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कर्मकाण्ड

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डी पी कर्मकांड भाग- १५ क्षेत्रपाल

डी पी कर्मकांड भाग- १५ क्षेत्रपाल

आपने डी पी कर्मकांड की सीरिज क्रमशःभाग- से १४ पढ़ा । अब डी पी कर्मकांड भाग-१५ में क्षेत्रपाल पढ़ेंगे । सर्वप्रथम एक चौकी पर वस्त्र बिछाकर अष्टदल कमल बनाकर बीच में ताम्रकलश रखकर पूर्णपात्र के ऊपर सोने की क्षेत्रपाल की प्रतिमा अग्न्युत्तारण पूर्वक विराजमान करें।अथवा किसी एक चौकी पर श्वेत या काला वस्त्र बिछाकर चित्रानुसार वेदी का निर्माण करके क्षेत्रपाल मण्डल देवता का पूजन करें ।

डी पी कर्मकांड भाग- १५ क्षेत्रपाल

डी पी कर्मकांड भाग- १५ क्षेत्रपाल

सबसे पहले यजमान हाथ में अक्षत,जल,पुष्प व द्रव्य लेकर निम्न संकल्प बोले-

संकल्प: - अद्य पूर्वोच्चारित शुभपुण्य तिथौ..... कर्मांगत्वेन क्षेत्रपालापीठे मध्यकोष्टके क्षेत्रपालपूजनपूर्वकं कोष्टान्तरेषु पंचाशत् क्षेत्रपाल देवतानां आवाहनं स्थापनं पूजनं च करिष्ये ॥

अब पूर्वादि चतुरस्त्र षङदल पद्म प्रदक्षिणक्रम से बाएं हाथ में चावल(अक्षत,पुष्प) रखकर दाहिने हाथ से छोडते हुए नीचे लिखे मन्त्रों से आवाहन,स्थापन  करें ।

