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अग्निपुराणम्/अध्यायः २१९
अग्निपुराणम् अध्यायः २१९ – अभिषेकमन्त्राः
अथ उनविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः
पुष्कर उवाच
राजदेवाद्यभिषेकमन्त्रान्वक्ष्येऽघमर्दनान्
।
कुम्भात्कुशोदकैः सिञ्चेत्तेन सर्वं
हि सिद्ध्यति ॥०१॥
पुष्कर ने कहा- अब मैं राजा और
देवता आदि के अभिषेक सम्बन्धी मन्त्रों का वर्णन करूँगा,
जो सम्पूर्ण पापों को दूर करनेवाले हैं। कलश से कुशयुक्त जल द्वारा
राजा का अभिषेक करे; इससे सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि होती
है ॥ १ ॥
अभिषेक मन्त्र
(उस समय निम्नाङ्कित मन्त्रों का
पाठ करना चाहिये - )
सुरास्त्वामभिषिञ्चन्तु
ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः ।
वासुदेवः सङ्कर्षणः
प्रद्युम्नश्चानिरुद्धकः ॥०२॥
भवन्तु विजयायैते इन्द्राद्या
दशदिग्गताः ।
रुद्रो धर्मो मनुर्दक्षो रुचिः
श्रद्धा च सर्वदा ॥०३॥
" राजन् ! ब्रह्मा,
विष्णु और शिव आदि सम्पूर्ण देवता तुम्हारा अभिषेक करें। भगवान्
वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, इन्द्र आदि दस दिक्पाल, रुद्र, धर्म, मनु, दक्ष, रुचि तथा श्रद्धा- ये सभी सदा तुम्हें विजय
प्रदान करनेवाले हों।
भृगुरत्रिर्वसिष्ठश्च सनकश्च
सनन्दनः ।
सनत्कुमारोऽङ्गिराश्च पुलस्त्यः
पुलहः क्रतुः ॥०४॥
मरीचिः कश्यपः पान्तु प्रजेशाः
पृथिवीपतिः ।
भृगु, अत्रि, वसिष्ठ, सनक, सनन्दन, सनत्कुमार, अङ्गिरा,
पुलस्त्य, पुलह, क्रतु,
मरीचि और कश्यप आदि ऋषि महर्षि प्रजा का शासन करनेवाले भूपति की
रक्षा करें।
प्रभासुरा वहिर्षद अग्निष्वात्ताश्च
पान्तु ते ॥०५॥
क्रव्यादाश्चोपहूताश्च आज्यपाश्च
सुकालिनः ।
अग्निभिश्चाभिषिञ्चन्तु
लक्ष्म्याद्या धर्मवल्लभाः ॥०६॥
अपनी प्रभा से प्रकाशित होनेवाले 'बर्हिषद्' और 'अग्निष्वात्त'
नामवाले पितर तुम्हारा पालन करें। क्रव्याद (राक्षस), आवाहन किये हुए आज्यपा (घृतपान करनेवाले देवता और पितर), सुकाली (सुकाल लानेवाले देवता) तथा धर्मप्रिया लक्ष्मी आदि देवियाँ
प्रवृद्ध अग्नियों के साथ तुम्हारा अभिषेक करें।
आदित्याद्याः कश्यपस्य बहुपुत्रस्य
वल्लभाः ।
कृशाश्वस्याग्निपुत्रस्य
भार्याश्चारिष्ठनेमिनः ॥०७॥
अश्विन्याद्याश्च चन्द्रस्य पुलहस्य
तथा प्रियाः ।
भूता च कपिशा दंष्ट्री सुरसा सरमा
दनुः ॥०८॥
श्येनी भासी तथा क्रौञ्ची
धृतराष्ट्री शुकी तथा ।
पत्न्यस्त्वामभिषिञ्चन्तु
