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कर्मकाण्ड

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सपिण्डन श्राद्ध

सपिण्डन श्राद्ध

प्रेत(जीव) की प्रेतत्व से निवृति के लिए किया जाने वाला कर्म सपिण्डन श्राद्ध कहलाता है। 

सपिण्डन श्राद्ध

सपिंडन श्राद्ध

इस पित्रृपक्ष अपने पितरों को सपिण्डन श्राद्ध देकर पितरदेव बनावें और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करें।

आजकल प्रायः देखा जा रहा है कि उनके यहाँ या तो कोई संतान ही नहीं है और जिनके यहाँ संतान है तो वे पैशाचिक प्रवृति के हैं, संतान संस्कारवान नहीं है। बड़े-बुजुर्गों,माता-पिता,गुरुजनों का सम्मान नहीं करते। गलत संगत में पड़कर पैशाचिक कर्म किये जा रहे हैं । घर में क्लेश, लड़ाई-झगड़े का वातावरण है, तो कोई संतान न होने से दुखी है। कई पूजा-पाठ, व्रत आदि कर लिए फिर भी दुखी है, हताश-निराश होकर ज्योतिषियों के पास अपने या संतान की कुंडली लेकर जाते हैं। ज्योतिषि उनसे उनकी कुंडली में पितृदोष होना बतलाते हैं, तो वे सोचने लग जाते हैं कि हमने तो अपने दिवंगत का विधान से अर्ध्दैहिक सहित सभी संस्कार कराये, जलांजलि आदि दिया। फिर हमारे या हमारे संतान पर कैसे पितृदोष आया? अतः इस लेख का उद्देश्य इन्हीं समस्याओं से मुक्ति के लिए है।

सपिण्डन श्राद्ध

जब किसी प्राणी(मानव) की मृत्यु हो जाती है तो सर्वप्रथम अंत्येष्ठी कर्म के पश्चात् जो दशगात्र,एकादशाह और वार्षिकश्राद्ध आदि कर्मों में पिंडदान किया जाता है, गरुड़पुराण अनुसार इससे जीव को पिंडज शरीर की प्राप्ति होती है, जिससे की वे अपना आगे की यात्रा प्रारम्भ करता है। यह जो श्राद्ध-तर्पण,जलांजलि,पिंडदान आदि जो किया जाता है उसमें हम उस जीव को प्रेत संज्ञा से देते हैं, अतः हमारा वह पित्रृ अभी प्रेत है, पित्रृदेव(पितरदेव) वह अभी नहीं बना है। हमारे द्वारा दिए गए पिण्ड,जल को वह क्षुधा तृप्ति के लिए पिशाचों की भांति ग्रहण करते रहेगा। अतः वह यदि हमें आशीष भी देगा तो पैशाचिक। या कहीं उनका जन्म भी होगा तो वह पैशाचिकवृत्ति के साथ ही होगा, और यदि कहीं हम अपने उस दिवंगत जीव को श्राद्ध-तर्पण, जलांजलि, पिंडदान आदि नहीं देते हैं तो भी उनके कोप से पितृदोष निर्मित होगा, परिणामस्वरूप हमारे यहाँ क्लेश आदि की बढ़ोत्तरी होगा। अतः हमारे वेदों-पुराणों में सपिण्डन श्राद्ध भी करने को कहा गया है, जिससे की हमारा वह पित्रृ हमारे अन्य पितरों के साथ मिल जावें और पित्रृदेव(पितरदेव) बनकर हमें शुभ आशीष प्रदान करें।

सपिण्डन श्राद्ध

कलियुग में धर्म की अनित्यता, पुरुष की आयु कम होने से, शरीर के स्थिर न होने से विष्णु भगवान ने धर्म शास्त्र के अनुसार चारों वर्गों को बारहवें दिन सपिण्डन कहा है। मृत्यु से द्वादशाह के दिन तक का श्राद्ध,पिंडदान आदि जो की अस्थि पूजा कहलाता है,महापात्रा करवाते हैं। द्वादशाह के उपरांत पाक्षिक,मासिक, वार्षिकश्राद्ध अथवा पित्रृपक्ष में किया जाने वाला सपिण्डन श्राद्ध आदि कर्मकाण्डी आचार्य करवाते हैं।

