अष्ट भैरव
अष्ट भैरव-
भैरव शिवजी के ही प्रतिरूप हैं। वस्तुत: शिवजी और भैरव में कोई अन्तर नहीं है। अत:
भैरव की उपासना भी शिवजी की उपासना के समान फल देने वाला है।
शिवमहापुराण
में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताते हुए लिखा गया है -
भैरव:
पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:।
मूढास्तेवै
न जानन्ति मोहिता:शिवमायया॥
भैरव
के स्वरूप
श्री
भैरव के शरीर का रंग श्याम है। उनकी चार भुजाएँ हैं जिनमें वे त्रिशूल, खड्ग,
खप्पर तथा नरमुण्ड धारण करते हैं। अन्य मतानुसार वे एक हाथ में मोर
पंखों का चंवर भी धारण करते हैं। उनका वाहन श्वान (कुत्ता) है। उनकी वेशभूषा लगभग
शिवजी के समान है। शरीर पर भस्म, मस्तक पर त्रिपुण्ड,
बाघम्बर धारण किए, गले में मुण्ड माला और
सर्पो से शोभायमान रहते हैं। भैरव श्मशान वासी हैं। ये भूत-प्रेत योगिनियों के
अधिपति हैं। भक्तों पर स्नेहवान और दुष्टों का संहार करने में सदैव तत्पर रहते
हैं। हर प्रकार के कष्टों को दूर करके बल, बुद्धि, तेज, यश, धन तथा मुक्ति प्रदान
करने के कारण इनकी विशेष प्रसिद्धि है।
श्री
भैरव के अन्य रूपों में 'महाकाल भैरव' तथा 'बटुक भैरव'
मुख्य हैं।
अष्ट
भैरव के रूप में जिन आठ नामों की प्रसिद्धि है वे इस प्रकार हैं-
१.अतिसांग
भैरव, २.चण्ड भैरव, ३. भयंकर भैरव, ४.
क्रोधोन्मत्त भैरव, ५. भीषण भैरव, ६.
संहार भैरव, ७. कपाली भैरव, ८. रूरू
भैरव।
शिवजी
के प्रकारान्तर से निम्न नौ स्वरूप भी भैरव के माने जाते हैं
१.क्षेत्रपाल, २. दण्डपाणि,
३. नीलकण्ठ, ४. मृत्युञ्जय, ५. मंजुघोष, ६. ईशान, ७.
चण्डेश्वर, ८. दक्षिणामूर्ति, ९.
अर्द्धनारीश्वर।
भगवान
भैरव के मुख्यतः आठ स्वरूप है जिन्हे अष्ट भैरव कहते हैं। उनके इन आठो स्वरूपों को
पूजने से वे अपने भक्तो पर प्रसन्न होते है तथा उन्हें अलग-अलग फल प्रदान करते है।
अष्ट भैरव
का ध्यान स्तोत्र इस प्रकार है-
अष्ट भैरव ध्यानस्तोत्रम्
भैरवः पूर्णरूपोहि शङ्करस्य
परात्मनः ।
मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिताः
शिवमायया ॥
ॐ हं षं नं गं कं सं खं
महाकालभैरवाय नमः ।
नमस्कार मन्त्रः -
ॐ श्रीभैरव्यै,
ॐ मं महाभैरव्यै, ॐ सिं सिंहभैरव्यै,
ॐ धूं धूम्रभैरव्यै,
ॐ भीं भीमभैरव्यै, ॐ उं उन्मत्तभैरव्यै,
ॐ वं वशीकरणभैरव्यै,
ॐ मों मोहनभैरव्यै ।
॥ अष्टभैरव ध्यानम् ॥
असिताङ्गोरुरुश्चण्डः
क्रोधश्चोन्मत्तभैरवः ।
कपालीभीषणश्चैव संहारश्चाष्टभैरवम्
॥
अष्ट भैरव ध्यान व स्वरूप
१) १)असिताङ्ग भैरव ध्यान व स्वरूप
असितांग(असिताङ्ग) भैरव को भैरव का
उग्र रूप माना गया है, इनकी तीन आँखे होती है तथा इनका पूरा शरीर काले रंग का है।
असितांग भैरव की सवारी हंस है तथा ये अपने गले में कपाल की माला धारण किये हुए है।
इनका अस्त्र भी कपाल है। इनकी पत्नी का नाम ब्राह्मी है। असितांग भैरव का पूर्व
