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- उच्छिष्ट गणेश स्तोत्र
- उच्छिष्ट गणपति
- श्रीकृष्ण कवचम्
- कृष्णचन्द्राष्टकम्
- श्रीकृष्णद्वादशनामस्तोत्रम्
- नागपत्नीकृत कृष्णस्तुतिः
- श्रीकृष्ण कवचम्
- श्रीकृष्णस्तवराज
- राधामाधव प्रातः स्तवराज
- श्रीकृष्ण ब्रह्माण्ड पावन कवच
- श्रीयुगलकिशोराष्टक
- श्रीकृष्णस्तोत्रम्
- श्रीकृष्णशरणाष्टकम्
- श्रीगोविन्द दामोदर स्तोत्र
- कृष्ण जन्म स्तुति
- गर्भगतकृष्णस्तुति
- कृष्णाष्टकम्
- अद्वैताष्टकम्
- आनन्द चन्द्रिका स्तोत्रम्
- अच्युताष्टकम्
- मधुराष्टकम्
- वैदिक हवन विधि
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 17
- डी पी कर्मकांड भाग-१८ नित्य होम विधि
- डी पी कर्मकांड भाग-१७ कुशकंडिका
- भैरव
- रघुवंशम् छटवां सर्ग
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 16
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड– अध्याय 15
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 14
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 13
- हिरण्यगर्भ सूक्त
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 12
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 11
- कालसर्प दोष शांति मुहूर्त
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 10
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 09
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 08
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 07
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 06
- कालसर्प योग शांति प्रार्थना
- नागसहस्रनामावलि
- सदाशिवाष्टकम्
- सशक्तिशिवनवकम्
- सदाशिव शाकिनी कवचम्
- भैरव स्तुति
- शिवाष्टकम्
- शिवमहापुराण –रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 05
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 04
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 03
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 02
- शिवमहापुराण – द्वितीय रुद्रसंहिता प्रथम-सृष्टिखण्ड...
- डी पी कर्मकांड भाग- १५ क्षेत्रपाल
- अग्न्युत्तारण प्राण-प्रतिष्ठा
- देवी देवताओं का गायत्री मन्त्र
- कालसर्प योग
- मार्तण्ड भैरव अष्टोत्तरशत नामावलि
- मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
- बटुक भैरव कवचम्
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
उच्छिष्ट गणपति
नीले रंग के गणेश जी को
"उच्छिष्ट गणपति" कहा जाता है, यह
नीले रंग के चार भुजाधारी हैं। सामान्य दशाओं में इनकी पूजा नहीं की जाती। उच्च पद
प्राप्ति, कामना सिद्धि और तंत्र मंत्र से बचाव के लिए इनकी
उपासना विशेष रूप होती है।
श्रीउच्छिष्टमहागणपति ध्यानम्
मूलाधारे सुयोन्याख्ये
चिदग्निवरमण्डले ।