सपिण्डन श्राद्ध विधि

प्रात: स्नानादि नित्यक्रियाकर मध्याह्न में कर्मकर्ता श्वेतवस्त्र धारण कर श्राद्ध भूमि को गोबर से लीपकर कर्मपात्र को जल से भर उसमें गन्ध तिल पुष्प डालकर कुशा से हिला देवे- ॐ अपवित्र0 मंत्र से अपने शरीर तथा श्राद्धवस्तु को छींटा देवे-ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।।

श्राद्ध भूमि का पूजन कर लेवे-

ॐ भगवत्यैगयायै नमः।। 

ॐ भगवत्यै गदाधराय नमः।। 

ॐ श्राद्धस्थलभूम्यै नमः।।

तीन कुश, तिल, जल हाथ में लेकर कर्मकर्ता संकल्प करें-

अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वनिवृत्तये सद्गतिप्राप्तर्थे सपिण्डीकरणश्राद्धमंहकरिष्ये।।

पितृगायत्री स्मरण तीन बार करें-

ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्यएव च ।

नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।।

अपसव्य होकर दिशाओं में यव बिखेर दें-

ॐ नमो नमस्तेगोविन्द! पुराणपुरुषोत्तम!।

इदंश्राद्धं हृषीकेश! रक्षतां सर्वतो दिशः।।

कर्मकर्ता बायें कमर भाग में सुपारी, कुश, पैसा,यव में दबा ले (नीवीबन्धन)-

ॐ निहन्मि0 मंत्र से नीवी बन्धन करे।

एक कुशा आसन पर तथा एक कुशा शिखा में रख बायें हाथ में तीन कुशा तथा दांयें हाथ में दो कुशा की पवित्री पहन कर-एक दोने में जल रख कुशा से हिला लेवें-

ॐ येद्दवा देवहेडनं देवासश्चकृमा वयम् ।

अग्निर्मातस्मादेनसो विश्वान् मुञ्चत्वहसः।।1।।

ॐ यदि दिवा यदि नक्ततमेनासिचकृमा वयम् ।

वायुर्मा तस्मादेनसो विश्वान् मुञ्चवहसः ।।2।।

यदिजाग्रद्यदिस्वप्न एनासि चकृमा वयम् ।

सूर्यो मातस्मादेनसो विश्वान् मुञ्चन्त्वहसः।।3।।

जल के छीटे पाक सामग्री एवं पूजन सामग्री पर देवें-

ॐ उदक्यादि दुष्टदृष्टिपातात् शूद्रादि।

संपर्कदोषाच्च पाकादीनां पवित्रतास्तु।।

उत्तर मुंह कर कर्मकर्ता विश्वेदेवा के लिए आसन हेतु तीन कुश, जल, तिल ले संकल्प करें-

अद्यास्मपितामहादित्रयश्राद्धसंबधिनः कामकाल संज्ञकान् विश्वान्देवानावाहयिष्ये।।

जल विश्वेदेवा वेदी में छोड़ यव बिखेर दें।

ॐ विश्वेदवा स आगत श्रृणुताम्ऽ इम हवम् ।

एदंवर्हिर्निषीदत ।।

ॐ यवोऽसियवयास्मद्वेषोयव यारातीः।।

विश्वेदेवा आवाहान आगच्छतु महाभाग

विश्वेदेवा महाबलाः।

ये यत्र विहिताः श्राद्धे सावधाना भवन्तु ते।।

एक पत्ते पर कुश, जल छोड़कर निम्न मंत्र पढ़े।

ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय ऽ आपोभवतुपीतये।

शय्योरभिस्रवंतुनः।।

पत्ते पर जौ डाल दें-

ॐ यवो ऽसि यवयास्मद्वेषो यवयारातीः।।

यव डालकर चुपचाप उसमें गन्ध पुष्प तुलसीदल भी डाल दे। कुश से अर्घ्यपात्र को अभिमंत्रित करे

