गोत्रावली - ब्राह्मण गोत्रावली
गोत्रावली- प्रस्तुत ब्राह्मण गोत्रावली बनाने के लिए गोत्र,प्रवर ,शाखा से संबन्धित अनेक ग्रंथो,विभिन्न पंजीकारों के लेखों,तथा संचार के भिन्न
माध्यमों से लिया गया है अतः विसंगतिया संभव है। यह बहुत अधिक श्रम –साध्य कार्य है क्योंकि इतने सारे लेखों मे सबकी अपनी मति व अनुस्नधान का
आधार होता है । फिर भी मैंने प्रयाश किया की कोई भेद न रह जाय,उसके बाद भी आपको लगे या अलग जानकारी हो तो कमेंट्स के माध्यम से सूचित
करें ।
ब्राह्मण गोत्रावली या वंशावली क्या है ?
कोई भी व्यक्ति जिस वंश में जन्म लेता है तो उनकी पीढ़ी–दर–पीढ़ी
अर्थात् पिता, दादा, परदादा आदि के
नामों को जानना ही सामान्य शब्दों में वंशावली कहलाता है और उस वंश के मूल
प्रख्यात पुरुष जिनके नाम से वह वंश जाना जाने लगा उसे गोत्र कहते हैं । जैसे कि
रघु, अज, दिलीप, दशरथ
आदि रामजी की वंशावली है और रामजी के वंश में रघु परम प्रतापी हुये अत: इनके वंशज इन्ही के नाम पर रघुवंशी कहलाए। ऐसे ही ब्राह्मणों में हर-एक
ब्राह्मण के मूल में कोई न कोई प्रसिद्ध
ऋषि हैं, जिनसे वह ब्राह्मण जाना जाता है। इन प्रसिद्ध
ऋषियों के वंशज उन्ही के नाम से उनका गोत्र हुआ । ब्राह्मण कुल परम्परा में गोत्र, प्रवर, वेद, उपवेद, शाखा, सूत्र, छन्द, देवता, शिखा, पाद आदि का प्रचलन है, इसे ही ब्राह्मण गोत्रावली
या वंशावली कहते हैं।
ब्राह्मण गोत्र पर आधारित ब्राह्मण गोत्रावली नीचे दिया जा
रहा है-
कौशिक गोत्रावली
गोत्र- कौशिक वेद- सामवेद उपवेद- गंधर्ववेद शिखा- वाम पाद- वाम
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शाखा- कौथुमी सूत्र- गोभिल देवता- विष्णु छन्द– जगति
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प्रवर- ३(त्रि) कौशिक, अत्रि, जमदग्नि, या
विश्वामित्रा, अघमर्षण, कौशिक
तीन प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि –शुक्ल,पाण्डेय, मिश्र, चतुर्वेदी, दुबे ,तिवारी
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कुशिक गोत्र, धृत गोत्र या धृत कौशिक गोत्र, इंद्र कौशिक गोत्र इनके भी वेद,देवता आदि सभी, कौशिक गोत्र के समान है क्योकि ये सारे गोत्र विश्वामित्र गण मे आते है ।
कश्यप गोत्रावली
गोत्र- कश्यप
वेद- सामवेद
उपवेद- गंधर्ववेद शिखा- वाम पाद- वाम
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शाखा- कौथुमी सूत्र- गोभिल देवता- विष्णु छन्द– जगति
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प्रवर-३(त्रि) कश्यप, असित, देवल
अथवा कश्यप, आवत्सार, नैधु्रव
तीन प्रवर हैं।
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आस्पद /उपाधि –पाण्डेय,चतुर्वेदी,ओझा,द्विवेदी,मिश्र,उपाध्याय,तिवारी, शुक्ल
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कश्यप गोत्र और काश्यप गोत्र दोनों ही अलग गोत्र है फिर भी दोनों के देवता आदि सभी, एक समान है ।
पराशर गोत्रावली
गोत्र- पराशर वेद- यजुर्वेद
उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द– त्रिष्टुप्
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प्रवर- ३(त्रि) वसिष्ठ, शक्ति या शाक्त्य, पराशर तीन प्रवर हैं।
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आस्पद /उपाधि – पाण्डेय, उपाध्याय,शुक्ल, मिश्र
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वशिष्ठ गोत्रावली
गोत्र- वशिष्ठ वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना
पाद- दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द– त्रिष्टुप्
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प्रवर- ३(त्रि) वसिष्ठ, शक्ति, पराशर अथवा वसिष्ठ, अत्रि, संस्कृति प्रवर ये तीन प्रवर हैं।
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आस्पद /उपाधि – मिश्र,पाण्डेय, चतुर्वेदी, तिवारी
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शाण्डिल्य गोत्रावली
गोत्र- शाण्डिल्य वेद- सामवेद उपवेद- गंधर्ववेद
शिखा- वाम पाद-वाम
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शाखा- कौथुमी सूत्र-गोभिल देवता- विष्णु छन्द–जगति
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प्रवर-३(त्रि) इसमे दो भेद है श्रीमुख व गर्दमुख (गर्दमुख को ही गर्दभमुख या गर्दभीमुख
भी कहते है ) श्रीमुख के प्रवर नाम- कश्यप, असित, शाण्डिल्य
गर्दमुख के प्रवर नाम- कश्यप,देवल