पूर्वस्थित

ॐ भूर्भुव: स्व: अजराय नम: ॥१॥

ॐ भूर्भुव: स्व: व्यापकाय नम: ॥२॥

ॐ भूर्भुव: स्व: इन्द्रचौराय नम: ॥३॥

ॐ भूर्भुव: स्व: इन्द्रमूर्तये नम: ॥४॥

ॐ भूर्भुव: स्व: उक्षाय नमः ॥५॥

ॐ भूर्भुव: स्व: कूष्माण्डाय नमः ॥६॥

अग्निकोण

ॐ भूर्भुव: स्व: वरुणाय नमः ॥७॥

ॐ भूर्भुव: स्व: बटुकाय नमः ॥८॥

ॐ भूर्भुव: स्व: विमुक्ताय नम: ॥९॥

ॐ भूर्भुव: स्व: लिप्तकाय नम: ॥१०॥

ॐ भूर्भुव: स्व: लीलोकाय नमः ॥११॥

ॐ भूर्भुव: स्व: एकद्रष्टाय नमः ॥१२॥

दक्षिणस्थित

ॐ भूर्भुव: स्व: ऐरावताय नमः ॥१३॥

ॐ भूर्भुव: स्व: ओषधिध्नाय नम: ॥१४॥

ॐ भूर्भुव: स्व: बन्धनाय नमः ॥१५॥

ॐ भूर्भुव: स्व: दिव्यकरणाय नमः ॥१६॥

ॐ भूर्भुव: स्व: कम्बलाय नमः ॥१७॥

ॐ भूर्भुव: स्व: भीषणाय नमः ॥१८॥

नैऋर्त्यकोण

ॐ भूर्भुव: स्व: गवयाय नम: ॥१९॥

ॐ भूर्भुव: स्व: घण्टाय नम: ॥२०॥

ॐ भूर्भुव: स्व: व्यालाय नम: ॥२१॥

ॐ भूर्भुव: स्व: अणवे नमः ॥२२॥

ॐ भूर्भुव: स्व: चन्द्र वारुणाय नमः ॥२३॥

ॐ भूर्भुव: स्व: पटाटोपाय नमः ॥२४॥

पश्चिमदिशा

ॐ भुर्भुव: स्व: जटिलाय नमः ॥२५॥

ॐ भूर्भुव: स्व: क्रतवे नम: ॥२६॥

ॐ भूर्भुव: स्व: घण्टेश्वराय नमः ॥२७॥

ॐ भूर्भुव: स्व: विटङ्काय नमः ॥२८॥

ॐ भूर्भुव: स्व: मणिमानाय नमः ॥२९॥

ॐ भूर्भुव: स्व: गणबन्धवे नमः ॥३०॥

वायव्यकोण

ॐ भूर्भुव: स्व: डामराय नमः ॥३१॥

ॐ भूर्भुव: स्व: ढुण्ढिकर्णाय नमः ॥३२॥

ॐ भूर्भुव: स्व: स्थविराय नमः ॥३३॥

ॐ भूर्भुव: स्व: दन्तुराय नमः ॥३४॥

ॐ भूर्भुव: स्व: नागकर्णाय नम: ॥३५॥

ॐ भूर्भुव: स्व: धनदाय नम: ॥३६॥

उत्तरदिशा

ॐ भूर्भुव: स्व: महाबलाय नमः ॥३७॥

ॐ भूर्भुव: स्व: फेत्काराय नमः ॥३८॥

ॐ भूर्भुव: स्व: चीत्काराय नमः ॥३९॥

ॐ भूर्भुव: स्व: सिंहाय नमः ॥४०॥

ॐ भूर्भुव: स्व: मृगाय नमः ॥४१॥

ॐ भूर्भुव: स्व: यक्षाय नमः ॥४२॥

ॐ भूर्भुव: स्व: मेघवाहनाय नमः ॥४३॥

ईशानकोण

ॐ भूर्भुव: स्व: तीक्ष्णोष्ठाय नमः ॥४४॥

ॐ भूर्भुव: स्व: अनलाय नमः ॥४५॥

ॐ भूर्भुव: स्व: शुक्लतुण्डाय नमः ॥४६॥

ॐ भूर्भुव: स्व: सुधालापाय नमः ॥४७॥

ॐ भूर्भुव: स्व: बर्बरकाय नम: ॥४८॥

ॐ भूर्भुव: स्व: पवनाय नमः ॥४९॥

ॐ भूर्भुव: स्व: वैनाय नम: ॥५०॥

उक्त क्षेत्रपालों के नाममन्त्रों से आवाहन करने के बाद पुनः पुष्पाक्षत लेकर निम्न श्लोक बोलते हुए छोड़े-                     

अजरो व्यापकश्चैव इन्द्रचौरस्तृतीयक: । इन्द्रमूर्तिश्चतुर्थस्तु उक्ष: पंचमउच्यते । षष्ठ: कूष्माण्ड नामा च वरुण: सप्तम: स्मृत: । अष्टमो बटुकश्चैव विमुक्तो नवमस्तथा । लिप्तकायस्तु दशमो लीलाक: रुद्रसंख्यक: । एकदंष्ट्र: द्वाद्शकस्तथा च ऐरावत: स्मृत: । आषधिघ्नस्तत: प्रोक्तो बंधनो दिव्यकस्तथा । कंबलो भीषणश्चैव गवयो घंट एव च । व्यालश्चैव तथाणुश्च चंद्रवारुण एव च । पटाटोपश्चतुर्विंश: जटाल: पंचविंशक: । क्रतु नामा च षड्‌विंश: तथा घंटेश्वर:स्मृत. । विटंको मणिमानश्च गणबंधुश्च डामर: । ढुंढिकर्णोऽपर: प्रोक्त: स्थविरस्तु तत: पर: । दंतुरो धनदश्चैव नागकर्णो महाबल: । फेत्कारश्चीकर सिंह: मृगो यक्षस्तथा पर: । मेघवाहन नामा च तीक्ष्णोष्ठो हयनलस्तथा । शुक्लतुंड: सुंधालाप: तथा बर्बरक:स्मृत: । पवन: पावनश्चैव हयेवं क्षेत्राधिपा:स्मृता: ॥ ॐ भूर्भुव: स्व: क्षेत्रपालाय नम: क्षेत्रपालं आवाहयामि स्थापयामि । भो क्षेत्रपाल इहागच्छ इह तिष्ठा ।