ॐ यादिव्याऽ आपः पयसासंबभूवुर्या ऽ आन्तरिक्षा ऽ उत पार्थिवीर्याः ।

हिरण्यवर्णा यज्ञियास्तानऽ आपः शिवाः शस्योनाः सुहवा भवंतु ।।

अर्घ्यपात्र अभिमंत्रित कर दाहिने हाथ में तिल, जल, कुश लेकर-

ॐ अद्यास्मत्पितामहादित्रयश्राद्धसंबंधिनः कामकालसंज्ञका विश्वेदेवा एषवोहस्ताघः स्वाहानमः।।

दाहिने हाथ से देवतीर्थ द्वारा अर्घ्य विश्वेदेवा को देवे। विश्वेदेवा को वस्त्र, गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीपक, नैवेद्य, दक्षिणा आदि चढ़ाकर तीन कुश, जल एवं यव लेकर संकल्प करें-

ॐ अद्यास्मत् पितामहादि त्रयश्राद्ध संबधिनः कामकालसंज्ञकाविश्वेदेवाः एतानि गन्धपुष्प धूपदीप तांबूलयज्ञोपवीतवासांसि वो नमः।।

अनेन पूजनेन विश्वेदेवा प्रीयन्ताम्।।

पित्रेश्वरों का आवाहन तिल बिखेर कर करें। पित्रों के लिए आसन दक्षिण में, प्रेत के लिए पश्चिम में वेदी के ऊपर आसन रखे। दक्षिण मुंह कर बायां घुटना मोड़ अपसव्य हो पत्ते पर दो कुश रख संकल्प बोले-

अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिण्डीकरण श्राद्धे इदमासनमुपतिष्ठताम्।।

प्रेत के लिए आसन रख पितरों के लिए भी तीन आसन पत्ते पर तीन कुशा जल तिल हाथ में रख कहें-

1. अमुकगोत्रस्य पितामहस्य अमुकशर्मणः वसुरूपस्य इदमासनं स्वधानमः।।

2. अमुकगोत्रस्य प्रपितामहस्य अमुकशर्मणो रुद्ररूपस्य इदमासनं स्वधा नमः।।

3. अमुकगोत्रस्य वृद्धप्रपितामहस्य अमुकशर्मण आदित्यस्वरूपस्य इदमासनंस्वधा नमः।।

आसनों को दक्षिण की वेदी के ऊपर रख-पितरों का आवाहन करें-

ॐ उशन्तस्त्वानिधी मह्य सन्तः समिधीमहि ।

अशन्नुशत आवह पितॄन हविष अत्तवे ।।

पितरों की वेदी के ऊपर तिल बिखेर दे।

ॐ आयन्तु नः पितरः सोम्यासो अग्निष्वाता पथिभिर्देवयानैः।

अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तौधिब्रुवन्तुतेऽवन्त्वस्मान् ।।

अव प्रेत के लिए अर्घ्य बनावे-दोने पर-

शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये ।

शंयोरभिस्त्रवन्तु नः।।

मंत्र से जल डालकर उसमें तिल, पुष्प, गन्ध भी छोड़े। अर्घ्य उठाकर तिल, जल, कुश हाथ में ले अपसव्य हो संकल्प करें-

अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्व विमुक्तये सपिण्डीकरण श्राद्ध एषते हस्तायॊ मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।।

अर्घ्य पात्र से थोड़ा जल प्रेत कुश के ऊपर रख पितरों के लिए तीन अर्घ्य बनावे।

ॐ शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तुपीतये ।

शंयोरभिःस्रवन्तु नः।।

जल डालकर उसमें तिल, पुष्प, गन्ध, भी डालकर संकल्प करे-

अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वनिवृत्तिपूर्वकपितृत्वप्राप्तये पितामहप्रपितामह-बृद्धप्रपितामह-अमुक शर्मन् सपिण्डिकरणश्राद्धे एष हस्ताय॑स्ते स्वधा ।

