श्रीराममङ्गलशासन
जामातामुनि कृत इस श्रीराममङ्गलाशासन
का जो साधक नित्य पाठ करता है उनके जीवन में सब मंगल-ही मंगल होता है।
श्रीराममङ्गलाशासनम्
मङ्गलं कौशलेन्द्राय महनीयगुणाब्धये
।
चक्रवर्तितनूजाय सार्वभौमाय मङ्गलम्
॥ १॥
प्रशंसनीय गुणों के सागर कौशलेन्द्र
श्रीरामचन्द्रजी का मङ्गल हो, चक्रवर्ती
राजा दशरथ के पुत्र मण्डलेश्वर श्रीरामचन्द्रजी का मङ्गल हो ॥१॥
वेदवेदान्तवेद्याय मेघश्यामलमूर्तये
।
पुंसां मोहनरूपाय पुण्यश्लोकाय
मङ्गलम् ॥ २॥
जो वेद-वेदान्तों के ज्ञेय हैं,
मेघ के समान श्याममूर्तिवाले हैं और पुरुषों में जिनका स्वरूप
अत्यन्त मनोहर है, उन पुण्यश्लोक (पवित्र यशवाले) श्रीरामचन्द्रजी
का मङ्गल हो॥२॥
विश्वामित्रान्तरङ्गाय
मिथिलानगरीपतेः ।
भाग्यानां परिपाकाय भव्यरूपाय
मङ्गलम् ॥ ३॥
जो विश्वामित्र ऋषि के प्रिय और
राजा जनक के भाग्यों के फलस्वरूप हैं, उन
भव्यरूपवाले श्रीरामचन्द्रजी का मङ्गल हो ॥३।।
पितृभक्ताय सततं भ्रातृभिः सह सीतया
।
नन्दिताखिललोकाय रामभद्राय मङ्गलम्
॥ ४॥
जो सदा पिता की भक्ति करनेवाले हैं,
जो अपने भ्राताओं और सीताजी के साथ सुशोभित होते हैं और
जिन्होंने समस्त लोक को आनन्दित किया है, उन श्रीरामभद्र
का मङ्गल हो॥ ४ ॥
त्यक्तसाकेतवासाय चित्रकूटविहारिणे
।
सेव्याय सर्वयमिनां धीरोदयाय
मङ्गलम् ॥ ५॥
जिन्होंने अयोध्या-निवास को छोड़कर
चित्रकूट पर विहार किया और जो सब यतियों के सेव्य हैं,
उन धीरोदय श्रीरामभद्र का मङ्गल हो ॥ ५॥
सौमित्रिणा च जानक्या
चापबाणासिधारिणे ।
संसेव्याय सदा भक्त्या स्वामिने मम
मङ्गलम् ॥ ६॥
लक्ष्मण तथा जानकीजी सदा
भक्तिपूर्वक जिनकी सेवा करते हैं, जो धनुष-बाण और
तलवार को धारण किये हुए हैं, उन मेरे स्वामी श्रीरामभद्र
का मङ्गल हो ॥६॥
दण्डकारण्यवासाय खरदूषणशत्रवे ।
गृध्रराजाय भक्ताय मुक्तिदायास्तु
मङ्गलम् ॥ ७॥
जिन्होंने दण्डकवन में निवास किया
है,
जो खर-दूषण के शत्रु हैं और अपने भक्त गृध्रराज को मुक्ति देनेवाले
हैं, उन श्रीरामभद्र का मङ्गल हो॥७॥
सादरं शबरीदत्तफलमूलाभिलाषिणे ।
सौलभ्यपरिपूर्णाय सत्त्वोद्रिक्ताय
मङ्गलम् ॥ ८॥
जो आदरसहित शबरी के भी दिये
हुए फल-मूल के अभिलाषी हुए, जो सुलभता से पूर्ण
(अर्थात् थोड़े ही परिश्रम से प्राप्य) हैं और जिनमें सत्त्वगुण का आधिक्य है,
