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डी पी कर्मकांड भाग१४- सर्वतोभद्र मंडल Sarvatobhadra mandal
सर्वतोभद्र अर्थात मंगलकारी या कल्याणकारी। सर्वतोभद्र मंडल मंगलप्रद एवं कल्याणकारी माना जाता है। देव प्रतिष्ठा, मांगलिक,गृहप्रवेश, वास्तु पूजा महोत्सव, यज्ञादि अनुष्ठान इत्यादि देव कार्यों में सर्वतोभद्र मंडल वेदी बनाया जाता है। डी पी कर्मकांड भाग में दिये अनुसार गणेश-अम्बिका, कलश, मातृका, वास्तु मंडल, योगिनी, क्षेत्रपाल, नवग्रहमंडल आदि के साथ प्रमुखता से सर्वतोभद्र मंडल के देवताओं को स्थापित एवं प्रतिष्ठित कर उनकी पूजन करें । इसके लिए एक बड़े से चौकी में सफ़ेद कपड़ा बिछाकर सर्वतोभद्र मंडल का निर्माण किया जाता है। सर्वतोभद्र मंडल में सभी ओर ‘भद्र’ नामक कोष्ठक समूह होते हैं । इस मंडल में प्रत्येक दिशा में दो-दो भद्र बने होते हैं । सर्वप्रथम मंडल निर्माण हेतु एक चैकोर रेखाकृति बनायी जाती है। इस चैकोर रेखा में दक्षिण से उत्तर तथा पश्चिम से पूर्व की ओर बराबर-बराबर दो रेखाएं खींचा जाता है। इस प्रकार सर्वतोभद्र मंडल में 19 खड़ी एवं 19 आड़ी लाइनों से कुल मिलाकर 324 चैकोर बनते हैं। इनमें 12 खण्डेन्दु (सफेद), 20 कृष्ण शृंखला (काली), 88 वल्ली (हरे), 72 भद्र (लाल), 96 वापी (सफेद), 20 परिधि (पीला) तथा 16 मध्य (लाल) के कोष्ठक होते हैं। मध्य में कर्णिकायुक्त अष्टदल कमल बनाया जाता है जिसमें लाल रंग का प्रयोग किया जाता है। इसी अष्टदल कमल में कलश रख ऊपर पूर्णपात्ररखा जाता है और पूर्णपात्र के ऊपर अग्न्युत्तारण विधि (जिसे की डी पी कर्मकांड की आने वाले अंकों में दिया जाएगा )पूर्वक यज्ञ कर्म के प्रधान देवता की स्थापना कर उनकी विविध उपचारों से पूजा- अर्चना की जाती है।
पाठकों के लाभार्थ यहाँ पूर्ण सर्वतोभद्र मंडल,लघु सर्वतोभद्र मंडल व केवल नामानुसार सर्वतोभद्र मंडल दिया जा रहा है-
डी पी कर्मकांड भाग१४- पूर्ण सर्वतोभद्रमंडल Sarvatobhadra mandal
पूर्ण सर्वतोभद्रमंडल -
सर्वतोभद्रमंडल के ३२४ कोष्ठकों में
निम्नलिखित ५७ देवताओं की स्थापना की जाती है:
१. ब्रह्मा (मध्य में कर्णिकायुक्त अष्टदल कमल)
ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्, विसीमतः सुरुचो वेनऽआवः।
स बुध्न्याऽ उपमाऽ अस्य विष्ठाः,सतश्च योनिमसतश्चवि वः॥
ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ ब्रह्मणे नमः।
ब्रह्मणमावाहयामि, स्थापयामि ॥
२. सोम (उत्तर वापी)
ॐ वयर्ठ॰ सोमव्रतेतवमनस्तनूषुबिब्भ्रत: । प्रजावन्त: सचेमहि॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सोमाय नमः। सोममावाहयामि,
स्थापयामि ॥
३. ईशान (ईशान कोण में खण्डेन्दु )
ॐ तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसेहूमहे व्यम् ।
पूषानो यथा वेदसामसद्वृधे रक्षितापायुरदब्ध: स्वस्तये ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः ईशानाय नमः। ईशानमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४. इन्द्र (पूर्व वापी)
ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रर्ठ॰ हवे हवे सुहवर्ठ॰ शूरमिन्द्रम् ।
ह्वयामि शक्रं पुरुहूतमिन्द्रर्ठ॰ स्वस्ति नो मघवा धात्विन्द्रः।
ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्राय नमः।
इन्द्रमावाहयामि, स्थापयामि ॥
५. अग्नि (अग्निकोण खण्डेन्दु)
ॐ त्वं नो अग्ने वरुणस्य विद्वान्, देवस्य हेडो अव यासिसीष्ठाः।
यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो, विश्वा द्वेषार्ठ॰ सि प्र मुमुग्ध्यस्मत्।
ॐ भूर्भुवः स्वः अग्नये नमः। अग्निमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
६. यम (दक्षिण वापी)
ॐ सुगन्नुपंथां प्रदिशन्नऽएहि, ज्योतिष्मध्येह्यजरन्नऽआयुः।
अपैतु मृत्युममृतं मऽआगाद्, वैवस्वतो नो ऽ अभयं कृणोतु ।
ॐ भूर्भुवः स्वः यमाय नमः। यममावाहयामि,
स्थापयामि ॥
७. निर्ऋति (नैर्ऋत्यकोण खण्डेन्दु)
ॐ असुन्वन्तमयजमानमानमिच्छ स्तेनस्येत्यामन्विहि तस्करस्य ।
अन्यमस्मदिच्छ सा त इत्या नमो देवि निर्ऋते तुभ्यमस्तु॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
निर्ऋतये नमः। निर्ऋतिमावाहयामि, स्थापयामि ॥
८. वरुण (पश्चिम वापी)
ॐ तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भि:।
अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशर्ठ॰ स मा न आयु: प्रमोषी:॥
ॐ भूर्भुवः स्वः वरुणाय नमः।
वरुणमावाहयामि, स्थापयामि ॥
९. वायु (वायव्य कोण खण्डेन्दु)
ॐ आ नो नियुद्भिः शतिनीभिरध्वरर्ठ॰ सहस्रिणीभिरुप याहि यज्ञम्।
वायो अस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः।
ॐ भूर्भुवः स्वः वायवे नमः। वायुमा वाहयामि,
स्थापयामि ॥
१०. अष्टवसु (वायव्य और उत्तर दिशा के मध्य रक्त भद्र में)
ॐ सुगा वो देवा: सदना अकर्म य आजग्मेर्ठ॰ सवनं जुषाणा:।
भरमाणा वहमाना हवीर्ठ॰ ष्यस्मे धत्त वसवो वसूनि स्वाहा॥
ॐ भूर्भुवः स्वः अष्टवसुभ्यो नमः।
अष्टवसुमावाहयामि, स्थापयामि ॥
११. एकादश रुद्र (उत्तर और ईशान दिशा के मध्य रक्त भद्र में)
ॐ रुद्रा सर्ठ॰ सृज्य पृथिवीम्बृहज्योति: समीधिरे ।
तेषां भानुरजस्त्रऽइच्छुक्रो देवेषुरोचते॥
ॐ भूर्भुवः
स्वः एकादश रुद्रेभ्यो नमः। एकादशरुद्रनावाहयामि,
स्थापयामि ॥
१२. द्वादश आदित्य (ईशान और पूर्वदिशा के मध्य रक्त भद्र में)
ॐ यज्ञो देवानां प्रत्येतिसुम्नमादित्यासोभवतामृडयन्त:।
आवोर्वाचीसुमतिर्ववृत्त्यादर्ठ॰ होश्चिद्यावरिवोवित्तरासदादित्येभ्यस्त्वा ॥
ॐ
भूर्भुवः स्वः द्वादश आदित्येभ्यो नमः। द्वादश आदित्यानावाहयामि,
स्थापयामि ॥
१३. अश्विद्वय (पूर्व और आग्नेय दिशा के मध्य रक्त भद्र में)
ॐ अश्विना तेजसा चक्षुः, प्राणेन सरस्वती वीर्यम्।
वाचेन्द्रो बलेनेन्द्राय, दधुरिन्द्रियम् ।
ॐ भूर्भुवः स्वः अश्विनीकुमाराभ्यां नमः।
अश्विनौमावाहयामि, स्थापयामि ॥
१४. सपैतृक-विश्वेदेव(आग्नेय और दक्षिणदिशा के मध्य रक्त भद्र में)
ॐ विश्वेदेवासऽआगतश्रृणुतामऽइमर्ठ॰हवम्।
एदं बर्हिनिषीदत । उपयामगृहीतोऽसिविश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्यऽएषते यो निर्विश्वेभ्यस्त्वा देवेभ्य:॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सपैतृकविश्वेभ्यो नमः। सपैतृकविश्वान्देवानावाहयामि,
स्थापयामि ॥
१५. सप्तयक्ष(दक्षिण और नैर्ऋत्य दिशा के मध्य रक्त भद्र में) -
ॐ अभित्यन्देवर्ठ॰ सवितारमोण्यो: कविक्रतुमर्चामि सत्यसवर्ठ॰ रत्नधामभि प्रियं मतिं कविम्।
ऊर्ध्वायस्याऽमतिर्भाऽआदिद्युतत्सवीमनिहिरण्य पाणिरमिमीतसुक्रतु: कृपास्व:।
प्रजाभ्यसत्वाप्रजास्त्वानुप्राणन्तु प्रजास्त्वमनु प्राणिहि॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
सप्तयक्षेभ्यो नमः। सप्तयक्षानावाहयामि, स्थापयामि ॥
१६. अष्टकुलनाग(नैर्ऋत्य और पश्चिमदिशा के मध्य रक्त भद्र में)
ॐ नामोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु । ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्य: सर्पेभ्यो नमः।।
ॐ भूर्भुवः स्वः
अष्टकुलनागेभ्यो नमः। अष्टकुलनागानावाहयामि, स्थापयामि ॥
१७. गन्धर्वाप्सरस(पश्चिम और वायव्यदिशा के मध्य रक्त भद्र में) –
ॐ ऋताषाड् ऋतधामाग्निर्गन्धर्व स्तस्यौधयोप्सरसोमुदो नाम ।
स नऽइदं ब्रह्माक्षत्रंपातुतस्मै स्वाहा वाट् ताभ्य: स्वाहा॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
गन्धर्वाप्सरोभ्यो नमः। गन्धर्वाप्सरस: आवाहयामि,
स्थापयामि ॥
१८. स्कंद(वायव्य और उत्तरदिशा के मध्य वापी में)
ॐ यदक्रन्द: प्रथमं जायमान उद्यन्त्समुद्रादुत वा पुरीषात् ।
श्येनस्य पक्षा हरिणस्य बाहू उपस्तुत्यं महि जातं ते अर्वन् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः स्कंदाय नमः।
स्कंदमावाहयामि, स्थापयामि ॥
१९. नन्दी (उसके उत्तर)
ॐ आशु: शिशानो वृषभो न भीमो घनाघन: क्षोभणश्चर्षणीनाम् ।
संक्रन्दनोऽनिमिष एकवीर: शतर्ठ॰ सेना अजयत्साकमिन्द्र:॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
नन्दीश्वराय नमः। नन्दीश्वर मावाहयामि, स्थापयामि ॥
२०. शूल (उसके उत्तर)
ॐ यत्ते गात्रादग्नि पच्यमानादभिशूलं निहतस्यावधावति ।
मा तद्भूम्यामाश्रिषन्मा तृणेषु देवेभ्यस्तदुशद्भयो रातमस्तु॥
ॐ भूर्भुवः स्वः शूलाय
नमः। शूलमावाहयामि, स्थापयामि ॥
२१. महाकाल(उसके उत्तर) –
ॐ कार्षिरसि समुद्रस्य त्वाक्षित्त्या उन्नयामि । समापो अद्भिरग्मत समोषधीभिरोषधी:॥
ॐ भूर्भुवः स्वः महाकालाय नमः। महाकालमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
२२. दक्षादि सप्तगण (ब्रह्मा और ईशान कोण के मध्य कृष्ण श्रृंखला) –
