अन्त्येष्टि संस्कार
अंत्येष्टि का अर्थ होता है अंतिम यज्ञ। यह यज्ञ
मरने वाले व्यक्ति के शव के लिए किया जाता है। बौधायन पितृमेधसूत्र में
अन्त्येष्टि संस्कार(अंतिम संस्कार) के महत्व को बताते हुए ये कहा गया है कि “जातसंस्कारैणेमं लोकमभिजयति मृतसंस्कारैणामुं लोकम्।” अर्थात जातकर्म आदि संस्कारों से मनुष्य इह लोक (पृथ्वी लोक) को जीतता है
और “अंत्येष्टि संस्कार” से परलोक पर
विजय प्राप्त करता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार जो व्यक्ति इस पृथ्वीलोक में जन्म
लेता है, उसके साथ ही उसकी मृत्यु भी उत्पन्न होती है। आदि
या सौ वर्ष के बाद, प्राणियों की मृत्यु होना निश्चित है।
अत: मृत्यु का समय निकट आने पर अर्थात् जब शरीर अत्यन्त जीर्ण-शीर्ण हो जाय,
शरीर की समस्त शक्तियाँ समाप्त हो जाय और मृत्यु का समय सन्निकट हो
तो सर्वप्रायश्चित, व्रतोद्यापन, दशदान,
अष्टदान, ऋणधेनु, पापधेनु,
मोक्षधेनु, वैतरणीधेनु और तिलपात्रादि का
अष्टदान मरने वाले के परिवार के लोगों को 'आतुर' से करवाना चाहिए। गृह के आँगन में गौ के गोबर से भूमि पर चौकोर मण्डल
बनावे और कुशा का आसन बिछाकर 'आतुर' को
उसी पर सुला दे, ऐसे समय में अन्तरिक्ष की शय्या में आतुर को
नहीं लिटाना चाहिए। तदुपरान्त शालिग्राम, विष्णु और शिव आदि
का ध्यान हृदय में करवाकर और इन देवताओं की शिला और तुलसी का वृक्षादि रखे तथा
मरने वाले के मुख में गंगाजल, तुलसी और शालिग्राम देवता का
स्नान किया हुआ चरणोदक, सुवर्ण तथा पंचरत्न मुख में छोड़े।
तदुपरान्त 'विष्णुसहस्रनामस्तोत्र' और 'श्रीमद्भगवद्गीता' का यथासम्भव उच्चारण करके मरने
वाले को सुनाना चाहिये।
अन्त्येष्टि संस्कार
मृत्यु के उपरान्त यदि उसके पुत्र न हो तो परिवार के व्यक्ति को या दत्तक पुत्र को शिखा छोड़कर (मुण्डन) कराना चाहिये। इसके पश्चात् गंगा या नदी में स्नान कर नवीन धौतवस्त्र धारणकर दाहकर्ता मिट्टी के घड़े में पवित्र जल लाकर शव को स्नान करावे। मृतक के शरीर पर इत्र, शुद्ध घृतादि के द्वारा लेपन करे और उसके शरीर को सफेद वस्त्र से लपेट कर उसके मस्तक पर चन्दन का लेपन करे और उसे गुलाब एवं सुगन्धित पुष्पों की माला पहनावे। तदुपरान्त मृतक से जो छोटे हो वह चौक के मध्य में रखे हुए शव की फेरी करे तथा उसके पैरों के पास नारियल रखे। यह लोकाचार है अत:कहीं-कहीं नारियल आदि नहीं रखा जाता और न ही अग्नि देने वाले को उस दिन मुण्डन किया जाता है। तदुपरान्त दाह करनेवाला छ: पिण्डों(छटवां पिण्डदान अस्थिसंचय के दिन करे या के लिए करें) का निर्माण करे।
अन्त्येष्टि संस्कार पिण्डनिर्माणम्
जौ के आटे में जल मिलाकर उसमें काला तिल, मधु, घृत, शर्करा आदि छोड़े और अग्निदाह करनेवाला गृह के आँगन में कुशा का आसन बिछाकर जनेऊ को अपसव्य करके भूमि को स्वच्छ कर कुशा रखे, फिर पिण्डदान करे और उसके पूर्व गन्ध, अक्षत से पिण्ड की पूजा निम्न क्रम से करे-
ॐ
अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत मृत्युपिण्डस्थाने अत्रावनेनिक्ष्व ते मया दीयते
तवोपतिष्ठताम्-यह कहकर एक चुल्लू जल कुशा पर छोड़े।
प्रथम पिण्डदान (घऱ के अंदर)
