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कर्मकाण्ड

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मार्तण्ड भैरव अष्टोत्तरशत नामावलि

मार्तण्ड भैरव अष्टोत्तरशत नामावलि

भगवान श्रीमार्तण्ड भैरव से अपनी सभी मनोकामनाओं की सिद्धि के लिए नित्य श्रीमार्तण्डभैरव अष्टोत्तरशत नामावलि का पाठ करें। खंडोबा के सेवक के रूप में बाध्या और मुरली का उल्लेख किया जाता है। बाध्या को तो लोग कहते हैं कि वह खंडोबा के कुत्ते का नाम है। मुरली खंडोबा की उपासिका कोई देवदासी थी। सारे दक्षिण में बाध्या और मुरली नाम के खंडोबा के उपासकों का दो वर्ग प्रख्यात है। ये लोग घूमते फिरते हैं और भिक्षा माँगकर खाते हैं। खंडोबा के संबंध में यह भी कहा जाता है कि खंडोबा की उपासना कर्णाटक से महाराष्ट्र में आई है और खंडोबा महाराष्ट्र और कर्णाटक के बीच सांस्कृतिक संबंध के प्रतीक हैं। कर्णाटक में खंडोबा मल्लारी, मल्लारि मार्तंड, मैलार आदि नाम से जाने जाते हैं। वहाँ उनके बारह प्रसिद्ध स्थान बताए जाते हैं। मद्रास के उपनगर 'मैलापुर' के संबंध में कहा जाता है कि मूलत: उसका नाम इन्हीं के नाम पर मैलारपुर था। दक्षिण में कुछ मुसलमान उन्हें मल्लू खाँ के नाम से पूजते हैं। महाराष्ट्र में इनके कन्नड़ नाम मैलार का संस्कृतकरण कर 'मल्लारि माहात्म्य' नाम से एक ग्रंथ की रचना हुई है। उसमें उनके संबंध में जो कथा दी गई है वह इस प्रकार है-

कृतयुग में मणिचूल पर्वत पर धर्मपुत्र सप्तर्षि तप कर रहे थे। वहाँ मणि और मल्ल नामक दो दैत्यों ने आकर उपद्रव करना आरंभ किया और ऋषि के तपोवन को ध्वस्त कर दिया। तब शोकाकुल ऋषि इंद्र के पास गए। इंद्र ने कहा कि मणि-मल्ल दोनों दैत्यों को अमर रहने का वरदान ब्रह्मा ने दे रखा है। इस कारण वे उनका वध करने में असमर्थ हैं। उन्होंने ऋषि को विष्णु के पास जाने की सलाह दी। ऋषि विष्णु के पास गए। जब विष्णु ने भी अपनी असमर्थता प्रकट की तब वे शिव के पास आए। शिव ने जब ऋषि की दु:खगाथा सुनी तो वे दु:खी हुए और उन्होंने मणि और मल्ल के विनाश के लिये मार्तंड भैरव का रूप धारण किया और कार्तिकेय के नेतृत्व में अपने सात कोटि गणों को लेकर मणिचूल पर्वत पर पहुँचे। वहां उनका मणि-मल्ल के साथ तुमुल युद्ध हुआ। अंत में मार्तंड भैरव ने मणि के वक्षस्थल को विदीर्ण कर दिया और वह भूमि पर गिर पड़ा। गिरने पर उसने शिव से प्रार्थना की कि वह उसे अश्व के रूप में अपने निकट रहने की अनुमति दें। शिव ने उसका अनुरोध स्वीकार कर लिया। इसी प्रकार मल्ल ने भी मरने से पूर्व मार्तंड भैरव से अनुरोध किया कि मेरे नाम से आप मल्लारि (मल्ल+अरि) नाम से ख्यात हों। तब सप्तऋषि ने भयमुक्त होकर मार्तंड भैरव से स्वयंभूलिंग के रूप में प्रेमपुर (पेंबर) में रहने का अनुरोध किया और उन्होंने उनका भी अनुरोध मान लिया। इस प्रकार मल्लारि (मैलार) की कथा प्रख्यात हुई। मल्लारि (मैलार) अर्थात् खंडोबा को श्वेत अश्व पर आरूढ़ अंकित किया जाता है। उनके साथ कुत्ता रहता है। उनके हाथ में खड्ग (खंडा) और त्रिशूल होता है।