अरुणश्चार्कसारथिः ॥०९॥
अनेकों पुत्रोंवाले प्रजापति,
कश्यप के आदित्य आदि प्रिय पुत्रगण, अग्निनन्दन
कृशाश्व तथा अरिष्टनेमि की पत्नियाँ भी तुम्हारा अभिषेक करें। चन्द्रमा की अश्विनी
आदि भार्याएँ, पुलह की प्रिय पत्नियाँ और भूता, कपिशा, दंष्ट्री, सुरसा,
सरमा, दनु, श्येनी,
भाषी, क्रौञ्ची, धृतराष्ट्री
तथा शुकी आदि देवियाँ एवं सूर्य के सारथि अरुण - ये सब तुम्हारे अभिषेक का कार्य
सम्पन्न करें।
आयतिर्नियतीरात्रिर्निद्रा
लोकस्थितौ स्थिताः ।
उमा मेना शची पान्तु
धूमोर्नानिर्ऋतिर्जये ॥१०॥
गौरी शिवा च ऋद्धिश्च वेला चैव
नड्वला ।
अशिक्नी च तथा ज्योत्स्ना
देवपत्न्यो वनस्पतिः ॥११॥
आयति, नियति, रात्रि, निद्रा,
लोकरक्षा में तत्पर रहनेवाली उमा, मेना और शची
आदि देवियाँ, धूमा, ऊर्णा, नैर्ऋती, जया, गौरी, शिवा, ऋद्धि, वेला, नड्वला, असिवनी, ज्योत्स्ना,
देवाङ्गनाएँ तथा वनस्पति- ये सब तुम्हारा पालन करें । २-११ ॥
महाकल्पश्च कल्पश्च मन्वन्तरयुगानि
च ।
संवत्सराणि वर्षाणि पान्तु
त्वामयनद्वयं ॥१२॥
ऋतवश्च तथा मासा पक्षा रात्र्यहनी
तथा ।
सन्ध्यातिथिमुहूर्ताच्च
कालस्यावयवाकृतिः ॥१३॥
सूर्याद्याश्च ग्रहाः पान्तु मनुः
स्वायम्भुवादिकः ।
"महाकल्प,
कल्प, मन्वन्तर युग, संवत्सर,
वर्ष, दोनों अयन, ऋतु,
मास, पक्ष, रात-दिन, संध्या, तिथि, मुहूर्त तथा
काल के विभिन्न अवयव (छोटे-छोटे भेद) तुम्हारी रक्षा करें। सूर्य आदि ग्रह और
स्वायम्भुव आदि मनु तुम्हारी रक्षा करें।
स्वायम्भुवः स्वारोचिष
औत्तमिस्तामसो मनुः ॥१४॥
रैवतश्चाक्षुषः षष्ठो वैवस्वत
इहेरितः ।
सावर्णो ब्रह्मपुत्रश्च
धर्मपुत्रश्च रुद्रजः ॥१५॥
दक्षजो रौच्यभौत्यौ च मनवस्तु
चतुर्दश ।
स्वायम्भुव,
स्वारोचिष, उत्तम, तामस,
रैवत, चाक्षुष, वैवस्वत,
सावर्णि, ब्रह्मपुत्र, धर्मपुत्र,
रुद्रपुत्र, दक्षपुत्र, रौच्य
तथा भौत्य- ये चौदह मनु तुम्हारे रक्षक हों।
विश्वभुक्च विपश्चिच्च सुचित्तिश्च
शिखी विभुः ॥१६॥
मनोजवस्तथौजस्वी बलिरद्भुतशान्तयः ।
वृषश्च ऋतधामा च
दिवस्पृक्कविरिन्द्रकः ॥१७॥
रेवन्तश्च कुमारश्च तथा वत्सविनायकः
।
वीरभद्रश्च नन्दी च विश्वकर्मा
पुरोजवः ॥१८ ॥
एते त्वामभिषिञ्चन्तु सुरमुख्याः
समागताः ।
नासत्यौ देवभिषजौ ध्रुवाद्या
वसवोऽष्ट च ॥१९॥
विश्वभुक् विपश्चित् शिखी,
विभु, मनोजव, ओजस्वी,
बलि, अद्भुत शान्तियाँ, वृष,
ऋतधामा, दिवः स्पृक्, कवि,
इन्द्र, रैवन्त, कुमार
कार्तिकेय, वत्सविनायक, वीरभद्र,
