामाये ,
दिव्य तेज: समन्विते ।
तिष्ठ देवी शिखा मध्ये ,
तेजो वृद्धिं कुरुष्व में ॥
रक्षासूत्र-
इस मंत्र से आचार्य यजमान को रक्षासूत्र
(मौलीधागा) बांधे –
ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो
महाबलः ।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा
चल ॥
तिलक धारण-
इस मंत्र से यजमान को तिलक करें-
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्ध श्रवा:
स्वस्ति न पूषा विस्ववेदा: ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमि:
स्वस्ति नो वृहस्पति दधातु ॥
यजमान द्वारा तिलक-
इस मंत्र से यजमान आचार्य को तिलक करें-
ॐ नमो ब्रह्माण्यदेवाय गो ब्राह्मण
हिताय च ।
जगध्दिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो
नमः ॥
यजमान द्वारा रक्षासूत्र-
इस मंत्र से यजमान आचार्य को रक्षासूत्र
(मौलीधागा) बांधे –
ॐ व्रतेन दीक्षामाप्नोति
दीक्षयाऽऽप्नोति दक्षिणाम् ।
दक्षिणा श्रध्दामाप्नोति श्रध्दया
सत्यमाप्यते ॥
घण्टा पूजन-
यजमान हाथ मे अक्षत–पुष्प लेकर निम्न लिखित मंत्र पढ़ कर गरुड़देव का प्रार्थना करे व घंटा पर
चढ़ा दें -
ॐ आगमार्थम तू देवानां गमनार्थं तू
रक्षसाम ।
कुरु घंटे वरम नादं देवता स्थान
संनिधौ ॥
प्रार्थनोपरान्त के बाद घंटा को बजाये और यथा स्थान रख दें
तथा पूजन करें -
ॐ गरुड़देवाय नमः आवाहयामि,स्थापयामि च सर्वोपचारार्थे पूजनम् समर्पयामि ।
शंख पूजन– पुनः
यजमान हाथ मे अक्षत–पुष्प लेकर निम्न
मंत्र बोलते हुए-
‘ॐ शंखाय नमः
अक्षत-पुष्पं चन्दनम् समर्पयामि ' चढ़ाए
।
अब शंख का ध्यान करते हुए प्रणाम
करे -
ॐ गर्भा देवारिनारीणां विशीर्यन्ते
सहस्त्रधा ।
तव नादेन पाताले पाञ्चजन्य
नमोऽस्तुते ॥
स्वस्तिवाचन-
अब यजमान दंपत्ति हाथ में फूल लेकर स्वस्तिवाचन
का पाठ या श्रवण करें -
ॐ आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु
विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः ।
देवा नो यथा सदमिद् वृधे
असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे ॥
देवानां भद्रा सुमतिर्ॠजूयतां
देवाना ঌ
रातिरभि नो निवर्तताम् ।
देवाना ঌ सख्यमुपसेदिमा
वयं देवा न आयुः प्रतिरन्तु जीवसे ॥
तान्पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं
मित्रमदितिं दक्षमस्त्रिधम् ।
अर्यमणं वरुण ঌ सोममश्विना
सरस्वती नः सुभगा मयस्करत् ॥
तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं
तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः ।
तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना
श्रृणुतं धिष्ण्या युवम् ॥
तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं
धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयम् ।
पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता
पायुरदब्धः स्वस्तये ॥
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभं
यावानो विदथेषु जग्मयः ।
अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे
नो देवा अवसागमन्निह ॥
भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा ঌसस्तनूभिर्व्यशेमहि
देवहितं यदायुः ॥
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा
नश्चक्रा जरसं तनूनाम् ।
पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो
मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः ॥
अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता
स पिता स पुत्रः ।
विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना
अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम् ॥
द्योः शान्तिरन्तरिक्ष ঌशान्तिःपृथिवी
शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ঌ शान्तिः
शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥
यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु ।
शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः
पशुभ्यः ॥ सुशान्तिर्भवतु ॥
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।
लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः ।
उमामहेश्वराभ्यां नमः।
वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः। शचीपुरन्दराभ्यां नमः।
मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः ।
इष्टदेवताभ्यो नमः । कुलदेवताभ्यो नमः ।
ग्रामदेवताभ्यो नमः ।
वास्तुदेवताभ्यो नमः । स्थानदेवताभ्यो नमः ।
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः । सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः ।
ॐ सिद्धिबुद्धिसहिताय
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।
हाथ में लिया हुआ पुष्प गौरी-गणेश
वेदी पर चढ़ा दे ।
संकल्प-
इसके पश्चात
हाथ जल लेकर संकल्प करें-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्री
मद्भग्वतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्राह्मणोऽहि
द्वितीयप्रहरार्धे
श्रीश्वेतवाराहकल्पे
वैवश्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे
भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे (अमुक) प्रदेशे
(अमुक) मासे (अमुक) पक्षे (अमुक)
तिथौ (अमुक)(अपना गोत्र) गोत्रस्य
(अमुक)नामनाहम् श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फल
प्राप्त्यर्थं मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य सकल-दुरितोप-सर्गापच्छान्ति- पूर्वक सकल-
मनोरथ- सिद्ध्यर्थं यथाशक्ति गंध- पुष्प-धुप-दीप-यज्ञोपवीत वस्त्र- नैवेद्यादिभी:
अंग- देवता- पूजन पूर्वक भगवन श्री सत्यनारायण पूजनं तत्पश्चात्कथा श्रवण,सर्वतोभद्रहवन कर्म,शान्तिकर्म अहं करिष्ये ।
जल धरती पर छोड़ प्रणाम करें ।
पुनः निम्न सभी देवों का स्थापन
पश्चात पृथक-पृथक या अंत मे एक साथ पूजन करें ।
गौरी–गणेश वेदी पुजन-
हाथ में अक्षत पुष्प लेकर निम्न मंत्र से गौरी–गणेश जी का (ध्यान व आवाहन गणेशपूजन से करें)स्थापन एवं पूजन करें-
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री
गणेशाम्बिकाभ्यां नम:,
आवाहयामि,स्थापयामि च सर्वोपचारार्थे पूजनम् समर्पयामि ।
दीपकलश पूजन-
हाथ में अक्षत पुष्प लेकर दीपकलश का
पूजन करें-
ॐ
अग्नि र्ज्योति र्ज्योतिरग्निः स्वाहा सूर्यो ज्योति र्ज्योति:सूर्य:
स्वाहा ।
अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा सूर्यो वर्चो
ज्योतिर्वर्चः स्वाहा ॥
ज्योति: सूर्य: सूर्यो ज्योति:
स्वाहा ॥
भो दीप देवरुपस्त्वम कर्म साक्षी
हविघ्नकृत ।
यावत् कर्म समाप्ति: स्यात् तावत्वम
सुस्थिरो भव ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः दीपस्थ देवतायै नमः,
आवाहयामि,स्थापयामि च सर्वोपचारार्थे पूजनम् समर्पयामि ।
वरुणकलश पूजन-
हाथ में अक्षत पुष्प लेकर (कलश में देवी-देवताओं का ध्यान व आवाहन गणेश
पूजन से करें) वरुणकलश का
पूजन करें -
ॐ भूर्भुवः स्वः वरुण आदि
आवाहित देवताभ्यो नमः,
आवाहयामि,स्थापयामि च सर्वोपचारार्थे पूजनम् समर्पयामि ।
पञ्चदेवता पुजन- हाथ
में अक्षत पुष्प लेकर पञ्चदेवताओं का पहले ध्यान कर उनका पूजन करें-
विष्णुजी का ध्यान-
ॐ उद्यत्कोटिदिवाकराभमनिशं शंख गदां
पंकजं चक्रं