ॐ शुक्रज्योतिश्च चित्रज्योतिश्च सत्यज्योतिश्च ज्योतिष्माँश्च । शुक्रश्च ऋतपाश्चात्यर्ठ॰हा:॥
ॐ भूर्भुवः स्वः दक्षादिभ्यो नमः। दक्षादिमावाहयामि, स्थापयामि॥
२३. दुर्गा शक्ति (ब्रह्मा तथा इन्द्र के मध्य वापी )
ॐ जातवेदसे सुनवाम सोमम्, अरातीयतो नि दहाति वेदः।
स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा, नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्निः॥
ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गायै नमः। दुर्गामावाहयामि, स्थापयामि ॥
२४. विष्णु (उसके पूर्व)
ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे, त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पार्ठ॰ सुरे स्वाहा ।
ॐ
भूर्भुवः स्वः विष्णवे नमः। विष्णुमावाहयामि, स्थापयामि ॥
२५. स्वधा (ब्रह्मा और आग्नेय कोण के मध्य कृष्ण श्रृंखला)
ॐ पितृभ्य: स्वधायिभ्य:स्वधा नम: पितामहेभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधा नम: प्रपितामहेभ्य: स्वधायिभ्यं: स्वधा नम: ।
अक्षन्पितरोऽमीमदन्त पितरोऽतीतृएन्त पितर: पितर: शुन्धध्वम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
स्वधायै नमः। स्वधामावाहयामि, स्थापयामि ॥
२६. मृत्यु रोग (ब्रह्मा और दक्षिणदिशा के मध्य वापी)
ॐ परं मृत्यो अनुपरेहिपन्थां यस्ते अन्यऽइतरो देवयानात् ।
चक्षुष्मते श्रृण्वत ते ब्रवीमि मा न: प्रजार्ठ॰ रीरिषो मोत वीरान्॥
ॐ भूर्भुवः स्वः मृत्युरोगेभ्यो नमः। मृत्युरोगानावाहयामि,
स्थापयामि ॥
२७. गणपति (ब्रह्मा और नैर्ऋत्य कोण के मध्य श्रृंलाख में)
ॐ गणानां त्वा गणपतिर्ठ॰हवामहे, प्रियाणां त्वा प्रियपतिर्ठ॰हवामहे, निधीनां त्वा निधिपतिर्ठ॰ हवामहे, वसो मम।
आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।
ॐ भूर्भुवः स्वः
गणपतये नमः। गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि ।।
२८. अप् (ब्रह्मा और पश्चिमदिशा के मध्य वापी)
ॐ अप्स्वग्ने सधिष्टव सौषधीरनु रुध्यसे। गर्भे सन् जायसे पुनः॥
ॐ भूर्भुवः स्वः अद्भ्यो नमः। अप: आवाहयामि,
स्थापयामि ॥
२९. मरुदगण (ब्रह्मा और वायव्य कोण के मध्य श्रृंलाख)
ॐ मरुतो यस्य हि क्षये पाथा दिवोविमहस:। स सुगोपातमो जन:॥
ॐ भूर्भुवः स्वः मरुद्भ्यो नमः। मरुत: आवाहयामि,
स्थापयामि॥
३०. पृथ्वी (ब्रह्मा के पाद मूल स्थितकर्णिका)
ॐ मही द्यौः पृथिवी च नऽ, इमं यज्ञं मिमिक्षताम्। पिपृतां नो भरीमभिः।
ॐ भूर्भुवः
स्वः पृथिव्यै नमः। पृथ्वीमावाहयामि, स्थापयामि ॥
३१. गंगादिनदी (ब्रह्मा के पाद मूल स्थितकर्णिका)
ॐ पञ्च नद्यः सरस्वतीम्, अपि यन्ति सस्रोतसः। सरस्वती तु पंचधा, सो देशेऽभवत्सरित्।
ॐ भूर्भुवः स्वः गङ्गादिनदीभ्यो नमः।
गंगादि-नदी: आवाहयामि, स्थापयामि ॥
३२. सप्तसागर (ब्रह्मा के पाद मूल स्थितकर्णिका के उत्तर भाग में)
ॐ समुद्रोऽसि नभस्वानार्द्रदानु: शंभूर्मयोभूरभि मा वहि स्वाहा ।
मारुतोऽसि मरुतां गण: शंभूर्मयोभूरभि मा वहि स्वाहा अवस्यूरसि दुवस्वाञ्छुंभूर्मयो भूरभि मा वहि स्वाहा
ॐ भूर्भुवः स्वः सप्तसागरेभ्यो नमः। सप्तसागरानावाहयामि,
स्थापयामि ॥
३३. मेरु (कर्णिका स्थित परिधि केउत्तर)
ॐ परि त्वा गिर्वणो गिर इमा भवन्तु विश्वत: । वृद्धायुमनु वृद्धयो जुष्टा भवन्तु जुष्टय:॥
ॐ भूर्भुवः स्वः मेरवे नमः। मेरुमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
३४. गदा (सर्वतोभद्रमंडल के सत्व परिधि के उत्तरदिशा)
ॐ गणानां त्वा गणपतिर्ठ॰ हवामहे, प्रियाणां त्वा प्रियपतिर्ठ॰ हवामहे, निधीनां त्वा निधिपतिर्ठ॰ हवामहे,
वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।
ॐ भूर्भुवः स्वः गदायै नमः। गदामावाहयामि,
स्थापयामि ॥
३५. त्रिशूल(सर्वतोभद्रमंडल के सत्व परिधि के ईशान कोण)
ॐ त्रिर्ठ॰ शद्धाम विराजति वाक् पतड्गाय धीयते।प्रतिवस्तोरहद्युभि:॥
ॐ भूर्भुवः
स्वः त्रिशूलाय नमः। त्रिशूलमावाहयामि, स्थापयामि ॥
३६. वज्र (सर्वतोभद्रमंडल के सत्व परिधि के पूर्व दिशा)
ॐ महाँ २॥ इन्द्रो वज्रहस्त: षोडशी शर्म यच्छतु। हन्तु पाप्मानं योऽस्मान्द्वेष्टि।
उपयामगृहीतोऽसिमहेन्द्राय त्वैष ते योनिर्महेन्द्राय त्वा॥
ॐ भूर्भुवः स्वः वज्राय नमः। वज्रमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