ऐसा कहकर अंगूठे की तरफ से पितामह प्रपितामह बृद्धप्रपितामह को थोड़ा-थोड़ा जल दें।

अव प्रेत पितरों के अर्घ्य मिलाने के लिए संकल्प कहें-

अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वनिवृत्यर्थ सद्गति प्राप्त्यर्थं तत्पितृपितामह प्रपिताहानामध्यैः सह अर्घ्यसंयोजनं करिष्ये ।।

प्रेत और पितरों के अर्घ्य को मिलाते हुए ये मंत्र बोले-

ये समानाः समनसोजीवा जीवेषु मामकाः।

तोष श्रीर्मयी कल्पतामस्मिन् लोके शतसमाः।।

प्रेत के अर्घ्यपात्र को उठाकर कुश से पितामह, प्रपितामह, वृद्धप्रपिताह के अर्घ्यपात्र में जल छोड़ दें। प्रेत के अर्घ्य पात्र को प्रेत वेदी के पास उल्टा रख पितर वेदी के पास तीनों अर्घ्य पात्र को भी उल्टा कर रख दें। एक आचमन जल छोड़ दें।

अनेन अर्घसंयोजनेनप्रेतस्य सद्गत्युत्तम लोक प्राप्तिः।।

पिण्ड निर्माण पकाये हुए चावलों में घी, तिल, शहद, गंगाजल मिलाकर, पुरुष सूक्त का स्मरण करते हुए पिण्ड बनावें-एक प्रेतपिण्ड लम्बा, पितरों के लिए तीन पिण्ड गोल, एक पिण्ड (विकर पिण्ड) छोटा। प्रेत वेदी पर एक कुशा गाँठ लगाकर प्रेत निमित्त रख, तीन कुशा इसी प्रकार पितर वेदी पर पितरों के निमित्त रख गन्धादि से पहले प्रेत का पूजन कर संकल्प करे-

अमुक गोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिण्डीकरणश्राद्धे एतानि गंधपुष्पधूपदीपताम्बूलयज्ञोपवीतवासांमि ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम् ।।

पितरों का पूजन भी गंधादि से कर संकल्प करें।

अमुकगोत्रास्मत् पितामहप्रपिताहमबृद्धप्रपितामह अमुकशर्मन् एतानि गंधपुष्पधूपदीपताम्बूलयज्ञोपवीतवासांसितुभ्यं स्वधा ।।

कर्म कर्ता कहे-

पितॄणामर्चनं सम्पूर्णमस्तु ।

अव कर्मकर्ता प्रेत आसन के दक्षिण की तरफ एक पत्ता रख विकिर पिण्ड को हाथ में रख वंश में जिनकी अकाल मृत्यु हो गई हो उनकी तृप्ति के लिए पिण्ड देते हुए कहे-

अग्नि दग्धाश्च ये जीवा येऽपयदग्धा कुले मम ।

भूमौ दत्तेन तृप्यन्तु तृप्ता यांतु परां गतिम् ।।

अब चार पत्तों पर अर्घ्य बनावे उसमें कुशा के एक-एक टुकड़े डालकर जल भरें-

ॐशन्नों देवीरभिष्टय आपो भवन्तुपीतये ।

शय्योरभिस्रवन्तु नः।।

अर्घ्य पात्रों में पुष्य, गन्ध, तिल डालकर 'अर्धपात्रसंपत्तिरस्तु' ऐसा कहे। एक अर्घ्यपात्र उठाकर अपसव्य होकर प्रेत के लिए संकल्प करे-

अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य अर्येऽवनेजनं मयादीयते तवोपतिष्ठताम् ॥

ऐसा कहकर अर्घ्य को प्रेत के आसन के ऊपर रख अर्घ्य के जल को प्रेत के आसन के पास रख दे। दूसरा अर्घ्य उठाकर संकल्प बोले-

अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिण्डीकरण श्राद्ध निमित्तक अमुकगोत्र पितामह-अमुकशर्माणं पिण्डस्थाने कुशोपरिअर्घावनेजनं निक्षिप्यते स्वधा ।

