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नवदुर्गा – स्कन्दमाता Skandamata

नवदुर्गा – स्कन्दमाता  Skandamata

नवरात्र शक्ति उपासना का पर्व है। इस अवधि में ब्रह्मांड के सारे ग्रह एकत्रित होकर सक्रिय हो जाते हैं, जिसका दुष्प्रभाव प्राणियों पर पड़ता है। ग्रहों के इसी दुष्प्रभाव से बचने के लिए नवरात्रि में दुर्गा पूजा की जाती है।दुर्गा दुखों का नाश करने वाली देवी है। इसलिए नवरात्रि में जब दुर्गा के नवरूपों (नवदुर्गा ) की पूजा आस्था, श्रद्धा से की जाती है तो उनकी नवों शक्तियाँ जागृत होकर नवों ग्रहों को नियंत्रित कर देती हैं। फलस्वरूप प्राणियों का कोई अनिष्ट नहीं हो पाता। नवरात्रि के पांचवे दिन माँ दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा विधि–विधान से की जाती है।

सौम्या सौम्यतराशेष सौम्येभ्यस्त्वति सुन्दरी। परापराणां परमा त्वमेव परमेश्वरी।।

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

भगवान स्कन्द(कार्तिकेय) की माता होने के कारण दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है।

नवदुर्गा – स्कन्दमाता  Skandamata


नवदुर्गा – स्कन्दमाता  Skandamata की कथा - 

पौराणिक कथाओं के अनुसार  पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती जिन्हें महादेव की पत्नि होने के चलते महेश्वरी भी पुकारते हैं।  स्कंदमाता का अर्थ हुआ स्कंद की माता। भगवान कार्तिकेय का दूसरा नाम स्कंद है। माता पार्वती ने जब कार्तिकेय को जन्म दिया, तब से वह स्कंदमाता हो गईं। यह भी मान्यता है कि माँ दुर्गा ने बाणासुर के वध के लिए अपने तेज से 6 मुख वाले सनतकुमार को जन्म दिया, जिनको स्कंद भी कहते हैं। यह प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे।

नवदुर्गा – स्कन्दमाता  Skandamata का स्वरुप – 

स्कंदमाता का रूप सौंदर्य अद्वितिय आभा लिए शुभ्र वर्ण का होता है। उनके रूप में एक अजब का तेज होता है। वात्सल्य की मूर्ति हैं स्कंद माता। इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के पुष्प पर अभय मुद्रा में विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।

नवदुर्गा – स्कन्दमाता  Skandamata पूजन से लाभ –

स्कंदमाता की पूजा करने से संतान प्राप्ति शत्रु विजय और मोक्ष प्राप्त होता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है। यह देवी चेतना का निर्माण करने वाली है। इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। मां स्कंदमाता की पूजा से साधक को दोषों से मुक्ति मिलती है. शत्रु और दुर्घटना का भय दूर होता है. साथ ही बल और पराक्रमकी प्राप्ति होती है. देवी की पूजा से रक्त, निर्बलता, कुष्ठ आदि रोगों में भी स्वास्थ्य लाभ होता है. स्कंदमाता के पूजन करने से विशुद्ध चक्र जाग्रत होता है । 

नवदुर्गा – स्कन्दमाता  Skandamata पूजन विधि: 

नवरात्र में व्रत रहकर माता का पूजन श्रद्धा भाव के साथ किया जाता है। आचमनगौरी-गणेशनवग्रह, मातृकाकलशस्थापना आदि के बाद माताजी की मूर्ति का पूजन षोडशोपचार विधि से पुजा करें । स्‍कंदमाता को भोग स्‍वरूप केला अर्पित करना चाहिए। मां को पीली वस्‍तुएं प्रिय होती हैं, इसलिए केसर डालकर खीर बनाएं और उसका भी भोग लगा सकते हैं।

स्कन्दमाता का पूजन, ध्यान, स्तोत्र, कवच आदि इस प्रकार है-

नवदुर्गा – स्कन्दमाता  Skandamata ध्यान                                                                                       

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम् । सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम् ।। 

धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम् । अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम् ॥ 

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम् । मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम् ॥ 

प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम् । कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम् ॥

नवदुर्गा – स्कन्दमाता  Skandamataस्तोत्र                                                                                 

नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम् । समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम् ॥

शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम् । ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम् ॥ 

महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम् । सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम् ॥ 

अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम् । मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम् ॥

नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम् । सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम् ॥ 

सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम् । शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम् ॥ 

तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम् । सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम् ॥ 

सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम् । प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम् ॥ 

स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम् । अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम् ॥ 

पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम् । जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम् ॥

नवदुर्गा – स्कन्दमाता  Skandamata कवच  

ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा । 

हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता ॥ 

श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा । 

सर्वांग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा ॥

वाणंवपणमृते हुं फ्ट बीज समन्विता । 

उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैॠतेअवतु ॥ 

इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी । 

सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥ 

नवदुर्गा – स्कन्दमाता  Skandamata मंत्र

1. महाबले महोत्साहे। महाभय विनाशिनी । त्राहिमाम स्कन्दमाते। शत्रुनाम भयवर्धिनि ।।

2. ओम देवी स्कन्दमातायै नमः॥

स्कंदमाता बीज मंत्र

ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:। 

नवदुर्गा – स्कन्दमाता  Skandamata  की आरती

जय तेरी हो स्कन्दमाता पांचवा नाम तुम्हारा आता 

सब के मन की जानन हारी जग जननी सब की महतारी 

तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं 

कई नामों से तुझे पुकारा मुझे एक है तेरा सहारा 

कही पहाड़ों पर हैं डेरा कई शहरों में तेरा बसेरा 

हर मंदिर में तेरे नजारे गुण गाये तेरे भगत प्यारे 

भगति अपनी मुझे दिला दो शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो 

इंद्र आदी देवता मिल सारे करे पुकार तुम्हारे द्वारे 

दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आएं तुम ही खंडा हाथ उठाएं 

दासो को सदा बचाने आई चमनकी आस पुजाने आई            

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