क्षेत्रपाल की प्रतिष्ठा - आवाहन और स्थापन के बाद हाथ में अक्षत लेकर निम्न मन्त्र से क्षेत्रपाल वेदी मण्डल में अक्षत छोड़े ।

ॐ मनोजूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमन्दधातु । विश्वेदेवासइहमादयन्तामों ३ प्रतिष्ठ: ॥ ॐ भूर्भुव: स्व: क्षेत्रपाल सहिता: अजरादिक्षेत्रपाल देवा: सुप्रतिष्ठता वरदा भवत् ।

क्षेत्रपाल देवता पूजनम्

अब निम्न मंत्र से  पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन करे

नीलाञ्जनाद्रिनिभमूर्ध्वपिशंगकेशं, वृत्तोग्रलोचन - मुपात्त गदाकपालम्‌ । 

आशाम्बरं भुजगभूषण - मुग्रदंष्ट्रं, क्षेत्रेशमद्‌भुततनुं प्रणमामि देवम्‌ ॥

पूजन के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करे

कौलिरे चित्रकूटे  हिमगिरिविवरे शस्त्रजालांधकारे

सौराष्ट्रे सिंधुदेशे मगधपुरवरे कोसले वा कलिंगे । 

कर्णाटे कोकणे वा भृगुसुतनगरे कान्यकुब्जस्थिते वा

सर्वस्मा‍त्‌ सर्वदा वा हयपमृति भयत: पातु व: क्षेत्रपाल: ॥

पुनः अक्षत लेकर

अनेन पूजनेन क्षेत्रपालसहिता: अजरादि क्षेत्रपाल देवता: प्रीयंतां न मम ॥- कहकर छोड़ दे ।

डी पी कर्मकांड भाग- १५ क्षेत्रपाल देवता पूजनम् समाप्त॥

डी पी कर्मकांड भाग- १५ क्षेत्रपाल बलिदानम्

यजमान के दायें हाथ में आचार्य जल, अक्षत, पुष्प एवं कुछ द्रव्य रखवाकर निम्न संकल्प करवाके हवनकुण्ड के चारों ओर क्षेत्रपाल की बलि प्रदान करावें-

देशकालौ संकीर्त्य-अस्य अमुक अनुष्ठानहोमकर्मण: साङ्गता सिद्ध्यर्थं क्षेत्रपालादिप्रीत्यर्थं भूतप्रेतपिशाचादि निवृत्यर्थं च सार्वभौतिक बलिदानं करिष्ये ।

तदुपरान्त शुद्ध भूमि में सूर्यादि देवताओं की महाबलि निम्न दो वाक्यों का उच्चारण करके करें-

ॐ सर्वभूतेभ्यो नमः। ॐ क्षेत्रपालादिभ्यो नमः।

यजमान अक्षत एवं जल अपने दाहिने हाथ में लेकर निम्न श्लोकों एवं मन्त्रों का उच्चारण करें-

ॐ अधश्चैव तु ये लोका असुराश्चैव पन्नगाः।

सपत्नीपरिवाराश्च परिगृह्णन्तु मे बलिम्॥१॥

ईशानोत्तरयोर्मध्ये क्षेत्रपालो महाबलः।

भीमनामा महादंष्ट्रः स च गृह्णातु मे बलिम्॥२॥

ये केचित्विह लोकेषु आगता बलिकाङ्क्षिणः।

तेभ्यो बलिं प्रयच्छामि नमस्कृत्य पुनः पुनः॥३॥

बॉस की बनी डलिया आदि, पत्तल पर कुशा बिछाकर उस पर एक व्यक्ति के भोजन से चौगुना, दोगुना या " यथाशक्ति प्रमाण उड़द, दही मिश्रित चावल और जल पात्र रखकर, उसमे चौमुखा दीप जलाकर, हल्दी, रोली, सिन्दूर,पताका और लाल पुष्प युक्त बलि रख आचार्य निम्न मन्त्र एवं वाक्यों का उच्चारण करके वैतालादि परिवार सहित, क्षेत्रपालादि समस्त परिवारभूतों के लिये यजमान द्वारा इस बलि को समर्पित करावें-