ऐसा कहकर अर्घ्य का थोड़ा जल पितामह के आसन वाले पत्ते पर छोड़ अर्घ्य को आसन के पास रख तीसरे अर्घ्य को हाथ में उठाकर संकल्प करे-

अमुक गोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिंडीकरणश्राद्धे अमुकगोत्रप्रपितामह अमुशर्मन् पिण्डस्थाने कुशोपरि अर्धावनेजनं निक्षिप्यते स्वधा ।

ऐसा कह थोड़ा अर्घ्य का जल प्रपितामह के आसन के पत्ते पर छोड़ अर्घ्य पात्र को प्रपितामह के आसन के पास रख चौथा अर्घ्य हाथ में ले संकल्प करे-

अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिंडिकरण श्राद्धे अमुकगोत्र वृद्धप्रपितामह अमुकशर्मन् पिण्डस्थाने कुशोपरि अर्धावनेजनं निक्षिप्यते स्वधा ।।

ऐसा कह थोड़ा जल वृद्ध प्रपितामह के आसन पर छोड़ अर्घ्यपात्र को वृद्ध प्रपितामह के आसन के पास रख दें।

पिण्डदान पहले प्रेत पिण्ड जो लम्बे आकार में बनाया था अपसव्य होकर कर्मकर्ता उसे उठाकर तिल, कुश, जल हाथ में ले संकल्प करें-

अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतसपिंडीकरणश्राद्धे एष ते पिण्डो मयादीयते तवोपतिष्ठताम् ।।

___ऐसा कह पिण्ड को प्रेत के पास आसन के ऊपर अंगूठे की ओर रख पितामह के लिए दूसरे पिण्ड का संकल्प करे।

अमुकगोत्रः पितामहः अमुकशर्मन् वसुरूप एष ते पिण्डः स्वधा नमः।।

पिण्ड को पितामह के पास आसन के ऊपर रख तीसरा पिण्ड लेकर संकल्प करे-

अमुकगोत्रः प्रपितामहः अमुकर्शन् आदित्यरूप एष ते पिण्डः स्वधा नमः।।

पिण्ड को वृद्ध प्रपितामह के पास आसन पर रख प्रेत के अर्घ्य से थोड़ा जल प्रेत के पिण्ड पर छोड़े-

अमुकगोत्रअमुकप्रेतसपिंडीकरणश्राद्धे प्रत्यवने अवनेजनं मयादीयते तवोपतिष्ठताम् ।।

अब पितामह, प्रपितामह, वृद्धप्रपितामह के अर्घ्यों से भी पिण्ड पर जल छोड़े-

अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य सपिंडीकरणश्राद्धनिमित्तं अमुकगोत्राणां पितामह-प्रपितामह वृद्धप्रपितामहानां पिण्डोपरि अवनेजनं तेभ्यः स्वधा नमः।।

पिण्ड देने के बाद पके हुए चावलों का शेष जो हाथ पर रहे बांये हाथ में कुश लेकर दाहिने हाथ को साफ करे और कहे-

ॐ नमो वः पितरो रसायनमो वः पितर शोषाय नमो वः पितरः जीवाय नमो वः पितरो स्वधायै नमो वः पितरो घोराय नमो वः पितरो मन्यवे नमो वः पितरः नमो वः पितरो नमो वः गृहान्नः पितरो दत्त सतो वः पितरो द्वैष्मै तद्वः पितरो वास आधत ।।

अपसव्य हो कर्मकर्ता प्रेतपिण्ड का पूजन करे-पिण्ड का पूजन गन्ध, यव अक्षत, पुष्प, तुलसीपत्र, धूप, दीपक, नैवेद्य, ताम्बूल, दक्षिणा आदि चढ़ाकर पितामह, प्रपिताह और वृद्धपितामह के पिण्डों का पूर्ववत् पूजन कर कर्मकर्ता उत्तर मुँह कर प्राणायाम रीति से बाँये नांक से श्वास ले दक्षिण की दिशा की तरफ श्वास छोड़ते हुए पितरों व सूर्य का ध्यान करे।