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आस्पद या उपाधि – तिवारी,मिश्र, दीक्षित,राम,कृष्ण,मणि,नाथ
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भारद्वाज गोत्रावली
गोत्र- भारद्वाज वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द–त्रिष्टुप्
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प्रवर- ३(त्रि) आंगिरस, बार्हस्पत्य, भारद्वाज अथवा आंगिरस, गार्ग्य, शैन्य तीन प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि–द्विवेदी,पाण्डेय,चतुर्वेदी,मिश्र,उपाध्याय, तिवारी
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भरद्वाज गोत्र और भारद्वाज गोत्र दोनों ही अलग गोत्र है फिर भी दोनों के देवता आदि सभी, एक समान है ।
गर्ग गोत्रावली
गोत्र- गर्ग वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना
पाद-दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द–त्रिष्टुप्
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प्रवर- ३/ ५(त्री)/(पंच) आंगिरस,गार्ग्य,शैन्य तीन
अथवा आंगिरस,वार्हस्पत्य,भारद्वाज,शैन्य,गार्ग्य पाँच
प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि - शुक्ल ,तिवारी, पाण्डेय, द्विवेदी
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गर्ग गोत्र, गार्ग्य या गार्गीय गोत्र और गार्गेय गोत्र सभी अलग-अलग गोत्र है फिर भी देवता आदि सभी, एक समान है ।
सावर्णि गोत्रावली
गोत्र- सावर्णि वेद- सामवेद
उपवेद- गंधर्ववेद शिखा- वाम
पाद- वाम
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शाखा- कौथुमी सूत्र- गोभिल देवता- विष्णु छन्द–जगति
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प्रवर-३/ ५(त्री)/(पंच) सावर्ण्य, पुलस्त्य, पुलह तीन या भार्गव, च्यवन, आप्नवान, और्व, जामदग्न्य
पाँच प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि – पाण्डेय, मिश्र, तिवारी
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सावर्णि गोत्र और सावर्ण्य गोत्र दोनों ही अलग गोत्र है फिर भी दोनों के देवता आदि सभी, एक समान है ।
वत्स गोत्रावली
गोत्र- वत्स वेद- सामवेद
उपवेद- गंधर्ववेद
शिखा- वाम पाद- वाम
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शाखा- कौथुमी सूत्र- गोभिल देवता- विष्णु छन्द–जगति
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प्रवर-३/ ५(त्री)/(पंच) भार्गव,च्यवन, आप्नवान
तीन या भार्गव, च्यवन, आप्नवान, और्व, जामदग्न्य पाँच प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि – मिश्र,पाण्डेय, द्विवेदी, उपाध्याय, तिवारी,ओझा
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गौतम गोत्रावली
गोत्र- गौतम वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद
शिखा- दाहिना पाद-
दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द–त्रिष्टुप्
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प्रवर- ३/ ५(त्री)/(पंच)आंगिरस,गौतम,वार्हस्पत्य
तीन या अंगिरा,उतथ्य,गौतम, उशिज, कक्षीवान
पाँच प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि – मिश्र,द्विवेदी, पाण्डेय, उपाध्याय
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भार्गव गोत्रावली
गोत्र- भार्गव वेद- सामवेद
उपवेद- गंधर्ववेद शिखा- वाम पाद- वाम
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शाखा- कौथुमी सूत्र- गोभिल देवता- विष्णु
छन्द-जगति
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प्रवर-३/ ५(त्री)/(पंच) भार्गव,च्यवन, आप्नवान, तीन या भार्गव, च्यवन आप्नवन, और्व, जायदग्न्य, पाँच
प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि –तिवारी
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सांकृत गोत्रावली
गोत्र- सांकृत वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द–त्रिष्टुप्
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प्रवर-३/५(त्री)/(पंच) आंगिरस,गौरुवीत,सांकृत तीन
या कृष्णात्रेय,आर्चनानस,श्यावास्व,संख्यायन,सांकृत पाँच प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि – पांडे,चौबे, तिवारी,शुक्ल
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सांकृत गोत्र ,शांकृत्य गोत्र, सांकृति गोत्र सभी अलग गोत्र है फिर भी सभी के देवता आदि सभी एक समान है ।
कात्यायन गोत्रावली
गोत्र- कात्यायन वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद-
दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द–त्रिष्टुप्