३७. शक्ति (सर्वतोभद्रमंडल के सत्व परिधि के आग्नेय कोण)
ॐ वसु च मे वसतिश्च मे कर्म च मे शक्तिश्च मेऽर्थश्चम एमश्च म इत्या च मे गतिश्च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
ॐ भूर्भुवः
स्वः शक्तये नमः। शक्तिमावाहयामि, स्थापयामि ॥
३८. दण्ड (सर्वतोभद्रमंडल के सत्व परिधि के दक्षिणदिशा)
ॐ इडऽएह्यदितऽएहि काम्याऽएत। मयि व: काम धरणं भूयात्॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
दण्डाय नमः। दण्डमावाहयामि, स्थापयामि ॥
३९. खड्ग (सर्वतोभद्रमंडल के सत्व परिधि के नैर्ऋत्य कोण)
ॐ खड्गो वैश्वदेव: श्वा कृष्ण: कर्णो गर्दभस्तरक्षुस्ते रक्षसामिन्द्राय सूकर: सिर्ठ॰ हो मारुत: कृकलास:
पिप्पका शकुनिस्ते शरव्यायै विश्वेषां देवानां पृषत: ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः खड्गाय नमः।
खड्गमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४०. पाश (सर्वतोभद्रमंडल के सत्व परिधि के पश्चिमदिशा)
ॐ उदुत्तमं वरुण पाशमस्मदवाधमं वि मध्यंर्ठ॰ श्रथाय । अथा वयमादित्य व्रते तवानागसोऽअदितये स्याम॥
ॐ भूर्भुवः स्वः पाशाय नमः। पाशमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
४१. अंकुश(सर्वतोभद्रमंडल के सत्व परिधि के वायव्य कोण)
ॐ अर्ठ॰ शुश्च मे रश्मिश्च मेऽदाभ्यश्च मेऽधिपतिश्च म उपार्ठ॰ शुश्च मेऽन्तर्वामश्च म ऐन्द्रवायवश्च मे मैत्रावरुणश्च म
आश्विनश्च मे प्रतिप्रस्थानश्च मे शुक्रश्च मे मन्थीच मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥
ॐ
भूर्भुवः स्वःअङ्कुशाय नमः। अङ्कुशमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४२. गौतम(सर्वतोभद्रमंडल के बाहर उत्तरदिशा मेंरक्तवर्णवाली परिधि)
ॐ आयङ्गौ: पृश्निरक्रमीदसदन्मातरं पुर:। पितरं च प्रयन्त्स्व:॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गौतमाय नमः। गौतममावाहयामि,
स्थापयामि ॥
४३. भरद्वाज (सर्वतोभद्रमंडल के बाहर ईशान कोण मेंरक्तवर्णवाली परिधि)
ॐ अयं दक्षिणा विश्वकर्मा तस्य मनो वैश्वकर्मणं ग्रीष्मो मानसस्त्रिष्टुब् ग्रैष्मी त्रिष्टुभ: स्वारर्ठ॰
स्वारादन्तर्यामोऽतर्यामात्पंचदश: पञ्चदशाद् बृहद् भरद्वाजऽऋषि: प्रजापतिगृहीतया त्वया मनो गृह्णामि प्रजाभ्य:॥
ॐ
भूर्भुवः स्वः भरद्वाजाय नमः। भरद्वाजमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
४४. विश्वामित्र(सर्वतोभद्रमंडल के बाहर पूर्व दिशा मेंरक्तवर्णवाली परिधि)
ॐ इदमुत्तरात्स्वस्तस्य श्रोत्रर्ठ॰ सौवर्ठ॰ शरच्छौत्र्यनुष्टुप् शारद्यनुष्टुभ ऐडमैडान्मंथी मन्थिन एकविर्ठ॰श
एकविर्ठ॰शाद्वैराजं विश्वामित्र ऋषि: प्रजापतिगृहीतया त्वया श्रौत्रं गृह्णामि प्रजाब्भ्य:॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
विश्वामित्राय नमः। विश्वामित्रमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४५. कश्यप (सर्वतोभद्रमंडल के बाहर आग्नेय कोण मेंरक्तवर्णवाली परिधि)
ॐ त्र्यायुषं जमदग्ने: कश्यपस्य त्र्यायुषम्। व्वद्देवेषु त्र्यायुषं तन्नोऽअस्तु त्र्यायुषम्॥
ॐ भूर्भुवः स्वः कश्यपाय नमः। कश्यपमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
४६. जमदग्नि (सर्वतोभद्रमंडल के बाहर दक्षिण दिशा मेंरक्तवर्णवाली परिधि)
ॐ अयं पश्चाद्विश्मव्यचास्तस्य चक्षुर्वैश्वव्यचसं वर्षाश्चाक्षुष्यो जगती वार्षी जगत्या ऋक्सममृक्समाच्छुक्र:
शुक्रात्सप्तदश: सप्तदशाद्वैरूपं जमदग्निर्ऋषि: प्रजापतिगृहीतया त्वया चक्षुर्गृह्णामि प्रजाब्भ्य:॥
ॐ भूर्भुवः स्वः जमदग्नये नमः।
जमदग्निमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४७. वसिष्ठ(सर्वतोभद्रमंडल के बाहर नैर्ऋत्य कोण मेंरक्तवर्णवाली परिधि)
ॐ अयं पुरो भुवस्तस्य प्राणो भौवायनो वसन्त: प्राणायनो गायत्री वासन्ती गायत्र्यै गायत्रम् गायत्रादुपा र्ठ ॰
शुरूपार्ठ॰ शोस्त्रिवृत्त्रिवृतो रथन्तरं वसिष्ठ ऋषि: प्रजापतिगृहीतया त्वया प्राणं गृह्णामि प्रजाभ्य:॥
ॐ भूर्भुवः स्वः वसिष्ठाय नमः।
वसिष्ठमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४८. अत्रि (सर्वतोभद्रमंडल के बाहर पश्चिमदिशा मेंरक्तवर्णवाली परिधि)
ॐ अत्र पितरो मादयध्वं व्वथाभागमावृषायध्वम्। अमीमदन्त पितरो व्वथाभागमावृषायिषत॥
ॐ भूर्भुवः स्वः अत्रये