नन्दी, विश्वकर्मा, पुरोजव,
देववैद्य अश्विनीकुमार तथा ध्रुव आदि आठ वसु- ये सभी प्रधान देवता
यहाँ पदार्पण करके तुम्हारे अभिषेक का कार्य सम्पन्न करें।
दश चाङ्गिरसो वेदास्त्वाभिषिञ्चन्तु
सिद्धये ।
आत्मा ह्यायुर्मनो दक्षो मदः
प्राणस्तथैव च ॥२०॥
हविष्मांश्च गरिष्ठश्च ऋतः सत्यश्च
पान्तु वः ।
क्रतुर्दक्षो वसुः सत्यः कालकामो
धुरिर्जये ॥२१॥
अङ्गिरा के कुल में उत्पन्न दस देवता
और चारों वेद सिद्धि के लिये तुम्हारा अभिषेक करें। आत्मा,
आयु, मन, दक्ष, मद, प्राण, हविष्मान्, गरिष्ठ, ऋत और सत्य - ये तुम्हारी रक्षा करें तथा
क्रतु, दक्ष, वसु, सत्य, काल, काम और धुरि- ये
तुम्हें विजय प्रदान करें।
पुरूरवा माद्रवाश्च विश्वेदेवाश्च रोचनः
।
अङ्गारकाद्याः
सूर्यस्त्वान्निर्ऋतिश्च तथा यमः ॥२२॥
पुरूरवा,
आर्द्रवा, विश्वेदेव, रोचन,
अङ्गारक (मङ्गल) आदि ग्रह, सूर्य, निर्ऋति तथा यम- ये सब तुम्हारी रक्षा करें।
अजैकपादहिर्व्रध्रो धूमकेतुश्च
रुद्रजाः ।
भरतश्च तथा मृत्युः कापालिरथ
किङ्किणिः ॥२३॥
भवनो भावनः पान्तु स्वजन्यः
स्वजनस्तथा ।
क्रतुश्रवाश्च मूर्धा च
याजनोऽभ्युशनास्तथा ॥२४॥
अजैकपाद,
अहिर्बुध्न्य, धूमकेतु, रुद्र
के पुत्र, भरत, मृत्यु, कापालि, किंकणि, भवन, भावन स्वजन्य, स्वजन, क्रतुश्रवा,
मूर्धा, याजन और उशना - ये तुम्हारी रक्षा
करें।
प्रसवश्चाव्ययश्चैव दक्षश्च भृगवः
सुराः ।
मनोऽनुमन्ता प्राणश्च नवोपानश्च
वीर्यवान् ॥२५॥
वीतिहोत्रो नयः साध्यो हंसो
नारायणोऽवतु ।
विभुश्चैव प्रभुश्चैव देवश्रेष्ठा
जगद्धिताः ॥२६॥
प्रसव,
अव्यय, दक्ष, भृगुवंशी
ऋषि, देवता, मनु, अनुमन्ता, प्राण, नव, बलवान् अपान वायु, वीतिहोत्र, नय,
साध्य, हंस, विभु,
प्रभु और नारायण – संसार के हित में लगे रहनेवाले ये श्रेष्ठ देवता
तुम्हारा पालन करें।
धाता मित्रोऽर्यमा पूषा शक्रोऽथ
वरुणो भगः ।
त्वष्टा विवस्वान् सविता
विष्णुर्द्वादश भास्कराः ॥२७॥
धाता, मित्र, अर्यमा, पूषा, शक्र, वरुण, भग, त्वष्टा, विवस्वान्, सविता,
भास्कर और विष्णु - ये बारह सूर्य तुम्हारी रक्षा करें।
एकज्योतिश्च
द्विज्योतिस्त्रिश्चतुर्ज्योतिरेव च ।
एकशक्रो द्विशक्रश्च त्रिशक्रश्च
महाबलः ॥२८॥
इन्द्रश्च मेत्यादिशतु ततः
प्रतिमकृत्तथा ।
मितश्च सम्मितश्चैव अमितश्च महाबलः
॥२९॥
ऋतजित्सत्यजिच्चैव सुषेणः
सेनजित्तथा ।
अतिमित्रोऽनुमित्रश्च
पुरुमित्रोऽपराजितः ॥३०॥
ऋतश्च ऋतवाग्धाता विधाता धारणो
ध्रुवः ।
विधारणो महातेजा वासवस्य परः सखा