समासीनं पराशक्तिविग्रहं गणनायकम्
॥ १॥
रक्तोत्पलसमप्रख्यं नीलमेघसमप्रभम्
।
रत्नप्रभालसद्दीप्तमुकुटाञ्चितमस्तकम्
॥ २॥
करुणारससुधाधारास्रवदक्षित्रयान्वितम्
।
अक्षिकुक्षिमहावक्षः गण्डशूकादिभूषणम्
॥ ३॥
पाशाङ्कुशेक्षुकोदण्डपञ्चबाणलसत्करम्
।
नीलकान्तिघनीभूतनीलवाणीसुपार्श्वकम्
॥ ४॥
सुत्रिकोणाख्यनीलाङ्गरसास्वादनतत्परम्
।
पत्न्यालिङ्गतवामाङ्गं
सप्तमातृनिषेवितम् ॥ ५॥
ब्रह्मविष्णुमहेन्द्रादिसम्प्रपूजितपादुकम्
।
महद्द्वयपदोवाच्यपादुकामन्त्रसारकम्
॥ ६॥
नवावरणयज्ञाख्य वरिवस्याविधिप्रियम्
।
पञ्चावरणयज्ञाख्य
विधिसम्पूज्यपादुकम् ॥ ७॥
अखण्डकोटिब्रह्माण्डामण्डलेश्वरमव्ययम्
।
रदनाक्षरसम्पूर्णमन्त्रराजस्वरूपिणम्
॥ ८॥
गिरिव्याहृतिवर्णात्ममन्त्रतत्वप्रदर्शकम्
।
अरुणारुणतनुच्छायमहाकामकलात्मकम्
॥ ९॥
महागोप्यमहाविद्या प्रकाशितकलेबरम्
।
चिच्छिवं चिद्भवं शान्तं
त्रिगुणादिविवर्जितम् ॥ १०॥
अष्टोत्तरशताभिख्यकलान्यासविधिप्रियम्
।
चिदाकारमहाद्वीपमध्यवाससुविग्रहम् ॥
११॥
चिदब्धिमथनोत्पन्नचित्सारघनविग्रहम्
।
वाचामगोचरं शान्तं
शुद्धचैतन्यरूपिणम् ॥ १२॥
मूलकन्दस्थचिद्देशनवताण्डवपण्डितम्
।
षडम्बुरुहसंस्थायिपरचिव्द्योमभासुरम्
॥ १३॥
अकारादिक्षकारान्तवर्णलक्षितचित्सुखम्
।
अकाराक्षरनिर्दिष्टप्रकाशमयविग्रहम्
॥ १४॥
हकाराख्यविमर्शात्मप्रभादीप्तजगत्त्रयम्
।
महाहंसजपध्यानविधिज्ञातस्वरूपकम् ॥
१५॥
सदोदितमहाप्रज्ञाकारं संसारतारकम् ।
मोक्षलक्ष्मीप्रदातारं
कालातीतमहाप्रभुम् ॥ १६॥
नामरूपादिसम्भिन्ननित्यपूर्णचिदुत्तमम्
।
प्रत्यग्भूतमहाप्रज्ञागात्रगोचरविग्रहम्
॥ १७॥
महाकुण्डलिनीरूपं
षट्च्क्रनगरेश्वरम् ।
अप्राकृतमहादिव्यचैतन्यात्मस्वरूपिणम्
॥ १८॥
नादबिन्दुकलातीतं कार्यकारणवर्जितम्
।
षडम्बुरुहचक्रान्तः
स्फुरत्सौदामिनीप्रभम् ॥ १९॥
तत्त्वमस्यादिवाक्यार्थपरिबोधनपण्डितम्
।
ब्रह्मादिकीटपर्यन्तव्याप्तसंवित्सुधारसम्
॥ २०॥
इच्छाज्ञानक्रियानन्दसर्वतन्त्र
स्वतन्त्रिणम् ।
हृदयग्रन्थिभिद्विद्यादर्शनोत्सुकमानसम्
॥ २१॥
पञ्चकृत्यपरेशानं महात्रैपुरविग्रहम्
।
श्रीचक्रराजमध्यस्थशून्यग्राममहेश्वरम्
॥ २२॥
ब्रह्मविद्यास्वरूपश्रीललितारूपधारिणम्
।
वशिन्याद्यावृतं साध्यं
अद्वयानन्दवर्धनम् ॥ २३॥
आदिशङ्कररूपेशदक्षिणामूर्तिपूजितम्
।
असंस्पृष्टमहाप्रज्ञाभिख्याद्वैतस्थितिप्रभम्
॥ २४॥
एवं सञ्चितयेद्देवं उच्छिष्टगणनायकम्
।
नीलतारासमेतं तु
सच्चिदानन्दविग्रहम् ॥ २५॥
उच्छिष्ट गणपति प्रयोगः
उच्छिष्ट गणपति का प्रयोग अत्यंत
सरल है तथा इसकी साधना में अशुचि-शुचि आदि बंधन नहीं हैं तथा मंत्र शीघ्रफल प्रद
है । यह अक्षय भण्डार का देवता है । प्राचीन समय में यति जाति के साधक उच्छिष्ट
गणपति या उच्छिष्ट चाण्डालिनी (मातङ्गी) की साधना व सिद्धि द्वारा थोड़े से भोजन
प्रसाद से नगर व ग्राम का भण्डारा कर देते थे । इसकी साधना करते समय मुँह उच्छिष्ट