नमः। अत्रिमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४९. अरुन्धती(सर्वतोभद्रमंडल के बाहर वायव्य कोण मेंरक्तवर्णवाली परिधि)
ॐ पत्नीभिरनुगच्छेमदेवा: पुत्रैर्भ्रातृभिरुत वा हिरण्यै:।
नाकं गृभ्णाना: सुकृतस्य लोके तृतीये पृष्ठे अधि रोचने दिव:॥
ॐ
भूर्भुवः स्वः अरुन्धत्यै नमः। अरुन्धतीमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
५०. ऐन्द्री इन्द्राणी (सर्वतोभद्रमंडल के बाहर तृतीयकृष्ण परिधि में पूर्व दिशा)
ॐ अदित्यै रास्नाऽसीन्द्राण्या उष्णीषः। पूषासि घर्माय दीष्व ।
ॐ भूर्भुवः स्वः ऐन्द्रयै नमः। ऐन्द्रीमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
५१. कौमारी (सर्वतोभद्रमंडल के बाहर तृतीयकृष्ण परिधि में आग्नेय कोण)
ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन । ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ॥
ॐ
भूर्भुवः स्वः कौमार्य्यै नमः। कौमारीमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
५२. ब्राह्मी (सर्वतोभद्रमंडल के बाहर तृतीयकृष्ण परिधि में दक्षिण दिशा)
ॐ इन्द्रा याहि धियेषितो, विप्रजूतः सुतावतः। उप ब्रह्माणि वाघतः।
ॐ भूर्भुवः स्वः
ब्रह्म्यै नमः। ब्राह्मीमावाहयामि, स्थापयामि ॥
५३. वाराही (सर्वतोभद्रमंडल के बाहर तृतीयकृष्ण परिधि में नैर्ऋत्य कोण)
ॐ इंद्रस्य क्रोडोऽदित्यै पाजस्यं दिशां जन्नवोऽदित्यै भसज्जीमूतान्हृदयौपशेनान्तरिक्षं पुरीतता नभ उदर्येण
चक्रवाकौ मतस्नाभ्यां दिवं वृक्काभ्यां गिरीन्प्लाशिभिरूपलान्प्लीहा वल्मीकान्क्लोमभिग्लौंभिर्गुल्मान्हिराभि:
स्त्रवन्तीर्हृदान्कुक्षिभ्यार्ठ॰ समुद्रमुदरेण वैश्वानरंभस्मना॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
वाराह्यै नमः। वाराहीमावाहयामि, स्थापयामि ॥
५४. चामुण्डा (सर्वतोभद्रमंडल के बाहर तृतीयकृष्ण परिधि में पश्चिमदिशा)
ॐ समख्ये देव्या धिया संदक्षिणयोरुचक्षसा । मा म आयु: प्रमीषीर्मो अहं तव वीरं विदेय तव देवि संदृशि ॥
ॐ
भूर्भुवः स्वः चामुण्डायै नमः। चामुण्डामावाहयामि,
स्थापयामि ॥
५५. वैष्णवी (सर्वतोभद्रमंडल के बाहर तृतीयकृष्ण परिधि में वायव्य कोण)
ॐ रक्षोहणं वलगहनं वैष्णवीमिदमहं तं वलगमुत्किरामि यं मे निष्टयो यममात्यो निचरवानेदमहं तं
वलगमुत्किरामि यं मे समानो यमसमानो निचखानेदमहं तं वलगमुत्किरामि यं मे सबन्धुर्यमसबन्धुर्निचखानेदमहं
तं वलगमुत्किरामि यं मे सजातो यमसजातो निचखानोत्कृत्यां किरामि॥
ॐ भूर्भुवः स्वः वैष्णव्यै नमः। वैष्णवीमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
५६. माहेश्वरी (सर्वतोभद्रमंडल के बाहर तृतीयकृष्ण परिधि में उत्तरदिशा)
ॐ या ते रुद्र शिवा तनूरघोराऽपापकाशिनी । तया नस्तन्वा शन्तमया गिरिशन्ताभि चाकशीहि ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः
माहेश्वर्यै नमः। माहेश्वरीमावाहयामि, स्थापयामि ॥
५७. वैनायकी(सर्वतोभद्रमंडल के बाहर तृतीयकृष्ण परिधि में ईशान कोण) –
ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन । ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम् ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः वैनायक्यै नमः। वैनायकीमावाहयामि, स्थापयामि ॥
डी पी कर्मकांड भाग१४- लघु सर्वतोभद्रमण्डल Sarvatobhadra mandal
लघु सर्वतोभद्रमण्डल –
लघु सर्वतोभद्रमण्डल में 33 प्रधान देवी- देवताओं की स्थापना की जाती है:
१. गणेश- पीला
ॐ गणानां त्वा गणपति र्ठ ॰हवामहे, प्रियाणां त्वा प्रियपति र्ठ ॰ हवामहे,
निधीनां त्वा निधिपति र्ठ ॰ हवामहे, वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।
ॐ गणपतये नमः। गणपतिमावाहयामि,
स्थापयामि ।।
२. गौरी- हरा
ॐ आयंगौः पृश्निरक्रमी, दसदन् मातरं पुरः। पितरञ्च प्रयन्त्स्वः॥
ॐ गौर्यै नमः। गौरी आवाहयामि,
स्थापयामि ॥
३. ब्रह्मा- लाल
ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्, विसीमतः सुरुचो वेनऽआवः।
स बुध्न्याऽ उपमाऽ अस्य विष्ठाः,सतश्च योनिमसतश्चवि वः॥
ॐ ब्रह्मणे नमः। ब्रह्मामावाहयामि,
स्थापयामि ॥
४. विष्णु –सफेद
ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे, त्रेधा निदधे पदम्। समूढमस्य पा र्ठ ॰ सुरे स्वाहा।
ॐ विष्णवे नमः। विष्णुमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