बिभ्रतमिन्दिरावसुमतीसंशोभिपार्श्वद्वयम् ।
कोटीरांगदहारकुण्डलधरं पीताम्बरं
कौस्तुभै-
र्दीप्तं श्विधरं स्ववक्षसि
लसच्छीवत्सचिह्रं भजे॥
ॐ श्री विष्णवे नमः,ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ।
शिवजी का ध्यान-
ॐ ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं
चारूचंद्रावतंसं
रत्नाकल्पोज्ज्वलांग
परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम् ।
पद्मासीनं समन्तात्
स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं
वसानंविश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभय
हरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम् ।
ॐ शिवाय नमः,ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ।
गणेशजी का ध्यान-
ॐ खर्वं स्थूलतनुं गजेन्द्रवदनं
लम्बोदरं
सुन्दरं
प्रस्यन्दन्मदगन्धलुब्धमधुपव्यालोलगण्डस्थलम् ।
दन्ताघातविदारितारिरुधिरैः
सिन्दूरशोभाकरं
वन्दे शैलसुतासुतं गणपतिं
सिद्धिप्रदं कामदम् ॥
ॐ श्री गणेशाय नमः,ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि ।
सूर्य का ध्यान-
ॐ रक्ताम्बुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं
भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि।
पद्मद्वयाभयवरान् दधतं कराब्जै-
र्माणिक्यमौलिमरुणांगरुचिं
त्रिनेत्रम्॥
ॐ श्री सूर्याय नमः,
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समपर्यामि ।
दुर्गाजी का ध्यान-
ॐ सिंहस्था शशिशेखरा
मरकतप्रख्यैश्चतुर्भिर्भुजैः
शंख चक्रधनुः शरांश्च दधती
नेत्रैस्त्रिभिः शोभिता ।
आमुक्तांगदहारकंकणरणत्काञ्चीरणन्नूपुरा
दुर्गा दुर्गतिहारिणी भवतु नो
रत्नोल्लसत्कुण्डला ॥
ॐ श्री दुर्गायै नमः,
ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समपर्यामि ।
पुनः
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणपत्यादि
पंचदेवता
इहागच्छ इह तिष्ठ च सर्वोपचारार्थे
पूजनम् समर्पयामि ।
लक्ष्मी-नारायण पूजन-
अब पुनःअक्षत लेकर लक्ष्मीनारायण का पूजन
करें-
ॐ शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं
सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं
शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं
योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णुं भवभयहरं
सर्वलोकैकनाथम् ॥ (नारायण)
ॐ नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे
सुरपूजिते ।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि
नमोऽस्तु ते ॥(लक्ष्मी)
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री
लक्ष्मी-नारायणाभ्यो
इहागच्छ इह तिष्ठ च सर्वोपचारार्थे पूजनम् समर्पयामि ।
ब्रह्मा-सरस्वती पूजन-
अब अक्षत लेकर ब्रह्मा और सरस्वती जी का पूजन
करें -
ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं
पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो वेन आवः ।
स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः
सतश्चः योनिमसतश्च विवः ॥(ब्रह्मा)
ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां
सस्मितां सुमनोहराम् ।
कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्
।।
वह्निशुद्धां शुकाधानां
वीणापुस्तकमधारिणीम् ।
रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्
।।
सुपूजितां
सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।
वन्दे भक्तया वन्दिता च
मुनीन्द्रमनुमानवै:।। (सरस्वती)
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री सरस्वतीसहित
ब्रह्मदेवाय