होना चाहिये । मुँह में गुड़, पताशा,
सुपारी, लौंग, इलायची
ताम्बूल आदि कोई एक पदार्थ होना चाहिये । पृथक-पृथक कामना हेतु पृथक-पृथक पदार्थ
है । यथा -लौंग, इलायची वशीकरण हेतु । सुपारी फल प्राप्ति व
वशीकरण हेतु । गुडौदक – अन्नधनवृद्धि हेतु तथा सर्व सिद्धि
हेतु ताम्बूल का प्रयोग करें । अगर साधक पर तामसी कृत्या प्रयोग किया हुआ है,
तो उच्छिष्ट गणपति शत्रु की गन्दी क्रियाओं को नष्ट कर साधक की
रक्षा करते हैं।
॥ नवाक्षर उच्छिष्टगणपति मंत्रः
॥
मंत्र –
हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।
विनियोगः –
ॐ अस्य श्रीउच्छिष्ट गणपति मन्त्रस्य कंकोल ऋषिः, विराट् छन्दः, उच्छिष्टगणपति देवता, सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।
ऋष्यादिन्यासः –
ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोल ऋषिः नमः शिरसि, विराट् छन्दसे नमः मुखे, उच्छिष्ट गणपति देवता नमः
हृदये, सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
करन्यासः – ॐ हस्ति अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ पिशाचि तर्जनीभ्यां नमः । ॐ लिखे
मध्यमाभ्यां नमः । ॐ स्वाहा अनामिकाभ्यां नमः । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे कनिष्ठिकाभ्यां
नमः । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
हृदयादिन्यासः- ॐ हस्ति हृदयाय नमः
। ॐ पिशाचि शिरसे स्वाहा । ॐ लिखे शिखायै वषट् । ॐ स्वाहा कवचाय हुम् । ॐ हस्ति
पिशाचिलिखे नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे स्वाहा अस्त्राय फट् स्वाहा ।
॥ ध्यानम् ॥
चतुर्भुजं रक्ततनुं त्रिनेत्रं
पाशाङ्कुशौ मोदकपात्रदन्तौ ।
करैर्दधानं सरसीरुहस्थमुन्मत्त गणेश
मीडे ।
(क्वचिद् पाशाङ्कुशौ कल्पलतां स्वदन्तं
करैवहन्तं कनकाद्रि कान्ति)
॥ दशाक्षर उच्छिष्ट गणेश मंत्र ॥
मन्त्रः –
१॰ गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । २॰ ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।
॥ द्वादशाक्षर उच्छिष्ट गणेश
मंत्र ॥
मन्त्रः –
ॐ ह्रीं गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।
॥ एकोनविंशत्यक्षर उच्छिष्टगणेश
मंत्र ॥
मन्त्रः- ॐ नमो उच्छिष्ट गणेशाय
हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा ।
॥ त्रिंशदक्षर उच्छिष्टगणेश
मंत्र ॥
मन्त्रः- ॐ नमो हस्तिमुखाय लंबोदराय
उच्छिष्ट महात्मने क्रां क्रीं ह्रीं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा ।
विनियोगः- अस्योच्छिष्ट गणपति
मंत्रस्य गणक ऋषिः, गायत्री छन्दः ,
उच्छिष्ट गणपतिर्देवता, ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थे
जपे विनियोगः ।
॥ एक-त्रिंशदक्षर उच्छिष्टगणेश
मंत्र ॥
मन्त्रः- ॐ नमो हस्तिमुखाय लंबोदराय
उच्छिष्ट महात्मने क्रां क्रीं ह्रीं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा ।
