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मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
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मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
विष्णोरष्टाविंशतिनाम स्तोत्र
प्रतिदिन सायं-प्रातः एवं मध्याह्न के
समय श्रीविष्णोरष्टाविंशतिनाम स्तोत्र का स्मरणपूर्वक जप करनेवाला पुरुष सम्पूर्ण
पापों से मुक्त हो जाता है ।
श्रीविष्णोरष्टाविंशतिनामस्तोत्रम्
अर्जुन उवाच
किं न नाम सहस्राणि जपते च पुनः
पुनः ।
यानि नामानि दिव्यानि तानि चाचक्ष्व
केशव ॥१॥
अर्जुन ने पूछा-केशव ! मनुष्य
बार-बार एक हजार नामों का जप क्यों करता है? आपके
जो दिव्य नाम हों, उनका वर्णन कीजिये ॥१॥
श्रीभगवानुवाच
मत्स्यं कूर्म वराहं च वामनं च
जनार्दनम् ।
गोविन्दं पुण्डरीकाक्षं माधवं
मधुसूदनम् ॥ २॥
पद्मनाभं सहस्राक्षं वनमालिं
हलायुधम् ।
गोवर्धनं हृषीकेशं वैकुण्ठं
पुरुषोत्तमम् ॥३॥
विश्वरूपं वासुदेवं रामं नारायणं
हरिम् ।
दामोदरं श्रीधरं च वेदाङ्गं
गरुडध्वजम् ॥४॥
अनन्तं कृष्णगोपालं जपतो नास्ति
पातकम् ।
गवां कोटिप्रदानस्य अश्वमेधशतस्य च
॥५॥
कन्यादानसहस्राणां फलं प्राप्नोति
मानवः।
अमायां वा पौर्णमास्यामेकादश्यां
तथैव च ॥६॥
सन्ध्याकाले स्मरेन्नित्यं
प्रातःकाले तथैव च ।
मध्याह्ने च जपन्नित्यं सर्वपापैः
प्रमुच्यते ॥७॥
श्रीभगवान् बोले-अर्जुन ! मत्स्य,
कूर्म, वराह, वामन,
जनार्दन, गोविन्द, पुण्डरीकाक्ष,
माधव, मधुसूदन, पद्मनाभ,
सहस्राक्ष, वनमाली, हलायुध,
गोवर्धन, हृषीकेश, वैकुण्ठ,
पुरुषोत्तम, विश्वरूप, वासुदेव,
राम, नारायण, हरि,
दामोदर, श्रीधर, वेदाङ्ग,
गरुडध्वज, अनन्त और कृष्णगोपाल-इन नामों का जप
करनेवाले मनुष्य के भीतर पाप नहीं रहता। वह एक करोड़ गो-दान, एक सौ अश्वमेधयज्ञ और एक हजार कन्यादान का फल प्राप्त करता है। अमावस्या,
पूर्णिमा तथा एकादशी तिथि को और प्रतिदिन सायं-प्रातः एवं मध्याह्न के
समय इन नामों का स्मरणपूर्वक जप करनेवाला पुरुष सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता
है ॥२-७॥
इति श्रीकृष्णार्जुनसंवादे श्रीविष्णोरष्टाविंशतिनामस्तोत्रं सम्पूर्णम्।
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