मार्तण्ड भैरव अष्टोत्तरशतनामावलि

श्रीमार्तण्ड भैरव अष्टोत्तरशत नामावलिः

श्रीमार्तण्डभैरव ध्यानम्

हेमाम्भोजप्रवालप्रतिमनिजरुचिं चारुखट्वाङ्गपद्मौ

     चक्रं शक्तिं सपाशं सृणिमतिरुचिरामक्षमालां कपालम् ।

हस्ताम्भोजैर्दधानं त्रिनयनविलसद्वेदवक्त्राभिरामं

     मार्ताण्डं वल्लभार्धं मणिमयमुकुटं हारदीप्तं भजामः ॥

अथ श्रीमार्तण्ड भैरवाष्टोत्तरशतनामावलिः

ॐ त्र्यम्बकाय नमः । ॐ महादेवाय नमः । ॐ जदीश्वराय नमः । ॐ त्रिपुरारये नमः ।

ॐ जटाजूटाय नमः । ॐ चन्दनभूषणाय नमः । ॐ चन्द्रशेखराय नमः ।

ॐ गौरी प्राणेश्वराय नमः । ॐ जगन्नाथाय नमः । ॐ महारुद्राय नमः ।

ॐ भक्तवत्सलाय नमः । ॐ शिववरदमूर्तये नमः । ॐ गिरीजापतये नमः ।

ॐ पशुपतये नमः । ॐ कर्पूरगौराय नमः । ॐ शङ्कराय नमः ।

ॐ सर्पभूषणाय नमः । ॐ असुरमर्दनाय नमः । ॐ ज्ञानदाकाय नमः ।

ॐ त्रिमूर्तये नमः । ॐ शिवाय नमः । ॐ मार्तण्डभैरवाय नमः ।

ॐ नागेन्द्रभूषणाय नमः । ॐ नीलकण्ठाय नमः । ॐ चन्द्रमौलये नमः ।

ॐ लोकपालाय नमः । ॐ देवेन्द्राय नमः । ॐ नीलग्रीवाय नमः ।

ॐ शशाङ्कचिन्हाय नमः । ॐ वासुकीभूषणाय नमः । ॐ दुष्टमर्दनदेवेशाय नमः ।

ॐ उमावराय नमः । ॐ खड्गराजाय नमः । ॐ मृडानीवराय नमः ।

ॐ पिनाकपाणये नमः । ॐ दशवक्त्राय नमः । ॐ निर्विकाराय नमः ।

ॐ शूलपाणये नमः । ॐ जगदीशाय नमः । ॐ त्रिपुरहराय नमः ।

ॐ हिमनगजामाताय नमः । ॐ खड्गपाणये नमः । ॐ व्योमकेशाय नमः ।

ॐ त्रिशूलधारये नमः । ॐ धूर्जटये नमः । ॐ त्रितापशामकाय नमः ।

ॐ अनङ्गदहनाय नमः । ॐ गङ्गाप्रियाय नमः । ॐ शशिशेखराय नमः ।

ॐ वृषभध्वजाय नमः । ॐ प्रेतासनाय नमः । ॐ चपलखड्गधारणाय नमः ।

ॐ कल्मषदहनाय नमः । ॐ रणभैरवाय नमः । ॐ खड्गधराय नमः ।

ॐ रजनीश्वराय नमः । ॐ त्रिशूलहस्ताय नमः । ॐ सदाशिवाय नमः ।

ॐ कैलासपतये नमः । ॐ पार्वतीवल्लभाय नमः । ॐ गङ्गाधराय नमः ।

ॐ निराकाराय नमः । ॐ महेश्वराय नमः । ॐ वीररूपाय नमः ।

ॐ भुजङ्गनाथाय नमः । ॐ पञ्चाननाय नमः । ॐ दम्भोलिधराय नमः ।

ॐ मल्लान्तकाय नमः । ॐ मणिसूदनाय नमः । ॐ असुरान्तकाय नमः ।

ॐ सङ्ग्रामवरीराय नमः । ॐ वागीश्वराय नमः । ॐ भक्तिप्रियाय नमः ।

ॐ भैरवाय नमः । ॐ भालचन्द्राय नमः । ॐ भस्मोद्धाराय नमः ।

ॐ व्याघ्राम्बराय नमः । ॐ त्रितापहाराय नमः । ॐ भूतभव्यत्रिनयनाय नमः ।

ॐ दीनवत्सलाय नमः । ॐ हयवाहनाय नमः । ॐ अन्धकध्वंसये नमः ।

ॐ श्रीकण्ठाय नमः । ॐ उदारधीराय नमः । ॐ मुनितापशमनाय नमः ।

ॐ जाश्वनीलाय नमः । ॐ गौरीशङ्कराय नमः । ॐ भवमोचकाय नमः ।

ॐ जगदुद्धाराय नमः । ॐ शिवसाम्बाय नमः । ॐ विषकण्ठभूषणाय नमः ।

ॐ मायाचालकाय नमः । ॐ पञ्चदशनेत्रकमलाय नमः । ॐ दयार्णवाय नमः ।

ॐ अमरेशाय नमः । ॐ विश्वम्भराय नमः । ॐ कालाग्निरुद्राय नमः ।

ॐ मणिहराय नमः । ॐ मालूखानाथाय नमः । ॐ जटाजूटगङ्गाधराय नमः ।

ॐ खण्डेरायाय नमः । ॐ हरिद्राप्रियरूद्राय नमः । ॐ हयपतये नमः ।

ॐ मैराळाय नमः । ॐ मेघनाथाय नमः । ॐ अहिरुद्राय नमः ।

ॐ म्हाळसाकान्ताय नमः । ॐ मार्तण्डाय नमः ।

इति श्रीमार्तण्ड भैरवाष्टोत्तर शतनामावलिः समाप्ता ।

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