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प्रवर- ३(त्रि) विश्वामित्र , कात्यायन , आक्षील या कात्यायन, विष्णु, अंगिरा तीन प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि –चौबे
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कात्यायन गोत्र ,वात्स्यायन गोत्र दोनों ही अलग गोत्र है फिर भी दोनों के देवता आदि सभी, एक समान है ।
कौण्डिन्य गोत्रावली
गोत्र- कौण्डिन्य वेद- अथर्ववेद उपवेद- अथर्ववेद शिखा- वाम पाद- वाम
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शाखा- शौनकी सूत्र- बोधायन देवता- इन्द्र छन्द–अनुष्टुप
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प्रवर- ३(त्रि) आस्तीक, कौशिक, कौंडिन्य या मैत्रावरुण वासिष्ठ, कौंडिन्य तीन प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि – पाण्डेय, मिश्र,शुक्ल
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मुद्गल गोत्रावली
गोत्र- मुद्गल वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द– त्रिष्टुप्
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प्रवर- ३(त्रि) आंगिरस, मुद्गल,देवरात तीन
प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि - मिश्र,पाण्डेय
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मुद्गल गोत्र, मौद्गल्य गोत्र दोनों ही अलग गोत्र है फिर भी दोनों के देवता आदि सभी, एक समान है ।
उपमन्यु गोत्रावली
गोत्र- उपमन्यु वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द– त्रिष्टुप्
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प्रवर- ३(त्रि) वशिष्ठ, इंद्रप्रमद, आमरद्व सव्य तीन प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि – अवस्थी, ओझा,पाठक
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अगस्त्य गोत्रावली
गोत्र- अगस्त्य वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द– त्रिष्टुप्
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प्रवर- १/३(एक)/(त्रि) केवल अगस्त्यही अथवा अगस्त्य , माहेन्द्र, मायोभुव तीन प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि– तिवारी , पाण्डेय
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अत्रि गोत्रावली
गोत्र- अत्रि वेद- ऋग्वेद उपवेद- आयुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- शाकल्य सूत्र- आश्वलायन देवता- ब्रह्मा छन्द–गायत्री
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प्रवर- ३/५(त्री)/(पंच)अत्रि,आर्चनानस,श्यावाश्व
तीन अथवा अत्रि,कृष्णात्रि,अर्चि,अचनिनस,श्यावाश्य प्रवर
हैं।
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आस्पद या उपाधि– तिवारी , पाण्डेय
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अत्रि गोत्र, कृष्णात्रि गोत्र दोनों ही अलग गोत्र है फिर भी दोनों के देवता आदि सभी, एक समान है ।
भृगु गोत्रावली
गोत्र- भृगु वेद- ऋग्वेद उपवेद- आयुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- शाकटायन सूत्र- अश्वलायन देवता- ब्रह्मा छन्द–गायत्री
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प्रवर-३/५(त्री)/(पंच)भृगु, जामदग्न्य, च्यवन तीन अथवा भार्गव,आप्नवान,और्ब, च्यवन, जामदग्न्य पाँच प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि – द्विवेदी,पाण्डेय, चतुर्वेदी,मिश्र,उपाध्याय, तिवारी
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बोधायन गोत्रावली
गोत्र- बोधायन वेद- अथर्ववेद उपवेद- अथर्ववेद शिखा- वाम पाद- वाम
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शाखा- शौनकी सूत्र- बोधायन देवता- इन्द्र छन्द–अनुष्टुप
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प्रवर- ३(त्रि) बोधायन,अचनिस,स्ववास तीन प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि – वाजपेयी,उपाध्याय
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जमदग्नि गोत्रावली
गोत्र- जमदग्नि वेद- सामवेद उपवेद- गंधर्ववेद शिखा- वाम पाद- वाम
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शाखा- कौथुमी सूत्र- गोभिल देवता- विष्णु छन्द– जगति
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प्रवर-३(त्री) जमदग्नि,वशिष्ट,मित्रावरुण तीन प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि –मिश्र
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अंगिरस गोत्रावली