॥३१॥
ईदृक्षश्चाप्यदृक्षश्च
एतादृगमिताशनः ।
क्रीडितश्च सदृक्षश्च सरभश्च
महातपाः ॥३२॥
धर्ता धुर्यो धुरिर्भीम अभिमुक्तः
क्षपात्सह ।
धृतिर्वसुरनाधृष्यो रामः कामो जयो
विराट् ॥३३॥
देवा एकोनपञ्चाशन्मरुतस्त्वामवन्तु
ते ।
एकज्योति,
द्विज्योति, त्रिज्योति, चतुर्ज्योति, एकशक्र, द्विशक्र,
महाबली त्रिशक्र, इन्द्र, पतिकृत्, मित, सम्मित, महाबली अमित, ऋतजित् सत्यजित्, सुषेण, सेनजित्, अतिमित्र,
अनुमित्र, पुरुमित्र, अपराजित,
ऋत, ऋतवाक्, धाता,
विधाता, धारण, ध्रुव,
इन्द्र के परम मित्र महातेजस्वी विधारण, इदृक्ष,
अदृक्ष, एतादृक्, अमिताशन,
क्रीडित, सदृक्ष, सरभ,
महातपा, धर्ता, धुर्य्य,
धुरि, भीम, अभिमुक्त,
अक्षपात, सह, धृति,
वसु, अनाधृष्य, राम,
काम, जय और विराट् -ये उन्चास मरुत् नामक
देवता तुम्हारा अभिषेक करें तथा तुम्हें लक्ष्मी प्रदान करें।
चित्राङ्गदश्चित्ररथः चित्रसेनश्च
वै कलिः ॥३४॥
उर्णायुरुग्रसेनश्च धृतराष्ट्रश्च
नन्दकः ।
हाहा हूहूर्नारदश्च विश्वावसुश्च तुम्बुरुः
॥३५॥
एते त्वामभिषिञ्चन्तु गन्धर्वा
विजयाय ते ।
चित्राङ्गद,
चित्ररथ, चित्रसेन, कलि,
ऊर्णायु, उग्रसेन धृतराष्ट्र, नन्दक, हाहा, हूहू, नारद, विश्वावसु और तुम्बुरु — ये गन्धर्व तुम्हारे अभिषेक का कार्य सम्पन्न करें और तुम्हें विजयी
बनावें।
पान्तु ते कुरुपा मुख्या
दिव्याश्चाप्सरसाङ्गणाः ॥३६॥
अनवद्या सुकेशी च मेनकाः सह जन्यया
।
क्रतुस्थला घृताची च विश्वाची
पुञ्जिकस्थला ॥३७॥
प्रम्लोचा चोर्वशी रम्भा पञ्चचूडा
तिलोत्तमा ।
चित्रलेखा लक्ष्मणा च पुण्डरीका च
वारुणी ॥३८॥
प्रधान प्रधान मुनि तथा अनवद्या,
सुकेशी, मेनका, सहजन्या,
क्रतुस्थला, घृताची, विश्वाची, पुञ्जिकस्थला, प्रम्लोचा, उर्वशी,
रम्भा, पञ्चचूड़ा, तिलोत्तमा,
चित्रलेखा, लक्ष्मणा, पुण्डरीका
और वारुणी – ये दिव्य अप्सराएँ तुम्हारी रक्षा करें ॥ १२ -
३८ ॥
प्रह्लादो विरोचनोऽथ बलिर्वाणोऽथ
तत्सुताः ।
एते चान्येऽभिषिञ्चन्तु दानवा
राक्षसास्तथा ॥३९॥
"प्रह्लाद,
विरोचन, बलि, बाण और
उसका पुत्र- ये तथा दूसरे दूसरे दानव और राक्षस तुम्हारे अभिषेक का कार्य सिद्ध
करें।
हेतिश्चैव प्रहेतिश्च
विद्युत्स्फुर्जथुरग्रकाः ।
यक्षः सिद्धार्मकः पातु माणिभद्रश्च
नन्दनः ॥४०॥
हेति, प्रहेति, विद्युत्, स्फूर्जथु,
अग्रक, यक्ष, सिद्ध,
मणिभद्र और नन्दन - ये सब तुम्हारी रक्षा करें।
पिङ्गाक्षो द्युतिमांश्चैव
पुष्पवन्तो जयावहः ।
शङ्खः पद्मश्च मकरः कच्छपश्च