उन श्रीरामभद्र का मङ्गल हो ॥ ८॥
हनुमत्समवेताय हरीशाभीष्टदायिने ।
वालिप्रमथानायास्तु महाधीराय
मङ्गलम् ॥ ९॥
जो हनुमानजी से युक्त हैं,
हरीश (सुग्रीव) के अभीष्ट को देनेवाले हैं और बालि को
मारनेवाले हैं, उन महाधीर श्रीरामभद्र का मङ्गल हो
॥९॥
श्रीमते रघुवीराय
सेतूल्लङ्घितसिन्धवे ।
जितराक्षसराजाय रणधीराय मङ्गलम् ॥
१०॥
जो सेतु बाँधकर समुद्र को लाँघ गये और
जिन्होंने राक्षसराज रावण पर विजय पायी, उन
रणधीर श्रीमान् रघुवीर का मङ्गल हो ॥१०॥
विभीषणकृते प्रीत्या
लङ्काभीष्टप्रदायिने ।
सर्वलोकशरण्याय श्रीराघवाय मङ्गलम्
॥ ११॥
जिन्होंने प्रसन्नता से विभीषण को
उनका अभीष्ट लङ्का का राज्य दे दिया और जो सब लोकों को शरण में रखनेवाले हैं,
उन श्रीराघव रामभद्र का मङ्गल हो ॥ ११॥
आसाद्य नगरीं दिव्यामभिषिक्ताय
सीतया ।
राजाधिराजराजाय रामभद्राय मङ्गलम् ॥
१२॥
वन से दिव्य नगरी अयोध्या में
आने पर जिनका सीताजी के सहित राज्याभिषेक हुआ,
उन महाराजाओं के राजा श्रीरामभद्र का मङ्गल हो ॥१२ ।।
ब्रह्मादिदेवसेव्याय ब्रह्मण्याय
महात्मने ।
जानकीप्राणनाथाय रघुनाथाय मङ्गलम् ॥
१३॥
जो ब्रह्मा आदि देवताओं के
सेव्य हैं, ब्रह्मण्य (ब्राह्मणों और वेदों
की रक्षा करनेवाले) हैं, श्रीजानकीजी के प्राणनाथ हैं, उन रघुकुल के नाथ
श्रीरामभद्र का मङ्गल हो ॥ १३ ॥
श्रीसौम्यजामातृमुनेः
कृपयास्मानुपेयुषे ।
महते मम नाथाय रघुनाथाय मङ्गलम् ॥
१४॥
जो श्रीसम्पन्न सुन्दर आकारवाले
जामाता मुनि की कृपा से हमलोगों को प्राप्त हुए हैं, उन मेरे महान् प्रभु रघुनाथजी का मङ्गल हो ॥ १४ ॥
मङ्गलाशासनपरैर्मदाचार्यपुरोगमैः ।
सर्वैश्च पूर्वैराचार्यः
सत्कृतायास्तु मङ्गलम् ॥ १५॥
मेरे आचार्य जिनमें मुख्य हैं,
उन अर्वाचीन आचार्यों तथा सम्पूर्ण प्राचीन आचार्यो ने मङ्गलाशासन में
परायण होकर जिनका सत्कार किया है, उन श्रीरामभद्र का
मङ्गल हो॥ १५॥
रम्यजामातृमुनिना मङ्गलाशासनं कृतम्
।
त्रैलोक्याधिपतिः श्रीमान् करोतु
मङ्गलं सदा ॥ १६॥
जामातामुनि ने इस सुन्दर मङ्गलाशासन
का निर्माण किया है। इससे प्रसन्न होकर तीनों लोकों के पति श्रीमान् रामभद्र
सदा ही मङ्गल करें॥ १६ ॥
॥ इति श्रीवरवरमुनिस्वामिकृतश्रीराममङ्गलाशासनं सम्पूर्णम् ॥
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