सबसे पहले पिण्ड को दाहिने हाथ में लें उस पर पुष्प, कुश, जल, यव, तिलाक्षत डालकर मंत्र बोले। मंत्र समाप्ति पर अंगूठे की तरफ से पिण्ड निर्धारित स्थान पर चढ़ाये। प्रथम पिण्ड घऱ के अंदर शव संस्कार करके संकल्प के बाद करें। देशकाल का स्मरण कर प्रथम पिण्ड इस प्रकार से करे -
अमुकगोत्र अमुकप्रेत
मृत्युस्थाननिमित्तकशवो नामा एष पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्। “……….नामाऽहं (मृतक का नाम)….मृतिस्थाने शवनिमित्तको
ब्रह्मदैवतो वा, एष ते पिण्डो, मया
दीयते, तवोपतिष्ठताम्।”
पुनः निम्न वाक्य को कहकर एक चुल्लू जल पिण्ड पर चढावे-
ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत मृत्युस्थाने शवनाम्नि पिण्डे प्रत्यवनेजनं ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
पिण्ड को शव के कमर पर रखा जाए।
द्वितीय पिण्डदान (गृह के द्वार पर)
बाँस की सीढ़ी पर शव को लिटाकर सुतली से बन्धन कर पुष्प मालाओं से उसे सुशोभित करे। तदुपरान्त गृह के द्वार पर दाह करनेवाला इस दूसरे पिण्ड को करने के लिये अपसव्य होकर हाथ में तिल, जल लेकर निम्न वाक्य कहकर कुशा पर जल छोड़े-
ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत गृहद्वारे पान्थनाम्नि पिण्डस्थाने अत्रावनेनिक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
फिर निम्न वाक्य का उच्चारण कर पिण्डदान करे-
ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत गृहद्वारे पान्थनामा एष पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
पुनः कुशा, तिल, जल लेकर इस वाक्य का उच्चारण करे-
ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत गृहद्वारे पान्थनाम्नि पिण्डे प्रत्यवनेजनं ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
इस वाक्य को कहकर एक चुल्लू जल पिण्ड पर चढ़ावे और दोनों पिण्ड को
उठाकर शव पर रख दे।
इसके पश्चात् पारिवारिक जन शव को कन्धे पर लेकर
यमसूक्त (राम-नाम सत्य है) इसका उच्चारण करते हुए श्मशान भूमि की ओर चले।
तृतीय पिण्डदान (आधे रास्ते पर)
मध्य में आकर पुन: दाह करनेवाला विश्रामस्थान पर भूमि को पवित्र कर शव को उतारे और वहाँ पिण्ड निम्न क्रम से प्रदान करे तथा एक चुल्लू जल कुशा पर छोड़े और यह कहे-
ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत चतुष्पथे खेचरनाम्नि पिण्डस्थाने अत्रावनेनिक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
यह कहकर एक चुल्लू जल कुशा पर छोड़े। तदुपरान्त निम्न क्रम से पिण्ड प्रदान करे-
ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत चत्वरे खेचरनामा एष पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
पुनः हाथ में कुशा, तिल, जल लेकर कहे-
ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत
चतुष्पथे खेचरनाम्नि पिण्डे प्रत्यवनेजनं ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
पिण्ड को शव के पेट पर रखा जाए।
चतुर्थ पिण्डदान (श्मशान पर)
शव को जिस प्रकार लाये थे, उससे विपरीत कर कन्धे पर रखते हुए पुनः 'राम-नाम सत्य' का उच्चारण करते हुए श्मशान की ओर ले जाये। श्मशान में जाकर शव को उतार कर रखें और पुनः दो पिण्डदान करें -
ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत
विश्रामे भूतनाम्नि पिण्डस्थाने अत्रावनेनिक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
तदुपरान्त इस क्रम से पिण्ड प्रदान करे-
ॐ अद्य
अमुकगोत्र अमुकप्रेत विश्रामस्थाने भूतनामा एष पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्टताम्।
पुनः तिल, जल और कुशा लेकर निम्न वाक्य का उच्चारण करे-
ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत विश्रामे भूतनाम्नि पिण्डे
प्रत्यवनेजनं ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
पिण्ड को शव के छाती पर रखा जाए।
पंचम पिण्डदान (चिता पर)
शव को श्मशान में ले जाकर यदि गंगा या नदी हो तो
उसमें शव को स्नान करावे तथा शव को उत्तर सिर और दक्षिण पैर करके रखे। बाँस की
सीढ़ी और फूल-मालाओं से शव को मुक्त करे, अब दाह संस्कार
वाली भूमि का अन्त्येष्टि कर्म करने वाले से पूजन करा देवें उसके उपरांत कम से कम
नौ मन लकड़ी या ३६५ कंडा से चिता का निर्माण कर उसके ऊपर उत्तर सिर और दक्षिण पैर करके
चिता पर शव को लिटा दे,स्त्री का शव हो तो ऊपर मुख व पुरुष
का शव हो तो नीचे मुख रखे। शव को रखने से पूर्व मृतक के पुत्र,पौत्र शव को उठाकर चिता
की तीन,पाञ्च परिक्रमा कर रखें।
तदुपरान्त निम्न पाँचवें पिण्ड को दाहकर्ता अपने दायें हाथ में लेवे, फिर हाथ में काला तिल, कुशा, जल लेकर पुन: यह पिंडदान करें-
ॐ
अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत चितास्थाने वायु निमित्तको पिण्डस्थाने अत्रावनेनिक्ष्व
ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
तदुपरान्त इस क्रम से पिण्ड प्रदान करे-
ॐ अद्य
अमुकगोत्र अमुकप्रेत चितास्थाने वायु निमित्तको एष पिण्डस्ते मया दीयते
तवोपतिष्टताम्।
पुनः तिल, जल और कुशा लेकर निम्न वाक्य का उच्चारण करे-
ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत चितास्थाने वायु निमित्तको
पिण्डे प्रत्यवनेजनं ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
पिण्ड को शव के सिर पर रखें।
अन्त्येष्टि संस्कार दाह संस्कार-
घट में जल लेकर शव के सिर के पास
गिराते हुए चारो ओर घूम जाये और मस्तक के पास घट को पटक दे। अब दाह संस्कार,कपाल
क्रिया आदि लोकाचार पूर्ण कराये। यदि मृतक पंचक में मरा हो तो पंचक शान्ति करे।
पुनः सव्य होकर कपूर से अग्नि
प्रज्वलित करे और क्रव्याद नामक अग्नि का पूजन करके निम्न मन्त्रों का उच्चारण
करते हुए घृत से हवन करे(यदि अग्नि शव यात्रा में साथ लाये हो तो सीधे अग्नि की
प्रार्थना कर दाह संस्कार करें)-
लोमभ्य: स्वाहा लोमभ्यः स्वाहा
त्वचे स्वाहा त्वचे स्वाहा लोहिताय स्वाहा लोहिताय स्वाहा मेदोभ्यः स्वाहा
मेदेभ्यः स्वाहा। मा৶सेभ्यः
स्वाहा मा৶सेभ्यः
स्वाहा स्नावभ्यः स्वाहा स्नावभ्यः स्वाहास्थभ्यः स्वाहास्थभ्यः स्वाहा मज्जभ्यः
स्वाहा मज्जभ्यः स्वाहा। रेतसे स्वाहा पायवे स्वाहा ॥१॥
आयासाय प्रायासाय स्वाहा संयासाय
स्वाहा वियासाय स्वाहोद्यासाय स्वाहा। शुचे स्वाहा शोचते स्वाहा शोचमानाय स्वाहा
शोकाय स्वाहा ॥२॥
तपसे स्वाहा तप्यते स्वाहा
तप्यमानाय स्वाहा तप्ताय स्वाहा घर्माय स्वाहा । निष्कृत्यै स्वाहा