॥ द्वात्रिंशदक्षर उच्छिष्टगणेश
मंत्र ॥
मन्त्रः- ॐ हस्तिमुखाय लंबोदराय
उच्छिष्ट महात्मने आं क्रों ह्रीं क्लीं ह्रीं हुं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा ।
॥ सप्तत्रिंदक्षर
उच्छिष्टमहागणपति मंत्रः ॥
मन्त्रः- ॐ नमो भगवते एकदंष्ट्राय
हस्तिमुखाय लंबोदराय उच्छिष्ट महात्मने आँ क्रों ह्रीं गं घे घे स्वाहा ।
विनियोग :- ॐ अस्य श्रीउच्छिष्ट
महागणपति मंत्रस्य मतंग भगवान ऋषिः, गायत्री
छन्दः, उच्छिष्टमहागणपतिर्देवता, गं
बीजम्, स्वाहा शक्तिः, ह्रीं कीलकं,
ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । (रुद्रयामले) (मंत्रमहोदधि में
गणक ऋषि कहा है)
॥ ध्यानम् ॥
शरान्धनुः पाशसृणी स्वहस्तै
र्दधानमारक्त सरोरुहस्थम् ।
विवस्त्र पत्न्यां
सुरतप्रवृत्तमुच्छिष्टमम्बासुतमाश्रयेऽहम् ॥
बायें हाथों में धनुष एवं पाश
दाहिने हाथों में शर एवं अङ्कुश धारण किये हुये लालकमल पर आसीन अपनी विवस्त्र
पत्नियों से रति में निरत पार्वती पुत्र उच्छिष्ट महागणपति का मैं आश्रय लेता हुँ
।
॥ एकाधिक चत्वारिंशदक्षर
उच्छिष्टमहागणपति मंत्रः ॥
मन्त्रः-
ॐ नमो भगवते एकदंष्ट्राय हस्तिमुखाय
लम्बोदराय उच्छिष्ट महात्मने आँ क्रों ह्रीं गं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा ।
उच्छिष्टगणपति यंत्रार्चनम्
मंडल मध्य में गणपति की नौ पीठ शक्तियों का पूजन करें ।पूर्वादिक्रमेण –
ॐ तीव्रायै नमः । ॐ चालिन्यै नमः । ॐ नन्दायै नमः । ॐ भोगदायै नमः ।
ॐ कामरूपिण्यै नमः । ॐ उग्रायै नमः । ॐ तेजोवत्यै नमः । ॐ सत्यायै नमः । मध्ये- ॐ
विघ्ननाशिन्यै नमः । गणपति की मूर्ति को घृत से अभ्यजन करके दुग्धधारा व जलधारा से
अग्न्युत्तारण करके शुभ्र वस्त्र से पोंछन करके यंत्र के मध्य में रखें । देव की
गंधार्चन से पूजा करके यंत्र के प्रत्येक आवरण की पूजा
करें । यंत्रस्थ देवताओं की नामावलि के साथ “नमः श्री
पादुकां पूजयामि तर्पयामि” कहते हुये अंगुष्ठ तर्जनी से
गंधपुष्पाक्षत छोड़ें तथा अर्घपात्र के जल से तर्पण करे (स्वयं करे तो वाम हाथ से
अनामिका व अंगुष्ठ के सहयोग से तर्पण करे) देव से आज्ञा ग्रहण करें ।
सचिन्मयः परोदेव परामृतरस प्रिय ।
अनुज्ञां देहि गणेश परिवारार्चनाय
मे ॥
प्रथमावरणम् :-
षट्कोण मध्ये –
अग्निकोणे – ॐ गं हस्ति हृदयाय नमः हृदय श्री
पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ॥ १ ॥
नैर्ऋत्ये –
ॐ गीं पिशाचि शिरसि स्वाहा, पिशाचि श्री पा० ॥
२ ॥
वायव्ये –
ॐ गूं लिखे शिखायै वषट्, शिखा श्री पा० ॥ ३ ॥
ऐशान्ये –
ॐ गें स्वाहा कवचाय हुं कवच श्री पा० ॥ ४ ॥
मध्याग्रे –
ॐ गौं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा नेत्रत्रयाय वौषट्, नेत्रत्रयाय श्री पा० ॥ ५ ॥
दिक्षु –
ॐ गः हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । अस्त्राय फट् अस्त्र श्री पा० ॥ ६