पिण्ड संयोजन

अपसव्य हो कर्मकर्ता सुवर्ण या रजत शलाका (अभाव में कुश) से प्रेत पिण्ड के तीन समान भाग करे तथा तिल, जल, कुश हाथ में लेकर संकल्प करे-

अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रेतत्वनिवृत्तिपूर्वकपितृसमप्राप्त्यर्थ वस्वादिलोक प्राप्यं च अमुकगोत्राणां तत्पितृपितामहप्रपितामहानांपिण्डैः सहप्रेतस्य पिण्ड संयोजनं करिष्ये ।।

प्रेतपिण्ड का पहला भाग बाँये हाथ में लेकर संकल्प-

अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य प्रथमं पिण्डशकलं अमुकपितामहस्यामुकशर्मणो वसुरूपस्य पिण्डेन सह संयोजयिष्ये ।।

प्रेतपिण्ड के पहले भाग के साथ पितामह के पिण्ड के साथ मिला दे-

ॐ ये समानाः समनसः पितरोयमराज्ये ।

तेषां लोकः स्वधा नमो यज्ञो देवेषु कल्पताम् ।।1।।

ये समानाः समनसो जीवाजीवेषु मामकाः।

तेषाश्रीर्मयि कल्पतामस्मिँलोके शतसमाः।।2।।

पिण्ड गोलकर पितामह के आसन पर रख पुनः प्रेत पिण्ड का दूसरा भाग उठाकर संकल्प बोले-

अमुक गोत्रस्य अमुकप्रेतस्य द्वितीयपिण्डशकलं अमुक प्रपितामहस्यामुकशर्मणः रुद्ररूपस्य पिण्डेन सह संयोजयिष्ये ।

ऐसा कह 'ये समाना:0' के दोनों मंत्र कहते हुये प्रेत पिण्ड के दूसरे भाग के साथ प्रपितामह के पिण्ड को गोलाकार बनाकर प्रपिताह के आसन के ऊपर रख दे।

प्रेत पिण्ड के तीसरे भाग को उठाकर संकल्प बोले

अमुकगोत्रस्य अमुकप्रेतस्य तृतीयं पिण्डशकलं अमुक वृद्धपितामहस्यामुक शर्मणः आदित्यरूपस्य पिण्डेनसह संयोजयिष्ये ।।

_ऐसा कह 'ये समाना:0' के दोनों मंत्र कहते हुए प्रेतपिण्ड के तीसरे भाग के साथ वृद्ध पितामह का पिण्ड मिला के आसन के ऊपर रखे। अब शेष अर्घ्य के जल को हाथ में लेकर संकल्प-

अमुकगोत्राणां पितामह-प्रपितामह-वृद्धप्रपितामहानां पिण्डोपरि अवनेजनं तेभ्यः स्वधा नमः।।

जल देकर नीवी मोचन (अंट में रखे पैसा कुशा सपारी) पिण्डो के पास रख सव्य होकर प्रार्थना करे-

ॐ नमो वः पितरो रसायनमो वः पितर शोषाय नमो वः पितरो जीवाय नमो वः पितरः स्वधायै नमो वः पितरो घोराय नमो वः पितरो मन्यवे नमो वः पितरः पितरो नमो वः गृहान्नः पितरो दत्त सतो वः पितरो द्वैष्मै तद्वः पितरो वास आधत ।।

पिण्डों का पूजन पुनः वस्त्र: तीन सूत्र, अक्षत, पुष्प, धूप, दीपक, नैवेद्य आदि से कर कर्मकर्ता उत्तर की दिशा को मुंह कर प्राणायाम की रीति से श्वास चढ़ाकर दक्षिण की तरफ छोड़े। भगवान् विष्णु को पकवान चढ़ावे-

ॐ नाभ्याआसीदन्तरिक्ष शीर्णोद्यौः समवर्त्तत ।

पद्भयांभूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथालोकां 2 ऽ अकल्पयन् ।।