गोत्र- अंगिरस वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द–त्रिष्टुप्
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प्रवर-३(त्री) आंगिरस, वाल्मीक,भारद्वाज तीन प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि - मिश्र,पाण्डेय
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मिहिर गोत्रावली
गोत्र- मिहिर वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा-माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द–त्रिष्टुप्
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प्रवर- ५(पंच) मिहिर ,आंगिरस, वशिष्ट, वाल्मीक, च्यवन पाँच प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि - मिश्र,पाण्डेय
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च्यवन गोत्रावली
गोत्र- च्यवन वेद- सामवेद उपवेद- गंधर्ववेद शिखा- वाम पाद- वाम
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शाखा- कौथुमी सूत्र- गोभिल देवता- विष्णु छन्द– जगति
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प्रवर-५(पंच) भारद्वाज, आंगिरस, च्यवन, कौण्डिन्य, कौशिक पाँच प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि –मिश्र
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मुर्द्धनी/
मौनस गोत्रावली
गोत्र- मुर्द्धनी/
मौनस वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द–त्रिष्टुप्
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प्रवर-३(त्री) भार्गव,मौनस, वीतहव्य
तीन प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि –तिवारी, मिश्र
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वेतायन गोत्रावली
गोत्र- वेतायन वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द–त्रिष्टुप्
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प्रवर- ३(त्रि)
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आस्पद या उपाधि – शुक्ल,पाण्डेय, मिश्र, चतुर्वेदी, दुबे ,तिवारी
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रहदौरी गोत्रावली
गोत्र- रहदौरी वेद- सामवेद उपवेद- गंधर्ववेद शिखा- वाम पाद- वाम
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शाखा- कौथुमी सूत्र- गोभिल देवता- विष्णु छन्द– जगति
|
प्रवर-३(त्री) विश्वामित्र,कौशिक और अघमर्षण नामक तीन प्रवर हैं ।
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आस्पद या उपाधि – शुक्ल,पाण्डेय, मिश्र, चतुर्वेदी, दुबे ,तिवारी
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जातूकर्ण्य गोत्रावली
गोत्र- जातूकर्ण्य वेद- अथर्ववेद उपवेद- अथर्ववेद शिखा- वाम पाद- वाम
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शाखा- शौनकी सूत्र- बोधायन देवता- इन्द्र छन्द–अनुष्टुप
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प्रवर-३(त्री) वशिष्ठ,अत्री, जातूकर्ण्य तीन प्रवर
हैं ।
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आस्पद या उपाधि –पाण्डेय, तिवारी
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धनंजय गोत्रावली
गोत्र- धनंजय वेद- ऋग्वेद उपवेद- आयुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- शाकटायन सूत्र- अश्वलायन देवता- ब्रह्मा छन्द–गायत्री
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प्रवर-३(त्री) विश्वामित्र, मधुच्छन्दस, धनंजय तीन प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि – द्विवेदी, तिवारी,दीक्षित
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पिप्लाद गोत्रावली
गोत्र- पिप्लाद वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द–त्रिष्टुप्
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प्रवर-३(त्री) अथवर्ण,दधीचि, पिप्लाद तीन प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि –जोशी, शुक्ल
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कपिल गोत्रावली
गोत्र- कपिल
वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द–त्रिष्टुप्
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प्रवर- ३(त्रि) आंगिरस, भारद्वाज, कपिल तीन प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि–द्विवेदी,पाण्डेय,चतुर्वेदी,मिश्र,उपाध्याय, तिवारी
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विष्णुवृद्ध गोत्रावली
