दशगात्र श्राद्ध

दशगात्र श्राद्ध

दशगात्र श्राद्ध में जिस व्यक्ति या स्त्री की मृत्यु हो गई हो उसके नवीन शरीर निर्माण हेतु तीसरे दिन से दसवें दिन तक दस पिण्ड को मुखाग्नि देनेवाला नियम और पवित्रता से करे, क्योंकि बिना दशगात्र श्राद्ध के मृतक को नवीन शरीर प्राप्त नहीं होता है।

मृतक को अग्नि देनेवाला अपने परिवार वालों के साथ गंगा अथवा नदी या जलाशय के किनारे में जाये और आत्मशुद्धि के लिए स्नान करे। तदुपरान्त पिण्डदान करने के लिये अग्नि को प्रज्वलित कर उसमें दूध, चावल और शक्कर से निर्मित खीर को बनावे और उसके द्वारा पिण्डदान करे। (खीर से निर्मित पिण्ड को प्रदान करने से पितर तृप्त होते हैं, इसमें सन्देह नहीं है) किन्तु आज के समय में अधिकांश स्थानों पर जौ के आटे में काला तिल, शहद आदि मिलाकर पिण्डदान हो रहा है।

दशगात्रश्राद्धम्

दशगात्रश्राद्धम्

दशगात्र श्राद्ध विधि

दशगात्र की सामग्री लेकर ग्राम के बाहर पीपल वृक्ष के पास नदी तालाब के समीप श्राद्ध भूमि बनाकर पिण्डदान की व्यवस्था कर कर्मकर्ता शिखा खोलकर स्नान के लिए संकल्प करें। अपसव्य हो कुश तिल जल हाथ में रखें

अद्येत्यादि अमुकगोत्रस्यामुकप्रेतस्य (स्त्री हो तो) गोत्रायाः प्रेतायाः (ऐसा हर जगह संकल्प में कहें) प्रेतत्वनिवृत्तये उत्तमलोकप्राप्त्यर्थं च करिष्यमाण प्रथमदिनकृत्यर्थं (जितना दिन हो वैसा कहे) स्नानमहं करिष्ये ।

स्नान के बाद तिलाञ्जलि देवें- अद्येत्यादि. अमुकगोत्रस्यामुकप्रेतस्य चितादाहजनिततापशमनार्थ प्रथमदिनसमन्धि एष तिलतोयाञ्जलिर्मयादीयते तवोपतिष्ठताम् ।

(तिलतोय अंजलि दश दिन तक प्रत्येक दिन एक एक अंजली बढ़ाकर देवें) अंजलि के पश्चात् चतुर्दश यम तर्पण, कर देवें।

चतुर्दश यम तर्पण-

ॐ यमाय नमः 3 ॐ धर्मराजाय नमः 3 ॐ मृत्युवे नमः 3 ॐ अन्तकाय नमः 3 ॐ वैवश्वताय नमः 3 ॐ कालाय नमः 3 ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः 3 ॐ औदुम्बराय नमः 3 ॐ दध्नाय नमः 3 ॐ नीलाय नमः 3 ॐ परमेष्ठिने नमः 3 ॐ वृकोदराय नमः 3 ॐ चित्राय नमः 3 ॐ चित्रगुप्ताय नमः 3

इस प्रकार अपसव्य हो कुशतिल सहित यम तर्पण देवें।

चितानल विधि-

यह कार्य प्रथम दिन से दश दिन तक का है। जहां पिण्ड देना हो वहां भूमि लेपन कर यव का चूर्ण लेकर उसमें तिल डालकर पिण्ड बना देवे यह कार्य चतुर्थ दिन से दशम दिन तक करना है, यदि चौथा दिन हो तो चार अथवा जितने दिन मृतक के हो गये हो उतने ही पिण्ड का निर्माण करे। सिर्फ दसवें दिन उड़द की दाल के चूर्ण का पिण्ड बनाना।

घण्ट दीप-यथा सम्भव पीपल वृक्ष की शाखा पर शरीर की संकल्पना करते हुए जल पूर्ण मिट्टी का घड़ा लटका कर घड़े में नीचे छिद्र कर ऐसी व्यवस्था करे, जिससे जल बूंद-बूंद टपकता रहे। घट के ऊपर दीपक स्थापित करें। अथवा त्रिकाष्ट के ऊपर घट को स्थापित कर उसमें दूध और जल डाल दें-जिसकी जल धारा नीचे रखे चीता भस्म अथवा कुश के बनाये प्रेत पर बूंद- बूंद पड़ती रहे-