इहागच्छ इह तिष्ठ च सर्वोपचारार्थे पूजनम् समर्पयामि ।
शिव-पार्वती पुजन-
हाथ में अक्षत पुष्प लेकर शिव-पार्वती जी का पूजन करें -
ॐ नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग
रागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न
काराय नम: शिवाय:॥ (शिव)
ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च
पत्नयावहोरात्रे पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम् ।
इष्णन्निषाणामुं म इषाण सर्वलोकं म
इषाण । (पार्वती)
ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीपार्वतीसहित
महादेवाय
इहागच्छत इह तिष्ठत च सर्वोपचारार्थे पूजनम् समर्पयामि ।
नवग्रह पूजन-
पुनः अक्षत लेकर नवग्रह का पूजन(ध्यान व आवाहन गणेश पूजन
से करें) करें -
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री नवग्रहा:
इहागच्छत इह तिष्ठत च सर्वोपचारार्थे पूजनम् समर्पयामि ।
तोरण पुजन- अक्षत
पुष्प लेकर तोरणोधिष्ठात्रि देवों का आवाहन करें-
ॐ भूर्भुवः स्वः श्री
तोरणोधिष्ठात्रि आवाहितदेवताभ्यो
इहागच्छत इह तिष्ठत च सर्वोपचारार्थे पूजनम् समर्पयामि ।
अब सभी देवों का पञ्चोपचार पुजन
करें—
ॐभूर्भुवः स्वः श्री सर्व आवाहितदेवताभ्यो पञ्चोपचार पूजनम् समर्पयामि ।
॥ श्रीसत्यनारायण पूजा पद्धति ॥
"श्रीसत्यनारायण पूजन"
प्रारंभ-
अब श्रीसत्यनारायण भगवान् की मूर्ति,
शालिग्राम या ठाकुर जी का पूजन करें।
प्राण प्रतिष्ठा
- अक्षत लेकर निम्न मन्त्र से भगवान् की मूर्ति का प्राण प्रतिष्ठा करें -
ॐ मनोजुतिर्जुषतामाज्यस्य
बृहस्पतिर्यज्ञं मिमन्तनोत्वरिष्टं यज्ञ ঌ समिमं दधातु ।
विश्वे देवा स इह मादायांतामों
प्रतिष्ठ ॥
ध्यान-
पुष्प या तुलसीपत्र लेकर ध्यान करें -
ॐ ध्यायेत् सत्यं गुणातीतं गुणत्रय
समन्वितम् ।
लोकनाथं त्रिलिकेशं कौस्तुभाभरणं हरिम्
॥
नीलवर्णं पीतवस्रंगु
श्रीवत्सपदभूषितम् ।
गोविदं गोकुलानन्दं ब्रह्माद्यैरपि
पूजितम् ॥
ॐ श्री सत्यनारयणाय नम: ध्यानं
समर्पयामि ।
आवाहन-
पुष्प लेकर आवाहन करें-
ॐ दामोदर समागच्छ लक्ष्म्या सह
जगत्पते ।
इमां मया कृताम् पूजां गृहाण
सुरसत्तम ॥
ॐ श्री सत्यनारयणाय नम: आवाहनं
समर्पयामि ।
आसन
–
पुनः भगवानजी को बैठने के लिए सुंदर पुष्प या
चमकीला पीला आसन दें -
ॐ नाना रत्न समायुक्तं कार्तस्वर
विभूषितम ।
आसनं देव देवेश गृहाण पुरुषोत्तम ॥
ॐ श्री सत्यनारयणाय नम: पुष्प आसनं
प्रतिगृहताम् ।
पाद्य–
ठाकुर जी का जल से पाँव पखारें-
ॐ नारायण नमस्तेऽस्तु नरकार्णवतारक
।
पाद्यं गृहाण देवेश मम सौख्यं
विवर्धय ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: पाद्यं
समर्पयामि ।
अर्घ्य
- ठाकुर जी को गंधमिश्रीत जल से अर्घ्य देवें-
ॐ गन्धपुष्पाक्षतोपेतं फलेन च
समन्वितम् ।
हेमपात्रेस्थितं तोयं गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम:
हस्तोअर्घ्यं समर्पयामि ।
आचमन-
अर्घ्य पश्चात् जल से आचमन करें-
ॐमन्दाकिन्यांस्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभं ।
तदितिं कल्पितं देव सम्यगाचम्यतां
त्वया ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम:
अर्घ्यांतये आचमन्यं समर्पयामि ।
स्नान
- श्रीसत्यनारायण भगवान् को जल से स्नान करावें-
ॐ गंगा च यमुने चैव नर्मदा च
सरस्वती ।
तीर्थानां पावनं तोयम् स्नानार्थं
प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: स्नानीयं
जलं समर्पयामि ।
मधुपर्कं– भगवान्
जी को मधुपर्कं देवें-
ॐ दधि वारि घृतं चैव मधुखण्डविमिश्रितम्
।
तृप्त्यर्थं तव देवेश मधुपर्कं
