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कालसर्प योग शांति प्रार्थना
कालसर्प योग शांति प्रार्थना - कालसर्पयोग की विधि कराने के बाद अथवा किसी दिन शुभमुहुर्त में किसी नदी,
तालाब, समुद्र या जलाशय के किनारे वरुणदेवता
का पूजन करें। गायत्रीमन्त्र से सूर्य को अञ्जलि देने के बाद, हाथ में चांदी के सर्प लें, अथवा किसी दोने में दूध,
केसर डाल कर उसमें सर्प रख दें। मन में ऐसी भावना रखें कि इस सर्प
विसर्जन के साथ ही हमारे सारे अशुभ कर्म पाताल लोक में जाकर शान्त हो जाएं। निम्न
मन्त्र तीन बार अर्थ सहित पढ़ें। यह मन्त्र अति गोपनीय है। यजुर्वेद संहिता के इस
मन्त्र के देवता रुद्र हैं, ऋषि परमेष्ठी प्रजापति हैं,
तथा इसका छन्द 'धृति' है,
तथा इसमें 'सर्पेभ्यो' या
'रुद्रेभ्यो' दोनों का वाचन कर सकते
हैं।
अथ मन्त्र कालसर्प योग शांति प्रार्थना
१-ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये 'दिवि' येषाँ वर्ष मिषवः तेभ्यो दशप्प्राची
र्दशादक्षिणा दशप्रतीची र्दशोदीची र्दशोर्दूध्वाः तेव्भ्योनमोऽअस्तुतेनो वन्तुतेनो
मृड्यन्तुते यन्दृविष्मो यश्चनो द्वेष्टितमेषां जन्मेदध्मः॥
२-ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये 'अन्तरिक्ष' येषाँ वर्ष मिषवः तेभ्यो दशप्प्राची
र्दशादक्षिणा दशप्रतीची र्दशोदीची र्दशोर्दूध्वाः तेव्भ्योनमोऽअस्तुतेनो वन्तुतेनो
मृड्यन्तुते यन्दृविष्मो यश्चनो द्वेष्टितमेषां जन्मेदध्मः॥
३-ॐ नमोस्तु सर्पेभ्यो ये 'पृथिवी' येषाँ वर्ष मिषवः तेभ्यो दशप्प्राची
र्दशादक्षिणा दशप्रतीची र्दशोदीची र्दशोर्दूध्वाः तेव्भ्योनमोऽअस्तुतेनो वन्तुतेनो
मृड्यन्तुते यन्दृविष्मो यश्चनो द्वेष्टितमेषां जन्मेदध्मः॥
अर्थ- उन सर्पो के निमित्त नमस्कार
है जो सर्प द्युलोक में, अन्तरिक्ष में और
पृथिवी लोक में विद्यमान हैं। उन सर्पों के निमित्त पूर्वदिशा में दश अंगुली होकर
(हाथ जोड़कर) नमस्कार है। दक्षिण दिशा में दश अंगुली होकर, पश्चिम
दिशा में दश अंगुली होकर, उत्तर दिशा में दश अंगुली होकर,
ऊर्ध्व में दश अंगुली होकर करबद्ध नमस्कार करता हूँ।
उन सर्पो को नमस्कार है,
वे सर्प हमारी रक्षा करें, वे हमको सुखी करें।
हे सर्प के अधिपति रुद्र! जिससे हम द्वेष करते हैं और जो हमसे द्वेष रखता है उनको
हम इन सर्पो की तीक्ष्ण दाढ़ों में सौंपते हैं। ये सर्प हमारे निमित्त शान्त होकर
पाताल लोक में चले जाएं और हमें सभी प्रकार के भौतिक एवं आध्यात्मिक सुख-शान्ति,
ऐश्वर्य एवं वैभव से परिपूर्ण करें।
जल में सर्प छोड़ने का मन्त्र कालसर्प योग शांति प्रार्थना
सर्प को जल में विसर्जन करते समय
अपनी कुंडली में स्थित कालसर्प योग(दोष)का नाम मन्त्र में कालीयो कि जगह पर लेकर
निचे लिखित मन्त्र पढ़ें -
।। अथ जलविसर्जनम् ।।
कालीयो नाम नागोsसौ कृष्णस्य पाद पांशुना ।
रक्षा
ताक्ष्येण सम्प्राप्त: सोsभयं हि ददातु न: ।।
१ ।।
कालीयो
नाम नागोsसौ विषरुपो भयंकर: ।
नारायणेन
संपृष्टो सदा शं विदधातु न: ।। २ ।।
कालीयो नाम नागोsयं ज्ञातो सर्वे महाबली ।
अभयं प्राप्त कृष्णेन निर्भयो
विचरत्यहि ।। ३ ।।
सो कालीय स्वदोषाच्च निर्भयं कुरु
मां सदा ।
अनेन पूजनेनाथ प्रीतो सुखकरो भवेत्
।। ४ ।।
बलिं प्राप्य स्वकीयां हि आशिषं मे
प्रयच्छतु ।
कालसर्पस्य
दोषोsयं शान्तो भवतु सर्वदा ।। ५ ।।
तृप्तो नाग: प्रयच्छं मे धनधान्यादि
सम्पद: ।
जले विहर त्वं नाग मां हि शान्तिप्रदो भव ।। ६ ।।
कालसर्प योग शांति प्रार्थना समाप्त।।
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