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मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
क्षेत्रपाल भैरवाष्टक स्तोत्रम्
विश्वसार-तन्त्र का यह श्री
क्षेत्रपाल भैरवाष्टक स्तोत्रम् भावपूर्वक पाठ करने मात्र से दु:ख-नाश, असुर-भय
नाश (भुत,प्रेत,डाकिनी,शाकिनी),भयानक जीव-जंतु भय नाश (व्याघ्र-सर्प आदि), दुष्ट ग्रह
–गण नाश होता है ।
श्री क्षेत्रपाल भैरवाष्टक स्तोत्रम्
ॐ यं यं यं यक्षरूपं दशदिशिवदनं
भूमिकम्पायमानम्।
सं सं संहारमूर्ति शिरमुकुटजटाशेखरं
चन्द्रबिम्बम् ॥
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनखमुखं चोर्ध्वरोमकरालं।
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं
क्षेत्रपालम् ॥१॥
रं रं रं रक्तवर्णं कटकटिततनुं
तीक्ष्णदंष्ट्राविशालम् ।
घं घं घं घोरघोषं घ घ घ घ घटितं
घर्घराघोरनादं ॥
कं कं कं कालरूपं धगधगधगितं ज्वालितंकामदेहं।
दं दं दं दिव्यदेहं प्रणमत सततं
भैरवं क्षेत्रपालम् ॥२॥
लं लं लं लम्बदन्तं ल ल ल ल लुलितं
दीर्घजिह्वंकरालं।
धूं धूं धूं धूम्रवर्णं स्फुटविकृतमुखं
भासुरं भीमरूपं ॥
रुं रुं रुं रुण्डमालं रुधिरमयमुखं
ताम्रनेत्रं विशालं।
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं
भैरवं क्षेत्रपालम् ॥३॥
वं वं वं वायुवेगं प्रलयपरिमितं
ब्रह्मरूपंस्वरूपम्।
खं खं खं खङ्गहस्तं त्रिभुवननिलयं
भास्करं भीमरूपं ॥
चं चं चं चालयन्तं चलचलचलितं चालितं
भूतचक्रं।
मं मं मं मायकायं प्रणमत सततं भैरवं
क्षेत्रपालम् ॥४॥
शं शं शं शङ्खहस्तं शशिकरधवलं पूर्णतेज:स्वरूपं।
भं भं भं भावरूपं कुलमकुलकुलं
मन्त्रमूर्ति स्वतत्वं ॥
भं भं भं भूतनाथं किलकिलकितवचश्चारुजिह्वालुलुन्तं।
अं अं अं अंतरिक्षं प्रणमत सततं
भैरवं क्षेत्रपालम् ॥५॥
खं खं खं खङ्गभेदं विषममृतमयं कालकालांधकारं।
क्षीं क्षीं क्षीं क्षिप्रवेगं दह
दह दहनं नेत्रसन्दीप्यमानं ॥
हूं-हूं हुङ्कारशब्दं प्रकटितगहनं गर्वितं
भूमिकम्पं ।
बं बं बं बाललीलं प्रणमत सततं भैरवं
क्षेत्रपालम् ॥६॥
सं सं सं सिद्धियोगं सकलगुणमयं देवदेवंप्रसन्नम्।
पं पं पं पद्मनाभं हरिहरवरदं चन्द्रसूर्याग्निनेत्रं
॥
यं यं यं यक्षनाथं सततभयहरं
सर्वदेवस्वरूपम् ।
रौं रौं रौं रौद्ररूपं प्रणमत सततं
भैरवं क्षेत्रपालम् ॥७॥
हं हं हं हसघोषं हसितकहकहाराव रौद्राट्टहाम्।
यं यं यं यक्षरूपं शिरसि कनकजं
मौकुटं सन्दधानम् ॥
रं रं रं रङ्गरङ्ग प्रहसितवदनं
पिङ्गलश्यामवर्णं।
सं सं सं सिद्धनाथं प्रणमत सततं
भैरवं क्षेत्रपालम् ॥८॥
॥फल-श्रुति॥
एवं वै भावयुक्त: प्रपठति मनुजो भैरवास्याष्टकं
यो ।
निर्विघ्नं दु:खनाशं भवति भयहरं
शाकिनीनां विनाशम् ॥
दस्युनां व्याघ्रसर्पोद्भवजनितभियां
जायते सर्वनाश:।
सर्वे नश्यन्ति दुष्टा ग्रहगणविषमा
लभ्यते चेष्टसिद्धि: ॥९॥
इति श्री विश्वसारोद्धारे क्षेत्रपाल भैरवाष्टक स्तोत्रम्॥
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