शिवस्तुति

शिवस्तुति

भगवान स्कन्द (कुमार कार्तिकेय) ने तारकासुर का वध करने के बाद एक परम शिव भक्त का वध करने का अपने आप को दोषी मानते हुए अत्यंत शोकाकुल होकर भगवान श्री शिव की स्तुति किया जिसका की स्कन्द पुराण के कुमारिकाखण्ड में यह शिव स्तुति का वर्णन है ।

 शिव स्तुति

श्रीशिवस्तुतिः स्कन्दप्रोक्तम्

स्कन्द उवाच -

नमः शिवायास्तु निरामयाय नमः शिवायास्तु मनोमयाय ।

नमः शिवायास्तु सुराचिताय तुभ्यं सदा भक्तकृपापराय ॥ १॥

स्कन्दजी बोले - जो सब प्रकार के रोग-शोक से रहित हैं, उन कल्याणस्वरूप भगवान शिव को नमस्कार है । जो सबके भीतर मनरूप से निवास करते हैं, उन भगवान शिव को नमस्कार है । सम्पूर्ण देवताओं से पूजित भगवान शंकर को नमस्कार है । भक्तजनों पर निरन्तर कृपा करनेवाले आप भगवान महेश्वर को नमस्कार है ॥ १॥

नमो भवायास्तु भवोद्भवाय नमोऽस्तु ते ध्वस्तमनोभवाय ।

नमोऽस्तु ते गूढमहाव्रताय नमोऽस्तु मायागहनाश्रयाय ॥ २॥

सबको उत्पत्ति के कारण भगवान भव को नमस्कार है। भगवन्! आप भव के उद्भव (संसार के स्रष्टा) हैं, आपको नमस्कार है । कामदेव का विध्वंस करनेवाले आपको नमस्कार है। आप गूढ़ भाव से महान व्रत का पालन करनेवाले हैं, आपको नमस्कार है । आप मायारूपी गहन वन के आश्रय हैं अथवा सबको आश्रय देनेवाला आपका स्वरूप योगमाया समावृत होने के कारण दुर्बोध है, आपको नमस्कार है ॥ २॥

नमोऽस्तु शर्वाय नमः शिवाय नमोऽस्तु सिद्धाय पुरातनाय ।

नमोऽस्तु कालाय नमः कलाय नमोऽस्तु ते कालकलातिगाय ॥ ३॥

प्रलयकाल में जगत का संहार करनेवाले । 'शर्व' नामधारी आपको नमस्कार है । शिवरूप आपको नमस्कार है। आप पुरातन सिद्धरूप हैं, आपको नमस्कार है । कालरूप आपको नमस्कार है। आप सबको कलना (गणना) करनेवाले होने के कारण काल नाम से प्रसिद्ध हैं, आपको नमस्कार है । आप काल की कला का अतिक्रमण करके उससे बहुत दूर रहते हैं, आपको नमस्कार है ॥ ३॥

नमो निसर्गात्मकभूतिकाय नमोऽस्त्वमेयोक्षमहर्द्धिकाय ।

नमः शरण्याय नमोऽगुणाय नमोऽस्तु ते भीमगुणानुगाय ॥ ४॥

आप स्वाभाविक ऐश्वर्य से सम्पन्न हैं, आपको नमस्कार है। आप अप्रमेय महिमावाले वृषभ तथा महासमृद्धि से सम्पन्न हैं, आपको नमस्कार है । आप सबको शरण देनेवाले हैं, आपको नमस्कार है। आप ही निर्गुण ब्रह्म हैं, आपको नमस्कार है । आपके अनुगामी सेवक भयानक गुणसम्पन्न हैं, आपको नमस्कार है ॥ ४॥