घट पूजन- अकामेतु निरालम्बो वायुभूत निराश्रय ।

              प्रेतघंटो मयादत्तस्तवैष उपतिष्ठताम् ।।

             चितानल प्रदग्धोऽसि परित्यक्तोऽसिबान्धवैः।

        इदं नीरमिदं क्षीरं अत्र स्नाहि इदं पिब ।।

प्रेत स्थापित करने के लिए पूर्व से पश्चिम दिशा में वेदी बनायें। कर्मकर्ता कुशा के आसन पर बैठे, कर्मकर्ता के ब्राह्मण गंगा की मिट्टी से ललाट, हृदय, नाभि, कंठ, पृष्ठ, दोनों भुजा पीठ, दोनों कानों, मस्तक पर तिलक लगा लेवें। ब्राह्मण मंत्र भी बोले।

तिलकं च महत्पुण्यं पवित्रं पापनाशनम् ।

आपदां हरते नित्यं ललाटे हरिचन्दनम् ।।

 अब कर्मकर्ता दो कुशा की पवित्री दाहिने हाथ की अनामिका तथा तीन कुशा की पवित्री बायें हाथ की अनामिका में पहन लें। नीवी बन्धन कर ले शिखा तथा आसन में भी कुशा रख ले, आचमन शिखाबन्धन प्राणायाम कर बांये हाथ में जल लेकर ॐ अपवित्रः0 मन्त्र से शरीर में छीटें देवें

दशगात्र श्राद्ध

श्राद्ध भूमि पूजन

अब जल लेकर कर्मकर्ता श्राद्ध हेतु संकल्प करें

देशकालौ सङ्कीर्त्य अमुकवासरे अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्व विमुक्तये सद्गतिप्राप्त्यर्थे प्रथमदिवसादारम्य दशमाह्निक-श्राद्धमहं करिष्ये ।।

चितानल पूजन हेतु संकल्प करे-

अद्येत्यादि. अमुकगोत्रस्यामुकप्रेतस्य चितादाहोपशमनार्थं प्रेतत्वविमुक्तये दशगात्रनिष्पत्यर्थञ्च प्रथमदिन सम्बन्धि रौरवनामनरकोत्तारणाय विष्णुस्वरूपचितानलपूजनं करिष्ये ।।

कर्मकर्ता पूर्व मुंह हो हाथ जोड़ के पितृगायत्री का स्मरण करे

ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च ।

नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमोनमः।।

अपसव्य होकर बांया घुटना मोड़कर दातुन हाथ में लेकर दक्षिण मुंह हो घड़े में डाल दें-

ॐ अद्यामुकगोत्रामुकप्रेतशौचार्थे प्रथमदिनसम्बन्धितदन्तधावनं काष्ठमेतन्मयादीयते तवोपतिष्ठताम् ।

थोड़ी मिट्टी भी घड़े में छोड़ दें। सव्य होकर चितानल का पूजन कर दें

विष्णुस्वरूप-चितानलाय नमः गन्धाक्षतं पुष्पाणि धूपदीपनैवेद्यं दक्षिणा च समर्पयामि।

ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे त्रेधानिदधे पदम् ।

समूढमस्य पा सुरे स्वाहा । विष्णवे नमः।

पूजन कर प्रार्थना कर दें-

ॐ अनादि निधनो देव शंखचक्र गदाधरः।

अक्षय पुण्डरीकाक्ष प्रेतमोक्ष प्रदोभव ।।

ॐ अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका ।

पुरी द्वारावती ज्ञेया सप्तैता मोक्ष दायिकाः।।

प्रार्थना कर अपसव्य होकर दक्षिण मुख कर बांया घुटना टेककर तिल जल से घड़े के ऊपर तर्पण दें-

