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- उच्छिष्ट गणपति
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- श्रीकृष्ण कवचम्
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- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 17
- डी पी कर्मकांड भाग-१८ नित्य होम विधि
- डी पी कर्मकांड भाग-१७ कुशकंडिका
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- रघुवंशम् छटवां सर्ग
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 16
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड– अध्याय 15
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 14
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 13
- हिरण्यगर्भ सूक्त
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- कालसर्प दोष शांति मुहूर्त
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- कालसर्प योग शांति प्रार्थना
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- शिवमहापुराण – द्वितीय रुद्रसंहिता प्रथम-सृष्टिखण्ड...
- डी पी कर्मकांड भाग- १५ क्षेत्रपाल
- अग्न्युत्तारण प्राण-प्रतिष्ठा
- देवी देवताओं का गायत्री मन्त्र
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मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
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रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
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रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
अद्वैताष्टकम्
अद्वैताष्टकम् - जिन पापों की
शुद्धि के लिए कोई उपाय नहीं, उनके लिए
भगवान के नामों के स्तोत्र का पाठ करना सबसे अच्छा साधन है । नामों का पाठ
मंगलकारी, मनवांछित फल देने वाला, दु:ख-दारिद्रय,
रोग व ऋण को दूर करने वाला और आयु व संतान को देने वाला माना गया है
।
अद्वैताष्टकम्
हुहुङ्कारगर्जनादि अहोरात्रसद्गुणं
हा कृष्ण राधिकानाथ प्रार्थनादिभावनम् ।
धूपदीपकस्तुरी च चन्द्रनादिलेपनं
सीतानाथाद्वैतचरणारविन्दभावनम् ॥ १॥
गङ्गावारि मनोहारि तुलस्यादि मञ्जरी
कृष्णज्ञानसदाध्यान प्रेमवारिझर्झरी ।
कृपाब्धिः करुणानाथ भविष्यति
प्रार्थनं
सीतानाथाद्वैतचरणारविन्दभावनम् ॥ २॥
मुहुर्मुहुः कृष्ण कृष्ण उच्चैः
स्वरे गायतं
अहे नाथ जगत्त्रातः मम दृष्टिगोचरम् ।
द्विभुज करुणानाथ दीयतां सुदर्शनं
सीतानाथाद्वैतचरणारविन्दभावनम् ॥ ३॥
श्री अद्वैतप्रार्थनार्थ
जगन्नाथालयं
शचीमातुर्गर्भजात चैतन्यकरुणामयम् ।
श्री अद्वैतसङ्गरङ्गकीर्तनविलासनं
सीतानाथाद्वैतचरणारविन्दभावनम् ॥ ४॥
अद्वैतचरणारविन्दज्ञानध्यानभावनं
सदाद्वैतपादपद्मरेणुराशिधारणम् ।
देहि भक्तिं जगन्नाथ रक्ष मामभजनं
सीतानाथाद्वैतचरणारविन्दभावनम् ॥ ५॥
सर्वदातः सीतानाथ प्राणेश्वर
सद्गुणं
ये जपन्ति सीतानाथपादपद्मकेवलम् ।
दीयतां करुणानाथ भक्तियोगः तत्क्षणं
सीतानाथाद्वैतचरणारविन्दभावनम् ॥ ६॥
श्री चैतन्य जयाद्वैत नित्यानन्द
करुणामयं
एक अङ्ग त्रिधामूर्ति कैशोरादि सदा वरम् ।
जीवत्राण भक्तिज्ञान हुङ्कारादि
गर्जनं
सीतानाथाद्वैतचरणारविन्दभावनम् ॥ ७॥
दीनहीननिन्दकादि प्रेमभक्तिदायकं
सर्वदातः सीतानाथ शान्तिपुरनायकम् ।
रागरङ्गसङ्गदोषकर्मयोगमोक्षणं
सीतानाथाद्वैतचरणारविन्दभावनम् ॥ ८॥
इति सार्वभौम भट्टाचार्यविरचितं
अद्वैताष्टकं सम्पूर्णम् ।
अद्वैताष्टकं २
गङ्गातीरे तत्पयोभिस्तुलस्यः
पत्रैः पुष्पैः प्रेमहुङ्कारघोषैः ।
प्राकट्यार्थं गौरमाराधयद्यः
श्रीलाद्वैताचार्यमेतं प्रपद्ये ॥ १॥
यद्धुङ्करैः प्रेमसिन्धोर्विकारै-
राकृष्टः सन् गौरगोलोकनाथः ।
आविर्भुतः श्रीनवद्वीपमध्ये
श्रीलाद्वैताचार्यमेतं प्रपद्ये ॥ २॥
ब्रह्मादीमां दुर्लभप्रेमपूरै-
रादिनां यः प्लावयामास लोकं ।
आविर्भाव्य श्रीलचैतन्यचन्द्रं
श्रीलाद्वैताचार्यमेतं प्रपद्ये ॥ ३॥
श्रीचैतन्यः सर्वशक्तिप्रपूर्णो
यस्यैवाजमात्रतोऽन्तर्ददेऽपि ।
दुर्विजेयं यस्य कारुण्यकृत्यं
श्रीलाद्वैताचार्यमेतं प्रपद्ये ॥ ४॥
सृष्टिस्थित्यन्तं विधातुं प्रवृत्त
यस्यंसंसः ब्रह्मविष्ण्विश्वराख्याः ।
येनाभिन्नं तं महाविष्णुरूपं
श्रीलाद्वैताचार्यमेतं प्रपद्ये ॥ ५॥
कस्मिंश्चिद्यः श्रूयते
चाश्रयत्वात्
शम्भोरित्थं सम्भवन्नाम धाम ।
सर्वाराध्यं भक्तिमात्रैकसाध्यं
श्रीलाद्वैताचार्यमेतं प्रपद्ये ॥ ६॥
सीतानाम्नि प्रेयसी प्रेमपूर्ण
पुत्रो यस्यऽप्यच्युतानन्दनाम ।
श्रीचैतन्यप्रेमपूरप्रपूर्णः
श्रीलाद्वैताचार्यमेतं प्रपद्ये ॥ ७॥
नित्यानन्दद्वैततोऽद्वैतनाम
भक्त्याख्यानद्यः सदाचर्यनाम ।
शश्वच्चेतसाचरद्गौरधाम
श्रीलाद्वैताचार्यमेतं प्रपद्ये ॥ ८॥
प्रातः प्रीतः प्रत्यहं संपठेद्यः
सीतानाथस्यष्टकं शुद्धबुद्धिः ।
सोऽयं साम्यं तस्य पादारविन्दे
विन्दन्भक्तिं तत्प्रियात्वं प्रयाति ॥ ९॥
इति सार्वभौम भट्टाचार्यविरचितं अद्वैताष्टकं सम्पूर्णम् ।
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