ददाम्यहम् ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: मधुपर्कं
समर्पयामि ।
मधुपर्कान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि
। (आचमन के लिए
जल छोड़े )
अभ्यंग
- इसके बाद ठाकुरजी को सुगंधित तेल चढ़ावे-
ॐ अभ्यंगार्थं जगत्पाल तलैं
पुष्पादि संभवम् ।
सुगन्धद्रव्य संमिश्रं संगृहाण
सुरेश्वर ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: सुगंधित
तैलं समर्पयामि ।
दुग्धस्नान
- ठाकुर जी को कांसे की थाली मे रखकर दूध से स्नान
कराये-
ॐ पयः पृथ्वियां पय ओषधीषु पयो
दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः ।
पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: पयः स्नानं
समर्पयामि ।
पयः स्नानांते आचमनीयं जलं
समर्पयामि । (जल से आचमन करें)
दधिस्नान–
अब ठाकुर जी को दही से स्नान कराये-
ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं
जिष्णोरश्वस्य वाजिनः ।
सुरभि नो मुखाकरत्प्राण आयू ঌ षि तारिषत् ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: दधिस्नानं
समर्पयामि ।
दधि स्नानांते आचमनीयं जलं
समर्पयामि । (जल से आचमन करें)
घृतस्नान-
अब पुनः ठाकुर जी को घृत से स्नान कराये -
ॐ घृतं मिमिक्षे घृतमस्य योनिर्घृते
श्रितो घृतम्वस्य धाम ।
अनुष्वधमा वह मादयस्व स्वाहाकृतं
वृषभ वक्षि हव्यम् ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: घृत स्नानं
समर्पयामि ।
घृत स्नानांते आचमनीयं जलं
समर्पयामि । (जल से आचमन करें)
मधु स्नान-
अब ठाकुर जी को शहद से स्नान कराये-
ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति
सिन्धवः ।
माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥
मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव ঌ रजः ।
मधु द्यौरस्तु नः पिता ।
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: मधुस्नानं
समर्पयामि ।
मधु स्नानांते आचमनीयं जलं
समर्पयामि । (जल से आचमन करें)
शर्करा स्नान-
पुनः ठाकुर जी को शक्कर या गुड़ से स्नान कराये -
ॐ अपा ঌ रसमुद्वयस ঌ सूर्यै सन्त ঌसमाहितम् ।
अपा ঌ रसस्य यो रसस्तं
वो गृह्णाम्युत्तममुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय
त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते
योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम:
शर्करास्नानं समर्पयामि ।
शर्करा स्नानांते आचमनीयं जलं
समर्पयामि । (जल से आचमन करें)
पञ्चामृत स्नान-
अब ठाकुर जी को पञ्चामृत से स्नान कराये-
ॐ अनाथनाथ सर्वज्ञ गीर्वाण परिपूजित
।
स्नानं पञ्चामृतैर्देव गृहाण
पुरुषोत्तम ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: पञ्चामृत
स्नानं समर्पयामि ।
पञ्चामृत स्नानांते आचमनीयं जलं
समर्पयामि । (जल से आचमन करें)
पुनः स्नान– इसके
बाद ठाकुर जी को शुद्ध जल से स्नान कराये-
ॐ परमानन्दतोयाब्धौ निमग्नतव्
मूत्तये ।
साङ्गोपाङ्ग मिदं स्नानं कल्पयामि
प्रसीद में ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: शुद्धोदकं
स्नानं समर्पयामि ।
अब शंख में दूध जल लेकर पुरुषसूक्त ,नारायण सूक्त आदि से श्रीसत्यनारायण जी को महाभिषेक करें-
वस्त्र– अब
ठाकुर जी को पहनने के लिए सुंदर वस्त्र(युग्म) समर्पित करें-
ॐ पीताम्बरं शुभं देव सर्व कामार्थ सिद्धये ।
मयानिवेदितं भक्त्या गृहाण सुरसत्तम ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: युग्म वस्त्रं
समर्पयामि ।
यज्ञोपवीत-
अब ठाकुर जी को यज्ञोपवीत(जनेऊ) पहनावें-
ॐ ब्रह्मविष्णुमहेशैश्च निर्मितं
ब्रह्मसूत्रकम् ।
यज्ञोपवीतं तद्दानात् प्रीयतं