प्रायश्चित्त्यै स्वाहा भेजषाय स्वाहा ॥३॥
यमाय स्वाहान्तकाय स्वाहा मृत्यवे
स्वाहा ब्रह्मणे स्वाहा ब्रह्महत्यायै स्वाहा विश्वेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा
द्यावापृथिवीभ्या৶
स्वाहा ॥४॥
निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए
अग्निदेवता की प्रार्थना करे-
त्वं भूतकृज्जगद्योने त्वं
लोकपरिपालकः।
उक्तः संहारकस्तरस्मादेनं स्वर्ग
मृतं नय॥
तदुपरान्त दाहकर्ता जनेऊ को अपसव्य
करके चिता पर जल छिड़के, फिर इस क्रव्याद
अग्नि को सरपत आदि पर रखकर निम्न श्लोक का उच्चारण करते हुए चार बार परिक्रमा करके
सिर की ओर अग्नि प्रज्ज्वलित करे-
कृत्वा तु दुष्करं कर्म जानता वाऽप्यजानता।
मृत्युकालवशं प्राप्त नरं
पञ्चत्वमागतम् ।।
धर्माऽधर्मसमायुक्तं लोभ-मोह-समावृतम्।
दहेयं सर्वगात्राणि दिव्यान् लोकान्
स गच्छतु॥
परिक्रमा की समाप्ति के पश्चात्
उसके मस्तक के नीचे से अग्नि रखे और उसे पूर्णरूप से प्रज्ज्वलित करे और उस स्थान
से हटकर अन्यत्र जाकर सभी लोग बैठ जावे।
अन्त्येष्टि संस्कार कपालक्रिया-
आधा शव जलने के पश्चात् दाहकर्ता जले हुए शव का मस्तक फोड़े, तुलसी की लकड़ी, घृत, काला तिल इन तीनों को लेकर मृतक के कपाल में छोड़े और निम्न वाक्य का उच्चारण करे-
अस्मास्त्वं स्वाहा।
इसके उपरान्त एक घड़े में जल लेकर
जिस स्थान पर शव जलाया गया हो, उसे न देखते
हुए अपने दायें कन्धे रखकर उसमे एक छोटा छेद कर देवे जिससे जल गिरता रहे अब एक
परिक्रमा कर शव के सिर के पास से घड़े को वहाँ गिरा दे। इसके पश्चात् दाहकर्ता आगे
और उसके पीछे पारिवारिकजन व सम्बन्धी तथा समाज के लोग स्नान के लिये जाये। स्नान
के उपरान्त निम्न संकल्प करके काले तिल द्वारा जलांजलि प्रदान करे-
दाहकर्ता अपसव्य होकर अपने हाथ में
कुशा लेकर यह संकल्प करे-
ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत
दाहतृषोपशमनार्थं त्रयतिलतोयाञ्जलस्ते मया दीयन्ते तवोपतिष्ठन्ताम्।
स्नान के पश्चात् स्त्रियों और
बालकों को आगे कर मृतक के घर जावे और वहाँ कालीमिर्च या नीमपत्र को चबाकर थूके और
दोनों पैरों को धोकर अपने-अपने घर चले जावे। उस दिन आशौची परिवार अपने गृह के अन्न
का भक्षण न करे। उस दिन सम्बन्धियों और रिश्तेदारों के द्वारा भेजे गये भोजन से गौ
ग्रास निकालकर उसके उपरान्त उसका भक्षण दाहकर्ता एवं परिवार के अन्य सदस्य करे।
विशेष-सायंकाल गृह के द्वार पर या
प्रथम चौराहे पर अथवा श्मशान भूमि में जल, दूध,
दीपक प्रदान करे। कंडे की तीन-तीन लकड़ी तीन जगह कच्च सूत से बाँधे,
तिरपाये के सदृश निर्माण कर पहली तिरपायी पर जल, फूल, दूसरे पर दीये में दूध और तीसरे में घृत या तिल
के तेल का दीया रखे, सभी दीपकों में काला तिल छोड़े।
पुनः अपसव्य होकर अपने दाहिने हाथ
में कुशा,
तिल, जल लेकर यह संकल्प करे-
ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत प्रथम
दिने सायंकाले तृषोपशमनार्थ त्रिकाष्ठोपरि माल्यपानीयक्षीरदीपादयस्ते मया दीयन्ते
तवोपतिष्ठन्ताम्।
तदुपरान्त दाहकर्ता दीप जलाकर निम्न
श्लोक का उच्चारण करके प्रार्थना करे-
श्मशानानलदग्धोऽसि परित्यक्तोऽसि
बान्धवैः।
इदं नीरमिदं क्षीरमंत्र स्नाहि इदं