निधिर्जये ॥४१॥
पिङ्गाक्ष,
द्युतिमान्, पुष्पवन्त, जयावह,
शङ्ख, पद्म, मकर और
कच्छप-ये निधियाँ तुम्हें विजय प्रदान करें।
पिशाचा ऊर्ध्वकेशाद्या भूता
भूम्यादिवासिनः ।
महाकालं पुरस्कृत्य नरसिंहञ्च मातरः
॥४२॥
ऊर्ध्वकेश आदि पिशाच,
भूमि आदि के निवासी भूत और माताएँ, महाकाल एवं
नृसिंह को आगे करके तुम्हारा पालन करें।
गुहः स्कन्दो विशाखस्त्वान्नैगमेयोऽभिषिञ्चतु
।
डाकिन्यो याश्च योगिन्यः खेचरा
भूचराश्च याः ॥४३॥
गरुडश्चारुणः पान्तु
सम्पातिप्रमुखाः खगाः ।
गुह, स्कन्द, विशाख, नैगमेय –
ये तुम्हारा अभिषेक करें। भूतल एवं आकाश में विचरनेवाली डाकिनी तथा
योगिनियाँ, गरुड, अरुण तथा सम्पाति आदि
पक्षी तुम्हारा पालन करें।
अनन्ताद्या महानागाः
शेषवासुकितक्षकाः ॥४४॥
ऐरावतो महापद्मः कम्बलाश्वतरावुभौ ।
शङ्खः कर्कोटकश्चैव धृतराष्ट्रो
धनञ्जयः ॥४५॥
कुमुदैरावणौ पद्मः पुष्पदन्तोऽथ
वामनः ।
सुप्रतीकोऽञ्जनो नागाः पान्तु त्वां
सर्वतः सदा ॥४६॥
अनन्त आदि बड़े-बड़े नाग,
शेष वासुकि, तक्षक, ऐरावत,
महापद्म, कम्बल, अश्वतर,
शङ्ख, कर्कोटक, धृतराष्ट्र,
धनंजय, कुमुद, ऐरावत,
पद्म, पुष्पदन्त, वामन,
सुप्रतीक तथा अञ्जन नामक नाग सदा और सब ओर से तुम्हारी रक्षा करें।
पैतामहस्तथा हंसो वृषभः शङ्करस्य च
।
दुर्गासिंहश्च पान्तु त्वां यमस्य
महिषस्तथा ॥४७॥
ब्रह्माजी का वाहन हंस,
भगवान् शंकर का वृषभ, भगवती दुर्गा का सिंह और
यमराज का भैंसा - ये सभी वाहन तुम्हारा पालन करें।
उच्चैःश्रवाश्चाश्वपतिस्तथा
धन्वन्तरिः सदा ।
कौस्तुभः शङ्कराजश्च वज्रं शूलञ्च
चक्रकं ॥४८॥
नन्दकोऽस्त्राणि रक्षन्तु धर्मश्च
व्यवसायकः ।
अश्वराज उच्चैःश्रवा,
धन्वन्तरि वैद्य, कौस्तुभ- मणि, शङ्खराज पाञ्चजन्य, वज्र, शूल,
चक्र और नन्दक खड्ग आदि अस्त्र तुम्हारी रक्षा करें।
चित्रगुप्तश्च दण्डश्च पिङ्गलो
मृत्युकालकौ ॥४९॥
बालखिल्यादिमुनयो व्यासवाल्मीकिमुख्यकाः
।
पृथुर्दिलीपो भरतो दुष्यन्तः
शक्रजिद्वली ॥५०॥
मल्लः ककुत्स्थश्चानेन युवनाश्वो
जयद्रथः ।
मान्धाता मुचुकुन्दश्च पान्तु
त्वाञ्च पुरूरवाः ॥५१॥
वास्तुदेवाः पञ्चविंशत्तत्त्वानि
विजयाय ते ।
दृढ़ निश्चय रखनेवाले धर्म,
चित्रगुप्त, दण्ड, पिङ्गल,
मृत्यु, काल, वालखिल्य
आदि मुनि, व्यास और वाल्मीकि आदि महर्षि, पृथु, दिलीप, भरत, दुष्यन्त, अत्यन्त बलवान् शत्रुजित्, मनु, ककुत्स्थ, अनेना, युवनाश्व, जयद्रथ, मान्धाता,
मुचुकुन्द और पृथ्वीपति पुरूरवा – ये सब राजा
