भैरव स्तोत्र
महाकाल भैरव स्तोत्र अथवा भैरव स्तोत्र के २ श्लोक में ध्यान तथा ६ श्लोकों का मूल स्तोत्र है, इस प्रकार काल भैरव की स्तुति में लिखे गए आठ छंदों का एक संग्रह है, अतः इसे काल भैरव अष्टक अथवा श्री क्षेत्रपाल भैरवाष्टक भी कहा जाता है । जिसमें महाकाल भैरव के विभिन्न पहलुओं का वर्णन है। यह स्तोत्र न केवल भैरव के भयानक रूप का वर्णन करता है, बल्कि उनकी शक्ति और सुरक्षात्मक गुणों को भी दर्शाता है।
महाकाल भैरव स्तोत्रम्
यह स्तोत्र अक्सर तांत्रिक
अनुष्ठानों और पूजाओं में प्रयोग किया जाता है।
यह स्तोत्र भगवान भैरव के स्वरूप का
वर्णन करता है, जो "महाकाल" (मृत्यु
के स्वामी) और "भूतनाथ" (भूतों के स्वामी) के रूप में भी जाने जाते हैं।
यह स्तोत्र काल भैरव की कृपा पाने के लिए पढ़ा जाता है। कालभैरव जो भगवान शिव का
एक उग्र रूप हैं। "काल" का अर्थ है समय, और
"भैरव" का अर्थ है भयंकर। इस प्रकार, कालभैरव को
समय का भयंकर रूप माना जाता है। "क्षेत्रपाल" का अर्थ है क्षेत्र का
रक्षक । भैरव को क्षेत्रपाल के रूप में भी पूजा जाता है, जो
नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी ताकतों से क्षेत्र की रक्षा करते हैं।
श्रीमहाकाल भैरव अष्टक स्तोत्रम्
यह स्तोत्र भैरव की कृपा प्राप्त
करने और जीवन की बाधाओं को दूर करने, शत्रुओं
पर विजय और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पढ़ा जाता है।
इस महाकाल भैरव स्तोत्र का पाठ करने
से भय,
दुःख और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है।
यह स्तोत्र शनि,
राहु और केतु के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में भी सहायक है।
यह स्तोत्र भैरव के विभिन्न पहलुओं
को दर्शाता है, जैसे उनका उग्र रूप (काल),
उनका दिव्य रूप (दिव्यदेह), और उनका रक्षक रूप
(क्षेत्रपाल)। यह भक्तों से भैरव की निरंतर पूजा करने और उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद
प्राप्त करने का आह्वान करता है।
महाकाल भैरव स्तोत्रं
Mahakaal Bhairav stotram
श्री क्षेत्रपाल भैरवाष्टकम्
॥ अथ श्रीमहाकाल भैरव स्तोत्रम्
॥
भैरव ध्यान
जलद् पटलनीलं दीप्यमानोग्रकेशं,
त्रिशिख डमरूहस्तं चन्द्रलेखावतंसं
।
विमल वृष निरुढं चित्रशार्दूळवास:,
विजयमनिशमीडे विक्रमोद्दण्डचण्डम् ॥
१ ॥
जो मेघों के समान श्याम वर्ण,
चमकते हुए उग्र केशों, त्रिशूल और डमरू धारण
करने और मस्तक पर चन्द्रकला धारण करने वाले हैं। जो निर्मल बैल पर सवार तथा जिनका एक
और वाहन चितकबरा बाघ भी है, उस पराक्रमी और प्रचंड भैरव की
मैं हर पल विजय के लिए स्तुति करता हूँ।
सबल बल विघातं क्षेपाळैक पालम्,
बिकट कटि कराळं ह्यट्टहासं विशाळम्
।
करगतकरबाळं नागयज्ञोपवीतं,
भज जन शिवरूपं भैरवं भूतनाथम् ॥ २ ॥
जिनका बल और पराक्रम अपार है,
जो शत्रुओं का संहार करने वाले, जिनकी कमर
टेढ़ी है, जिनका स्वरूप विशाल और हँसी भयंकर है। हाथ में खड्ग और सर्प की यज्ञोपवीत
धारण करने वाले ऐसे शिवस्वरूप भूतनाथ भैरव (भूतों का स्वामी) का मैं भजन करता हूँ।
॥ भैरव स्तोत्रम् ॥
यं यं यं यक्ष रूपं दशदिशिवदनं
भूमिकम्पायमानं ।
सं सं सं संहारमूर्ती शुभ मुकुट
जटाशेखरम् चन्द्रबिम्बम् ॥
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुखं
चौर्ध्वरोयं करालं ।
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं
क्षेत्रपालम् ॥ ३ ॥
यं, यं, यं, यक्ष रूप वाले,
दस दिशाओं में मुख वाले, पृथ्वी को कंपाने