५. रुद्र (दमन) लाल
ॐ नमस्ते रुद्र मन्यवऽ,उतो तऽ इषवे नमः। बाहुभ्यामुत ते नमः॥
ॐ रुद्राय नमः।
रुद्रमावाहयामि, स्थापयामि ॥
६. गायत्री – पीला
ॐ गायत्री त्रिष्टुब्जगत्यनुष्टुप्, पंक्त्या सह। बृहत्युष्णिहा ककुप्सूचीभिः, शम्यन्तु त्वा॥
ॐ गायत्र्यै नमः। गायत्रीमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
७. सरस्वती –लाल
ॐ पावका नः सरस्वती, वाजेभिर्वाजिनीवती। यज्ञं वष्टु धियावसुः।
ॐ सरस्वत्यै नमः। सरस्वतीमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
८. लक्ष्मी –सफेद
ॐ श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहो रात्रे, पार्श्वे नक्षत्राणि रूपमश्विनौ व्यात्तम्।
इष्णन्निषाणामुम्मऽ इषाण, सर्वलोकं म ऽ इषाण।
ॐ लक्ष्म्यै नमः। लक्ष्मीमावाहयामि, स्थापयामि ॥
९. दुर्गा –लाल
ॐ जातवेदसे सुनवाम सोमम्, अरातीयतो नि दहाति वेदः।
स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा, नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्निः॥
ॐ दुर्गायै नमः।
दुर्गामावाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥
१०. पृथ्वी –सफेद
ॐ मही द्यौः पृथिवी च नऽ, इमं यज्ञं मिमिक्षताम्। पिपृतां नो भरीमभिः।
ॐ पृथिव्यै नमः। आवाहयामि,
स्थापयामि ॥
११. अग्नि –पीला
ॐ त्वं नो अग्ने वरुणस्य विद्वान्, देवस्य हेडो अव यासिसीष्ठाः।
यजिष्ठो वह्नितमः शोशुचानो, विश्वा द्वेषा र्ठ ॰ सि प्र मुमुग्ध्यस्मत्।
ॐ अग्नये नमः।
अग्निमावाहयामि, स्थापयामि ॥
१२. वायु –सफेद
ॐ आ नो नियुद्भिः शतिनीभिरध्वर र्ठ ॰, सहस्रिणीभिरुप याहि यज्ञम्।
वायो अस्मिन्त्सवने मादयस्व, यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः।
ॐ वायवे नमः। वायुमावाहयामि
स्थापयामि ॥
१३. इन्द्र –लाल
ॐ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्र र्ठ ॰, हवेहवे सुहव र्ठ ॰शूरमिन्द्रम्। ह्वयामि शक्रं पुरुहूतमिन्द्र र्ठ ॰,
स्वस्ति नो
मघवा धात्विन्द्रः। ॐ इन्द्राय नमः। इन्द्रमावाहयामि स्थापयामि ॥
१४. यम –सफेद
ॐ सुगन्नुपंथां प्रदिशन्नऽएहि, ज्योतिष्मध्येह्यजरन्नऽआयुः।
अपैतु मृत्युममृतं मऽआगाद्, वैवस्वतो नो ऽ अभयं कृणोतु। ॐ यमाय नमः। यममावाहयामि,
स्थापयामि ॥
१५. कुबेर –काला
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने, नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे।
स मे कामान् कामकामाय मह्यम्। कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु। कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः।
ॐ कुबेराय नमः। कुबेरमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
१६. अश्विनीकुमार –पीला
ॐ अश्विना तेजसा चक्षुः, प्राणेन सरस्वती वीर्यम्। वाचेन्द्रो बलेनेन्द्राय, दधुरिन्द्रियम्।
ॐ अश्विनीकुमाराभ्यां नमः।
अश्विनीकुमारमावाहयामि, स्थापयामि ॥
१७. सूर्य –काला
ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्त्तमानो, निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च। हिरण्ययेन सविता रथेना, देवो याति भुवनानि पश्यन्॥
ॐ सूर्याय नमः। सूर्यमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
१८. चन्द्रमा -लाल
ॐ इमं देवाऽ असपत्न र्ठ ॰, सुवध्वं महते क्षत्राय, महते ज्यैष्ठ्याय, महते जानराज्याय, इन्द्रस्येन्द्रियाय।
इमममुष्य पुत्रममुष्यै, पुत्रमस्यै विशऽएष वोऽमी, राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणाना र्ठ ॰ राजा।
ॐ चन्द्रमसे नमः।
चन्द्रमामावाहयामि, स्थापयामि ॥
१९. मङ्गल –सफेद
ॐ अग्निर्मूर्द्धा दिवः ककुत्, पतिः पृथिव्याऽ अयम्। अपा र्ठ ॰ रेता र्ठ ॰ सि जिन्वति।
ॐ भौमाय नमः। मङ्गलमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
२०. बुध –हरा
ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि, त्वमिष्टापूर्ते स र्ठ ॰ सृजेथामयं च।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्,
विश्वे देवा
यजमानश्च सीदत॥ ॐ बुधाय नमः। बुधमावाहयामि, स्थापयामि ॥
२१. बृहस्पति –पीला
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो, अर्हाद्द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु। यद्दीदयच्छवसऋतप्रजात, तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।
उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये, त्वैष ते योनिर्बृहस्पतये त्वा।
ॐ बृहस्पतये नमः। बृहस्पतिमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
२२. शुक्र –हरा
ॐ अन्नात्परिस्रुतो रसं, ब्रह्मणा व्यपिबत् क्षत्रम्, पयः सोमं प्रजापतिः।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं, विपानœ शुक्रमन्धस, ऽइन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु॥
ॐ शुक्राय नमः। शुक्रमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
२३ . शनिश्चर –लाल
ॐ शन्नो देवीरभिष्टयऽ, आपो भवन्तु पीतये। शं योरभिस्रवन्तु नः।
ॐ शनिश्चराय नमः। शनिमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
२४. राहु –पीला
ॐ कया नश्चित्रऽआ भुव, दूती सदावृधः सखा। कया शचिष्ठया वृता।
ॐ राहवे नमः। राहुमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
२५. केतु- लाल
ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे, पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथाः।
ॐ केतवे नमः। केतुमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
२६. गङ्गा –सफेद
ॐ पञ्च नद्यः सरस्वतीम्, अपि यन्ति सस्रोतसः। सरस्वती तु पंचधा, सो देशेऽभवत्सरित्।
ॐ गङ्गायै नमः। गङ्गामावाहयामि,
स्थापयामि ॥
२७. पितृ –पीला
ॐ पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः, पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः,
प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः। अक्षन् पितरोऽमीमदन्त, पितरोतीतृपन्त पितरः, पितरः शुन्धध्वम्।
ॐ पितृभ्यो नमः। पितृमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
२८. इन्द्राणी –सफेद
ॐ अदित्यै रास्नाऽसीन्द्राण्या उष्णीषः। पूषासि घर्माय दीष्व ।
ॐ इन्द्राण्यै नमः। इन्द्राणीमावाहयामि,
स्थापयामि,
ध्यायामि॥
२९. रुद्राणी –काला
ॐ या ते रुद्र शिवातनूः, अघोराऽपापकाशिनी। तया नस्तन्वा शन्तमया, गिरिशन्ताभिचाकशीहि।
ॐ रुद्राण्यै नमः। रुद्राणीमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
३०. ब्रह्माणी –पीला
ॐ इन्द्रा याहि धियेषितो, विप्रजूतः सुतावतः। उप ब्रह्माणि वाघतः।
ॐ ब्रह्माण्यै नमः। ब्रह्माणीमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
३१. सर्प –काला
ॐ नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु। ये अन्तरिक्षे ये दिवि, तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः।
ॐ सर्पेभ्यो नमः। सर्पमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
३२. वास्तु –हरा
ॐ वास्तोष्पते प्रति जानीहि अस्मान्, स्वावेशो अनमीवो भवा नः।
यत्त्वेमहे प्रतितन्नो जुषस्व,
शन्नो भव
द्विपदे शं चतुष्पदे॥ ॐ वास्तुपुरुषाय नमः। वास्तुमावाहयामि,
स्थापयामि ॥
३३. आकाश –सफेद
ॐ या वां कशा मधुमत्यश्विना सूनृतावती। तया यज्ञं मिमिक्षतम्।
उपयामगृहीतोऽस्यश्विभ्यां, त्वैष ते योनिर्माध्वीभ्यां त्वा। ॐ आकाशाय नमः। आकाशमावाहयामि, स्थापयामि ॥
डी पी कर्मकांड भाग१४- केवल नाम क्रमानुसार सर्वतोभद्रमंडल Sarvatobhadra mandal
केवल नाम
क्रमानुसार सर्वतोभद्रमंडल
केवल नाम
क्रमानुसार पूर्ण सर्वतोभद्रमंडल देवता का आवाहन,स्थापन निम्न है-
१-ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ ब्रह्मणे नमः। ब्रह्मणमावाहयामि, स्थापयामि ॥
२-ॐ भूर्भुवः स्वः सोमाय नमः। सोममावाहयामि, स्थापयामि ॥
३-ॐ भूर्भुवः स्वः ईशानाय नमः। ईशानमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४-ॐ भूर्भुवः स्वः इन्द्राय नमः। इन्द्रमावाहयामि, स्थापयामि ॥
५-ॐ भूर्भुवः स्वः अग्नये नमः। अग्निमावाहयामि, स्थापयामि ॥
६-ॐ भूर्भुवः स्वः यमाय नमः। यममावाहयामि, स्थापयामि ॥
७-ॐ भूर्भुवः स्वः निर्ऋतये नमः। निर्ऋतिमावाहयामि, स्थापयामि ॥
८-ॐ भूर्भुवः स्वः वरुणाय नमः। वरुणमावाहयामि, स्थापयामि ॥
९-ॐ भूर्भुवः स्वः वायवे नमः। वायुमा वाहयामि, स्थापयामि ॥
१०-ॐ भूर्भुवः स्वः अष्टवसुभ्यो नमः। अष्टवसुमावाहयामि, स्थापयामि ॥
११-ॐ भूर्भुवः स्वः एकादश रुद्रेभ्यो नमः। एकादशरुद्रनावाहयामि, स्थापयामि ॥
१२-ॐ भूर्भुवः स्वः द्वादश आदित्येभ्यो नमः। द्वादश आदित्यानावाहयामि, स्थापयामि ॥