दिशा के स्वामी और पुनर्वसु नक्षत्र है। इनका रत्न पीला नीलम है। भगवान भैरव की इस
रूप की पूजा करने पर व्यक्ति की कलात्मक क्षमता बढ़ती है। ऐसा माना गया है कि इस
रूप में भैरव की उपासना आपके भयंकर से भयंकर व असाध्य रोग को भी दूर कर सकती है। जो
लोग लम्बे समय से किसी रोग से पीड़ित है और लाख यत्न के बाद भी उनका रोग ठीक नहीं
हो पा रहा है तो असितांग भैरव मंत्र का जप करना चाहिए। कलियुग के समय में भैरव
उपासना विशेष रूप से फल प्रदान करने वाली मानी गयी है।
असितांग भैरव मंत्र ।
॥ ॐ भं भं सः असितांगाये नमः ॥
असिताङ्ग भैरव ध्यानम् ।
रक्तज्वालजटाधरं शशियुतं रक्ताङ्ग
तेजोमयं
अस्ते शूलकपालपाशडमरुं लोकस्य रक्षाकरम् ।
निर्वाणं
शुनवाहनन्त्रिनयनमानन्दकोलाहलं
वन्दे भूतपिशाचनाथ वटुकं क्षेत्रस्य पालं
शिवम् ॥ १॥
२) रूरु भैरव
ध्यान व स्वरूप
भैरव का
रुरु (गुरु) रूप अत्यंत प्रभावी व आकर्षक है इस रूप में वे बैल पर सवारी करते है।
इस रूप में वे अपने हाथो पर कुल्हाड़ी,
पात्र, तलवार और कपाल धारण किये हुए है तथा
उनके कमर में एक सर्प लिपटा हुआ है। गुरु भैरव की पूजा करने पर समस्त ज्ञान की
प्राप्ति होती है। इनकी पत्नी का नाम माहेश्वरी है। ब्रह्मवैवर्त पुराण अनुसार
रूरु भैरव की उत्पत्ति श्रीकृष्ण के दाहिने नेत्र से हुई थी। रूरु भैरव का पूर्व
दक्षिण दिशा के स्वामी और कार्तिक नक्षत्र है। इनका रत्न माणिक है।भैरवजी का यह
रूप संपत्ति, धन और समृद्धि प्रदान करने वाला है। इन भैरव की
उपासना करने से नौकरी और रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं। घर में प्रेमपूर्ण
वातावरण निर्मित होता है। जीवन में हर प्रकार के संकट से रक्षा होती है।
रूरु भैरव
मंत्र ।
।।
ॐ भं भं ह्रौं रूरु भैरवाये नम:।।
रूरु भैरव ध्यानम् ।
निर्वाणं निर्विकल्पं निरूपजमलं
निर्विकारं क्षकारं
हुङ्कारं वज्रदंष्ट्रं हुतवहनयनं
रौद्रमुन्मत्तभावम् ।
भट्कारं भक्तनागं भृकुटितमुखं भैरवं
शूलपाणिं
वन्दे खड्गं कपालं डमरुकसहितं
क्षेत्रपालन्नमामि ॥ २॥
भगवान भैरव का चण्ड भैरव रूप
सफेद रंग का है तथा वे तीन आँखों से सुशोभित है। इस रूप में वह मोर की सवारी करते
है। अपने एक हाथ में तलवार,
दूसरे हाथ में पात्र, तीसरे हाथ में तीर व
चौथे हाथ में धनुष धारण किये हुए है। चण्ड भैरव
दक्षिण दिशा के स्वामी, मृगशिरा नक्षत्र और रत्न मूंगा है। उनकी
पत्नी का नाम कौमारी। भगवान भैरव के इस रुप को पूजने वाला व्यक्ति
अपने शत्रुओ पर विजयी प्राप्त करता है तथा हर कार्य में उसे सफलता प्राप्त होती
है।
चण्ड भैरव मंत्र ।
॥ ॐ हूं हूं चंड चंड भैरवाय भ्रं भ्रं हूं हूं फट् ॥
चण्डभैरव ध्यानम् ।
बिभ्राणं शुभ्रवर्णं द्विगुणदशभुजं
पञ्चवक्त्रन्त्रिनेत्रं
दानञ्छत्रेन्दुहस्तं रजतहिममृतं
शङ्खभेषस्यचापम् ।
शूलं खड्गञ्च बाणं डमरुकसिकतावञ्चिमालोक्य
मालां
सर्वाभीतिञ्च दोर्भीं भुजतगिरियुतं भैरवं