नमोऽस्तु नानाभुवनाधिकर्त्रे नमोऽस्तु भक्ताभिमतप्रदात्रे ।

नमोऽस्तु कर्मप्रसवाय धात्रे नमः सदा ते भगवन् सुकर्त्रे ॥ ५॥

नाना भुवनों पर अधिकार रखनेवाले आपको नमस्कार है । भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करनेवाले आपको नमस्कार है । भगवन्! आप ही कर्मो का फल देनेवाले हैं, आपको नमस्कार है। आप ही सबका धारण-पोषण करनेवाले धाता तथा उत्तम कर्ता है, आपको सर्वदा नमस्कार है ॥ ५॥

अनन्तरूपाय सदैव तुभ्यमसह्यकोपाय सदैव तुभ्यम् ।

अमेयमानाय नमोऽस्तु तुभ्यं वृषेन्द्रयानाय नमोऽस्तु तुभ्यम् ॥ ६॥

आपके अनन्त रूप हैं, आपका कोप सबके लिये असह्य है, आपको सदैव नमस्कार है । आपके स्वरूप का कोई माप नहीं हो सकता, आपको नमस्कार है । वृषभेन्द्र को अपना वाहन बनानेवाले आप भगवान महेश्वर को नमस्कार है ॥ ६॥

नमः प्रसिद्धाय महौषधाय नमोऽस्तु ते व्याधिगणापहाय ।

चराचरायाथ विचारदाय कुमारनाथाय नमः शिवाय ॥ ७॥

आप सुप्रसिद्ध महौषधरूप हैं, आपको नमस्कार है । समस्त व्याधियों का विनाश करनेवाले आपको नमस्कार है । आप चराचरस्वरूप, सबको विचार तत्त्वनिर्णयात्मिका शक्ति देनेवाले, कुमारनाथ के नाम से प्रसिद्ध तथा परम कल्याणस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है ॥ ७॥

ममेश भूतेश महेश्वरोऽसि कामेश वागीश बलेश धीश ।

क्रोधेश मोहेश परापरेश नमोऽस्तु मोक्षेश गुहाशयेश ॥ ८॥

प्रभो ! आप मेरे स्वामी हैं, सम्पूर्ण भूतों के ईश्वर एवं महेश्वर हैं । आप ही समस्त भोगों के अधिपति हैं। वाणी, बल और बुद्धि के अधिपति भी आप ही हैं । आप ही क्रोध और मोह पर शासन करनेवाले हैं । पर और अपर (कारण और कार्य) के स्वामी भी आप ही हैं । सबकी हृदयगुहा में निवास करनेवाले परमेश्वर तथा मुक्ति के अधीश्वर भी आप ही हैं, आपको नमस्कार है ॥ ८॥

ये च सायं तथा प्रातस्त्वत्कृतेन स्तवेन माम् ।

स्तोष्यन्ति परया भक्त्या श्रृणु तेषां च यत्फलम् ॥ ९॥

न व्याधिर्न च दारिद्र्यं न चैवेष्टवियोजनम् ।

भुक्त्वा भोगान् दुर्लभांश्च मम यास्यन्ति सदा ते ॥ १०॥

शिवजी ने कहा - जो लोग सायंकाल और प्रातःकाल पूर्ण भक्तिपूर्वक तुम्हारे द्वारा को हुई इस स्तुति से मेरा स्तवन करेंगे, उनको जो फल प्राप्त होगा, उसका वर्णन करता हूँ, सुनो-उन्हें कोई रोग नहीं होगा, दरिद्रता भी नहीं होगी तथा प्रियजनों से कभी वियोग भी न होगा । वे इस संसार में दुर्लभ भोगों का उपभोग करके मेरे परमधाम को प्राप्त करेंगे ॥ ९-१०॥

॥ इति श्रीस्कन्दमहापुराणे कुमारिकाखण्डे शिवस्तुतिः सम्पूर्णा ॥

॥ इस प्रकार श्रीस्कन्दमहापुराण के कुमारिकाखण्ड में शिव स्तुति सम्पूर्ण हुई ॥

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