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कर्मकाण्ड

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दुर्गा कवच

दुर्गा कवच

मुण्डमालातन्त्र (रसिक मोहन विरचित) पटल ६ के श्लोक २०२-२१० में वर्णित इस मोहनकारी दुर्गा कवच का श्रवण अथवा पाठ करने पर साधक समस्त सिद्धियों का लाभ प्राप्त कर सकता है ।

श्रीदुर्गाकवचम्

श्रीदुर्गाकवचम्

श्री शिव उवाच -

श्रृणु देवि ! प्रवक्ष्यामि अप्रकाश्यं महीतले ।

श्रुत्वा पठित्वा कवचं सर्वसिद्धिमवाप्नुयात् ॥ १॥

श्री शिव ने कहा -हे देवि ! इस महीतल पर अप्रकाश्य कवच को बता रहा हूँ, इसका श्रवण करें । इस कवच का श्रवण करके, पाठ करने पर साधक) समस्त सिद्धियों का लाभ कर सकता है ।

अथ दुर्गाकवचम् 

पार्वती मस्तकं पातु कपालं जगदम्बिका ।

कपालञ्चापि गण्डञ्च दुर्गा पातु महेश्वरि ॥ २॥

पार्वती मस्तक की रक्षा करें । जगदम्बिका कपाल (ललाट) की रक्षा करें । महेश्वरी दुर्गा कपाल (मस्तक) एवं गण्ड देश की रक्षा करें ।

विश्वेश्वरी सदा पातु नेत्रञ्च शिवसुन्दरी

कर्णौ नारायणी पातु मुखं नील-सरस्वती ॥ ३॥

विश्वेश्वरी शिवसुन्दरी सर्वदा नेत्र की रक्षा करें। नारायणी कर्णद्वय की रक्षा करें। नीलसरस्वती मुख की रक्षा करें।

कण्ठं मे विजया पातु वक्षोमूलं शिव प्रिया ।

नाभिदेशं जगद्धात्री जगदानन्द-वल्लभा ॥ ४॥

विजया मेरे कण्ठ की रक्षा करें । शिवप्रिया मेरे वक्षःमूल की रक्षा करें । जगदानन्द-वल्लभा जगद्धात्री नाभिदेश की रक्षा करें ।

हृदयं चण्डिका पातु बाहू परम-देवता ।

केशांश्च पञ्चमी विद्या सभायां पातु भैरवी ॥ ५॥

चण्डिका हृदय की रक्षा करें । परम देवता बाहुद्वय की रक्षा करें । पञ्चमीविद्या केशों की रक्षा करें । भैरवी सभा में रक्षा करें ।

नित्यानन्दा यशः पातु लिङ्गं लिङ्गेश्वरी सदा ।

भवानी पातु मे पुत्रं पत्नीं मे पातु दक्षजा ॥ ६॥

नित्यानन्द यशः की रक्षा करें । लिङ्गेश्वरी सर्वदा लिङ्ग की रक्षा करें । भवानी मेरे पुत्र की रक्षा करें । दक्षजा मेरी पत्नी की रक्षा करें ।

कामाख्या देह-कमलं पातु नित्यं नभोगतम् ।

महाकुण्डलिनी नित्यं पातु मे जठरं शिवा ॥ ७॥

कामाख्या आकाश-गत देह कमल की सर्वदा रक्षा करें। महाकुण्डलिनी शिवा सर्वदा मेरे उदर की रक्षा करें ।

वह्निजाया सदा यज्ञं पातु कर्म स्वधा पुनः ।

अरण्ये विजने पातु दुर्गा देवी रणे वने ।

जले पातु जगन्माता देवी त्रिभुवनेश्वरी ॥ ८॥

वह्निजाया सर्वदा यज्ञ की रक्षा करें । स्वधा कर्म की रक्षा करें । दुर्गादेवी निर्जन अरण्य में, वन में, रण में रक्षा करें । जगन्माता देवी त्रिभुवनेश्वरी जल में रक्षा करें ।

इत्येवं कवचं देवि दुर्ज्ञेयं राजमोहनम् ।

जपेन्मत्रं क्षितितले वश्यं याति महीपतिः ॥ ९॥

हे देवि ! राजा को मोहनकारी यह दुर्जेय कवच इस प्रकार कहा गया । इस पृथिवी पर मन्त्र जप करें। इससे राजा भी वश्य बन जाते हैं ।

इति मुण्डमालातन्त्रे पार्वतीश्वर-संवादे षष्ठं पटलान्तर्गतं द्वितीयं श्रीदुर्गाकवचं सम्पूर्णम् ॥ ६॥

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