कमलापितः ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: यज्ञोपवीतं
समर्पयामि ।
यज्ञोपवीतनांते आचमनीयं जलं
समर्पयामि । (जल से आचमन करें)
अक्षत-
इसके बाद ठाकुर जी को अक्षत और यदि शालिग्राम का पूजन कर रहे हों तो तिल चढ़ावे-
ॐ श्वेततण्डुलसंयुक्तान् कुमकुमेन
विराजितान् ।
अक्षतान् गृह्यतां देव नारायण
नमोऽस्तुते ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: अक्षतान्
(अक्षत स्थाने तीलान्)समर्पयामि ।
पुष्प– अब
श्रीसत्यनारायण भगवान् को फूल चढ़ावे-
ॐ सुगन्धीनि सुपुष्पाणि
देशकालोद्भवानि च ।
मयानीतानि पूजार्थं पुष्पाणि
प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: पुष्पं
समर्पयामि ।
पुष्पमाला-
अब भगवान् जी को फूलों की माला
पहनावें-
ॐ नानापुष्प विचित्राढयां पुष्पमाला
सुशोभनाम् ।
प्रयच्छामि च देवेश गृहाण परमेश्वर
॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: पुष्पमालां
समर्पयामि ।
दुर्वा– श्रीसत्यनारायण
भगवान् को दुर्वा (दूब) निवेदित करें-
ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः
परुषस्परि ।
एवा नो दूर्वे प्र तनु सहस्रेण शतेन
च ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम:
दूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि ।
चन्दन-
श्री भगवान् को चन्दन (अष्टगंध)लगावें-
ॐ श्री खण्डचन्दनं दिव्यं गन्धाढयं
सुमनोहरं ।
विलेपनं सुर श्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: श्रीखण्डचन्दनं
समर्पयामि ।
नानापरिमलद्रव्य-
श्री भगवान् जी को गुलाल,बंदन,कुमकुम लगावें-
ॐ ज्योस्नापते नमस्तुभ्यं नमस्ते
विश्वरुपिणे ।
नानापरिमलद्रव्यं गृहाण पुरुषोत्तम ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: नानापरिमलद्रव्यं
समर्पयामि ।
तुलसीपत्र-
अब श्रीसत्यनारायण भगवान् को तुलसी दल मंजरी
सहित चढ़ावे-
ॐ तुलसी हेमरूपां च रत्न रूपां च
मंजरीम् ।
भव मोक्षप्रदां तुभ्य अर्च्यामि
हरिप्रियाम् ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: तुलसी दलं
च तुलसी मंजरीम् समर्पयामि ।
अंगपूजन –अब अष्टगंधमिश्रीत अक्षत ,फूल लेकर श्रीसत्यनारायण भगवान् के सभी अंगो का ध्यान करते हुए अंगपूजन
करे-
ॐ दामोदराय नमः पादौ पूजयामि ।
ॐ माधवाय नमः जानुनी पूजयामि ।
ॐ विषण्वे नमः गुल्फौ पूजयामि ।
ॐ वामनाय नमः कटि पूजयामि ।
ॐ पद्मनाभाय नमः नाभि पूजयामि ।
ॐ कालात्मने नमः उदरं पूजयामि ।
ॐ चतुर्भुजाय नमः हृदयं पूजयामि ।
ॐ विश्वमूर्तये नमः कण्ठं पूजयामि ।
ॐ परमात्मने नमःग्रीवायां पूजयामि ।
ॐकम्बुग्रीवाय नमःस्कन्धौ पूजयामि ।
ॐ सहस्त्रबाहवे नमः बाहू पूजयामि ।
ॐ अभयमुद्राय नमः हस्तौ पूजयामि ।
ॐ शंख-चक्र-गदाधरयै नमःमुखं पूजयामि
।
ॐ पुरुषोत्तमाय नमःनासिकां पूजयामि
।
ॐसहस्त्रनेत्राय नमःनेत्रं पूजयामि
।
ॐ सहस्त्रशीर्षाय नमः शिरः पूजयामि
।
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: सर्वांग पूजयामि ।
धूप– अब
धूप(दसांग)देने उपरांत आचमन करें-
ॐ वनस्पति रसो दिव्यो गन्धाढ्य:
सुमनोहर: ।
आघ्रेय: सर्व देवानां धूपोयं प्रति
गृह्यतां ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: धूपम्
दर्शयामी ।
धूपांते आचमनीयं जलं समर्पयामि । (जल
से आचमन करें)
नैवेद्य-
अब श्रीसत्यनारायण भगवान् को नैवेद्य
(प्रसाद)निवेदित करें -
ॐ घृतगोधूमकक्षीररम्भाफासितान्वितम्
।
सपादभक्ष्यं नैवेद्यमुत्तमं
प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ।
ॐ प्राणाय स्वाहा । ॐ अपानाय स्वाहा
। ॐ समानाय स्वाहा ।