तुम्हारे रक्षक हों वास्तुदेवता और पच्चीस तत्त्व तुम्हारी विजय के साधक हों।
रुक्मभौमः शिलाभौमः पतालो
नीलमूर्तिकः ॥५२॥
पीतरक्तः क्षितिश्चैव श्वेतभौमो
रसातलं ।
भूल्लोकोऽथ भुवर्मुख्या
जम्वूद्वीपादयः श्रिये ॥५३॥
रुक्मभौम,
शिलाभौम, पाताल, नीलमूर्ति,
पीतरक्त, क्षिति, श्वेतभौम, रसातल, भूर्लोक, भुवर् आदि
लोक तथा जम्बू- द्वीप आदि द्वीप तुम्हें राज्यलक्ष्मी प्रदान करें।
उत्तराः कुरवः पान्तु रम्या
हिरण्यकस्तथा ।
भद्राश्वः केतुमालश्च वर्षश्चैव
वलाहकः ॥५४॥
हरिवर्षः किम्पुरुष इन्द्रद्वीपः
कशेरुमान् ।
ताम्रवर्णो गभस्तिमान्नागद्वीपश्च
सौम्यकः ॥५५॥
गन्धर्वो वरुणो यश्च नवमः पान्तु
राज्यदाः ।
उत्तरकुरु,
रम्य, हिरण्यक, भद्राश्व,
केतुमाल, बलाहक, हरिवर्ष,
किंपुरुष, इन्द्रद्वीप, कशेरुमान्,
ताम्रवर्ण, गभस्तिमान्, नागद्वीप,
सौम्यक, गान्धर्व, वारुण
और नवम आदि वर्ष तुम्हारी रक्षा करें और तुम्हें राज्य प्रदान करनेवाले हों।
हिमवान् हेमकूटश्च निषधो नील एव च
॥५६॥
श्वेतश्च शृङवान्मेरुर्माल्यवान्
गन्धमादनः ।
महेन्द्रो मलयः सह्यः
शक्तिमानृक्षवान् गिरिः ॥५७॥
विन्ध्यश्च पारिपात्रश्च गिरयः
शान्तिदास्तु ते ।
हिमवान्, हेमकूट, निषध, नील, श्वेत, शृङ्गवान्, मेरु,
माल्यवान् गन्धमादन, महेन्द्र, मलय, सह्य, शुक्तिमान्,
ऋक्षवान् गिरि, विन्ध्य और पारियात्र- ये सभी
पर्वत तुम्हें शान्ति प्रदान करें।
ऋग्वेदाद्याः षडङ्गानि
इतिहासपुराणकं ॥५८॥
आयुर्वेदश्च
गन्धर्वधनुर्वेदोपवेदकाः ।
शिक्षा कल्पो व्याकरणं निरुक्तं
ज्योतिषाङ्गतिः ॥५९॥
छन्दोगानि च वेदाश्च मीमांसा
न्यायविस्तरः ।
धर्मशास्त्रं पुराणञ्च विद्या
ह्येताश्चतुर्दश ॥६०॥
ऋक् आदि चारों वेद,
छहों अङ्ग, इतिहास, पुराण,
आयुर्वेद, गान्धर्ववेद और धनुर्वेद आदि उपवेद,
शिक्षा, कल्प, व्याकरण,
निरुक्त, ज्यौतिष, छन्द-ये
छः अङ्ग, चार वेद, मीमांसा, न्याय, धर्मशास्त्र और पुराण- ये चौदह विद्याएँ
तुम्हारी रक्षा करें ॥ ३९-६० ॥
साङ्ख्यं योगः पाशुपतं वेदा वै
पञ्चरात्रकं ।
कृतान्तपञ्चकं ह्येतद्गायत्री च
शिवा तथा ॥६१॥
दुर्गा विद्या च गान्धारी पान्तु
त्वां शान्तिदाश्च ते ।
लवणेक्षुसुरासर्पिदधिदुग्धजलाब्धयः
॥६२॥
चत्वारः सागराः पान्तु तीर्थानि
विविधानि च ।
"सांख्य,
योग, पाशुपत, वेद,
पाञ्चरात्र- ये 'सिद्धान्तपञ्चक' कहलाते हैं। इन पाँचों के अतिरिक्त गायत्री, शिवा,
दुर्गा, विद्या तथा गान्धारी नामवाली देवियाँ
तुम्हारी रक्षा करें और लवण, इक्षुरस, सुरा,