ॐ नहिस्पशपविदन्नन्यमस्माद्वैश्वानरात्त्पुरऽएतारमग्नेः।

एमेनमवृधन्नमृताऽ अमर्त्यं वैश्वानरङ्क्षैत्रजित्याय देवाः॥

'ॐ क्षेत्रपालाय नमः' वाक्य पढ़कर पंचोपचार या षोडशोपचार से पूजन कर निम्न श्लोक पढ़कर प्रार्थना करे-

 नमो वै क्षेत्रपालस्त्वं भूत-प्रेतगणैः सह।

पूजाबलिं गृहाणेमं सौम्यो भवतु सर्वदा ।।१।।

पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे।

आयुरारोग्यं मे देहि निर्विघ्नं कुरु सर्वदा।।२।।

तदनन्तर हाथ में जल लेकर निम्न पढ़कर क्षेत्रपाल के लिए बलि समर्पण करे-

वेतालादिपरिवारयुतक्षेत्रपालादिसर्वभूतेभ्य: साङ्गाय सपरिवाराय सायुधाय स-शक्तिकाय मारीगण-भैरव-राक्षस-कृष्माण्ड-वेताल-भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-पिशाचिनी-गणसहिताय एतं स-दीप-दधि-माष-भक्तबलिं समर्पयामि।

अब निम्न मन्त्र से प्रार्थना करे-

भो क्षेत्रपाल! क्षेत्रं रक्ष बलिं भक्ष मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य आयुःकर्ताः क्षेमकर्ता शान्तिकर्ता पुष्टिकर्ता वरदो भव।

ॐ बलिं गृहणन्त्विमे देवा आदित्या वसवस्तथा। मरुतश्चाश्विनौ रुद्राः सुपर्णः पन्नगा ग्रहाः॥१॥

असुरा यातुधानाश्च पिशाचोरगरक्षसाः। शाकिन्यो यक्षवेताला योगिन्यः पूतना शिवा॥२॥

जृम्भकाः सिद्धगन्धर्वा नानाविद्याधरानगाः। दिक्पाला लोकपालाश्च ये च विघ्नविनायकाः॥३॥

जगतः शान्तिकर्तारो ब्रह्माद्याश्च महर्षयः। मा विघ्ना मा च मे पापं मा सन्तु परिपन्थिनः॥

सौम्या भवन्तु तृप्ताश्च भूतप्रेताः सुखावहाः॥४॥

भूतानि यानीह वसन्ति तानि बलिं गृहीत्वा विधिवत्प्रयुक्तम्।

अन्यत्र वासं परिकल्पयन्तु रक्षन्तु मां तानि सदैव चात्र॥५॥

इसके बाद हाथ में जल लेकर

अनेन सार्वभौतिकबलिप्रदानेन क्षेत्रपालादयः प्रीयन्ताम्।

वाक्य कहकर शूद्र दुर्ब्राह्मण यजमान के मस्तक पर से इस बलि (वंश पात्र) को घुमाकर नैर्ऋत्यकोण में पड़ने वाले चौराहे पर जाकर इस बलि को रख दे। वापस आकर अपने हाथ और पैरों को शुद्ध जल से धो लें। तदुपरान्त यजमान के मस्तक पर निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुए आचार्य जल छिड़के-

ॐ हिङ्काराय स्वाहा हिड्कृताय स्वाहा क्रन्दते स्वाहा ऽवक्रन्दाय स्वाहा प्रोथते स्वाहा प्रपोथाय स्वाहा गन्धाय स्वाहा घ्राताय स्वाहा निविष्टाय स्वाहो पविष्टाय स्वाहा सन्दिताय स्वाहा वल्गते स्वाहा सीनाय स्वाहा शयानाय स्वाहा स्वपते स्वाहा जाग्रते स्वाहा कुजते स्वाहा प्रबुद्धाय स्वाहा विजृम्भमाणाय स्वाहा विचृत्ताय स्वाहास :० हानायस्वाहोपस्थिताय स्वाहा ऽयनाय स्वाहा प्रायणाय स्वाहा।

आचार्य बलि की समाप्ति के पश्चात् यजमान के मस्तक पर जल छोड़े ।

डी पी कर्मकांड भाग- १५ क्षेत्रपाल बलिदानं समाप्त ।

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