विश्वेदेवा को भी पकवान का भोग लगावे-

कालकाम संज्ञक विश्वेदेवानां पक्वान्ननैवेद्यं अहमुत्सृजे ।।

कर्मकर्ता हाथ जोड़कर पितरों से आशीर्वाद मांगे-

ॐ गोत्रं नो वर्द्धतां दातारो नोऽभिवर्द्धन्ताम् ।

वेदाः संततिरेव च ।

श्रद्धा च नो मा व्यगमद् बहुदेयं सदास्तुनः ।

अन्नंचनो बहु भवेदतिथींश्चलभामहे ।

याचितारश्च नः सन्तु मा च याचिष्म कंचन ।।

अब पिण्डों पर दुध की धारा देकर पितरों को प्रणाम कर बीच के पिण्ड को हिला देवे। अब अपसव्य हो पिण्डों को उठाकर सूंघ ले और पिण्डों को विसर्जन के लिए थाली में रख सव्य हो थाली को रुपये से बजा देवे।

मंत्र

ॐ वाजे वाजेऽवत वाजिनो नो धनेषु विभा अमृता ऋतज्ञाः।

अस्य मध्वः पिबत मादयध्वं तृप्ता यात पथिभिर्देवयान्यैः।।

ब्राह्मण को दक्षिणा संकल्प-

ॐ विष्णुः 3 देशकालौ संकीर्त्य पितृअमुक गोत्रपित्रादित्रयश्राद्ध सम्बन्धिनां कालसज्ञकानां विश्वेषां देवानां प्रीतये कृतस्य सपिण्डीकरण श्राद्धान्तर्गतविश्वदैविककर्मणः सांगतासिद्धयर्थ साद्गुणार्थच इमा सुवर्णदक्षिणातन्निष्क्रयद्रव्यं वा ब्राह्मणाय दास्यै ।।

कर्मकर्ता ब्राह्मण को दक्षिणा देकर अपसव्य से दीपक वुझा पितरों को उठाये-

ॐ उत्तिष्ठन्तु पितरः।।

देवताओं का विसर्जन अक्षत चढ़ाकर करे-

देवाः स्वस्थानं यान्तु ।।

प्रदक्षिणा भी कर लें-

ॐ अमावाजस्य प्रसवो जगम्यादेमेद्यावा पृथिवी विश्वरूपे ।

आमा गन्तां पितरा मातरा वामा सोमो अमृतत्वेन गम्यात् ।।

प्रार्थना- प्रमादात् कुर्वतां कर्म प्रत्यवेताध्वरेषु यत् ।

स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णस्यादिति श्रुति ।।

कर्मकर्ता पिण्ड वेदी को साफ कर पिण्डों को जल में डाल दे या गाय को खिला देवे। गौ, श्वान, काक बलि तीन पत्तो पर बने हुए आहार से ग्रास निकाल कर निम्न प्रकार दे-

गो ग्रास सव्य होकर-

सौरभेय सर्वहिताः पवित्राः पुण्यराशयः।

प्रतिगृह्णन्तु मे ग्रासं गावस्त्रैल्योकमातरः।।

श्वान बलि (जनेऊ मालाकार कर)

द्वौ श्वानौ श्याम शवलौ वैवश्वतकुलोद्भवौ ।

ताभ्यामन्नं प्रदास्यामि स्यातामेतावहिंसकौ ।।

काकवलि (अपसव्य) होकर

ऐन्द्रवारुण वायव्याः सौम्या वै नैर्ऋतास्तथा ।

वायसाः प्रतिगृहणन्तु भूमावन्नं मयार्पितम् ।।

अब यदि सामर्थ्य हो तो शय्यादान, त्रयोदश पद दान, गोदान, अष्ट अथवा दस महादान देवें अथवा इनके निमित्त द्रव्य दें।

इति: सपिण्डन श्राद्ध।।

शेष आगे जारी.........शय्यादान, त्रयोदश पद दान, गोदान, अष्ट अथवा दस महादान

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