॥
पुष्पाञ्जलि मादाय :-
ॐ अभीष्ट सिद्धिं मे देहि
शरणागतवत्सल ।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं
प्रथमावरणार्चनम् ॥
पूजिता: तर्पिताः सन्तु कहकर
विशेषार्घ से जल छोड़ें ।
द्वितीयावरणम् :-
अष्टदले पूर्वादि क्रमेण –
ॐ ब्राह्मयै नमः, ब्राह्मी श्री पा० पू० त०
नमः ॥ १ ॥
ॐ महेश्वर्यै नमः,
माहेश्वरी श्री पा० ॥ २ ॥
ॐ कौमार्यै नमः,
कौमारी श्री पा० पू० त० ॥ ३ ॥
ॐ वैष्णव्यै नमः,
वैष्णवी श्री पा० ॥ ४ ॥
ॐ वाराह्यै नमः,
वाराहीं श्री पा० ॥ ५ ॥
ॐ इन्द्राण्यै नमः,
इन्द्राणी श्री पा० ॥ ६ ॥
ॐ चामुण्डायै नमः,
चामुण्डा श्री पा० ॥ ७ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः,
महालक्ष्मी श्री पा० पू० त० ॥ ८ ॥
पुष्पाञ्जलि –
ॐ अभीष्ट सिद्धिं मे देहि
शरणागतवत्सल ।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं
द्वितीयावरणार्चनम् ॥
पूजिता तर्पिताः सन्तु से जल छोडें
।
तृतीयावरणम् :- अष्टदल के बाहर
कर्णिका समीपे – भूपूर मध्ये । दशो दिशाओं में –
पूर्वे –
ॐ वक्रतुण्डाय नमः, वक्रतुण्ड श्री० पा० त०
नमः ॥ १ ॥
आग्नेये –
ॐ एकदंष्ट्राय नमः श्री० पा० ॥ २ ॥
दक्षिणे –
लंबोदराय नमः श्री० पा० ॥ ३ ॥
नैर्ऋत्ये –
ॐ विकटाय नमः श्री पा० ॥ ४ ॥
पश्चिमे –
ॐ धूम्रवर्णाय नमः श्री० पा० ॥ ५ ॥
वायव्ये –
ॐ विघ्नराजाय नमः श्री० पा० ॥ ६ ॥
उत्तरे –
ॐ गजाननाय नमः श्री० पा० ॥ ७ ॥
ऐशान्ये –
ॐ विनायकाय नमः श्री० पा० ॥ ८ ॥
प्राच्येशानयोर्मध्ये –
ॐ गणपतये नमः श्री० पा० ॥ ९ ॥
पश्चिमनिर्ऋतियोर्मध्ये –
ॐ हस्तिदंताय नमः, हस्तिदंत श्री० पा० त० नमः
॥ १० ॥
पुष्पाञ्जलि –
ॐ अभीष्ट सिद्धिं मे देहि
शरणागतवत्सल ।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं
तृतीयावरणार्चनम् ॥
पूजिता: तर्पिताः सन्तु से जल
छोड़ें ।
चतुर्थावरणम् :- भुपूरे दशदिक्षु –
पूर्वे –
ॐ इन्द्राय नमः, इन्द्र श्री पा० पू० त० नमः ॥
१ ॥
ॐ अग्नये नमः श्री पा० ॥ २ ॥
ॐ यमाय नमः श्री पा० ॥ ३ ॥
ॐ निर्ऋतये नमः श्री पा० ॥ ४ ॥
ॐ वरुणाय नमः श्री पा० ॥ ४ ॥
ॐ वायवे नमः श्री पा० ॥ ५ ॥
ॐ कुबेराय नमः श्री पा० ॥ ६ ॥
ऐशान्ये –
ॐ ईशानाय नम० श्री पा० ॥ ७ ॥
इन्द्रेईशानयोर्मध्ये –
ॐ ब्रह्मणे नमः ब्रह्मा श्री पा० ॥ ८ ॥
वरुणनैर्ऋतर्योर्मध्ये –
ॐ अनंताय नमः अनन्त श्री पा० पू० त० ॥ ९ ॥
पुष्पाञ्जलि –
ॐ अभीष्ट सिद्धिं मे देहि
शरणागतवत्सल ।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं
चतुर्थावरणार्चनम् ॥
पूजिताः तर्पिताः सन्तु से जल
छोड़ें ।
पंचमावरणम् –
भुपूरे इन्द्रादि लोकपाल समीपे –
ॐ वं वज्राय नमः श्री पा० ॥ १ ॥
ॐ शं शक्त्यै नमः श्री० पा० ॥ २ ॥
ॐ दं दण्डाय नमः श्री पा० ॥ ३ ॥
ॐ खं खड्गाय नमः श्री० पा० ॥ ४ ॥
ॐ पां पाशाय नमः श्री० पा० ॥ ५ ॥
ॐ अं अंकुशाय नमः श्री० पा० ॥ ६ ॥