पिब॥
यमद्वारे महाघोरे अन्धेन तमसावृते।
तत्रावलौकनार्थाय दीपोऽयमुपतिष्ठताम्॥
इसके उपरान्त जनेऊ को सव्य कर
दाहकर्ता पूर्वाभिमुख हो भगवान् विष्णु का स्मरण करे।
अन्त्येष्टि संस्कार अस्थिसंचय-
तृतीय या चतुर्थी के दिन एक थाल व
सफ़ेद कपड़ा लेकर अन्त्येष्टि संस्कार के स्थान(श्मशान)पर जावें।
अन्त्येष्टि संस्कार छटवां पिण्डदान (अस्थिसंचय पर)
जब कबूतर के तुल्य शव का शरीर रह
जाय तो,
उसे गंगाजल में दूध मिलाकर ठंडा करे, बचे हुए
शरीर(अस्थि)व राख को गंगा नदी या अन्य नदी में छोड़ दे।अस्थियों को संचय से पूर्व
छटवां पिण्डदान करें-
इसके उपरान्त दाहकर्ता कुशा पर एक
चुल्लू जल छोड़कर निम्न वाक्य कहे-
ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत
अस्थिसंचयनिमित्तकपिण्डस्थाने अत्रावनेनिक्ष्व ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
तदुपरान्त छठे पिण्ड को अपने दायें
हाथ में लेवे तथा कुशा, तिल और जल लेकर
निम्न क्रम से प्रदान करे-
ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत
मोक्षकाम: अस्थिसंचयनिमित्तक एष पिण्डस्ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
पुनः कुशा,
जल, तिल हाथ में लेकर यह वाक्य कहे-
ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत मोक्षकाम:
अस्थिसंचयनिमित्तक एष पिण्डस्ते प्रत्यवनेजनं ते मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
कहकर एक चुल्लू जल पिण्ड पर छोड़े।
अब अस्थियों को थाल में लेकर तालाब
या नदी के पास पहुंचे और गंगाजल व दूध से अच्छी तरह से अस्थियों को धो व सुखाकर पीपल
वृक्ष के जड़ के पास नीचे किसी घड़े में डालकर गडाकर रख देवें।
अन्त्येष्टि संस्कार घण्टबन्धनम्-
शास्त्रों के मतानुसार
मृत्यु के तीसरे दिन मुखाग्नि देनेवाले को पीपल वृक्ष के ऊपर दो घंट बाँधना
चाहिये। एक दीपक के लिए और एक जल के लिए। उसमें दस दिन तक नियम से प्रात:काल जल और
सायंकाल जल देकर दीपक जलाना चाहिये।
घण्ट में जलदान करने हेतु यह संकल्प
करे-
ॐ अद्यामुकगोत्र अमुकप्रेत इदं
त्वद्गताध्वतापश्रमनिवर्तकाशौचान्तदिनपर्यन्तम् अश्वस्थशाखावलंवितं सतिलजलं ते
मयादीयते तवोपतिष्ठताम्।
निम्न श्लोक का उच्चारण करके
दाहकर्ता घंट में जल छोड़े-
घटस्य जलप्रदानेन सूचीमुख महोदर।
तृप्य त्वन्तु तथा प्रेत दीयते
सलिलं मया॥१॥
सर्वतापोपशमनमध्वश्रमविनाशनम् ।
प्रेततृप्तिकरं वारि पिब प्रेत सुखी
भव॥२॥
सायंकाल जल और दीपदान के हेतु यह
संकल्प करे-
ॐ अद्य अमुकगोत्र अमुकप्रेत
अशौचान्तर्गत-अमुकदिने यममार्गानुसंतरणघोरतामिस्त्रान्धतम:सन्तरणकाम एष दीपस्ते
मया दीयते तवोपतिष्ठताम्।
निम्न श्लोक का उच्चारण कर
सूर्यास्त से पूर्व दाहकर्ता दीपदान करे-
यमद्वारे महाघोरे
चन्द्रसूर्यविवर्जिते।
अन्धकारप्रशान्त्यर्थं दीपोऽयं
दीयते मया।
यमद्वारे महाघोरे अन्धेन तमसावृते।
तत्रावलोकनार्थाय दीपोऽयमुपतिष्ठताम्॥
जनेऊ को सव्य करके निम्न श्लोक का
उच्चारण करके दाहकर्ता पीपल की प्रार्थना करे-
अश्वत्थ पुण्यवृक्षोऽसि
वासुदेवात्मक प्रभो।
अनेन जलदानेन प्रेतमोक्षप्रदो भव॥
॥ इति अन्त्येष्टि संस्कार ।।
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