ॐ यमाय नमः 3 ॐ धर्मराजाय नमः 3 ॐ मृत्युवे नमः 3 ॐ अन्तकाय नमः 3 ॐ वैवस्वताय नमः3 ॐ कालाय नमः 3 सर्वभूतक्षयाय नमः 3 ॐ औदुम्बराय नमः 3 दध्ने नमः 3 ॐ नीलाय नमः 3 ॐ परमेष्ठिने नमः 3 ॐ वृकोदराय नम:3 ॐ चित्राय नमः 3 ॐ चित्रगुप्ताय नमः ।।

चितानल पूजन कर पिण्ड बेदी के पास आ जाये।

दशगात्र श्राद्ध

पिण्डदान (मलिनषोडशी)

प्रेत शरीर पिण्ड निर्माण प्रक्रिया के दौरान 10 दिन के अशौचकाल में जो पिण्डदान/श्राद्ध कर्म अनिवार्यतः किये जाते है, वह मलिन षोडशी के अन्तर्गत किया जाता है। वह सभी मृतकों के लिए अनिवार्य है। इसी के द्वारा प्रेत के पिण्ड निर्माण के दश गात्र के रूप में सम्पूर्ण दश पिण्ड से पिण्ड शरीर निर्माण को सम्पन्न कराये। कर्म पात्र स्थापित कर उसमें जल दूध आदि निम्नलिखित मन्त्रों से छोड़े।

जल- ॐ शन्नोदेवि रभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंयोरभिस्रवन्तु नः।

दूध- ॐ पयः पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे

        पयोधाः पयस्वती: प्रदिशः सन्तु मह्यम् ।।

तिल- ॐ तिलोसि सोमदैवत्यो गोसवो देव निर्मितः।

       प्रलमद्भि पृक्तः स्वधयापितृलोकान्प्रीणाहि नः।।

यव- ॐ यवोऽसियवयास्मद्वेशोयवयाराती:

कुश- ॐ पवित्रेस्थो वैष्णव्यो सवितुर्वः प्रसवः।।

उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः

तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्कामः पुनेतच्छकेयम् ।।

कुशा से जल को हिला लेवे-

ॐ यद्देवादेवहेडनं देवाशश्चकृमाव्ययम् ।

अग्निर्मा तस्मादेनसो विश्वान् मुञ्चत्व हसः।।१।।

यदि दिवा यदिनक्तमेनांसि च कृमा वयम् ।

वायुर्मा तस्मादेनसो विश्वान मुञ्चत्व हसः।।२।।

यदि जाग्रद्यपि स्वप्न एनांसि च कृमा वयम् ।

सूर्यो मा तस्मादेनसो विश्वान मुञ्चत्वं हसः।।३।।

इस जल से कुशा के द्वारा सब सामग्री पर छोटा देकर संकल्प करें, तिल जल कुशा हाथ में लेवें।

अद्येत्यादि. अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वविमुक्तये प्रथमदिन सम्बन्धि रौरवनाम नरकोत्तारणाय मूर्धावयवनिष्पत्यै शिरः पूरक पिण्ड दानंकरिष्ये।

अपसव्य होकर बांये पैर को जमीन पर टेक कर दक्षिण मुंह हो तिल जल हाथ में लेकर संकल्प करे-

 अद्यामुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रथमदिनसम्बन्धि शिरः पूरक पिण्डस्थाने इदमासनं मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।

