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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
श्रीकृष्ण कवचम्
इस श्रीकृष्ण कवचम् को गर्गसंहिता
के गोलोकखण्ड में 13 । 15-24दिया गया है, जिसे गोपियों ने पाठ किया। यह
श्रीकृष्ण-कवच सबकी रक्षा करने वाला,विशेषकर बच्चों के लिए परम दिव्य है।
श्रीकृष्ण कवचम्
सर्वतो बालकं नीत्वा रक्षां
चक्रुर्विधानतः ।
कालिंदीपुण्यमृत्तोयैर्गोपुच्छभ्रमणादिभिः
॥
गोमूत्रगोरजोभिश्च स्नापयित्वा
त्विदं जगुः ॥
॥ श्रीगोप्यच ऊचुः ॥
श्रीकृष्ण्स्ते शिरः पातु वैकुण्ठः
कण्ठमेव हि ।
श्वेतद्वीपपतिः कर्णौ नासिकां
यज्ञरूपधृक् ।
नृसिंहो नेत्रयुग्मं च जिह्वां
दशरथात्मजः ।
अधराववतात्ते तु नरनारायणावृषी ॥
कपोलौ पान्तुर ते साक्षात्
सनकाद्याः कला हरेः ।
भालं ते श्वेतवाराहो नारदो
भ्रूलतेऽवतु ॥
चिबुकं कपिलः पातु दत्तात्रेय
उरोऽवतु ।
स्करन्धौ द्वावृषभः पातु करौ
मत्स्यः प्रपातु ते ॥
दोर्दण्डं सततं रक्षेत् पृथुः
पृथुलविक्रमः ।
उदरं कमठः पातु नाभिं
धन्वन्तरि्च्श्र ते ॥
मोहिनी गुह्यदेशं च कटिं ते
वामनोऽवतु ।
पृष्ठं परशुरामश्च तवोरू बादरायणः ॥
बलो जानुद्वयं पातु जंघे बुद्धः
प्रपातु ते ।
पादौ पातु सगुल्फौ। व
कल्किर्धर्मपतिः प्रभु ॥
सर्वंरक्षाकरं दिव्यं श्रीकृष्ण कवचं परम् ।
इदं भगवता दत्तं ब्रह्मणे नाभिपंकजे
॥
ब्रह्मणा शम्भ्वे दत्तं
शम्भुार्दुर्वाससे ददौ ।
दुर्वासाः श्रीयशोमत्यैब
प्रादाच्छ्रीरनन्दमन्दिरे ॥
अनेन रक्षां कृत्वा स्या गोपीभिः
श्रीयशोमती ।
पाययित्वा स्तीनं दानं विप्रेभ्यः प्रददौ महत् ॥
श्रीकृष्णकवचम् गर्गसंहितान्तार्गत भावार्थ
सर्वतो बालकं नीत्वा रक्षां
चक्रुर्विधानतः ।
कालिंदीपुण्यमृत्तोयैर्गोपुच्छभ्रमणादिभिः
॥
गोमूत्रगोरजोभिश्च स्नापयित्वा
त्विदं जगुः ॥
बच्चे को ले जाकर गोपियों ने सब ओर
से विधिपूर्वक उसकी रक्षा की। यमुनाजी की पवित्र मिट्टी लगाकर उसके ऊपर यमुना-जल
का छींटा दिया, फिर उसके ऊपर गाय की पूँछ
घुमायी। गोमूत्र और गोरजमिश्रित जल से उसको नहलाया और निम्नांकित रूप से कवच का
पाठ किया।
॥ श्रीगोप्यच ऊचुः ॥
श्रीकृष्ण्स्ते शिरः पातु वैकुण्ठः
कण्ठमेव हि । श्वेतद्वीपपतिः कर्णौ नासिकां यज्ञरूपधृक् ।
नृसिंहो नेत्रयुग्मं च जिह्वां
दशरथात्मजः । अधराववतात्ते तु नरनारायणावृषी ॥
श्री गोपियाँ बोलीं – मेरे लाल ! श्रीकृष्ण तेरे सिर
की रक्षा करें और भगवान वैकुण्ठ कण्ठ की। श्वेतद्वीप के स्वामी दोनों कानों की,