१३-ॐ भूर्भुवः स्वः अश्विनीकुमाराभ्यां नमः। अश्विनौमावाहयामि, स्थापयामि ॥
१४-ॐ भूर्भुवः स्वः सपैतृकविश्वेभ्यो नमः। सपैतृकविश्वान्देवानावाहयामि, स्थापयामि ॥
१५-ॐ भूर्भुवः स्वः सप्तयक्षेभ्यो नमः। सप्तयक्षानावाहयामि, स्थापयामि ॥
१६- ॐ भूर्भुवः स्वः अष्टकुलनागेभ्यो नमः। अष्टकुलनागानावाहयामि, स्थापयामि ॥
१७-ॐ भूर्भुवः स्वः गन्धर्वाप्सरोभ्यो नमः। गन्धर्वाप्सरस: आवाहयामि, स्थापयामि ॥
१८-ॐ भूर्भुवः स्वः स्कंदाय नमः। स्कंदमावाहयामि, स्थापयामि ॥
१९-ॐ भूर्भुवः स्वः नन्दीश्वराय नमः। नन्दीश्वर मावाहयामि, स्थापयामि ॥
२०-ॐ भूर्भुवः स्वः शूलाय नमः। शूलमावाहयामि, स्थापयामि ॥
२१-ॐ भूर्भुवः स्वः महाकालाय नमः। महाकालमावाहयामि, स्थापयामि ॥
२२-ॐ भूर्भुवः स्वः दक्षादिभ्यो नमः। दक्षादिमावाहयामि, स्थापयामि॥
२३-ॐ भूर्भुवः स्वः दुर्गायै नमः। दुर्गामावाहयामि, स्थापयामि ॥
२४-ॐ भूर्भुवः स्वः विष्णवे नमः। विष्णुमावाहयामि, स्थापयामि ॥
२५-ॐ भूर्भुवः स्वः स्वधायै नमः। स्वधामावाहयामि, स्थापयामि ॥
२६-ॐ भूर्भुवः स्वः मृत्युरोगेभ्यो नमः। मृत्युरोगानावाहयामि, स्थापयामि ॥
२७-ॐ भूर्भुवः स्वः गणपतये नमः। गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि ।।
२८-ॐ भूर्भुवः स्वः अद्भ्यो नमः। अप: आवाहयामि, स्थापयामि ॥
२९-ॐ भूर्भुवः स्वः मरुद्भ्यो नमः। मरुत: आवाहयामि, स्थापयामि॥
३०-ॐ भूर्भुवः स्वः पृथिव्यै नमः। पृथ्वीमावाहयामि, स्थापयामि ॥
३१-ॐ भूर्भुवः स्वः गङ्गादिनदीभ्यो नमः। गंगादि-नदी: आवाहयामि, स्थापयामि ॥
३२-ॐ भूर्भुवः स्वः सप्तसागरेभ्यो नमः। सप्तसागरानावाहयामि, स्थापयामि ॥
३३-ॐ भूर्भुवः स्वः मेरवे नमः। मेरुमावाहयामि, स्थापयामि ॥
३४-ॐ भूर्भुवः स्वः गदायै नमः। गदामावाहयामि, स्थापयामि ॥
३५-ॐ भूर्भुवः स्वः त्रिशूलाय नमः। त्रिशूलमावाहयामि, स्थापयामि ॥
३६-ॐ भूर्भुवः स्वः वज्राय नमः। वज्रमावाहयामि, स्थापयामि ॥
३७-ॐ भूर्भुवः स्वः शक्तये नमः। शक्तिमावाहयामि, स्थापयामि ॥
३८-ॐ भूर्भुवः स्वः दण्डाय नमः। दण्डमावाहयामि, स्थापयामि ॥
३९-ॐ भूर्भुवः स्वः खड्गाय नमः। खड्गमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४०-ॐ भूर्भुवः स्वः पाशाय नमः। पाशमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४१-ॐ भूर्भुवः स्वःअङ्कुशाय नमः। अङ्कुशमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४२-ॐ भूर्भुवः स्वः गौतमाय नमः। गौतममावाहयामि, स्थापयामि ॥
४३-ॐ भूर्भुवः स्वः भरद्वाजाय नमः। भरद्वाजमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४४-ॐ भूर्भुवः स्वः विश्वामित्राय नमः। विश्वामित्रमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४५-ॐ भूर्भुवः स्वः कश्यपाय नमः। कश्यपमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४६-ॐ भूर्भुवः स्वः जमदग्नये नमः। जमदग्निमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४७-ॐ भूर्भुवः स्वः वसिष्ठाय नमः। वसिष्ठमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४८-ॐ भूर्भुवः स्वः अत्रये नमः। अत्रिमावाहयामि, स्थापयामि ॥
४९-ॐ भूर्भुवः स्वः अरुन्धत्यै नमः। अरुन्धतीमावाहयामि, स्थापयामि ॥
५०-ॐ भूर्भुवः स्वः ऐन्द्रयै नमः। ऐन्द्रीमावाहयामि, स्थापयामि ॥
५१-ॐ भूर्भुवः स्वः कौमार्य्यै नमः। कौमारीमावाहयामि, स्थापयामि ॥
५२-ॐ भूर्भुवः स्वः ब्रह्म्यै नमः। ब्राह्मीमावाहयामि, स्थापयामि ॥
५३-ॐ भूर्भुवः स्वः वाराह्यै नमः। वाराहीमावाहयामि, स्थापयामि ॥
५४-ॐ भूर्भुवः स्वः चामुण्डायै नमः। चामुण्डामावाहयामि, स्थापयामि ॥
५५-ॐ भूर्भुवः स्वः वैष्णव्यै नमः। वैष्णवीमावाहयामि, स्थापयामि ॥
५६-ॐ भूर्भुवः स्वः माहेश्वर्यै नमः। माहेश्वरीमावाहयामि, स्थापयामि ॥
५७-ॐ भूर्भुवः स्वः वैनायक्यै नमः। वैनायकीमावाहयामि, स्थापयामि ॥
प्रतिष्ठा- आवाहन व स्थापन पश्चात निम्न मंत्र से प्रतिष्ठा करें-
प्रतिष्ठा सर्वदेवानां मित्रावरुणनिर्मिता । प्रतिष्ठां ते करोम्यत्र मण्डले दैवतै: सह ॥
पूजन- निम्न मंत्र द्वारा लब्धोपचार विधि से पूजन करें- ॐ ब्रह्मादि देवेभ्यो नमः।
इति डी पी कर्मकांड भाग१४- सर्वतोभद्र मंडल Sarvatobhadra mandal स्थापन पूजनम्
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