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कर्मकाण्ड

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रामाष्टक

रामाष्टक

जो पुरुष इस रामाष्टक को एकाग्रचित्त से निरन्तर पढ़ता है, उसे किसी भी प्रकार का कोई भय नहीं होता है।

श्रीरामाष्टकम्

श्रीरामाष्टकम् 

कृतार्तदेववन्दनं दिनेशवंशनन्दनम् ।

सुशोभिभालचन्दनं नमामि राममीश्वरम् ॥ १॥

आर्त देवताओं ने जिनकी वन्दना की है, जो सूर्यवंश को आनन्दित करनेवाले हैं तथा जिनके ललाट पर चन्दन सुशोभित है, उन परमेश्वर राम को मैं नमस्कार करता हूँ॥१॥

मुनीन्द्रयज्ञकारकं शिलाविपत्तिहारकम् ।

महाधनुर्विदारकं नमामि राममीश्वरम् ॥ २॥

जो मुनिराज विश्वामित्र का यज्ञ सम्पन्न करानेवाले, पाषाणरूपा अहल्या का कष्ट निवारण करनेवाले तथा श्रीशङ्कर का महान् धनुष तोड़नेवाले हैं, उन परमेश्वर राम को मैं नमस्कार करता हूँ॥ २ ॥

स्वतातवाक्यकारिणं तपोवने विहारिणम् ।

करे सुचापधारिणं नमामि राममीश्वरम् ॥ ३॥

जो अपने पिता के वचनों का पालन करनेवाले, तपोवन में विचरनेवाले और हाथों में धनुष धारण करनेवाले हैं, उन परमेश्वर राम को मैं नमस्कार करता हूँ॥३॥

कुरङ्गमुक्तसायकं जटायुमोक्षदायकम् ।

प्रविद्धकीशनायकं नमामि राममीश्वरम् ॥ ४॥

जिन्होंने मायामृग पर बाण छोड़ा था, जटायु को मोक्ष प्रदान किया था तथा कपिराज बाली को विद्ध किया था, उन परमेश्वर राम को मैं नमस्कार करता हूँ॥४॥

प्लवङ्गसङ्गसम्मतिं निबद्धनिम्नगापतिम् ।

दशास्यवंशसङ्क्षतिं नमामि राममीश्वरम् ॥ ५॥

जिन्होंने वानरों के साथ मित्रता की, समुद्र का पुल बाँधा और रावण के वंश का विनाश किया, उन परमेश्वर राम को मैं नमस्कार करता हूँ ॥ ५॥

विदीनदेवहर्षणं कपीप्सितार्थवर्षणम् ।

स्वबन्धुशोककर्षणं नमामि राममीश्वरम् ॥ ६॥

जो अति दीन देवताओं को प्रसन्न करनेवाले, वानरों की इच्छित कामनाओं को पूर्ण करनेवाले और अपने बन्धुओं का शोक शान्त करनेवाले हैं, उन परमेश्वर राम को मैं नमस्कार करता हूँ॥६॥

गतारिराज्यरक्षणं प्रजाजनार्तिभक्षणम् ।

कृतास्तमोहलक्षणं नमामि राममीश्वरम् ॥ ७॥

जो शत्रुहीन (निष्कण्टक) राज्य के पालक, प्रजाजन की भीति के भक्षक और मोह की निवृत्ति करनेवाले हैं, उन परमेश्वर राम को मैं नमस्कार करता हूँ॥७॥

हृताखिलाचलाभरं स्वधामनीतनागरम् ।

जगत्तमोदिवाकरं नमामि राममीश्वरम् ॥ ८॥

जिन्होंने सम्पूर्ण पृथ्वी का भार हरण किया है, जो सकल नगरनिवासियों को अपने धाम को ले गये तथा जो संसाररूप अन्धकार के लिये सूर्यरूप हैं, उन परमेश्वर राम को मैं नमस्कार करता हूँ॥ ८॥

इदं समाहितात्मना नरो रघूत्तमाष्टकम् ।

पठन्निरन्तरं भयं भवोद्भवं न विन्दते ॥ ९॥

जो पुरुष इस रामाष्टक को एकाग्रचित्त से निरन्तर पढ़ता है, उसे संसारजनित भय की प्राप्ति नहीं होती॥९॥

॥ इति श्रीपरमहंसस्वामिब्रह्मानन्दविरचितं श्रीरामाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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