प्रेत के लिए एक कुश पर गांठ बांध कर प्रेत को स्थापित करे

गतोऽसि दिव्यलोकांस्त्वं कर्मणा प्राप्त सत्पथः।

मनसा वायु रूपेण कुशे त्वां विनियोजये ।।

प्रेत के पैर धोने के लिए कर्म कर्ता जल तीन बार देवे-

एतत्ते पाद्यं पदावनेजनं पादयोः। पादप्रक्षालनम् ।।

एक पत्ते में जल लेकर दूध, तिल, पुष्प से अर्घ्यपात्र बनाये कुशा की चट पर डालें।

अमुक गोत्रस्य अमुकप्रेतस्य इदं हस्ताय॑मुपतिष्ठताम् ।

स्नान के लिए जल चढ़ावें- स्नानमुपतिष्ठताम् ।।

तीन सूत का तागा चढ़ावें- एतत्ते वासः उपतिष्ठताम् ।।

ऊर्ण सूत्र चढ़ावे- एतत्ते ऊर्णसूत्रः उपतिष्ठताम् ।

तर्जनी अंगुली से चन्दन चढ़ावे- चन्दनमुपतिष्ठाम् ।।

तिल अक्षत- एतानि अक्षतानि उपतिष्ठताम्।।

राल का धूप दे - एतत्ते धूपमुपतिष्ठाम् ।

दीप दिखावे- एतत्ते दीपमुपतिष्ठाम् ।।

नैवेद्य चढ़ा देवे- नैवेद्यमुपतिष्ठताम् ।

दक्षिणा चढ़ा देवे- दक्षिणामुपतिष्ठताम् ।

ताम्बूल चढ़ा देवे- ताम्बूलमुपतिष्ठताम् ।

जल चढ़ा देवें- पिण्डस्थाने अवनेजनं तवोपतिष्ठताम् ।

पहले दिन का पिण्ड तिल कुश जल के साथ हाथ में लेकर संकल्प

अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य शिरः पूरकः एषः।

प्रथमदिवसीयः पिण्डोमयादीयते तवोपतिष्ठताम् ।।

ऐसा कहकर अंगूठे की तरफ से पिण्ड को वेदी के कुश के ऊपर रख दें। फिर एक दोने में जल लेकर पिण्ड के ऊपर अंगूठे की ओर से जल धारा दें

अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य तेऽवनेजनं मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।।

दशगात्रश्राद्धम्

पिण्ड पूजन

पिण्ड के ऊपर पूजन के लिए निम्न सामग्री चढ़ा दे

स्नानीय जल- पिण्डोपरि स्नानीयजलं उपतिष्ठताम् ।

कार्पास सूत्र-पिण्डिोपरि कार्पाससूत्रं उपतिष्ठताम्।

ऊर्ण सूत्र- पिण्डोपरि ऊर्णसूत्रम् उपतिष्ठताम् ।

चन्दन- पिण्डोपरि चन्दन उपतिष्ठताम् ।

तिलाक्षत- पिण्डोपरि तिलाक्षतम् उपतिष्ठताम् ।

पुष्प- पिण्डोपरि पुष्पम् उपतिष्ठताम् ।

भृंगराजपत्र- पिण्डोपरि भृगराजम् दीयते तवोपतिष्ठताम्

रालधूप- पिण्डोपरि रालधूपमुपतिष्ठताम् ।

दीप- दीपमुपतिष्ठताम् ।

नैवैद्य -एतत्ते नैवेद्यमुपतिष्ठताम् ।

दक्षिणा- दक्षिणाचोपतिष्ठाताम् ।

हल्दि- चर्मपूरक हरिद्राग्रन्थिः तवोपतिष्ठताम् ।

मजीठ- रक्तपूरितं मंजिष्ठा तवोपतिष्ठताम् ।

खस- नासाजालोत्पादक खशं तवोपतिष्ठताम् ।

कमलगट्टा-षट्चक्रपूरक कमलबीजं तवोपतिष्ठताम् ।

आंवला- वीर्यपूरकधात्रीफलं तवोपतिष्ठताम् ।

शतावरी- दन्तोत्पादकानिशतावरीमूलानि उपतिष्ठताम् ।

तिलतोय पात्र हाथ में लेकर निम्न मंत्र से पिण्ड के ऊपर देवे

अमुकगोत्रः अमुकप्रेत: चितादाहजनिततापतृषोपशमनाय प्रथमदिनसम्बन्धित एतत् तिलतोयं मद्दतं तवोपतिष्ठताम्।

तिलतोयाञ्जलि प्रथम दिन एक-दूसरे दिन दो के क्रम से दें।

प्रार्थना- ॐ अनादि निधनो देवः शंखचक्र गदाधरः।

          अक्षय पुण्डरीकाक्षः! प्रेतमोक्ष प्रदोभव ।।

           ॐ अतसी पुष्प संकाशं पीतवास समन्वितम् ।

           धर्मराज! नमस्तुभ्यं प्रेतमोक्षप्रदो भव ।।

पिण्ड देकर कर्मकर्ता 'प्रेताप्यायनमस्तु' कहकर पिण्ड जल में डालकर स्नान कर ले और घर आकर स्वयं भोजन बनाकर तीन बलि अपसव्य होकर दक्षिणमुख हो देवे

