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कर्मकाण्ड

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सदाशिवाष्टकम्

सदाशिवाष्टकम्

पतञ्जलिकृत सदाशिवाष्टकम् या श्रीशिवपङ्चचामर स्तोत्र या श्रीसभापति स्तोत्रं और श्रीप्रदीप्तनन्दशर्मविरचित सदाशिवाष्टकम् के पाठ से भगवान सदाशिव प्रसन्न होकर अपने भक्तों कि सभी कष्टों को हर लेते हैं ।

सदाशिवाष्टकम्

सदाशिवाष्टकम् च श्रीशिवपङ्चचामरस्तोत्रं च श्रीसभापति स्तोत्रं च

पतञ्जलिरुवाच -

सुवर्णपद्मिनी-तटान्त-दिव्यहर्म्य-वासिने

सुपर्णवाहन-प्रियाय सूर्यकोटि-तेजसे ।

अपर्णया विहारिणे फणाधरेन्द्र-धारिणे

सदा नमश्शिवाय ते सदाशिवाय शंभवे ॥ १॥

सतुङ्ग भङ्ग जह्नुजा सुधांशु खण्ड मौळये

पतङ्गपङ्कजासुहृत्कृपीटयोनिचक्षुषे ।

भुजङ्गराज-मण्डलाय पुण्यशालि-बन्धवे

सदा नमश्शिवाय ते सदाशिवाय शंभवे ॥ २॥

चतुर्मुखाननारविन्द-वेदगीत-भूतये

चतुर्भुजानुजा-शरीर-शोभमान-मूर्तये ।

चतुर्विधार्थ-दान-शौण्ड ताण्डव-स्वरूपिणे

सदा नमश्शिवाय ते सदाशिवाय शंभवे ॥ ३॥

शरन्निशाकर प्रकाश मन्दहास मञ्जुला

धरप्रवाळ भासमान वक्त्रमण्डल श्रिये ।

करस्पुरत्कपालमुक्तरक्त-विष्णुपालिने

सदा नमश्शिवाय ते सदाशिवाय शंभवे ॥ ४॥

सहस्र पुण्डरीक पूजनैक शून्यदर्शनात्-

सहस्रनेत्र कल्पितार्चनाच्युताय भक्तितः ।

सहस्रभानुमण्डल-प्रकाश-चक्रदायिने

सदा नमश्शिवाय ते सदाशिवाय शंभवे ॥ ५॥

रसारथाय रम्यपत्र भृद्रथाङ्गपाणये

रसाधरेन्द्र चापशिञ्जिनीकृतानिलाशिने ।

स्वसारथी-कृताजनुन्नवेदरूपवाजिने

सदा नमश्शिवाय ते सदाशिवाय शंभवे ॥ ६॥

अति प्रगल्भ वीरभद्र-सिंहनाद गर्जित

श्रुतिप्रभीत दक्षयाग भोगिनाक सद्मनाम् ।

गतिप्रदाय गर्जिताखिल-प्रपञ्चसाक्षिणे

सदा नमश्शिवाय ते सदाशिवाय शंभवे ॥ ७॥

मृकण्डुसूनु रक्षणावधूतदण्ड-पाणये

सुगन्धमण्डल स्फुरत्प्रभाजितामृतांशवे ।

अखण्डभोग-सम्पदर्थलोक-भावितात्मने

सदा नमश्शिवाय ते सदाशिवाय शंभवे ॥ ८॥

मधुरिपु-विधि शक्र मुख्य-देवैरपि नियमार्चित-पादपङ्कजाय ।

कनकगिरि-शरासनाय तुभ्यं रजत सभापतये नमश्शिवाय ॥ ९॥

हालास्यनाथाय महेश्वराय हालाहलालंकृत कन्धराय ।

मीनेक्षणायाः पतये शिवाय नमो-नमस्सुन्दर-ताण्डवाय ॥ १०॥

॥ इति श्री हालास्यमाहात्म्ये पतञ्जलिकृतमिदं सदाशिवाष्टकम् ॥

 

श्रीसदाशिवाष्टकम्

नन्दिस्कन्धविराजितं गिरिजापतिं सुरसुन्दरं

गङ्गाधारकपापनाशकताण्डवप्रियनागरम् ।

कामध्वंसकयोगकारकमोक्षदायकत्र्यम्बकं

वन्दे श्रीहरपार्वतीवरदायकं शिवशङ्करम् ॥ १॥

        ओङ्कारेश्वरभैरवं प्रमथेश्वरं वटुकेश्वरं

        श्रीमुक्तेश्वरभीमशङ्करलोकनाथमहेश्वरम् ।

        पातालेश्वरनन्दिकेश्वरशूलिनं कपिलेश्वरं

        वन्दे श्रीहरपार्वतीवरदायकं शिवशङ्करम् ॥ २॥

ईशानेश्वरभूतखेचरक्षेत्रपालकयोगिनं

नेत्रज्वालकदक्षनाशकरामतारणकारितम् ।

कण्ठे वासुकिसर्पशोभितकालकूटविशोषितं

वन्दे श्रीहरपार्वतीवरदायकं शिवशङ्करम् ॥ ३॥

        ब्रह्मामाधवशक्रभास्करचन्द्रनारदसेवितं

        हेरम्बानलयक्षमारुतविश्रवासुतपूजितम् ।

        कैलासालयचारिणं परमेश्वरं गिरिवासिनं

        वन्दे श्रीहरपार्वतीवरदायकं शिवशङ्करम् ॥ ४॥

योग्नीभीषणकालकौणपरक्षकिन्नरवन्दितं

सिद्धश्रीघनजैनगुह्यकनागनायकचर्चितम् ।

कालीकान्तनृमुण्डलम्बितपादपङ्कजशोभितं

वन्दे श्रीहरपार्वतीवरदायकं शिवशङ्करम् ॥ ५॥

        लिङ्गे शोभितब्रह्मभास्वरसत्यसौरभनिर्गुणं

        मायातामससत्त्वराजसगौणकारणकारितम् ।

        विद्यापङ्कजधारिणं पुरुषार्थकारकमङ्गलं

        वन्दे श्रीहरपार्वतीवरदायकं शिवशङ्करम् ॥ ६॥

ब्रह्माण्डालयजीवनायकनायकेश्वरपूजितं

वं वं वं वमघोषितं विजयारसेन विलासितम् ।

श्रीश्रीश्री अवधूतशेखरसिद्धगोरखनामितं

वन्दे श्रीहरपार्वतीवरदायकं शिवशङ्करम् ॥ ७॥

        श्रीमृत्युञ्जयचन्द्रशेखरश्रीस्वप्नेश्वरशूलिनं

        मार्कण्डेश्वरश्रीसुरेश्वरभस्मचन्दनलेपितम् ।

        दिक्पालावृतवेदवर्णितदिव्यताधनदायकं

        वन्दे श्रीहरपार्वतीवरदायकं शिवशङ्करम् ॥ ८॥

इति श्रीप्रदीप्तनन्दशर्मविरचितं श्रीसदाशिवाष्टकं सम्पूर्णम् ।

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