ॐ गं गदायै नमः श्री० पा० ॥ ७ ॥
ॐ त्रिं त्रिशूलाय नमः श्री पा० ॥ ८
॥
ॐ पं पद्माय नमः श्री पा० ॥ ९ ॥
ॐ चं चक्राय नमः,
चक्र श्री पा० पू० त० नमः ॥ १० ॥
पुष्पाञ्जलि –
ॐ अभीष्ट सिद्धिं मे देहि
शरणागतवत्सल ।
भक्त्या समर्पये तुभ्यं
चतुर्थावरणार्चनम् ॥
‘पूजिता: तर्पिता: सन्तु’ से जल छोडें ।
उच्छिष्टगणपति पुरश्चरण विधिः
वीरभद्र,
उड्डीश तंत्र, मंत्रमहार्णव, मंत्रमहोदधि के अनुसार रक्तचंदन (कपि) अथवा श्वेताद्रर्क (श्वेतआर्क) की
प्रतिमा अपने अंगुष्ठ परिमाण की पुष्य नक्षत्र में बनायें । अन्य ग्रन्थों में
प्रतिमा को हाथी के ऊपर बैठकर बनाने को कहा है । अभाव में पत्थर या मिट्टी से बने
हाथी पर बैठकर बनायें । यह भी नहीं हो सके तो हाथी के चित्रासन पर बैठकर बनाये ।
मूर्ति को गल्ले में रखने से धन वृद्धि होती है । शत्रुनाश के लिये निम्बकाष्ठ की
प्रतिमा बनाये अथवा लवण की प्रतिमा बनायें । गुड़ से निर्मित प्रतिमा सौभाग्य को
देने वाली तथा बाँबी की मिट्टी से बनी प्रतिमा अभीष्ट की सिद्धि करती है । साधक
एकलक्ष जप संख्या पूरी करके हवनादि कर्म करें । कृष्णपक्ष की चतुर्दशी से
शुक्लपक्ष की चतुर्दशी पर्यन्त गुड़ तथा पायसान्न निवेदित करें । कृष्णपक्ष की
अष्टमी से चतुर्दशी पर्यन्त नित्य साढ़े आठ हजार जप करे ८५० आहुतियाँ देकर
तर्पणादि करें । इससे अभीष्ट सिद्धि को प्राप्त करें । कुबेर ने इस मंत्र के
प्रभाव से नौ निधियों को प्राप्त किया तथा सुग्रीव एवं विभीषण ने भी गणपति के वर
से राज्य को प्राप्त किया । मधुमिश्रित लाजा होम करने से संसार को वशीभूत करने की शक्ति
प्राप्त होवे, कन्या यदि करे तो शीघ्र वर को प्राप्त करें ।
भोजन से पूर्व गणपति के निमित्त ग्रासान्न निकाल देवे तथा भोजन करते समय भी जप
करने से मंत्र सिद्ध होता है । शय्या पर सोये हुये उच्छिष्टावस्था में जप करने से
शत्रु भी वश में हो जाता है । कटु-तैल से मिश्रित राजीपुष्पों के हवन से शत्रुओं
में विद्वेषण पैदा होवे । वाद विवाद में यह मंत्र विजय प्रदान करता है । नदी के जल
से २७ बार अभिमंत्रित कर मुँह धोये तो वाक् सिद्धि होवें । साधक लाल वस्त्र पहन कर
लाल चंदन लगाकर ताम्बूल खाते हुये या नैवेद्य के मोदकादि को खाते हुये रक्तचंदन की
माला पर जप करे, तुलसी की माला ग्रहण नहीं करें । पूजित
मूर्ति को मद्यपात्र में रखकर एक हाथ नीचे भूमि में गाड़ें और उस पर बैठकर अहर्निश
जप करे तो एक सप्ताह के अन्दर सभी उपद्रव शांत होकर धन वैभव की प्राप्ति होवे । यह
तामस प्रयोग है अत: नियम व्रत व सावधानी से करना चाहिये ।
बलि विधानम् :–
मधु, मांस माषान्न, पायसान्न
अथवा फलादि से बलि प्रदान करें ।
बलि मंत्रः- गं हं क्लौं ग्लौं
उच्छिष्ट गणेशाय महायक्षायायं बलिः ।
॥ इति उच्छिष्ट गणपति यंत्रार्चनम्
॥
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