यज्ञरूपधारी श्रीहरि नासिका की, भगवान नृसिंह
दोनों नेत्रों की, दशरथ नन्दन श्रीराम जिह्वाकी और नर-नारायण
ऋषि तेरे अधरों की रक्षा करें।
कपोलौ पान्तुर ते साक्षात्
सनकाद्याः कला हरेः । भालं ते श्वेतवाराहो नारदो भ्रूलतेऽवतु ॥
साक्षात श्रीहरि के कलावतार
सनक-सनन्दन आदि चारों महर्षि तेरे दोनों कपोलों की रक्षा करें। भगवान श्वेतवाराह
तेरे भालदेश की तथा नारद दोनों भ्रूलताओं की रक्षा करें।
चिबुकं कपिलः पातु दत्तात्रेय
उरोऽवतु । स्करन्धौ द्वावृषभः पातु करौ मत्स्यः प्रपातु ते ॥
भगवान कपिल तेरी ठोढ़ी को और
दत्तात्रेय तेरे वक्षःस्थल को सुरक्षित रखें। भगवान ऋषभ तेरे दोनों कन्धों की और
मत्स्य भगवान तेरे दोनों हाथों की रक्षा करें।
दोर्दण्डं सततं रक्षेत् पृथुः
पृथुलविक्रमः । उदरं कमठः पातु नाभिं धन्वन्तरि्च्श्र ते ॥
पृथुल-पराक्रमी राजा पृथु सदा तेरे
बाहुदण्डों को सुरक्षित रखें। भगवान कच्छप उदर की और धंवंतरी तेरी नाभि की रक्षा
करें।
मोहिनी गुह्यदेशं च कटिं ते
वामनोऽवतु । पृष्ठं परशुरामश्च तवोरू
बादरायणः ॥
मोहिनी रूपधारी भगवान तेरे गुह्यदेश
को और वामन तेरी कटि को हानि से बचायें। परशुरामजी तेरे पृष्ठभाग की और बादरायण
व्यास जी तेरी दोनों जाँघों की रक्षा करें।
बलो जानुद्वयं पातु जंघे बुद्धः
प्रपातु ते । पादौ पातु सगुल्फौ व कल्किर्धर्मपतिः प्रभु ॥
बलभद्र दोनों घुटनों की और बुद्धदेव
तेरी पिंडलियों के रक्षा करें। धर्म पालक भगवान कल्कि गुल्फों सहित तेरे दोनों
पैरों को सकुशल रखें ।
सर्वंरक्षाकरं दिव्यं श्रीकृष्ण कवचं परम् । इदं भगवता दत्तं
ब्रह्मणे नाभिपंकजे ॥
यह सबकी रक्षा करने वाला परम दिव्य ‘श्रीकृष्ण-कवच’ है। इसका उपदेश भगवान विष्णु ने अपने
नाभि कमल में विद्यमान ब्रह्माजी को दिया था।
ब्रह्मणा शम्भ्वे दत्तं
शम्भुार्दुर्वाससे ददौ । दुर्वासाः श्रीयशोमत्यैब प्रादाच्छ्रीरनन्दमन्दिरे ॥
ब्रह्माजी ने शम्भु को,
शम्भु ने दुर्वासा को और दुर्वासा ने नन्द मन्दिर में आकर श्रीयशोदा
जी को इसका उपदेश दिया था।
अनेन रक्षां कृत्वा स्या गोपीभिः
श्रीयशोमती । पाययित्वास्तीनं दानं विप्रेभ्यः प्रददौ महत् ॥
इस कवच के द्वारा गोपियों सहित श्री
यशोदा ने नन्दनन्दन की रक्षा करके उन्हें अपना स्तन पिलाया और ब्राह्मणों को
प्रचुर धन दिया ।
इति गर्गसंहिता, गोलोकखण्ड 13 । 15-24 श्रीकृष्ण कवचम् समाप्त ॥
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