recent

Slide show

[people][slideshow]

Ad Code

Responsive Advertisement

JSON Variables

Total Pageviews

Blog Archive

Search This Blog

Fashion

3/Fashion/grid-small

Text Widget

Bonjour & Welcome

Tags

Contact Form






Contact Form

Name

Email *

Message *

Followers

Ticker

6/recent/ticker-posts

Slider

5/random/slider

Labels Cloud

Translate

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry's.

Pages

कर्मकाण्ड

Popular Posts

मंगलम्

मंगलम्

नित्य प्रातःकाल इस मंगलम् स्तोत्र का पाठ करने से सदा मंगल अर्थात् शुभ फल की प्राप्ति होता है ।

मङ्गलम्

मङ्गलम्

स जयति सिन्धुरवदनो देवो यत्पादपङ्कजस्मरणम् ।

वासरमणिरिव तमसां राशीन्नाशयति विघ्नानाम् ॥१॥

उन गजवदन देवदेव की जय हो, जिनके चरणकमल का स्मरण सम्पूर्ण विघ्नसमूह को इस प्रकार नष्ट कर देता है जैसे सूर्य अन्धकारराशि को ॥१॥

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।

लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ॥२॥

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः ।

द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ॥३॥

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।

संग्रामे सङ्कटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥४॥

जो पुरुष विद्यारम्भ, विवाह, गृहप्रवेश, निर्गमन (घर से बाहर जाने), संग्राम अथवा सङ्कट के समय सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्ण, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशन, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन-इन बारह नामों का पाठ या श्रवण भी करता है, उसे किसी प्रकार का विघ्न नहीं होता॥२-४॥

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।

प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये ॥५॥

जो श्वेत वस्त्र धारण किये हैं, चन्द्रमा के समान जिनका वर्ण है तथा जो प्रसन्नवदन हैं, उन देवदेव चतुर्भुज भगवान् विष्णु का सब विघ्नों की निवृत्ति के लिये ध्यान करना चाहिये ॥ ५ ॥

व्यासं वसिष्ठनप्तारं शक्तेः पौत्रमकल्मषम् ।

पराशरात्मजं वन्दे शकतातं तपोनिधिम् ॥६॥

जो वसिष्ठजी के नाती (प्रपौत्र), शक्ति के पौत्र, पराशरजी के पुत्र तथा शुकदेवजी के पिता हैं, उन निष्पाप, तपोनिधि व्यासजी की मैं वन्दना करता हूँ॥६॥

व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे ।

नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः ॥७॥

विष्णुरूप व्यास अथवा व्यासरूप श्रीविष्णु को मैं नमस्कार करता हूँ। वसिष्ठवंशज ब्रह्मनिधि श्रीव्यासजी को बारम्बार नमस्कार है॥७॥

अचतुर्वदनो ब्रह्मा द्विबाहरपरो हरिः।

अभाललोचनः शम्भुर्भगवान् बादरायणः ॥८॥

भगवान् वेदव्यासजी बिना चार मुख के ब्रह्मा हैं, दो भुजावाले दूसरे विष्णु हैं और ललाटलोचन (तीसरे नेत्र) से रहित साक्षात् महादेवजी हैं॥ ८॥

इति मङ्गलं सम्पूर्णम्।

No comments:

vehicles

[cars][stack]

business

[business][grids]

health

[health][btop]