सर्वसिद्धिम् ॥ ३॥
४) क्रोध भैरव ध्यान व स्वरूप
भगवान भैरव
के इस रूप का रंग नीला होता है तथा इनकी सवारी गरुड़ होती है। भगवान शिव के भाति ही
क्रोध भैरव की भी तीन आंखे होती है तथा ये दक्षिण और पश्चिम के स्वामी माने जाते
है। काल भैरव के इस रूप की पूजा करने पर सभी प्रकार की मुसीबतो और परेशानियों से
मुक्ति मिलती है तथा व्यक्ति में इन मुसीबतो एवं परेशनियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती
है। इनका नक्षत्र रोहिणी और रत्न मोती है। क्रोध भैरव का पत्नि वैष्णवी है और इनका
मुख्य मंदिर तमिलनाडु के थिरुविसन्नलूर में है।
क्रोधभैरव ध्यानम् ।
उद्यद्भास्कररूपनिभन्त्रिनयनं
रक्ताङ्ग रागाम्बुजं
भस्माद्यं वरदं कपालमभयं शूलन्दधानं करे ।
नीलग्रीवमुदारभूषणशतं शन्तेशु
मूढोज्ज्वलं
बन्धूकारुण वास अस्तमभयं देवं सदा भावयेत् ॥
४॥
५) उन्मत्त
भैरव ध्यान व स्वरूप
उन्मत्त
भैरव का शरीर पीले रंग का है तथा वे घोड़े पर सवारी करते है। भैरव का यह रूप शांत
स्वभाव का कहलाता है तथा इनकी पूजा अर्चना करने से व्यक्ति अपने सभी नकरात्मक
विचारो से मुक्ति पाता है व उसे शांत एवं सुखद भावना की अनुभूति होती है। उन्मत्त
भैरवनाथ की पत्नी वराही हैं और इन भैरव की दिशा पश्चिम है। इसका खास मंदिर
तमिलनाडु के विजहिनाथर में है। इनकी पूजा करने से नौकरी, प्रमोशन,
धन आदि की प्राप्ति होती है और साथ ही घर परिवार में प्रसन्नता का
वातावरण निर्मित होता है। लहसुन, प्याज आदि त्यागकर शुद्ध
सात्विक रूप से इनकी आराधना करने से ये जल्दी प्रसन्न होते हैं।
उन्मत्त
भैरव मंत्र ।
॥ ॐ भं भं
श्री उन्मताये नम: ॥
उन्मत्तभैरव ध्यानम् ।
एकं खट्वाङ्गहस्तं पुनरपि भुजगं
पाशमेकन्त्रिशूलं
कपालं खड्गहस्तं डमरुकसहितं वामहस्ते
पिनाकम् ।
चन्द्रार्कं केतुमालां
विकृतिसुकृतिनं सर्वयज्ञोपवीतं
कालं कालान्तकारं मम भयहरं
क्षेत्रपालन्नमामि ॥ ५॥
६) कपाल भैरव
ध्यान व स्वरूप
कपाल या
कपाली भैरव जी का यह रूप बहुत ही चमकीला होता है तथा इस रूप में वह हाथी पर सवारी
करते है। इस रूप में काल भैरव के चार हाथ होते है, अपने दाए दो हाथो में वे
त्रिशूल और तलवार पकड़े है तथा उनके बाये दो हाथो में एक अस्त्र और एक पात्र है।
भगवान भैरव के इस रूप की पूजा करने पर व्यक्ति सभी क़ानूनी कार्रवाइयों से मुक्ति
प्राप्त करता है तथा उसके सारे अटके काम बनने लगते है। कपाल भैरव के पत्नी का नाम इंद्राणी
है। इनकी दिशा उत्तर पश्चिम अर्थात वायव्य कोण है और नक्षत्र भरणी है। रत्न हीरा
और कानों में कुंडल धारण किए हुए हैं। इनका खास मंदिर तमिलनाडु के थिरुवीरकुडी में
है। भगवान काल भैरव के ब्रह्मकपाल से कपाल भैरव का जन्म हुआ था। भैरव इस रूप में
समस्त संसार के कपाल और उसमें आने वाले विचारों के देवता हैं। श्री कपाल भैरव कपाल
