कात्यायनी
कात्यायनी का अर्थ है अहंकार और कठोरता का नाश। बृहस्पति ग्रह पर देवी कात्यायनी का शासन है।
नवदुर्गा –
कात्यायनी Katyayani
शक्ति पर्व नवरात्रि में छठे दिन
माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है। नवदुर्गा में कात्यायनी छठी स्वरूप है।
कात्यायन ऋषि की आराध्या होने से ही यह देवी कात्यायनी कहलाती है। इनका गुण
शोधकार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता
है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं। माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी
हैं। दुर्गा के इस रूप कात्यायनी को आयुर्वेद औषधि में कई नामों से जाना जाता है।
जैसे- अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका माचिका भी कहते हैं।
चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना
।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥
राक्षसों का नाश करनेवाली, जो अपने
हाथ में एक चमकदार चंद्रहास धारणकर सिंह पर वर मुद्रा में बैठी है, वह देवी कात्यायनी हमें शुभ आशीर्वाद प्रदान करें।
कात्यायनी की कथा
पौराणिक कथा है कि एक समय कत नाम के प्रसिद्ध ऋषि थे।
उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए, उन्हीं के नाम से
प्रसिद्ध कात्य गोत्र से, विश्वप्रसिद्ध ऋषि कात्यायन
उत्पन्न हुए। उन्होंने भगवती पराम्बरा की उपासना करते हुए कठिन तपस्या की। उनकी
इच्छा थी कि भगवती उनके घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। माता ने उनकी यह
प्रार्थना स्वीकार कर ली। कुछ समय के पश्चात जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार
बहुत बढ़ गया था, तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा,
विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को
उत्पन्न किया था। महर्षि कात्यायन ने इनकी पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी
कहलायीं। शुक्ल सप्तमी, अष्टमी और नवमी, तीन दिनों तक कात्यायन ऋषि ने इनकी पूजा की, पूजा
ग्रहण कर दशमी को इस देवी ने महिषासुर का वध किया। माँ कात्यायनी ने देवताओं की
प्रार्थना सुनकर महिषासुर से युद्ध किया।
महिसासुर से युद्ध करते हुए माँ जब थक गई तब उन्होंने शहद युक्त पान
खाया। शहद युक्त पान खाने से माँ कात्यायनी
की थकान दूर हो गयी और महिषासुर का वध कर दिया।
अन्य कथा अनुसार भगवान कृष्ण को पति
के रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने कालिन्दी यानि यमुना के तट पर माँ
कात्यायनी की ही आराधना की थी। इसलिए माँ कात्यायनी ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी
के रूप में भी जानी जाती है। गोपियों द्वारा पढ़ा यह मंत्र विवाह के लिए अत्यंत
असरकारी व लोकप्रिय है।
कात्यायनी महामाया महायोगीन्यधीश्वरी
नंद गोप सुतं देवी पति में कुरुते
नम: ॥
कात्यायनी का स्वरुप
माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत
चमकीला और भव्य है। माँ का शरीर खूबसूरत आभूषणों से सुसज्जित है। उनका वर्ण सोने
के समान चमकता रहता है। इनकी चार भुजायें हैं, इनका
दाहिना ऊपर का हाथ अभय मुद्रा में है, नीचे का हाथ वरदमुद्रा
में है। बांये ऊपर वाले हाथ में तलवार और निचले हाथ में कमल का फूल है और इनका
वाहन सिंह है।
कात्यायनी पूजन से लाभ
माता अपने भक्तों पर बहुत जल्द ही
प्रसन्न हो जाती हैं तथा उनकी हर मुराद को पूरी करती है। माता कात्यायनी की पूजा