वाले, सं सं सं संहार करने वाले, सुंदर मुकुट और जटाओं वाले,
चंद्रमा के समान प्रकाश वाले, दं दं दं जिनका शरीर विशाल, नाखून और मुख विकृत हैं और बाल ऊपर की ओर उठे हुए हैं। पं पं पं पापों का
नाश करने वाले ऐसे क्षेत्रपाल भैरव को मैं प्रणाम करता हूँ।
रं रं रं रक्तवर्ण कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्राविशालम्
।
घं घं घं घोर घोष घ घ घ घ घर्घरा
घोर नादम् ॥
कं कं कं काल रूपं घगघग घगितं
ज्वालितं कामदेहं ।
दं दं दं दिव्यदेहं प्रणमत सततं
भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ४ ॥
रं रं रं रक्त वर्ण वाले,
कसे हुए कमर वाले, तीखे बड़े-बड़े दांतों वाले
और घं घं घं घोर गर्जना करने वाले, घ घ घ घ घर्घरा (एक वाद्य
यंत्र) की तरह भयंकर ध्वनि करने वाले, कं कं कं, काल के समान
रूप वाले, घग घग भयंकर गर्जना करते कामदेव के समान देह वाले (कामदेव
का शरीर, जो जल रहा है और भयंकर आवाजें निकाल रहा है),
दं दं दं, दिव्य देह वाले, ऐसे क्षेत्रपाल भैरव को मैं सदा प्रणाम करता हूँ।
लं लं लं लम्बदंतं ल ल ल ल लुलितं
दीर्घ जिह्वकरालं ।
धूं धूं धूं धूम्र वर्ण स्फुट विकृत
मुखं मासुरं भीमरूपम् ॥
रूं रूं रूं रुण्डमालं रूधिरमय मुखं
ताम्रनेत्रं विशालम् ।
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं
भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ५ ॥
लं लं लं लंबे दांतों वाले, ल ल ल ल लहराते लंबी और भयानक जीभ वाले, धूं धूं
धूं धूम्र वर्णवाले, स्पष्ट विकृत मुख वाले, भयानक और डरावने रूप वाले, रूं रूं रूं, कपाल माला
पहने हुए, रक्त से सना हुआ मुख, तांबे
जैसे विशाल नेत्रों वाले, नं नं नं नग्न रूप वाले क्षेत्रपाल
भैरव को मैं सदा प्रणाम करता हूँ।
वं वं वं वायुवेगम प्रलय परिमितं
ब्रह्मरूपं स्वरूपम् ।
खं खं खं खड्ग हस्तं त्रिभुवननिलयं
भास्करम् भीमरूपम् ॥
चं चं चं चालयन्तं चलचल चलितं
चालितं भूत चक्रम् ।
मं मं मं मायाकायं प्रणमत सततं
भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ६ ॥
वं वं वं वायु वेग वाले, प्रलय के
समान व्यापक और ब्रह्म के समान स्वरूप वाले, खं खं खं हाथ में खड्ग (तलवार) लिए तीनों
लोकों में व्याप्त, सूर्य के समान
तेजस्वी और भयंकर रूप वाले, चं चं चं जो भूत-प्रेत और नकारात्मक शक्तियों को तथा मं
मं मं जो संसार की मायावी शक्तियों को नियंत्रित करती है, ऐसे क्षेत्रपाल भैरव को
मैं सदा प्रणाम करता हूँ।
खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल
कालांधकारम् ।
क्षि क्षि क्षि क्षिप्रवेग दहदह दहन
नेत्र संदिप्यमानम् ॥
हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित
गहनगर्जित भूमिकम्पं ।
बं बं बं बाललील प्रणमत सततं भैरवं
क्षेत्रपालम् ॥ ७ ॥
खं खं खं तलवार से भेदन करने वाले,
विष और अमृत दोनों के स्वामी, काल का भी
अंधकार, क्षि क्षि क्षि तीव्र गति से जलता और जगमगाता हुआ अग्नि के समान नेत्र वाले, हूं हूं हूं हूंकार शब्द से भूकम्प जैसा प्रकट और गहन गर्जना करने वाले,
बं बं बं बाल रूप क्षेत्रपाल भैरव को मैं सदा प्रणाम करता हूँ।
ॐ तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पांत
दहन प्रभो ।
भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातु
महर्षि ॥ ८ ॥
हे तीखे दांतों वाले,
विशाल शरीर वाले, प्रलय के समान तेजस्वी,
भैरव, आपको नमस्कार है, मुझे
आज्ञा दें।
इति: श्रीमहाकाल भैरव स्तोत्रम् सम्पूर्ण ॥

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