मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
भगवान श्री श्रीमार्तण्ड भैरव को
समर्पित इस स्तोत्र के पाठ करने से शीघ्र ही सभी मनोरथ पूर्ण होता है । दक्षिण
भारत में भैरव शास्ता नाम से महाराष्ट्र में खंडोबा नाम से इसके अतिरिक्त कुमाऊ
मण्डल,नैनीताल में गोलू देवता के नाम से जानते हैं। खंडोबा,खंडेराया,मल्हारी मार्तण्ड,आदि
नामो से प्रसिद्ध , महाराष्ट्र और कर्नाटक प्रदेश की
बहुसंख्यक जनता के कुल देवता हैं। उनकी उपासना निम्नवर्गीय समाज से लेकर ब्राह्मण
तक सभी करते हैं। 'खंडोबा' और 'स्कंद' दोनों नामों के सादृश्य के कारण कुछ लोगों
में खंडोबा को स्कंद के अवतार समझे जाते हैं। अन्य लोग उन्हें शिव अथवा उनके भैरव
रूप का अवतार बताते हैं। इसके प्रमाण में कहा जाता है कि खंडोबा परिवार में कुत्ते
को स्थान प्राप्त है और कुत्ता भैरव का वाहन है। इनके चार आयुधों में खड्ग (खाँडे)
का विशेष महत्व है और इसी 'खाँडे' के
कारण इनका खंडोबा नाम पड़ा है। खंडोबा के संबंध में यह भी कहा जाता है कि वे मूलत:
ऐतिहासिक वीर पुरूष थे। उन्हें कालांतर में देवता मान लिया गया है। इस कल्पना का
आधार 'समयपरीक्षा' नामक कन्नड भाषा का
एक ग्रंथ है।
श्रीमार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
भैरवा ऊचुः -
नमो मार्ताण्डनाथाय स्थाणवे
परमात्मने ।
भैरवाय सुभीमाय त्रिधाम्नेश नमो नमः
॥ १॥
मृतोद्धारणदक्षाय गर्भोद्धरणहेतवे ।
तेजसां केतवे तुभ्यं हेतवे जगतामपि
॥ २॥
हिरण्यगर्भरूपाय धीप्रणोदाय ते नमः
।
ओङ्कारव्याहृतिस्थाय महावीराय ते
नमः ॥ ३॥
वीरेशाय नमस्तुभ्यं क्षेत्रेशाय नमो
नमः ।
वेदार्थाय च वेदाय वेदगर्भाय शम्भवे
॥ ४॥
विश्वामित्राय सूर्याय सूरये
परमात्मने ।
महाभैरवरूपाय भैरवानन्ददायिने ॥ ५॥
द्विविधध्वान्तध्वंसाय
महामोहविनाशिने ।
मायान्धकारनाशाय
चक्षुस्तिमिरभञ्जिने ॥ ६॥
मन्त्राय मन्त्ररूपाय
मन्त्राक्षरविचारिणे ।
मन्त्रवाच्याय देवाय
महामन्त्रार्थदायिने ॥ ७॥
यन्त्राय यन्त्ररूपाय यन्त्रस्थाय
यमाय ते ।
यन्त्रैर्नियन्त्रैर्नियमैर्यमिनां
फलदाय च ॥ ८॥
अज्ञानतिमिरध्वंसकारिणे क्लेशहारिणे
।
महापातकहर्त्रे च महाभयविनाशिने ॥
९॥
भयदाय सुशीलाय भयानकरवाय ते ।
बीभत्साय च रौद्राय भीताभयप्रदायिने
॥ १०॥
तेजस्वितेजोरूपाय चण्डायोग्राय ते
नमः ।
बीजाय बीजरूपाय बीजभर्गाय ते नमः ॥
११॥
क्रोधभर्गाय देवाय लोभभर्गाय ते नमः
।
महाभर्गाय वै तुभ्यं ज्ञानभर्गाय ते
नमः ॥ १२॥
घोरभर्गाय ते तुभ्यं भीतिभर्गाय ते
नमः ।
सुशोकाय विशोकाय ज्ञानभर्गाय ते नमः
॥ १३॥
तत्त्वभर्गाय देवाय मनोभर्गाय वै
नमः ।
दारिद्र्यदुःखभर्गय कामभर्गाय ते
नमः ॥ १४॥
हिंसाभर्गाय तामिस्रभर्गाय
जगदात्मने ।
अतिदुर्वासनाभर्ग नमस्ते भैरवात्मने
॥ १५॥
ध्यायन्ते यं भर्ग इति भर्गभर्गाय
ते नमः ।
रोगभर्गाय देवाय पापभर्गाय ते नमः ॥
१६॥
महापातकभर्गाय ह्युपपातकभर्गिणे ।
महानिरयभर्गाय नृत्तभर्गाय ते नमः ॥
१७॥
क्लेशभर्गाय देवाय भौतिकघ्नाय ते
नमः ।
मृत्युभर्गाय देवाय दुर्गभर्गाय ते
नमः ॥ १८॥
ध्यानाद्ध्यायन्ति यद्भर्गं यमिनः
संयतेन्द्रियाः ।
नाथाय भर्गनाथाय भर्गाय सततं नमः ॥
१९॥
वीरवीरेश देवेश नमस्तेऽस्तु
त्रिधामक ।
महामार्ताण्ड वरद सर्वाभयवरप्रद ॥
२०॥
नमो वीराधिवीरेश सूर्यचन्द्रातिधामक
।
अग्निधामातिधाम्ने च महामार्ताण्ड
ते नमः ॥ २१॥
वीरातिवीर वीरेश घोरघोरार्तिघोरक ।
महामार्ताण्डदेवेश भूयो भूयो नमो
नमः ॥ २२॥
इति श्रीमार्तण्डभैरवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
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