गोत्र- विष्णुवृद्ध वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद-
दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द–त्रिष्टुप्
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प्रवर-३(त्री) अंगिरा, त्रासदस्यु, पुरुकुत्स तीन प्रवर है।
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आस्पद या उपाधि - मिश्र,पाण्डेय
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तांडय गोत्रावली
गोत्र- तांडय वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द– त्रिष्टुप्
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प्रवर- ३(त्रि) आंगिरस, मुद्गल, तांडय तीन प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि - मिश्र,पाण्डेय
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लौगाक्षि गोत्रावली
गोत्र- लौगाक्षि वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद
शिखा- दाहिना पाद-दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द–त्रिष्टुप्
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प्रवर- ३(त्री) लौगाक्षि,गौतम,वार्हस्पत्य तीन प्रवर
है।
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आस्पद या उपाधि – मिश्र,द्विवेदी, पाण्डेय, उपाध्याय
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कौत्स गोत्रावली
गोत्र- कौत्स वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द–त्रिष्टुप्
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प्रवर-३(त्री) आंगिरस, मान्धाता, कौत्स तीन प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि - मिश्र,पाण्डेय, द्विवेदी
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कण्व गोत्रावली
गोत्र- कण्व वेद- यजुर्वेद उपवेद- धनुर्वेद शिखा- दाहिना पाद- दाहिना
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शाखा- माध्यन्दिनी सूत्र- कात्यायन देवता- शिव छन्द–त्रिष्टुप्
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प्रवर-३(त्री) कण्व के आंगिरस, आजमीढ़, काण्व, या आंगिरस, घौर, काण्व
तीन प्रवर हैं।
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आस्पद या उपाधि - मिश्र,पाण्डेय
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यंहा प्रस्तुत
सारे गोत्रावली का आस्पद(सरनेम)प्राप्त पुर के आधार पर हैं। अतःजिनका ब्राह्मण बंधुओं का
आस्पद नहीं लिखा गया है वें लगा सकते हैं।
आज के आधुनिक समय में बहुत से ब्राह्मणों खासकर युवा अपने
गोत्रावली से अनभिज्ञ हैं अत: उनके लाभार्थ यह गोत्रावली दिया गया।
ब्राह्मणों में विवाह के लिए विवाह
मुहूर्त, गोत्रावली देखना आवश्यक होता है ।
इसके बाद गोत्रावली के इन सारे गोत्राकार ऋषियों का संक्षिप्त
परिचय व इनके द्वारा लिखित या प्रचारित ग्रंथ,छंद समाज में इनका योगदान अगले अंकों मे अवश्य पढ़े।
-पं॰डी॰पी॰दुबे
12 Comments
बहुत अच्छा
ReplyDeleteगोत्र। के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध करावे
ReplyDeleteMera gotra Kashyap hai Brahman Kanya Kunj Sukha Sutra Dayani kaatyayni Mujhe a Apne gotra ke bare mein Main Aur Bhi Shristi Jankari chahie kripya kar mein Main bataen Upar Jo Mein Jankari Apradh karaen kya vah sahi hai hai Iske bare mein nahin bataen
ReplyDeleteधन्यबाद... आपने ब्राह्मणो के बारे में बहुतअच्छी जानकारी साझा की... ब्राह्मण वंशावली
ReplyDeleteAapne achcha jankari diya
ReplyDeleteThanks
मुझे ब्राह्मण गुरधेनिया गोत्र के बारे में जानकारी चाहिए कृपया जानकारी दे
ReplyDeleteअति सुन्दर जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteदीक्षित Bhee " Bhargav " gotravali main aate hain , ese theek karien
ReplyDeleteHam Mahrshri dadhichi ji ke vanshaj he but hame gotra nahi pata ham gurav tapodhan bhrahmin he jo ki jyadatar Maharashtra se belong karte he kya aap dadhichi ji ke puro Or unke gotra ka vistar me vernan karenge please
ReplyDeleteआपके द्वारा इस पेज पर दिये जनकरियाँ बहुत ही ज्ञान वर्धक है ।
ReplyDeleteWith the Vedarma brand, you can expect 100% natural and herbal products that are safe and effective. As a business, we are not only concerned with Branding good health, but also protecting the health of our planet.
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Delete