के प्रतीक देवता है इस कारण से तंत्र में इनकी आराधना मुख्य रूप से की जाती हैं।
तंत्र में सिद्धि की पराकाष्ठा कपाल भेदन क्रिया को माना जाता हैं, कपाल के कुछ ही देवता या देवियां हैं जिनमें माता हिंगलाज, माता छिन्नमस्ता, माता रेणुका, और बाबा कपाल भैरव हैं, रुद्रांश होने के कारण ये
जागृत कुंडलिनी शक्ति के प्रतीक और कुंडलिनी नियंता भी हैं।
कपाल भैरव मंत्र ।
॥ ॐ कपाल
भैरवाय नम: ॥
॥ ॐ कम
कपाल भैरवाय फट स्वाहा ॥
कपाल भैरव ध्यानम् ।
वन्दे बालं स्फटिकसदृशं
कुम्भलोल्लासिवक्त्रं
दिव्याकल्पैफणिमणिमयैकिङ्किणीनूपुरञ्च ।
दिव्याकारं विशदवदनं सुप्रसन्नं
द्विनेत्रं
हस्ताद्यां वा दधानान्त्रिशिवमनिभयं
वक्रदण्डौ कपालम् ॥ ६॥
७) भीषण भैरव
ध्यान व स्वरूप
भीषण भैरव
ने अपने एक हाथ में कमल का फूल,
दूसरे में तलवार, तीसरे में त्रिशूल और चौथे
में एक पात्र पकड़ा हुआ है। भीषण भैरव की सावारी सिंह की है और उनकी पत्नी का नाम चामुण्डी
है। भीषण भैरव उत्तर दिशा के संवरक्षक हैं और इनका नक्षत्र स्वाति है। भीषण भैरव
का खास मंदिर तमिलनाडु के रामेश्वरम में स्थित है।भगवान भैरव की भीषण रूप में पूजा
करने पर बुरी आत्माओं और भूतों से छुटकारा मिलता है।
भीषणभैरव ध्यानम् ।
त्रिनेत्रं रक्तवर्णञ्च
सर्वाभरणभूषितम् ।
कपालं शूलहस्तञ्च वरदाभयपाणिनम् ॥
सव्ये शूलधरं भीमं खट्वाङ्गं
वामकेशवम् ।
रक्तवस्त्रपरिधानं
रक्तमाल्यानुलेपनम् ।
नीलग्रीवञ्च सौम्यञ्च
सर्वाभरणभूषितम् ॥
नीलमेख समाख्यातं
कूर्चकेशन्त्रिनेत्रकम् ।
नागभूषञ्च रौद्रञ्च
शिरोमालाविभूषितम् ॥
नूपुरस्वनपादञ्च सर्प यज्ञोपवीतिनम्
।
किङ्किणीमालिका भूष्यं भीमरूपं
भयावहम् ॥ ७॥
८) संहार भैरव
ध्यान व स्वरूप
संहार भैरव
का का पूरा शरीर लाल रंग का है। संहार भैरव इस रूप में निर्वस्त्र है तथा उनके
मष्तक में कपाल स्थापित है वह भी लाल रंग का। संहार भैरव की आठ भुजाएं हैं और शरीर
पर सांप लिपटा हुआ है। संहार भैरव का वाहन श्वान है तथा उनकी तीन आंखे हैं। संहार
भैरव की दिशा उत्तर-पूर्व है। नक्षत्र रेवती है। उनकी पत्नी चंडी है। संहार भैरव
के इस रूप की पूजा करने पर व्यक्ति अपने समस्त पापों से मुक्ति प्राप्त करता है। संहार
भैरव का प्रमुख मंदिर तमिलनाडु के थिरुवेंकाडु एवं होसुर में है।
संहारभैरव ध्यानम् ।
एकवक्त्रन्त्रिनेत्रञ्च हस्तयो
द्वादशन्तथा ।
डमरुञ्चाङ्कुशं बाणं खड्गं शूलं
भयान्वितम् ॥
धनुर्बाण कपालञ्च गदाग्निं वरदन्तथा
।
वामसव्ये तु पार्श्वेन आयुधानां
विधन्तथा ॥
नीलमेखस्वरूपन्तु
नीलवस्त्रोत्तरीयकम् ।
कस्तूर्यादि निलेपञ्च
श्वेतगन्धाक्षतन्तथा ॥
श्वेतार्क पुष्पमालाञ्च
त्रिकोट्यङ्गणसेविताम् ।
सर्वालङ्कार संयुक्तां संहारञ्च
प्रकीर्तितम् ॥ ८॥
इति श्रीभैरव स्तुति निरुद्र कुरुते
।
इति अष्ट भैरव ध्यानस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
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