घृत, दधि, दुग्ध तथा जल से
भरे हुए समुद्र तुम्हें शान्ति प्रदान करें। चारों समुद्र और नाना प्रकार के तीर्थ
तुम्हारी रक्षा करें।
पुष्करश्च प्रयागश्च प्रभासो नैमिषः
परः ॥६३॥
गयाशीर्षो
ब्रह्मशिरस्तीर्थमुत्त्रमानसं ।
कालोदको नन्दिकुण्डस्तीर्थं
पञ्चनदस्तथा ॥६४॥
भृगुतीर्थं प्रभासञ्च तथा
चामरकण्टकं ।
जम्बुमार्गश्च विमलः कपिलस्य
तथाश्रमः ॥६५॥
गङ्गाद्वारकुशावर्तौ विन्ध्यको
नीलपर्वतः ।
वराहपर्वतश्चैव तीर्थङ्कणखलं तथा
॥६६॥
पुष्कर,
प्रयाग, प्रभास, नैमिषारण्य,
गयाशीर्ष, ब्रह्मशिरतीर्थ, उत्तरमानस, कालोदक, नन्दिकुण्ड,
पञ्चनदतीर्थ, भृगुतीर्थ, अमरकण्टक, जम्बूमार्ग, विमल,
कपिलाश्रम, गङ्गाद्वार, कुशावर्त,
विन्ध्य, नीलगिरि, वराह
पर्वत, कनखल तीर्थ तुम्हारी रक्षा करें।
कालञ्जरश्च केदारो रुद्रकोटिस्तथैव
च ।
वाराणसी महातीर्थं वदर्याश्रम एव च
॥६७॥
द्वारका श्रीगिरिस्तीर्थं तीर्थञ्च
पुरुषोत्तमः ।
शालग्रामोथ वाराहः सिन्धुसागरसङ्गमः
॥६८॥
फल्गुतीर्थं बिन्दुसरः
करवीराश्रमस्तथा ।
नद्यो गङ्गासरस्वत्यः शतदुर्गण्डकी
तथा ॥६९॥
कालञ्जर,
केदार, रुद्रकोटि, महातीर्थ
वाराणसी, बदरिकाश्रम, द्वारका, श्रीशैल, पुरुषोत्तमतीर्थ, शालग्राम,
वाराह, सिंधु और समुद्र के संगम का तीर्थ,
फल्गुतीर्थ, विन्दुसर, करवीराश्रम,
गङ्गानदी, सरस्वती, शतद्रु,
गण्डकी तुम्हारी रक्षा करें।
अच्छोदा च विपाशा च वितस्ता देविका
नदी ।
कावेरी वरुणा चैव निश्चरा गोमती नदी
॥७०॥
पारा चर्मण्वती रूपा मन्दाकिनी
महानदी ।
तापी पयोष्णी वेणा च गौरी वैतरणी
तथा ॥७१॥
गोदावरी भीमरथी तुङ्गभद्रा प्रणी
तथा ।
चन्द्रभागा शिवा गौरी अभिषिञ्चन्तु
पान्तु वः ॥७२॥
अच्छोदा,
विपाशा, वितस्ता, देविका
नदी, कावेरी, वरुणा, निश्चिरा, गोमती नदी, पारा,
चर्मण्वती, रूपा, महानदी,
मन्दाकिनी, तापी, पयोष्णी,
वेणा, वैतरणी, गोदावरी,
भीमरथी, तुङ्गभद्रा, अरणी,
चन्द्रभागा, शिवा तथा गौरी आदि पवित्र नदियाँ
तुम्हारा अभिषेक और पालन करें" ॥ ६१-७२ ॥
इत्याग्नेये महापुराणे
अभिषेकमन्त्रा नामोनविंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः ॥
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराणमें 'अभिषेक-सम्बन्धी मन्त्रों का वर्णन' नामक दो सौ
उन्नीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ २१९ ॥
आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 220
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