ॐ उदानाय स्वाहा । ॐ व्यानाय स्वाहा
। ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा ।
ॐ त्वदीयम् वस्तु गोविन्दं तुभ्यमेव
च समर्पितम् ।
गृहाण सुमुखो भूत्वा प्रसीद श्री
सत्यनारयणः ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: नैवेद्यम्
निवेदितामि ।
आचमन– जल
से आचमन करें -
ॐ कर्पूर वासितं तोयम् मन्दाकिन्या: समाहृतम् ।
आचम्यतां महाभाग दत्तं हि भक्तितः ॥
फल– अब
केला,सेब आदि मौसमी फल अर्पित करें-
ॐ फलान्यमृत कल्पानि स्थापितानि
पुरतस्तव ।
तेन मे सफलावाप्ति र्भवेजन्मनि
जन्मनि ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम:
ऋतुफलं समर्पयामि ।
नारियल-
अब नारियल चढ़ावे –
ॐ नारिकेलं मातुलिंगम् जम्बूकर्कटिदाडिमम् ।
कूष्माण्डं बदरं रम्भाफलं च
प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम:
नारिकेलं समर्पयामि ।
ताम्बूल– अब
मुख शुद्धि के लिए पान(ताम्बूल)समर्पित करें-
ॐ पूगिफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् ।
कर्पूरादि समायुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: ताम्बूलं समर्पयामि ।
दक्षिणा-
अब भगवान जी को
द्रव्य दक्षिणा चढ़ावे –
ॐ न्यूनतारिक्त पूजायाः संपूर्ण
फलहेतवे ।
दक्षिणां काञ्चन रजतो पेतं
नानारत्नसमन्वितः ॥
ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: द्रव्य
दक्षिणा समर्पयामि ।
दीप– अब
लघु आरती करें-
ॐ साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना
योजितं मया ।
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापह
॥
इसके उपरांत श्री सत्यनारायण कथा
श्रवण करें- सत्यनारायणाष्टक का पाठ करें-
श्रीसत्यनारायण पूजन पद्धति:
॥हवन॥
अब गौरी-गणेश, पञ्चदेव, वरुणदेव, लक्ष्मी-नारायण, ब्रह्मा-सरस्वती, शिव-पार्वती, नवग्रह मंडलदेवता, सर्वतोभद्र मंडल और अंत मे ॥ॐ श्री सत्यनारायणाय नम:॥ मंत्र से १०८
आहुति हवन करे ।
इसके बाद दश दिग्पालों के लिए बलिदान करें। पाठकों के लाभार्थ यहाँ सर्वतोभद्र हवन दिया जा रहा है-
ॐ गणपतये नमःस्वाहा । ॐ गौर्यै नमः
स्वाहा । ॐ ब्रह्मणे नमः स्वाहा । ॐ सोमाय
नमः स्वाहा । ॐ ईशानाय नमः स्वाहा । ॐ इन्द्राय नमःस्वाहा ।ॐ अग्नये नमः स्वाहा ।
ॐ यमाय नमः स्वाहा । ॐ निर्ऋत्ये नमः
स्वाहा । ॐ वरुणाय नमः स्वाहा । ॐ वायवे नमः स्वाहा । ॐ अष्टवसुभ्यो नमः स्वाहा ।
ॐ एकादश रुद्रेभ्यो नमः स्वाहा । ॐ द्वादश आदित्येभ्यो नमः स्वाहा । ॐ अश्विद्वयो नमः स्वाहा । ॐ
सपैतृकविश्वेदेवेभ्यो नमः स्वाहा । ॐ
सप्तयक्षेभ्यो नमः स्वाहा । ॐ अष्टकुलनागेभ्यो नमः स्वाहा । ॐ गन्धर्वाप्सरायै नमः स्वाहा । ॐ स्कंदाय नमः
स्वाहा । ॐ नन्दीश्वराय नमः स्वाहा । ॐ
शूलाय नमः स्वाहा । ॐ महाकालाय नमः
स्वाहा । ॐ ब्रह्मणे नमः स्वाहा । ॐ रुद्राय नमः स्वाहा । ॐ
दक्षादि सप्तगणेभ्यो नमः स्वाहा ।
ॐ दुर्गायै नमः स्वाहा । ॐ विष्णवे नमः स्वाहा । ॐ स्वधायै नमः स्वाहा ।
ॐ मृत्यु रोगेभ्यो नमः स्वाहा । ॐ अपाय
नमः स्वाहा । ॐ मरुदगणाय नमः स्वाहा । ॐ
पृथ्वीभ्यो नमः स्वाहा । ॐ गंगादि
नदीभ्यो नमः स्वाहा । ॐ सप्तसागरेभ्यो नमः स्वाहा । ॐ मेरवे नमः स्वाहा । ॐ गौतमाय नमः स्वाहा । ॐ
भारद्वाजाय नमः स्वाहा । ॐ विश्वामित्राय नमः स्वाहा । ॐ कश्यपाय नमः स्वाहा । ॐ
जमदग्ने नमः स्वाहा । ॐ वसिष्ठाय नमः स्वाहा । ॐ अत्रे नमः स्वाहा । ॐ अरुन्धत्यै
नमः स्वाहा । ॐ ऐन्द्रायै नमः स्वाहा ।
ॐ कौमारीयै नमः स्वाहा । ॐ ब्राह्मीयै नमः स्वाहा । ॐ वाराहीयै नमः स्वाहा
। ॐ चामुण्डायै नमः स्वाहा । ॐ वैष्णव्यै
नमः स्वाहा । ॐ माहेश्वरयै नमः स्वाहा । ॐ