दशगात्रश्राद्धम्

कागग्रास- काकोसि यम दूतोसि गृहाण बलिमुत्तमाम् ।

             ममद्वारगतं प्रेतं त्वमाप्यायितुमर्हसि ।।

गोग्रास- सौरभे या सर्वहिता पवित्रा पुण्यराशयः।

प्रतिगृहणन्तु में ग्रासं गावस्त्रैलोक्य मातरः।।

श्वानग्रास- द्वौ श्वानौ श्यामशबलौ वैवश्वतकुलोद्भवौ ।

             ताभ्यामन्नं प्रदास्यामि स्यातामेतावहिंसकौ ।।

तीनों ग्रास देकर जल छोड़ दें।

अव कमकर्ता स्वयं भी भोजन कर ले सायंकाल को मृतक के लिए एक दीप जलाकर कहे-

अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य प्रथमदिननिमित्त- प्रेतलोकादित्यवद् द्यौतनकामः इमं दीपं विष्णु दैवतं न मम।।

दीप देकर प्रार्थना करे

ॐ शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं

विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम् ।

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम

वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ।।

इस प्रकार प्रथम दिन का पिण्ड, चितानल पूजन पूर्ण हुआ, दसवें दिन तक इसी क्रम में पिण्ड दान देना है प्रत्येक दिन पिण्ड देने में असुविधा हो तो यह कार्य दशवें दिन ही किया जा सकता है, ऐसा विद्वानों का मत है। दूसरे दिन से शरीर पूरक तथा नरक तारण के लिए संकल्प अलग-अलग है। दूसरे दिन से दस दिन तक के संकल्प इस प्रकार है। अलग-अलग दे रहें है। जितना दिन हो उसका संकल्प पिण्डदान में कहे

दशगात्रश्राद्ध

दूसरे दिन से दस दिन के पिण्डदान संकल्प

2. अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य द्वितीयदिने योनिपुंसनाम नरकोत्तारणाय

 चक्षुश्रोत्रनासिकासम्भूत्यै एषः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।।

3. अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनाम प्रेतस्य तृतीयदिने महारौरव नाम नरकोत्तारणाय

 भुजवक्षोग्रीवामुखावयव निष्पत्यर्थं एषः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।

4. अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य चतुर्थदिने तामिस्र नाम नरकोत्तारणाय

  उदरनाभि गुदवस्थि मेढ्य सम्भूत्यै एषः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।

5. अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य पंचमदिने अन्धतामिस्र नाम नरकोत्तारणाय

    गुल्फउरुजानुजंघाचरणसम्भूत्यै एषः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।

6. अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य षष्ठे दिने संभ्रमनामनरकोत्तारणाय

  सर्वमर्म सम्भूत्यै एषः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।

7. अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य सप्तमे दिने अमेढ्यक्रमीनाम नरकोत्तारणाय

   अस्थिमज्जाशिरा पूरणाय एषः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।

8. अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामपे तस्य अष्ट मे दिने पुरीषभक्षणनामनरकोत्तारणाय

   नखदन्तरोमकेशपूर्णाय एषः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।

9. अद्यामु कगोत्रस्य अमुकनामपेतस्य नवमे दिने स्वमांसभक्षणनामनरकोत्तारणाय

            वीर्यपूर्णाय एषः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।

10. उड़द पिण्ड-अद्यामुकगोत्रस्य अमुकनामप्रेतस्य दशमे दिने कुम्भीपाकनामनरकोत्तारणाय

     क्षुत्पिपासापूर्णाय एषः पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।

घट आदि का विसर्जन- दसवें दिन का कार्य पूर्ण होने पर दशगात्र के पहने हुए वस्त्र, यज्ञोपवीत कर्मकर्ता छोड़ कर नये वस्त्र पहन लें कुम्भ तथा वेदी, पिण्ड को जल में विसर्जन कर दे। अपने देशाचार द्वारा कर्मकर्ता पुनर्मुण्डन भी करा लेवे घर की शुद्धि भी कर दें दधि दुर्वा का स्पर्श करे तथा कर्म कर्ता ब्राह्मण हो तो अग्नि का, क्षत्रिय हो तो वाहन या आयुध का, वैश्य हो तो सोने का, तथा शूद्र हो तो वृषभ का स्पर्श कर लें।

इतिः दशगात्रश्राद्धम्

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