करने से व्यक्ति सफलता और प्रसिद्धि प्राप्त करता है । इनकी उपासना और आराधना से
भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त
पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है।
इनकी विशेष पूजा कन्या के विवाह में आ रही बाधा दूर हो जाती है। माँ की आराधना
करने से विवाह संबंधी किसी भी प्रकार के दोष हो, वे खत्म हो
जाते हैं। कात्यायनी के पूजन करने से आज्ञाचक्र जाग्रत होता है । माँ कात्यायनी
अपने भक्तों को वरदान और आशीर्वाद प्रदान करती है। माँ कात्यायनी शत्रुहंता है
इसलिए इनकी पूजा करने से शत्रु पराजित होते हैं और जीवन सुखमय बनता है। अगर भक्त
खुद को पूरी तरह से माँ कात्यायनी को समर्पित कर दें, तो माँ
कात्यायनी उसे अपना असीम आशीर्वाद प्रदान करती है। कात्यायनी कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है।
कात्यायनी पूजन विधि:
नवरात्र में व्रत रहकर माता का पूजन
श्रद्धा भाव के साथ किया जाता है। आचमन, गौरी-गणेश,
नवग्रह, मातृका व कलश स्थापना आदि के बाद
माताजी की मूर्ति का पूजन षोडशोपचार विधि से पुजा करें । माताजी को सूजी का हलवा
और शहद का भोग लगाएँ। माता को पांच तरह की मिठाईयों का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं
में प्रसाद बांटे। देवी कात्यायनी को लाल
रंग का पुष्प खासकर लाल गुलाब चढ़ाये।
कात्यायनी माता का पूजन,
ध्यान, स्तोत्र, कवच आदि
इस प्रकार है-
कात्यायनी ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ
चन्द्रार्घकृतशेखराम् ।
सिंहारूढ चतुर्भुजाकात्यायनी
यशस्वनीम् ॥
मैं मनोवांछित लाभ प्राप्त करने के
लिए,
सभी तरह के मनोरथों को पूरा करने वाली, मस्तक
पर अर्ध चंद्र को धारण करने वाली, सिंह की सवारी करने वाली,
चार भुजाओं वाली और यश प्रदान करने वाली माँ कात्यायनी, की वंदना करता हूँ।
स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्रस्थितां
षष्ठम्दुर्गा त्रिनेत्राम ।
वराभीतंकरां षगपदधरां कात्यायनसुतांभजामि
॥
कात्यायनी माता के शरीर का रंग
स्वर्ण धातु जैसा चमकदार है। वे हमारे आज्ञा चक्र में स्थित होती हैं और उसे मजबूत
करने का कार्य करती हैं। वे माँ दुर्गा का छठा रूप हैं जिनके तीन नेत्र हैं। उनके
हाथ भक्तों को वरदान व अभय देने की मुद्रा में हैं। यह धरती उनके पैरों में है। हम
सभी भक्तगण कात्यायनी माँ का ही ध्यान करते हैं।
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखीं
नानालंकार भूषिताम् ।
मंजीर हार केयूर किंकिणि रत्नकुण्डल
मण्डिताम् ॥
कात्यायनी मां पीले रंग के वस्त्र
धारण करती हैं। उनके मुख पर स्नेह के भाव हैं और उन्होंने नाना प्रकार के आभूषणों
से अपना अलंकर किया हुआ है। उन्होंने अपने शरीर पर मंजीर,
हार, केयूर, किंकिणी व
रत्नों से जड़ित कुंडल धारण किये हुए हैं।
प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कान्त
कपोलाम् तुगम् कुचाम् ।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित
निम्न नाभिम् ॥
मैं प्रसन्न मन के साथ कात्यायनी
माँ की आराधना करता हूँ। उनका स्वरुप बहुत ही सुंदर, कमनीय, रमणीय व वैभव युक्त है। तीनों लोकों में उनकी
पूजा की जाती है।
कात्यायनी स्तोत्र
कञ्चनाभां वराभयं पद्मधरा
मुकटोज्जवलां ।
स्मेरमुखी शिवपत्नी कात्यायनेसुते
नमोऽस्तुते ॥
कात्यायनी देवी की आभा से हम सभी को
अभय मिलता है और हमारे भय दूर हो जाते हैं। उन्होंने अपने हाथ में कमल पुष्प ले
रखा है और मस्तक पर मुकुट पहन रखा है जिसमें से प्रकाश निकल रहा है। उनका मुख आनंद