वैनायकीयै नमः स्वाहा । ॐ गदायै नमः स्वाहा । ॐ त्रिशूलायै नमः स्वाहा । ॐ वज्रायै
नमः स्वाहा । ॐ शक्तये नमः स्वाहा । ॐ दण्डाय नमः स्वाहा । ॐ खड्गाय नमः स्वाहा । ॐ पाशाय नमः स्वाहा । ॐ
अंकुशाय नमः स्वाहा । ॐ विष्णवे नमः स्वाहा ।
॥ॐ श्री सत्यनारायणाय नम: स्वाहा ॥
ॐ अग्नये स्विष्टकृते नमः स्वाहा ।
बलिदान –
उड़द और
दही का दस दिग्पाल के निमित्त बलिदान रखें-
भो ! दस दिग्पाल रक्ष बलि भक्षबलि
अस्य यजमानस्य सकुटुंबस्य आयुःकर्ता,क्षेमकर्ता,
शांतिकर्ता, तुष्टि कर्ता, पुष्टि कर्ता, निर्विघ्न कर्ता वर्दोभव ॥
पूर्णाहुति संकल्प-
यजमान अक्षत,जल
लेकर पूर्णाहुति संकल्प कर पृथ्वी मे छोड़
दे-
ॐ विष्णु................. श्री
सत्यनारायण पूजन निमितिक पूर्णाहुति कर्म अहं करिष्ये ।
पूर्णाहुति-
अब नारियलगिरी,घी लेकर निम्नमंत्र पढ़ कर हवन कुंड मे डाले-
ॐ पूर्णा दर्वि परापत सुपूर्णा पुनरापत।वस्नेव विक्र्कीणावहाऽइषमूर्ज ঌ शतक्र्कतो स्वाहा ॥
भस्म धारण-
अब हवन कुंड से भस्म लेकर मंत्र द्वारा अपने
अंगों मे लगायें-
ॐ त्रयायुषं जमदग्नेरिति ललाटे । (मस्तक)
ॐ कश्यपश्य त्रयायुषमिति ग्रीवायाम् । (गला)
ॐ यद्देवेषु त्रयायुषमिति
दक्षिणबाहु । (दाहिना भुजा)
ॐ तन्नोऽस्तु त्रयायुषमिति हृदि ॥ (छाती)
आरती- इसके पश्चात आरती करें-
॥ आरती श्री सत्यनारायणजी ॥
जय लक्ष्मीरमणा श्री जय लक्ष्मीरमणा
।
सत्यनारायण स्वामी जनपातक हरणा ॥
जय लक्ष्मीरमणा ।
रत्नजड़ित सिंहासन अद्भुत छवि राजे ।
नारद करत निराजन घंटा ध्वनि बाजे ॥
जय लक्ष्मीरमणा ।
प्रगट भये कलि कारण द्विज को दर्श
दियो ।
बूढ़ो ब्राह्मण बनकर कंचन महल कियो ॥
जय लक्ष्मीरमणा ।
दुर्बल भील कठारो इन पर कृपा करी ।
चन्द्रचूड़ एक राजा जिनकी विपति हरी ॥
जय लक्ष्मीरमणा ।
वैश्य मनोरथ पायो श्रद्धा तज दीनी ।
सो फल भोग्यो प्रभुजी फिर स्तुति
कीनी ॥
जय लक्ष्मीरमणा ।
भाव भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धरयो
।
श्रद्धा धारण कीनी तिनको काज सरयो ॥
जय लक्ष्मीरमणा ।
ग्वाल बाल संग राजा वन में भक्ति
करी ।
मनवांछित फल दीनो दीनदयाल हरी ॥
जय लक्ष्मीरमणा ।
चढ़त प्रसाद सवाया कदली फल मेवा ।
धूप दीप तुलसी से राजी सत्यदेवा ॥
जय लक्ष्मीरमणा ।
श्री सत्यनारायणजी की आरती जो कोई
नर गावे ।
ऋद्धि-सिद्ध सुख-संपत्ति सहज रूप
पावे ॥
जय लक्ष्मीरमणा ।
पुष्पांजलि-अब हाथ में पुष्प लेकर पुष्पांजलि करें व क्षमा प्रार्थना करें -
जय–जयकार करो रे प्रभु का – २ ।
सत्यनारायण नारायण–नारायण‚ लक्ष्मीनारायण नारायण–नारायण
॥
श्रीमण्नारायण नारायण–नारायण‚जय–जय नारायण नारायण–नारायण ॥
मेरे दाता‚मेरे दाता सुन ले अरज दुखिया की मेरी बिगड़ी बना दे स्वामी–२।
नित पुजन मैं तो करूंगा ॥ जय–जयकार करो रे प्रभु का– – – –॥
जिसने भक्ति –
भाव सुमन चरणों में चढ़ाया प्रभु को ।
भक्ति से जिसने शीश यहाँ चरणों में
झुकाया प्रभु को ।
उस पर होती प्रभु जी की कृपा सब
कामना पूरी होती ॥
जय–जयकार करो रे प्रभु का– – – –॥
शंख चक्र गदा पद्म गले वैजयंति माला
।
श्रीखंड पत्र आम्रपत्र तुलसी तोरण
माला ।
पीले आसन बैठे ठाकुर सबकी सुनते
प्रार्थना ॥
जय–जयकार करो रे प्रभु का– – – –॥
दुध दही पञ्चामृत सेवा सब पदारथ
अर्पण ।
धुप दीप नाना परिमल अक्षत
पुष्पांजलि है अर्पण ।
कथा श्रवण भगवत् पुजन है प्रसाद की
महिमा ॥
जय–जयकार करो रे प्रभु का– – – –॥
अब ब्राह्मण दक्षिणा व ब्राह्मण
भोजन करा पूजन सम्पन्न करें ।
॥इति:
श्री सत्यनारायण पूजन पद्धति: सम्पूर्ण: ॥
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