देने वाला है और वे भगवान शिव की पत्नी हैं। मैं कात्यायनी माता का पुत्र,
उन्हें नमस्कार करता हूँ।
पटाम्बर परिधानां नानालङ्कार
भूषिताम् ।
सिंहस्थिताम् पद्महस्तां
कात्यायनसुते नमोऽस्तुते ॥
मां कात्यायनी ने पीले रंग के
परिधान पहन रखे हैं और तरह-तरह के आभूषणों से अपना श्रृंगार किया हुआ है। वे सिंह
की सवारी करती हैं और उनके हाथों में कमल का फूल है। मैं कात्यायनी माता का सेवक,
उन्हें प्रणाम करता हूँ।
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा ।
परमशक्ति,
परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोऽस्तुते ॥
देवी कात्यायनी हमें आनंद प्रदान
करती हैं और वे ही परम सत्य व परम ब्रह्म का रूप हैं। कात्यायनी देवी ही
सर्वशक्तिशाली व परमभक्ति का रूप हैं। मैं कात्यायनी माँ का भक्त उन्हें नमन करता
हूँ।
विश्वकर्ती,
विश्वभर्ती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता ।
विश्वाचिन्ता,
विश्वातीता कात्यायनसुते नमोऽस्तुते ॥
माता कात्यायनी इस विश्व को चलाती
हैं,
हमें जीवन देती हैं, हमारा जीवन लेती भी हैं
और इस विश्व में प्रेम का संचार करती हैं। वे ही इस विश्व के प्राणियों की हर
चिंता हर लेती हैं और वे ही हमारा भूतकाल हैं। मैं कात्यायनी का सेवक, उन्हें बारंबार प्रणाम करता हूँ।
कां बीजा,
कां जपानन्दकां बीज जप तोषिते ।
कां कां बीज जपदासक्ताकां कां
सन्तुता ॥
कात्यायनी माता इस सृष्टि का बीज
मंत्र हैं और वे ही इस सृष्टि की आधार देवी हैं। जो भी कात्यायनी माता के बीज
मंत्र का जाप करता है, उसे परम आनंद की
प्राप्ति होती है। कात्यायनी माता ही हमारा भरण-पोषण करती हैं। हम सभी कात्यायनी
देवी की ही संतान हैं।
कांकारहर्षिणीकां धनदाधनमासना ।
कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा ॥
कात्यायनी माँ के ध्यान से हमें
हर्ष की अनुभूति होती है। वे ही हमें धन व सुख प्रदान करती हैं। जो भी सच्चे मन के
साथ कात्यायनी देवी के बीज मंत्र का जाप करता है, उसकी तपस्या सफल हो जाती है और वह मोक्ष को प्राप्त करता है।
कां कारिणी कां मन्त्रपूजिताकां बीज
धारिणी ।
कां कीं कूं कैं कः ठः छः
स्वाहारूपिणी ॥
हम सभी माता कात्यायनी के बीज मंत्र
का जाप करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। वे ही हमारे जीवन को सुखमय बनाती हैं और
विपत्तियों से हमारी रक्षा करती हैं। कात्यायनी माता ही हमारा भूतकाल,
वर्तमानकाल व भविष्यकाल निर्धारित करती हैं। हम सभी कात्यायनी माँ
के ही रूप हैं।
कात्यायनी कवच
कात्यायनी मुखं पातु कां
स्वाहास्वरूपिणी ।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य
सुन्दरी ॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी ॥
कात्यायनी की आरती
जय जय अंबे जय कात्यायनी ।
जय जगमाता जग की महारानी ।।
बैजनाथ स्थान तुम्हारा ।
वहां वरदाती नाम पुकारा ।।
कई नाम हैं कई धाम हैं ।
यह स्थान भी तो सुखधाम है ।।
हर मंदिर में जोत तुम्हारी ।
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी ।।
हर जगह उत्सव होते रहते ।
हर मंदिर में भक्त हैं कहते ।।
कात्यायनी रक्षक काया की ।
ग्रंथि काटे मोह माया की ।।
झूठे मोह से छुड़ानेवाली ।
अपना नाम जपानेवाली ।।
बृहस्पतिवार को पूजा करियो ।
ध्यान कात्यायनी का धरियो ।।
हर संकट को दूर करेगी ।
भंडारे भरपूर करेगी ।।
जो भी मां को भक्त पुकारे ।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे ।।
नवदुर्गा में आगे पढ़ें – कालरात्रि

Post a Comment